विश्व में अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए ईरान का भी हश्र अफगान,इराक, लीबिया, सीरिया व मिस्र की तरह करेगा अमेरिका
अमेरिका के आगे बेबस व आशंकित होकर तमाशबीन बना रहेेगा विश्व
अमेरिका की दया पर अपने अस्तित्व की रक्षा कर सकता है ईरानी शासक
देवसिंह रावत
अमेरिका द्वारा अपने स्वघोषित विरोधी ईरान के एक प्रमुख सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को इराक की राजधानी बगदाद में एक हवाई हमले में मार गिराने के बाद ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध की स्थिति पैदा हो गई है ।इस हमले से गुस्साए ईरान ने जहां अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देने के साथ ही कासिम को मारे जाने के अगले दिन ही 4 दिसंबर को इराक से अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर मिसाइल द्वारा हवाई हमले किए । ईरान ् द्वारा अमेरिका से बदला लेने की इस कृत्य के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुली चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ईरान ने अमेरिका के सैन्य प्रतिष्ठानों सहित किसी भी स्थान पर हमला करने का दुस्साहस किया तो अमेरिका ईरान में 53 महत्वपूर्ण स्थानों को ऐसा तबाह करेगा उसकी कल्पना से भी दुनिया कांप जाएगी।अमेरिका ने बगदाद में अमेरिकी दूतावास सहित अनैक प्रकरणों का गुनाहगार कासिम सुलेमान को मानता है और अमेरिका ने उसको पहले ही आतंकी घोषित किया हुआ था। अमेरिका का कहना है कि कासिम सुलेमानी का खात्मा करके अमेरिका ने अमेरिका सहित अपने समर्थकों की रक्षा की।
इस घटना का बदला लेते हुए ईरान ने 8 जनवरी के तड़के इराक स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकाने इरबील व अल असद पर मिसाइल से ताडबतोड हमला कर 80 अमेरिकी सैनिकों को मौत के घाट उतारने का दावा किया। इस हमले की पुष्टि करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने 8 जनवरी की रात 9.40 बजे कहा कि इससे अमेरिका के एक भी सैनिक को नुकसान नहीं हुआ हौर नहीं किसी प्रकार के सैन्य साजोसम्मान को नुकसान पंहुचा। हाॅ सैन्य अड्डे में मामुली नुकसान हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान को किसी भी सूरत में परमाणु शक्ति सम्पन्न देश नहीं बनने देंगे। इसके साथ अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि उनकी सरकार ईरान पर कई कड़े प्रतिबंध लगायेगी।जनरल सुलेमानी की मौत ने एक प्रकार से मुस्लिम जगत में अमेरिका के खिलाफ लामबद कर दिया है।
जवाबी कार्यवाही करने के बाद ईरान ने कहा कि अगर अमेरिका हमला करता है तो वह अमेरिका में घुसकर हमला करेंगे। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने तुरंत ईरान पर हमला करने का न तो ऐलान किया व नहीं इस प्रकार के कोई सीधे संकेत ही दिये। परन्तु ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका ईरान पर देर सबैर कडे प्रहार करके उसे भी इराक की तरह ही कूंद कर देगा। अमेरिका के सर्वोच्च नेता खुमैनी ने अमेरिका द्वारा मारे गये अपने कमांडर कासिम सुलेमानी को श्रद्धांजलि देते हुए अमेरिका के सैन्य अड्डों पर ईरान द्वारा किये गये हमले को ईरान का अमेरिका पर मारा गया करारा तमाचा बताया और अपने जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का बदला बताया। गौरतलब है कि अमेरिका ने भी कासिम सुलेमानी को आतंकी घोषित किया हुआ था वहीं ईरान की संसद ने भी पूरी अमेरिकी सेना को भी आतंकी घोषित करके पूरे खाडी देशों से अमेरिका को बाहर खदेड़ने की धमकी दी। ईरान द्वारा अमेरिका को यह भी धमकी दी गयी कि अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया तो ईरान अमेरिका के 100 अड्डो पर हमला करेगा। कुल मिला कर ईरान व अमेरिका के बी होने वाले इस युद्ध की आशंका से पूरा विश्व सहमा हुआ है। इस युद्ध की आशंका से ही पूरे विश्व के तेल के दामों में इजाफा हो गया है। वेसे विश्व के अधिकांश देशों ने अमेरिका व ईरान दोनों से संयम बरतने की अपिल की। पर लगता है अमेरिका अपने वजूद की रक्षा के लिए ईरान पर एक दो हमले तो करेगा ही।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका की धमकी को उसके पूर्व इतिहास को देखते हुए हल्के में नहीं लिया जा सकता है जिस प्रकार से अमेरिका ने जापान वियतनाम अफगानिस्तान इराक मिस्र लीबिया सीरिया को बर्बाद करना का कृत्य किया, उसे देख कर अमेरिका की राष्ट्रपति की युद्ध की धमकी हल्के में संसार का शायद ही कोई देश लेगा। खासकर जिस प्रकार से अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जो अमेरिका की सर्वोच्च ताकि उद्घोष करके ही चुनाव में विजयी हुए थे। उन्होंने ऐलान किया था कि पूरे विश्व में पुनः अमेरिका का दबदबा बनाया जाएगा और इसके लिए अमेरिका अपने विरोधियों को जमीन दूज करने का भी काम करेगा वैसे अमेरिका के विश्वविख्यात उद्योगपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में जो भी जानता है, उन्हें मालूम है कि डोनाल्ड ट्रंप श्वेत अमेरिकी वर्चस्व की राजनीति के लिए विख्यात है इसके साथ डोनाल्ड ट्रंप डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के भी प्रमोटर रहे हैं इसलिए बदला लेने का जुनून उनके अंदर जन्मजात है। अब अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद वह संसार के सर्वोच्च शक्तिशाली शासन अध्यक्ष है। ऐसे में उनकी धमकी हल्के में लेना एक प्रकार से कबूतरी मानसिकता ही होगी ।इसको जानते हुए भी ईरान जिस प्रकार से अमेरिका से सीधा टकराव का रास्ता चुना है, उसे देखकर ऐसा आशंका प्रकट की जा रही है कि कहीं हो न हो ईरान का भी हस्र अमेरिका, इराक, लीबिया, मिस्र, अफगानिस्तान व सीरिया की तरह कर दे। अमेरिका संसार के उन देशों में है जो अपने वर्चस्व के लिए संसार के तमाम देशों में अंकुश लगाने से पीछे नहीं रहा है ।इसी कारण इराक पर अमेरिकी हमले का जिस समय संयुक्त राष्ट्र संघ सहित पूरा विश्व विरोध कर रहा था। उस समय भी अमेरिकी ने संयुक्त राष्ट्र संघ सहित तमाम देशों को खुली चेतावनी दी थी कि अमेरिका अपने सम्मान की रक्षा खुद करता है ।यह कहते हुए अमेरिका ने आनन-फानन में इराक पर आतंकियों से संबंध व रसायनी घातक हथियार बनाने का आरोप लगाया था और ये आरोप इराक में सद्दाम के खात्मे के बाद भी सिद्ध नहीं कर पाया ।इसके बावजूद अमेरिका के खिलाफ ना सोवियत संघ का वारिस समझे जाने वाला रूस ने प्रश्न उठाया, नहीं विश्व में स्वयं को महाशक्ति कहने वाला चीन ने कुछ प्रश्न उठाए। ऐसे समय में अगर अमेरिका ईरान पर हमला करता है तो नहीं लगता है चीन और रूस बीच में ईरान की तरफ से युद्ध में कूदेंगे।
खासकर अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को इस बात का भान होता है कि अमेरिका दुनिया में अपना बर्चस्व बनाये रखने के लिए किसी की भी परवाह नहीं करता है। इसीलिए अमेरिका ने दुनिया की नाक में दम कर रखी है। कम से कम 6 दर्जन से अधिक देशों में अमेरिका का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप है। अमेरिका को अपना बर्चस्व बनाये रखने के लिए सबसे बडी ताकत नाटो के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ व विश्व बैंक सहित तमाम वैश्विक संस्थाओं पर अमेरिका की गहरी पकड़ हैे। अमेरिकी विरोधी तो इन तमाम संस्थाओं पर अमेरिका के हितों के प्रसारक व रक्षक के रूप में समय समय पर आरोपित करते है। खासकर जिस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक दिन कुवैत पर हमला करने वाले इराक पर तो प्रतिबंध लगा कर दण्डित किया। परन्तु इसी प्रकार विश्व जनमत को रौंदते हुए अमेरिका ने जिस प्रकार से इराक पर हमला कर वहां कत्लेआम किया, वहां के शासक सद्दाम को मौत के घाट उतारा व इराक पर बलात कब्जा किया। इसके बाबजूद स्वयं को संसार की सबसे बड़ी प्रतिनिधी संस्था होने का दंभ भरने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ व नहीं स्वयं को विश्व की महाशक्ति बताने वाले रूस व चीन ने अमेरिका को कटघरे में खड़ा करने का साहस किया। ऐसे में अपने सम्मान व हितों को रौंदने पर भी उफ तक न करने वाले भारत सहित अन्य देशों द्वारा अमेरिका को कटघरे में खड़ा करने की आश करना भी एक प्रकार नासमझी ही होगी।
जिस प्रकार से अमेरिका ने अमेेरिका के इशारे पर नाचने के लिए तैयार न होने वाले सोवियत संघ के बाद अब विश्व के तमाम मजबूत व समृद्ध इस्लामिक देशों को बर्बाद कर दिया है। उससे इस्लामिक दुनिया में ही नहीं अपितु विश्व के तमाम स्वाभिमानी देशों में गहरा असंतोष व गुस्सा है। खासकर इस बार अमेरिका द्वारा ईरानी सेना के बडे कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या करने के बाद पूरे मुस्लिम जगत में गहरा गुस्सा है। मुस्लिम जगत में अमेरिका के खिलाफ शिया व सुन्नी के मतभेद को दर किनारे करके भी एक है। जिस प्रकार इराक में ही नहीं विश्व के तमाम इस्लामिक देशों के साथ भारत की मुस्लिम जनता भी अमेरिका से आक्रोशित है। ईरानी कमांडर के मारे जाने पर ईरान ही नहीं अपितु ईराक में लोग सडकों पर उतरे है। भले ही अमेरिका अपनी ताकत व तिकडम के द्वारा सऊदी अरब सहित चंद मुस्लिम देश अपने पाले में रखे हुए है। पर अमेरिका के ताकत से भयभीत हो कर कहीं अमेरिका का नजला उस पर न गिरे की आशंका से आशंकित हो कर अन्य विश्व की तरह तमाशबीन रहेगी।
इसलिए अगर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रप ने ठान लिया है ईरान को सबक सिखाना है तो नहीं लगता कि विश्व ईरान को बचा पायेगा। खासकर जिस प्रकार से अमेरिका के राष्ट्रपति, महाभियोग के दंश से घिरे हुए हैं। वहीं अमेरिका में राष्ट्रपति को आगामी चुनावी वैतरणी से भी पार उतरना हे। इन दोनो मुद्दों से उबरने के लिए अगर डोनाल्ड ट्रम्प बलि का बकरा ईरान को बनाना चाहे तो वर्तमान समय में किसी भी संस्था व देश में ऐसी हिम्मत नहीं जो अमेरिका को ईरान पर अपनी महाशक्ति का खुमार उतारने से रोके। खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान की बढ़ती सामरिक ताकत को अमेरिकी हितों पर ग्रहण लगाना वाला मानते है। इसीलिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा द्वारा ईरान के साथ किये गये परमाणु समझौते को न केवल रद्द किया अपितु ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाये हुए है। यही नहीं अमेरिका ने पूरे विश्व से भी ईरान से आर्थिक संबंध तोड़ने के लिए विवश किया । ईरान से अपना महत्वपूर्ण व्यापारिक संबंध रखने वाले भारत सहित विश्व के अधिकांश देश अमेरिका की इस नादिरशाही पर उफ तक नहीं कर पाये।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वर्तमान में ईरान से कितने खपा हैं कि उन्होने न केवल ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी का खात्मा करने का आदेश अमेरिकी सेना को दिया अपितु कासिम के खात्मे किये जाने से आक्रोशित ईरान द्वारा बगदाद में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर मिसाइल द्वारा हमला करने के बाद दो टूक चेतावनी दी कि यदि ईरान अमेरिकी जवानों या सम्पत्ति पर हमला करता है तो अमेरिका 52 ईरानी स्थलों को निशाना बनाएगा और उन पर बहुत तेजी से और जोरदार हमला.किया जायेगा। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के दिलो दिमाग में 52 अंक उन लोगों की संख्या को दर्शाता है, जिनको 1976 में तेहरान में अमेरिकी दूतावास में बंधक बनाकर रखा गया था। अमेेरिका के दिल में ईरान के खिलाफ लम्बे समय से बदला लेने के लिए धधक रहा है। अमेरिका बहाने ढूढ रहा था, वह ईरान को उकसा रहा था, अब ईरान ने जिस प्रकार बगदाद में अमेरिकी दूतावास में भीड़ द्वारा हमला किया गया उसके लिए अमेरिका ने ईरान के शक्तिशाली रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी को गुनाहगार मानते हुए उसका खात्मा करने में देर नहीं किया। भले ही ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरिका द्वारा मारे जाने पर अमेरिका को सबक सिखाने की हुंकार भरते हो परन्तु अगर ईरान ने अमेरिका के किसी सैन्य ठिकाने पर हमला किया तो अमेरिका ईरान के 52 स्थानों को तबाह करके त्राही माम कहने के लिए विवश कर देगा।
अमेेरिका का घोर विरोधी समझे जाने वाले ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनी सहित पूरा ईरान शासक अमेरिका को सबक सिखाने के लिए भले ही बैचेन हों पर अमेरिका के साथ सीधे टकराना ईरान के बस में नहीं है। अमेरिकी शासक जापान पर हुए हमले की तरह ही अपने अस्तित्व की रक्षा अमेरिका की दया पर ही कर सकते है।