–देव कृष्ण थपलियाल-
नवम्बर माह के अंत तक सभी चारों धामों के कपाट ’निर्विवाद’ ढंग से बंद हो गये, संतोष का विषय है। ’निर्विवाद’ इसलिए की विगत कई सालों से चार धाम यात्रा में किसी न किसी प्रकार व्यवधान उत्पन्न होना, आम बात सी हो गयी थी, जिससे इन यात्राओं को लेकर देशव्यापी आलोचनाओं की दौर शुरू होता रहा है ? यह व्यवधान चाहे प्राकृतिक आपदाओं को लेकर रहा हो अथवा सरकारी बद इंतजामियत को लेकर रहा हो, एक तरह से कहा जाय तो कि सरकार किसी बडी ’घटना’ की ताक में बैठकर ’मरहम’ लगानें की तप्परता को लेकर खुब ’राजनीतिक’ रोटियाॅ सेकनें का काम करती है ? लेकिन यह शुक्र है, की ऐंन बरसात से शुरू होंनें वालीं इन यात्राओं में कोई बडा ’झमेला’ सामनें नहीं आया हालाॅंकि यात्राकाल के दौरान काफी लोग काल-कलवित भी हुए, जिसका अफसोस हमेशा रहेगा ? किन्तु इन घटनाओं को रोकनें के लिए सरकारी प्रयास भी नदारद होंना कष्टप्रद है। आॅकडों के मुताबिक यात्रा के दौंरान 91 यात्रियों को विभिन्न कारणों से काल का ग्रास बनना पडा ? इन सभी मौंतों के पीछे ’हार्टअटेक’ बडा कारण बताया जा रहा है। जिसमें 55 यात्री केदारनाथ, 17 यात्री यमंुनोत्री, बद्रीनाथ और गंगोत्री में 6-6 यात्री तथा हेमकुंड में 7 यात्रियों की असामायिक मौत हो गई, अच्छी मेडीकल सुविधाओं का रोंना हमेशा रोया जाता है, अगर विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती हुई होती, तो ये आॅकडा गुणात्मक रूप से कम भी हो सकता था ? लेकिन ईश्वर का धन्यवाद है की यह आॅकडा यही तक सीमित रहा है।
मध्य हिमालय में स्थित उत्तराखण्ड की भौगोलिक बुनावट से शायद ही कोई अपरिचित होगा, फिर इन पौंराणिक तीर्थस्थलों की स्थिति कितनीं संवेदनशील है, जहाॅ शंख ध्वनीं पर भी प्रतिबंद है, थोडी हलचल होंनें से भी बडी-बडी प्राकृतिक आपदा का कहर ढह सकता है, के लिए राज्य सरकार के पास अभी तक कोई ’विजन’ है ही नहीं अथवा सरकार में बैठे लोंगों के लिए ऐसे स्थानों पर भारी मंशीनों की इजाजत देंनें जल्दी बाजी दिखती है, आमतौर जितनीं भी हाईड्रो पाॅवर-प्रोजेक्ट संचालित किये जा रहे हैं, वे यहीं इन्हीं तीर्थस्थलों के निकटवर्ती क्षेत्रों में हैं । जिससे यहाॅ खतरे की स्थिति किसी भी समय उत्पन्न हो सकती है अपितु कई बार घटनाऐं घटनें के बाद भी सरकार नहीं चेततीं ?
इस बार मौसम की अनुकूलताओ नंे हौसला बढाया जरूर जिसका सुखद असर यात्रियों पर दिखा। इस समय रिकार्ड तोड यात्रियों नें चारों धामों के दर्शन किये ? इस बार 37,64,185 यात्रियों चार धामों में पहुॅचकर अपनी हाजिरी लगाई। बदरीनाथ में 12,42,546, केदारनाथ 10,00821 यमुनोत्री 9,93,692 तथा गंगोत्री के दर्शनार्थ 5,27,926 भक्तगण पहॅुचे। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केदारनाथ में बिताये गये क्षणों को मिली मीडिया कबरेज नें 2013 में आई प्राकृतिक आपदा की गहरी चोट पर महरम लगानें का काम किया, प्रधानमंत्री जिस आत्मविश्वास के साथ केदारनाथ में विचरण और अपनी आध्यात्मिक क्रियाओं का संपादन कर रहे थे उससे बाबा केदारनाथ और आसपास के तीर्थस्थलों के दर्शन की लालस को जगानें में मदद मिलीं। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री की इस आध्यात्मिक यात्रा का असर पूरे देश पर सकारात्मक रूप से पडा है, जिससे यात्रियों की संख्या में भी गुणोत्तर वृद्वि हुई है। उत्तराखण्ड की राज्यपाल महामहिम श्रीमती बेबी रानी, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, मंत्रीमंडल के सदस्यों के आवागमन से निश्चित रूप से आम लोंगों में बदरी-केदार के दर्शनों की लालसा और विश्वास जगा । महाराष्ट्र के राज्यपाल व प्रदेश के नेता भगत सिंह कोश्यारी, थल सेना प्रमुख बिपिन रावत, उद्योगपति मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी जैसे महत्वपूर्ण महानुभावों के आगमन से चारधाम गुलजार रहा, जिससे आम लोंगों में चार धाम यात्रा की सहजता के प्रति विश्वास बढा। निश्चित रूप से श्रृद्वालुओं की उमडी भीड इस बात का प्रमाण प्रस्तुत कर रहीं थी ?
17 नवम्बर रविवार के दिन भगवान बदरी विशाल के कपाट को बंद करनें के समय लगभग 10,000 से अधिक लोंगों की भीड रही जो की अपनें आप में बडा रिकार्ड है। सुबह 3ः30 बजे से बदरीनाथ के कपाट बंद होंनें की प्रक्रिया शुरू हो गई । भगवान का अभिषेक कर प्रातः 7 बजे का पुष्प श्रृंगार किया गया । सुबह 8 बजे से भक्तों नें बदरी विशाल के दर्शन किये । 9ः30 पर भगवान को बाल भोग लगाया गया। 12 बजे बदरीनाथ मंदिर के सिंह द्वार पर बदरी-केदार मंदिर समिति द्वारा भगवान की स्तुति की गई । दोपहर 3ः30 बजे स्त्री वेष धारित रावल ईश्वरी नम्बूदरी नें माॅ लक्ष्मी को भगवान के सानिध्य में रखा। चार बजे कुबेर, गरूड, और उद्वव की विग्रह डोली को शीतकाल की पूजा के लिए बदरीश पंचायत से निवेदन कर सजाया गया। 4ः30 बजे पर भारत के अंतिम गाॅव माणा गाॅव में अविवाहित कन्याओं द्वारा एक दिन में बुनी ऊन की कंबल को भगवान को भेंट किया गया। इसके बाद रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूरदरी घी में लपेट कर भगवान को ओढाया गया।
14 नवम्बर को यमुनोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये गए, यमनोत्री धाम, चार धाम यात्रा का पहला पडाव है। यमुना के शीतकालीन प्रवास खरसाली में गुरूवार को यमुनोत्री धाम की शीतकालीन यात्रा का वैदिक मंत्रोच्चार व पूजा अर्चना के बाद बतौर मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड चार धाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष शिवप्रसाद मंमगाईं नें झण्डी दिखाकर शुभारम्भ किया । गुरूवार 21 नवम्बर द्वितीय केदार भगवान मद्यहेश्वर मंदिर कपाट को सुबह साढे आठ बजे वैदिक मंत्रोच्चार व विधि-विधान के साथ बंद कर दिये गये । परम्परा के अनुसार रीति-रिवाज और मंत्रोच्चार के साथ सुबह साढे तीन बजे पूजा-अर्चना के बाद भगवान का रूद्राभिषेक किया गया। अब भगवान की छह महीनें ऊखीमठ के ओंकेश्वर मंदिर में पूजा की जायेगी।
राज्य की सबसे चर्चित यात्राओं में चार धाम यात्रा देश-विदेशों के करोडों हिन्दु धर्मावम्बियों के लिए यह आस्था का प्रमुख केंद्र है, हर साल तीर्थयात्री-भक्तजनों को इसका इंतजार रहता है, और वे बडी तादात में यहाॅ चारों धामों के दर्शन-भ्रमण का लाभ लेते हैं। किन्तु उत्तराखण्ड के आम जनमानस के लिए इस महज आस्था-विश्वास तक ही सीमित नहीं है, अपितु यहाॅ इसका सीधा सम्बन्ध यहाॅ की अर्थव्यवस्था से भी है,रोजगार और समृद्वि के नये अवसरों से भी हैं, अगर इस यात्रा के महत्व को ठीक-ठाक समझा जाता तो इससे आम लोंगों के साथ-साथ राज्य सरकार को भी इससे सीधा फायदा मिलता। इस दिशा में सरकार का कोई ’विजन’ न होंनें कारण इस महत्वपूर्ण यात्रा का लाभ न सरकार के राजस्व में बढोत्तरी होती है, नहीं यहाॅ के आम लोंगों को ही ? बल्कि विपरीत हजारों-लाखों यात्रियों द्वारा प्रयोग जानें वाले मॅहगे और लग्जरी वाहनों से निकलनें वाले धुऐं से ’हिमालय’ की स्वच्छ आवोहव्वा को प्रदुषित किया जाता है, साथ में पाॅलीथीन जैसे तमाम अजैविक कुडे को हिमालय में डालकर यहाॅ की वनस्पति को नष्ट करनें का काम के अलावा कुछ भी नहीं होता है, कुछ सम्पन्न लोंग छुटिट्याॅ बितानें के लिए यहाॅ की शान्तवादियों को चुनते हैं, जहाॅ वे अपनीं मौज-मस्ती के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुॅचाते हैं, जिससे हिमालय की शान्त वादियों को हानि ही उठानी पडती है। सरकार की अस्पष्ट व तटस्थता नीति के कारण अभी तक कोई स्पष्ट नीति नहीं बनीं है। जिससे न तो यात्रियों को ठीक ढंग की व्यवस्था मिल पाती है,न हीं इसका लाभ राज्य को मिल पाता है। हालाॅकि यात्रा से सीधा लाभ लेंनें वाले मुट्ठी भर लोग सीमित और बडे व्यवसायी ही हैं, जो इस क्षेत्र में अपनें ही संसाधनों द्वारा बडे-बडे होटल, रेस्टोरेंट और अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान विकसित किये हुऐ हैं, जिसका मुनाफा भी उन्ही लोंगों तक सीमित है, आम लोगों के लिए अभी यह फायदे का सौदा नही बन पाया ?
सरकार श्रंाइन बोर्ड के गठन की बात कर चुकीं है, राज्य कैबिनैट इस पर मुहर भी लगा दी है, कहा जा रहा है की इस संस्था का निर्माण ’माॅ वैष्णों देवी’ के रख-रखाव के लिए गठित श्राइन बोर्ड की तर्ज पर होगा, किन्तु ये बात समझ से परे है की इससे क्या हासिल होंनें वाला है ? इस हाई-प्रोफाइल कमैटी का हस्तक्षेप सीधे मंदिर से जुडी हुई चीजों से है, जिसके ’प्रबन्धन’ को लेकर आज तक किसी को भी कोई शिकायत नहीं रहीं ? असल में बडा कारण सरकार की ’नीयत’ को लेकर है, श्रृद्वा-विश्वास में वृद्वि के साथ-साथ दान-दक्षिणा की बढी राशि को लेकर सरकार लालच और नीयत में बदलाव आया है ? लेकिन ये सरकार भूल गई की इस चिर-विश्वास के निर्माण में भी इन्हीं परम्पराओं का ही बडा योगदान है। इसीलिए सरकार ऐसा काम न करे, जिससे स्थानीय हक-हकूक धारियों व स्थानीय मान्यताओं को ठेस पहुॅचे ? ं
म्ंादिरों के रख-रखाव व शौंदर्य-निर्माण में सरकार आमतौर से सहयोग करती रही है, चारधाम यात्रा मार्गों सुसज्जित किया जाय, सडक, बीजली, पानीं होटलों व स्वच्छता के निर्माण अहम भूमिका निर्वहन करे। यात्रियों को आनें वाली परेशानियों व उनके समाधान के लिए एक पारदर्शी ’मैकैनिज्म’ निर्माण हो, यात्रा मार्गों के आसपास पर्यटन स्थलों को सही से चिन्हित किया जाय जिससे कई युवाओं को रोजगार मुहैय्या किया जा सके ? जैसे श्री बदरीनाथ-केदारनाथ समिति में बदरीनाथ और केदारनाथ धाम को साफ सुथरा रखनें के लिए अगले वित्तीय वर्ष में बजट में प्रावधान का निर्णय लिया । बदरीनाथ में जेपी ग्रुप के सहयोग से कूडा निस्तारण प्लांट लगेगा तो केदारधाम में प्लास्टिक फ्री किया जायेगा । हिन्दुस्तान की पहल पर लिया गया निर्णय। बाबा केदार धाम के दर्शनों को आकर्षक बनानें के लिए सरकार प्राचीन मूर्तियों का ओपन म्युजियम बनानें जा रही हैं। इस पर औपचारिक सहमति बन चुकि है, उधर केंद्रीय संस्कृति एवं संग्रहालय सचिव राघवेंन्द्र सिंह नें अफसरों के साथ केदारनाथ का निरीक्षण किया। केदारनाथ के आगे-पीछे ओपन म्युजियम बनानें की बात कही है । इसमें प्राचींन मूर्तियों को लगाया जायेगा।
अतः चार धाम यात्राओं के महत्व को समझते हुऐ, उसके उसके विकास के लिए काम किये जायें ? ताकि अधिक से अधिक यात्री मंदिरों में दर्शनार्थ आ सकें ।