भारतीय भाषा आंदोलन ने उप राष्ट्रपति श्री नायडू द्वारा भारतीय भाषाओं व मातृभाषा को प्रोत्साहन देने के आवाहन का किया समर्थन
उपराष्ट्रपति नई दिल्ली में आयोजित मातृभाषा दिवस समारोह देशवासियों से भारतीय भाषाओं को बड़े स्तर पर बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन का आह्वान
नई दिल्ली (प्याउ व पसूकाभास)।
देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने व देश में भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग को लेकर विगत 83 माह से ऐतिहासिक सत्याग्रह करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन नेे उपराष्ट्रपति एम बेंकटया नायडू द्वारा देशवासियों से भारतीय भाषाओं व मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए देश की जनता से खुला आवाहन करने के लिए उन्हें खुली बधाई देते हुए उनका पूरजोर समर्थन किया। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने उपराष्ट्रपति से अनुरोध किया कि वे अपने प्रभाव का प्रयोग कर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषाओं से पूरी व्यवस्था संचालित कराने का पुरजोर आवाहन भी किया।
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन 21 अप्रैल 2013 ने देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने व भारतीय भाषायें लागू कराने के लिए राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर ऐतिहासिक धरना रूपि सत्याग्रह शुरू किया। जो सत्याग्रह आज 83 माह से जारी है। भारत सरकार ने देशहित की इस सर्वोच्च मुद्दे का समाधान करने के बजाय भारतीय भाषा आंदोलन को पुलिसिया दमन करके सतत धरने से वंचित रखा। इस दमन के बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन ने अपना सत्याग्रह जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर कार्यदिवस पर पदयात्रा कर ज्ञापन देने का सत्याग्रह विगत एक साल से जारी रखा है। 19 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने वाले सत्याग्रह के साथ भारतीय भाषा आंदोलन ने भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात कर उन्हें देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराकर भारत व भारतीय भाषाओं का परचम लहराने का ज्ञापन दिया। इसके साथ सवाल किया कि जब रूस,चीन, जापान,जर्मनी व इजराइल सहित अनैक देश अपने देश की भाषाओं में पूरी व्यवस्था संचालित कर विकास का परचम लहरा सकते हैं तो भारत अपनी दो दर्जन भारतीय भाषाओं में विकास सहित पूरी व्यवस्था क्यों नहीं संचालित कर सकता है।इसके प्रत्युत्तर में भाजपा अध्यक्ष श्री नड्डा ने भाषा आंदोलन को आश्वासन दिया कि मोदी सरकार भारतीय भाषाओं व भारतीय संस्कृति को बढावा देने के लिए कृत संकल्पित है।
उल्लेखनीय यह है कि उप राष्ट्रपति श्री नायडू भारतीय भाषाओं के सबसे बडे ध्वजवाहकों में अग्रणी है। श्री नायडू ने 20 फरवरी को ही देशवासियों से भारतीय भाषाओं को बढावा देने का खुला आवाहन किया था। उपराष्ट्रपति ने यह आवाहन किया मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक आयोजन में। उल्लेखनीय है कि 21 फरवरी, 2020 को देशभर में बड़े स्तर पर मातृभाषा दिवस मना रहा है। इसके तहत आज 20 फरवरी को नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस समारोह के मुख्य कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू मुख्य अतिथि थे। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ इस अवसर पर अतिथि थे। संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल और मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री संजय धोत्रे भी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। कार्यक्रम का मुख्य विषय ‘हमारी बहुभाषी विरासत का उत्सव मनाना’ है जो एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को दर्शाता है।
कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के महत्व को उजागर करते हुए 22 भाषाओं में बात की। इस अवसर पर उन्होंने नागरिकों से मातृभाषा को प्रोत्साहित करने की शपथ लेने और अन्य भाषाओं को भी सीखने का आग्रह किया। उपराष्ट्रपति ने भारतीय भाषाओं को बड़े स्तर पर प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन का आह्वाहन किया और कहा कि जब हम मातृभाषा का संरक्षण और संवर्धन करते हैं तो हम अपने भाषाई और सांस्कृतिक विविधता का भी संरक्षण और संवर्धन करते हैं।
भाषा को रोजगार से जोड़ने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकारी नौकरियों में एक निश्चित स्तर तक भर्ती के लिए भारतीय भाषाओं का ज्ञान अनिवार्य किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि समावेशी विकास के लिए मातृभाषा को उत्प्रेरक बनना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने प्रशासन में स्थानीय भाषा का उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया। श्री नायडू ने यह भी कहा कि उच्च विद्यालय स्तर तक की पढ़ाई का माध्यम अनिवार्य रूप से स्थानीय भाषा को बनाया जाना चाहिए।
