उत्तराखंड

ठण्ड के बहाने गैरसैंण में शीतकालीन सत्र न कराने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को 4 दिसम्बर को गैरसैंण में उपवास करने की हुंकार भर कर हरीश रावत ने किया बेनकाब

ठण्ड का बहाना बना कर उतराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, देश की सुरक्षा व चहुमुखी विकास का प्रतीक है उतराखण्ड की राजधानी गैरसैंण की घोर उपेक्षा से करने को उतारू त्रिवेन्द्र रावत व प्रदेश के अन्य नेताओं  को 72 वर्षीय बुजुुर्ग हरीश रावत

 
ठण्ड के बहाने गैरसैंण में शीतकालीन सत्र न कराने वाले त्रिवेन्द्र रावत पर आंदोलनकारियों ने लगाया उतराखण्ड जनांकांक्षाओं व मोदी के वचन का अपमान   

प्यारा उतराखण्ड डाट काम

उतराखण्ड विधानसभा के शीतकालीन सत्र को प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने वाली गैरसैंण में कराने के बजाय ठण्ड के ंबहाने देहरादून में कराने की उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की हटधर्मिता से जहां पूरा प्रदेश के आंदोलनकारी आक्रोशित है वहीं जन भावनाओं का सम्मान करने की लोकशाही का करारा सबक पढाने व जनभावनाओं के साथ खडे होने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शीतकालीन सत्र के पहले दिन गैरसैंण में एक दिवसीय उपवास करने की ऐसी हुंकार भरी कि गैरसैंण में ठण्ड के बहाने देहरादून में ही शीतकालीन सत्र करने को उतारू उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत व अन्य विधायक पूरी तरह से बेनकाब हो गये। उतराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने गैरसैंण में ठण्ड का बहाना बनाने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र व अन्य नेताओं के इस बहाने को चुनौती देते कहा कि जब वे 72 साल की उम्र में गैरसैंण में 4 दिसम्बर को उपवास कर सकता है तो उनसे जवान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र जैसे नेता गैरसैंण में ठण्ड का बहाना बना कर उतराखण्डियों की जनांकांक्षाओं का अपमान कर रहे हैं।
श्री रावत ने अपने फेसबुक में लिखे संदेश से प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार व ठण्ड से भयभीत नेताओं को कड़ी फटकार लगाते हुए लिखा कि

#सरकार_कहती है कि, #हमारे_विधायकों को #गैरसैंण में #ठण्ड_लग_जाती है, तो #मैंने_तय_किया है कि, नहीं #गैरसैंण में #ठण्ड नहीं लगती है, #गैरसैंण_हमारी #आत्मा और #भावनाओं में #गर्माहट पैदा करता है, यह सिद्ध करने के लिये, #मैं 4 दिसम्बर को, जिस समय #देहरादून में #विधानसभा_सत्र_प्रारम्भ हो रहा होगा, #मैं_उपवास पर #बैठूंगा, यह #सांकेतिक_उपवास है। एक 72 साल का #वृद्ध, यह जताने के लिये #गैरसैंण में #उपवास पर #बैठ रहा है, #नहीं यह वही #गैरसैंण है, यह वही #राज्य_आन्दोलन की #भावना का #प्रतीक है, जिस #प्रतीक ने हमारे अन्दर इतनी #गर्माहट_पैदा की कि, हमने #देश का #दिल_पिघला दिया, #भारत_सरकार को #पिघला दिया और उत्तराखण्ड #राज्य अस्तित्व में आया। इसलिये, ‘‘#जै_गैरसैंण’’ के नारे के साथ, मैं 4 दिसम्बर को प्रातः 11 बजे, #गैरसैंण में ‘‘#सांकेतिक_उपवास’’ पर बैठूंगा।
 
#गैरसैंणिया_ठंड……..
#आज_कल का बड़ा #समाचार है, #गैरसैंण में #उत्तराखण्ड के #विधायकों को #ठंड_लग_जाती_है। यह सूत्र वाक्य #माननीय_मुख्यमंत्री, श्री #त्रिवेन्द्र_सिंह_रावत जी के श्रीमुख से उद्भाषित हुआ है। कुछ #पत्रकारों ने श्री त्रिवेन्द्र रावत जी से पूछा कि, #क्या आप #गैरसैंण में कोई #सत्र नहीं करवायेंगे, उन्होंने वही सहजता से कहा कि, हमारे #विधायकों को #गैरसैंण में #ठंड_लग_जाती है। उत्तराखण्ड का 75 प्रतिशत से अधिक भू-भाग गैरसैंण जैसा या गैरसैंण से भी अधिक ठंडा व कठिन है। सारे #उत्तराखण्डी_प्रबुद्धजन यूं ही #पलायन-पलायन कह रहे हैं, #कारणों को खोजने में मगज पच्चिसी कर रहे हैं। विद्धुतजनों का आयोग बनाकर पलायन के कारण व #समाधान_ढूंडे जा रहे हैं। #करोड़ों_रूपया इस महान दायित्व के निर्वहन में खर्च हो रहा है। उत्तराखण्ड के यश्स्वी पुत्र रैबार के आयोजन में जुट रहे हैं। सबकी वाणी पलायन के दर्द से कराह रही है। धन्य हैं, हमारे #मुख्यमंत्री जी, आपने एक #सूत्र_वाक्य में #बता_दिया कि, #विधायकों को #गैरसैंण में #ठंड_लगती है। निदान, #देहरादून_पलायन है, यदि यहां भी ठंड बड़ गई, तो फिर #दिल्ली के #उत्तराखण्ड_भवन में उत्तराखण्ड की #विधानसभा का #सत्र आयोजित किया जायेगा। हमारी समस्याओं का एक ही समाधान है, हम ठंड में उत्तराखण्ड के गांवों व नगरों में रह रहे लोगों को छः माह के लिए देहरादून ले आयें और उनके लिये यहां एक टैंट कालोनी बना दें। टी गार्डन एरिया, डोईवाला, वीरभद्र में जगह उपलब्ध है। हम पर मतदाताओं की अपेक्षा का आरोप भी नहीं लगेगा। गैरसैंण-गैरसैंण भी खत्म हो जायेगी। कभी-कभार गैरसैंण घूम लेंगे, विधान भवन में रैबार होगा, शेष भवनों में अतिथि आवास बनाया जा सकता है। ठण्ड का यही स्थायी समाधान है।
यूं श्री मोदी जी हैं, तो सब कुछ मुमकिन है। हमारे मुख्यमंत्री जी उनके प्रिय पात्र हैं। जितनी कमी है, वह माननीय अमित शाह जी पूरी कर देते हैं। मा. मुख्यमंत्री जी आदरणीय मोदी जी से मांग करें कि, उत्तराखण्ड के लिए जलवायु चक्र को ही बदल दें। हिन्दू कलैण्डर से मंगसीर, माघ, पूस आदि ठण्डे महिने हटाने भर हैं। न बांस रहेगा, न बांसुरी बजानी पडे़गी, सारा ठण्ड का भूत भाग जायेगा। विधायक जी खुश, अधिकारी जी खुश, शेष कार्य के लिए पलायन आयोग पहले से गठित है, ज्यादा-ज्यादा 20-25 रैबार और आयोजित कर दिये जायेंगे। इसे कहते हैं, आम के आम गुठलियों के दाम। विधायकों का खुश रहना आवश्यक है, लोकतंत्र के साधक स्तम्भ हैं। मैं, विधायकों को खुश नहीं रख पाया, तो विधायकों ने दल-बदल कर डाला, सरकार चित्त हो गई। श्री भुवन चन्द्र खण्डूरी जी भी विधायकों को खुश नहीं रख पाये, नेतृत्व परिवर्तन हो गया। भैय्या त्रिवेन्द्र जी सावधान रहना, आपको दल-बदल का खतरा तो नहीं है, आप सौभाग्यशाली हैं। 57 विधायकों वाले मुख्यमंत्री हैं, फिर भी बड़े भाई के बतौर मेरी एक सलाह याद रखना, वह सलाह है, बांगड़ बिल्लों से सावधान रहने की। कुछ अनुभवी, करिश्मायी के बाद बागड़ बिल्ले आपने इम्पोर्ट भी किये हैं, कुछ इंडिजनस हैं।
मैं, यह मुफ्त की सलाह रावत वाद में नहीं दे रहा हॅू। मैं तो रावतों का ही मारा हुआ हॅू। रावतों से तो ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। मैं गाफील रहा, अपने को बड़ा भाई समझ बैठा, फल भुगत रहा हॅू। ऐसा धोबी पाठ मारा कि, अभी तक बदन दुःख रहा है। कई प्रकार के तेलों से मालीस करवा ली है, दर्द है कि, जाता ही नहीं। आपको तो धन्याल देवता ने बचा दिया। दाव तो ऐसा चला था कि, आपके पुरखे भी चीख उठते। मंत्र-तंत्र से लेकर स्टींग तंत्र पर अपने भाईयों का कब्जा है। मेरी चिन्ता उत्तराखण्ड की राजनैतिक अस्थिरता है। 19 वर्ष बीत गये, उत्तराखण्ड किसे अपना दुखड़ा सुनाये, वह समझ नहीं पा रहा है। हर उस्ताद जिसे मौका मिला वह हाथ झाड़े बैठा है। ज्यों ही उत्तराखण्ड अपनी गाथा सुनाने लगता है, उस्ताद चुप करा देते हैं। एक ही सूत्र वाक्य है, मुझे अपना काम करने का पूरा मौका ही नहीं मिला। उस्ताद इस अंदाज में कहते हैं, मानो जैसा कि, पांच साल मिल जाते तो पहाड़ को भी मैदान बना डालते और उत्तराखण्ड आसमां की बुलिन्दियों को छू रहा होता। उत्तराखण्डी दोस्तों की समझ में अब आ गया होगा कि, मैं क्यों एक ही राग विरहा गाता हॅू, रावत पूरे पांच साल। उत्तराखण्ड बनेगा खुशहाल-त्रिवेन्द्र रावत पूरे पांच साल, मेरे कई दोस्तों को, बुद्धिजीवियों को, मेरा राग-विरहा राग कर्कस लगता है। मैं उन सबसे क्षमा चाहता हॅू। क्या करू, मैं तो सपने में भी उत्तराखण्ड रहे खुशहाल-रावत पूरे पांच साल, गाते धड़ाम हो गया। दो जगह से चुनाव लड़ा, विधायक भी नहीं बन पाया, अब इस राग-विरहा को गाते-गाते अपने मन को समझा लेता हॅू कि, शायद चुनाव के समय ग्वेल देवता को झपकी आ गई और घन्याल देवता का आर्शीवाद काम कर गया, ग्वेल हों या नरसिंग या घन्याल हों या हों कचड़ू देवता या हरूहित देवता, त्रिवेन्द्र रावत पूरे पांच साल याद रखना। कम से कम उत्तराखण्डी भाई-बैंणी, अपने अरमानों का हिसाब-किताब तो ठीक-ठाक तौर पर श्री त्रिवेन्द्र जी से ले सकें। श्री त्रिवेन्द्र सिंह जी को यह अवसर नहीं मिलना चाहिये कि, वह भी मेरी तरह हाथ झाड़कर कहें कि, क्या करू, मुझे तो पूरे पांच साल का वक्त काम करने को नहीं मिला। इस समय तो उत्तराखण्ड में विकास कत्यूरों की जागर बनकर रह गया है। कत्यूर रघुवंशी शासक मेरे ईष्ट देव हैं, कत्यूरी जागर में जब तक भक्त एक नर देवता को अपना दुःखड़ा सुनाता है और देवता पर्चा (समाधान) रूपी आर्शीवाद देने लगता है, तब तक दूसरा देवता नाचने लगता है और वह हांक लगाने लगता है। हां शौकार बता, तकें क्य दुःख छा और बेचारा दुःखड़ा बता भी नहीं पाता है, तब तक तीसरा देवता हुंकारता है, गुरू चाल दे। एक कहावत छोड़ जाती है कि, कत्यूरी जागर में गदू (कद्दू) घुरिगो (कद्दू लुढ़क गया)।
इन 19 वर्षों में भी विकास का गदूवा (कद्दू) लुढ़क ही रहा है। उत्तराखण्डी विकास की जागर तो इतनी अद्भुत है कि, हर कोने से देवता नाचते-2 आ रहा है। गुरू चाल दे, ढोल पर जगरिया थाप भी दे रहा है, डंगरिया नाच रहा है, पर पर्चा (समाधान) कोई नहीं बता रहा है। एकाध उस्ताद तो सारे उत्तराखण्डी ढोलों को एक ही जगह, एक साथ बजाकर विकास के देवता को नचाना चाहता है। कुछ हम जैसे हैं, जिन्होंने देव डोलियों को हर की पैड़ी व त्रिवेणी घाट में नहलाया है। कुछ डबल मंत्री हैं, जन्मजात मंत्री हैं, नामकीय मंत्री हैं, वे बाबा विश्वनाथ की डोली लिये, नंगे पांव उत्तराखण्ड की परिक्रमा कर डाल रहे हैं। सैम मुखीम से लेकर चम्पावत के गोरिया तक देवता आर्शीवाद दे रहे हैं, मगर हम नाचने में इतने तल्लीन हैं कि, उनके हाथ को ठीक से अपने सर पर रखने ही नहीं दे रहे हैं।
कुछ नर देवताओं ने नाचते-नाचते कहा, गुरू गैरसैंण की चाल लगा, कुछ देवताओं ने बिना कुछ किये, गैरसैंण उत्तराखण्ड की राजधानी घोषित कर दी। 2013 में बाबा केदार रूष्ठ हुये, हिमालयी सुनामी आ गई। कई बड़े-2 उस्ताद देवता जागर लगाने भराड़ीसैंण पहुंच गये। अहा जब ये देवता नाच रहे थे, तो कितना आनन्द आ रहा था, मुठ्ठी में एक दाना चावल नहीं, देवता सारे उत्तराखण्डियों को मोतिंग मार-मार कर कह रहे थे, गुरू चाल दे। भाई-बन्धुओ 2014 में गलती से मेरे में भी देवता आ गया। न्यौताड़ देवता था, अनुभव नहीं था, मैं भूल गया कि, मुझे खाली यूं ही कहना है, गुरू चाल दे और नाचने का स्वांग भर करना है। मैं, सच्ची-सच्ची नाच गया। गलती कर दी रिकाॅर्ड समय में शानदार विधानसभा भवन बना दिया। सचिवालय भवन के लिए धन आवंटित कर निर्माण एजेन्सी को काम सौंप दिया और जमीन उपलब्ध करवा दी। सभी देवता लोगों के रहने के वास्ते भवन बना दिये। छोटे देवताओं के लिये भी आवसीय कालोनी बनवा दी, बिजली-पानी की योजनायें बनवा दी, सड़कें, हैलीपैड व चारों तरफ गेस्ट हाउस बना दिये। भराड़ीसैंण टाउनशिप बनाने की योजना बनाकर यूहुडा नाम की संस्था को यह काम सौंप दिया, जमीन भी नोटीफाईड कर दी। राजधानी बनाने की तैयारी के लिए गैरसैंण व चखुटिया विकास परिषद गठित कर दिया। गैरसैंण से जुड़ने के लिए राज्य के अलग-2 हिस्सों में सड़क निर्माण हेतु काम प्रारम्भ कर दिया तथा गैरसैंण अवस्थापना विकास एवं निर्माण निगम गठित कर दिया। इस क्षेत्र के भावी विकास के लिये डांग गाॅव (चैखुटिया) में बड़ा हवाई अड्डा बनाने के लिए सेना से वार्ता शुरू कर दी और गौचर में ट्रायल पर हवाई सेवा प्रारम्भ कर दी। नौंताड़ देवता था, गैरसैंण-गैरसैंण कहते-2 इतना नाचा कि, जगरियारूपी उत्तराखण्ड की जनता का गला ही बैठ गया। डंगरिये की टांगें टूट गई, अब पता चला कि, जोश में होश गवाने का नतीजा क्या होता है। कत्यूरी जागर में तो कद्दू फूट जाता है, मेरी जागर में तो ठण्ड के मारे गैरसैणियां ढोल ही फट गया। नासमझ था, सोचा मेरे माॅ-बाप, दादा-दादी, नाना-नानी ने इसी ढंग से जीवन का ढोल बजाया, मैं भी बजाने लगा। कुछ और मेरे जैसे नौताड़ भी गैरसैंण का ढोल बजाने लगे। धन्य हो, मुख्यमंत्री जी मेरा फूटा ढोल देखकर आपको अक्ल आ गई। आपने गैरसैंण की ठण्ड में अपना ढोल फटने से बचा लिया, नहीं तो मेरी तरह बागड़-बिल्ले आपका ढोल भी फोड़ डालते व टांग तोड़ डालते। आपने गैरसैंण को गैर ही रहने दिया, देहरादून ही अपणुसैंण है, यह सिद्ध कर दिया।
(हरीश रावत)

उतराखण्ड राज्य आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने दो टूक शब्दों में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सहित तमाम गैरसैंणी ठण्ड से भयभीत नेताओं को याद दिलाया कि गैरसैंण में ही प्रदेश की एकमात्र विधानसभा बनी हुई है । इसके साथ प्रदेश सरकार ने गैरसैंण में शीतकालीन सत्र व बजट सत्र सहित तमाम महत्वपूर्ण सत्रों का सफल आयोजन किया जा चूका है । गत वर्ष भी शीतकालीन सत्र त्रिवेन्द्र सरकार की सरपरस्ती में गैरसैंण में आयोजित हो चूका है। गैरसैंण में आयोजित किसी भी सत्र में एक भी जनप्रतिनिधी न तो ठण्ड, गर्मी, तूफान व वर्षा का शिकार हुआ। फिर मुख्यमंत्री क्यों भयभीत हैं गैरसैंण में सत्र आयोजित करने में। श्री रावत ने मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि प्रदेश की राजधानी गैरसैण बनने के लिए बाबा मोहन उतराखण्डी आदि अनेक शहादतें उत्तराखंड राज्य के आंदोलनकारियों ने दी और उत्तराखंड की जनता की यही प्रमुख मांग राज्य गठन के साथ रही।इसके साथ उतराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश के उस तथाकथित बयान की कड़ी भत्र्सना की कि गैरसैंण में ठण्ड में प्रदेश के विधायक शीतकालीन सत्र नहीं चाहते। हिमालयी राज्य में ठण्ड का बहाना बना कर जनांकांक्षाओं को रौंदने का कृत्य स्वीकार नहीं है।श्री रावत ने कहा उतराखण्ड को ऐसे विधायकों की कोई जरूरत नहीं जो गैरसैंण जैसे जनभावनाओं के आस्था के स्थान पर जाने के लिए तैयार नहीं। इन विधायकों को इस बात का भी भान होना चाहिए कि प्रदेश के पर्वतीय जनपदों के लोग व देश की सुरक्षा में लगी सेना भी गैरसैंण जैसे भौगोलिक स्थिति में रहते है।
श्री रावत ने उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उतराखण्ड की जनभावनाओं का अनादर करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में उत्तराखंड को अच्छे दिन लाने के विश्वास दिलाकर जनादेश लिया था । उत्तराखण्ड में उसी अच्छे दिन के प्रतीक ‘ राजधानी गैरसैंण’ बनाने के वादे को पूरा करने की मांग को लेकर  गैरसैंण, देहरादून सहित दिल्ली के जंतर मंतर पर इस मांग को लेकर आंदोलन किया जाता रहा। सभी आंदोलनकारियों ने एक स्वर में प्रधानमंत्री से मांग की कि उत्तराखंडियों के अच्छे दिन तभी आएंगे जब प्रदेश की राजधानी गैरसैंण में बनेगी। परन्तु प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार सहित सभी सरकारें गैरसैण  राजधानी घोषित न करके उत्तराखंड को पतन के गर्त में धकेल कर वहां के विकास को अवरूद्ध कर रहे है।
उल्लेखनीय है कि इसी पखवाडे 17 नवम्बर 2017 से देहरादून में राजधानी गैरसैंण घोषित करने के लिए सतत धरना देने वाले राजधानी गैरसैण निर्माण अभियान द्वारा   दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित धरने में सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि  भाजपा व कांग्रेस सहित सभी दलों ने समय समय पर राजधानी गैरसैंण बनाने का आश्वासन प्रदेश की जनता को दिया था। प्रदेश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी की वर्तमान अध्यक्ष अजय भट्ट ने कर्णप्रयाग विधानसभा उपचुनाव के दौरान आश्वासन दिया था कि अगर कर्णप्रयाग विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी विजय  होती है तो भारतीय जनता पार्टी गैरसैंण में राजधानी घोषित करेगी । वहीं दूसरी तरफ हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार के दौरान गैरसैण  में विधानसभा सत्र के दौरान जो विधेयक पेश किया था वह गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने  के लिए ही पेश किया था ।

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