कोटद्वार का नाम कण्डवनगर के बजाय भारतनगर करे उतराखण्ड सरकार -हरीश रावत
देवसिंह रावत,
उतराखण्ड राज्य गठन के बाद मेने निरंतर उतराखण्ड की सरकारों से पुरजोर गुुहार लगायी थी कि उतराखण्ड के कोटद्वार स्थित कण्डवाश्रम में देश का सबसे प्रमुख धाम ‘भारत धाम’ का निर्माण करके देश को उसके गौरवशाली अतीत से जोड़ने के अपने दायित्व का निर्वहन करे।मैने प्यारा उतराखण्ड में इस आशय के कई लेख भी लिखे। यही नहीं रमेश पोखरियाल निशंक से इस आशय से एक घण्टे की विशेष वार्ता उतराखण्ड निवास दिल्ली में हुआ। बाद में मेने इसे प्रदेश के पर्यटन मंत्रालय देख रहे विश्व प्रसिद्ध संत सतपाल महाराज से भी इसकी गुहार लगायी। यही नहीं त्रिवेन्द्र रावत से भी मेने कण्डवाश्रम में भारत धाम बनाने की मांग की। मेरा साफ मानना है कि कोटद्वार स्थित कण्डवाश्रम है वह भारत के लिए सबसे बडा धाम है। क्योंकि वहां उन महापुरूष का महाराजा भरत का जन्म हुआ जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। यह भारत धाम हर जाति, हर धर्म, हर प्रदेश के भारतीयों के लिए सबसे बडा तीर्थ होगा।मेरा मानना है कि इस धाम का निर्माण भारत सरकार करे व इसका शुभारंभ स्वयं प्रधानमंत्री मोदी व देश के राष्ट्रपति करें। यह राष्ट्रीय महत्व का सबसे बडा धाम होगा। यह धाम भारत के लिए राष्ट्रीय एकता व प्रेरणा का स्थल होगा। मैं लम्बे समय तक इस मुद्दे को प्रदेश के तमाम नेताओं से कण्डवाश्रम में भारत धाम निर्माण करने की मांग करने बाद मुझे एक बात समझ में आयी कि प्रदेश के नेताओं में दूरदृष्टि के साथ राष्ट्रीय गौरव की समझ का भी नितांत अभाव है। वे सब छोटे स्तर पर कण्डवाश्रम को लेते है। केवल वहां परमेले इत्यादि करके ही अपना कर्तव्य इति समझते है।
आज 21 नवम्बर को मुझे उस समय सुखद आश्चर्य हुआ कि जब मेने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की फेसबुक पर इस आशय का एक टिप्पणी पडी। हरीश रावत ने 21 नवम्बर को प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को कोटद्वार का नाम बदलने को लेकर एक सलाहरूपि रोचक टिप्पणी करते हुए लिखा कि कोटद्वार का नाम बदलकर कण्डवनगर करना अच्छा आईडिया है। ऐसा लगता है कि, अब रावत लोग समझदारी का निर्णय करने लग गये हैं, मगर यदि कण्डवनगर के बजाय, सीधे-सीधे हम भरतनगर कर दें, तांकि देश और दुनियां को मालूम हो सके, भारत के पहले चक्रवर्ती सम्राट भरत का जन्म कोटद्वार में स्थित कण्डवाश्रम में हुआ और उस स्थल को हमने विकसित करने को जो मास्टर्स प्लान बनाया था, उसको रोक दिया है, उसको सरकार आगे चला दे, तो दोनों काम, मार्केटिंग का काम भी और साथ-2 वस्तुतः उस स्थल के विकास काम भी पूरा हो जायेगा।
उल्लेखनीय है कि ऐसी खबरें है कि उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत जो उनके गृह जनपद पौडी का एक महत्वपूर्ण द्वार है। उसका नाम बदल कर कण्डवनगर करने जा रहे है। इसकी भनक लगते ही शायद हरीश रावत ने यह सलाह त्रिवेन्द्र रावत को दी। भगवान बदरीनाथ उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र व प्रधानमंत्री को कण्डवाश्रम की महता का बोध कराके यहां पर भारत धाम बनाने की बुद्धि दे। जिससे राष्ट्र का कल्याण होगा।यह सीख मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को देते हुए उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को इस बात का जरूर मलाल रहा होगा कि काश वे मुख्यमंत्री रहते प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने के साथ मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा देने व कोटद्वार में भारत धाम बनाने का बडा काम करते तो प्रदेश की दिशा व दशा ही बदल जाती। पर इसे ही कहते हैं कि अब पछताये होत क्या जब चिड्डिया चुग गई खेत।