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि मातृभाषा वह भाषा है जिसे कोई व्यक्ति बिना किसी प्रयास के सीखता है और इसके प्रति उस व्यक्ति का गहरा भावनात्मक लगाव होता है। श्री पोखरियाल ने कहा कि भाषा न केवल संचार का एक माध्यम है, बल्कि उस समाज के लोगों के साथ एक मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और आर्थिक जुड़ाव भी है। उन्होंने कहा कि हमारा देश वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा में विश्वास करता है। इसलिए हम न केवल एक-दूसरे की भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हैं, बल्कि इसे आत्मसात करते हैं और इसे जीते हैं। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में जहां हजारों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, वहां प्रत्येक भाषा का महत्व और अपनी पहचान है।
श्री पोखरियाल ने कहा कि जहां हम इस बात पर गर्व करते हैं कि भारत में इतनी बड़ी संख्या में मातृभाषाएँ हैं वहीं दूसरी ओर भारत की 196 भाषाओं को यूनेस्को द्वारा जारी लुप्तप्राय भाषाओं की सूची में शामिल किया गया है जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि कुछ भाषाएं और बोलियां न केवल लुप्त होती जा रही हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं बल्कि दुख की बात यह है कि कई प्रमुख भाषाओं की हालत भी गंभीर है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण यह है कि कभी-कभी लोग अपनी मातृभाषा के संबंध में हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं जबकि यह समझना चाहिए कि कोई भी भाषा बड़ी या छोटी, अमीर या गरीब और मजबूत या कमजोर नहीं होती हैं। श्री निशंक ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाओं को संरक्षित करें और इसके साथ ही उन्हें प्रोत्साहित भी करें।
मंत्री महोदय ने बताया कि मातृभाषा दिवस विश्व में भाषायी और सांस्कृतिक विविधता तथा बहुभाषावाद को प्रोत्साहन देने और भाषाओं के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष यूनेस्को एक नई विषयवस्तु के साथ अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाता है। इस वर्ष (2020) की विषयवस्तु “लैंग्वेजेस विदाउट बॉर्डर्स” है, जिसका अर्थ भौगोलिक सीमाओं से परे भाषाएं है।
उपस्थितजनों को संबोधित करते हुए प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि हमें सभी भाषाओं पर गर्व है, लेकिन व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में निस्संदेह मातृभाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यद्यपि आवश्यकतानुसार व्यक्ति कई भाषाएं सीखता है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव अपनी मातृभाषा से ही होता है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में हर भाषा का विशाल इतिहास और भाषा संबंधी समाज और एक सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य है। उन्होंने पूरे विश्व में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने पर बल दिया, ताकि सीमाओं से परे संपर्क कायम रह सके।
आयोजन में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री संजय धोत्रे ने कहा कि मातृभाषा ऐसी पहली भाषा है, जो व्यक्ति अपने माता-पिता और माहौल से अर्जित करता है। व्यक्ति केवल अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति करते हुए सबसे अधिक सुविधा महसूस करता है। इसलिए, मातृभाषा को कक्षाओं में और विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण के माध्यम के रूप में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। श्री धोत्रे ने कहा कि भारत में ज्यादातर लोग द्विभाषी या बहुभाषी हैं। यह अनोखापन और हमारे देश की वृहद भाषायी विविधता ऐसा गुण है जिसके लिए हम गौरव का अनुभव कर सकते हैं।
शैक्षिक संस्थानों और भाषा संस्थानों के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रालय मातृभाषा दिवस मना रहा है। शैक्षिक संस्थान वक्तृत्व, वाद-विवाद, गायन, निबंध लेखन प्रतियोगिताओं, चित्रकारी प्रतियोगिताओं, संगीत और नाट्य प्रदर्शन, प्रदर्शनियों, ऑनलाइन संसाधनों और गतिविधियों का आयोजन करेगा। इसके अलावा बहुभाषी समाज की ज्ञानात्मक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से संबंधित कार्यक्रमों तथा कम से कम दो भाषाओं और अधिक को ध्यान में रखते हुए भारत की भाषायी व विविधतापूर्ण संपदा को प्रस्तुत करने वाली प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाएगा।