Pithoragarh उत्तराखंड

चुनाव पूर्व ही पिथोरागढ़ विधानसभा उप चुनाव में हारासन में पड़ी कांग्रेस ने बजा दी भाजपा की जीत का डंका

परिवारवाद के रोग से ग्रसित भाजपा भी कांग्रेस की तरह हुई बेेनकाब

पिथोरागढ़ विधानसभा सीट के उप चुनाव में भाजपा ने उतारी स्व प्रकाश पंत की धर्मपत्नी चंद्रा पंत  पर कांग्रेस के दिग्गज प्रत्याशी मयूख महर ने चुनाव लड़ने से किया इनकार
 
6 नवम्बर को नामांकन भरने का अंतिम दिन, 25 नवम्बर को होगा मतदान 

देवसिंह रावत

कांग्रेस के पिथोरागढ़ विधानसभा सीट पर सबसे मजबूत प्रत्याशी मयूख महर ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चुनाव लड़ने के पुरजोर आग्रह के बाबजूद इस उप चुनाव के दंगल में उतरने से साफ मना करने से एक प्रकार से इस सीट पर कांग्रेस की चुनौती समाप्त मानी जा रही है। कांग्रेस में इसी पर हो रहे उप चुनाव को लेकर कितनी हताशा है यह सबसे मजबूत प्रत्याशी मयूख महर के बाद इस सीट पर मजबूत दावेदारी की ताल ठोक रहे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री मथुरा प्रसाद जोशी ने भी इस उप चुनाव में ताल ठोकने से मना कर दिया। मयूख महर द्वारा इसी सीट पर हो रहे उप चुनाव से दूर रहने की घोषणा से प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व सन्न रह गया। यह देखते हुए कांग्रेस के दिग्गज चाहते थे कि इस सीट पर पूर्व सांसद व प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री महेन्द्र महरा को ही चुनावी दंगल में उतारा जाय। परन्तु स्थिति को भांपते हुए महेन्द्र महरा ने भी इस चुनावी दंगल में उतरने से साफ मना कर दिया।  हालांकि खानापूर्ति के लिए 4 नवम्बर को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रीतम सिंह व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश के साथ उतराखण्ड प्रभारी भी पंहुच कर किसी तरह एक प्रत्याशी को चुनावी दंगल में उतारने की रस्म पूरी करेंगे। पर मयूख महर के इस चुनाव से हटने से पिथोरागढ़ विधानसभा सीट के कांग्रेसी कार्यकत्ताओं में निराशा छा गयी। वे इस रस्मी चुनाव में अब उतने उत्साह के साथ प्रचार में नहीं जुट पायेंगे। हालांकि अब कांग्रेस के संभावित दावेदारों में रमेश कापड़ी व भुवन पाण्डे आदि का नाम चर्चा में है। पिथोरागढ विस उपचुनाव में भाजपा की चंद्रा पंत, कांग्रेस की अंजू लूंठी के बीच होगा।पर साफ हो गया कि कांग्रेस पिथोरागढ़ विधानसभा उप चुनाव की जंग मतदान से पहले ही हार सी गयी है। कमजोर नेतृत्व के कारण न केवल केन्द्र स्तर पर कांग्रेस कमजोर साबित हो रही है अपितुु प्रदेश के कमजोर नेतृत्व के कारण प्रदेश की भाजपा सरकार से पूरी तरह मोह भंग हो चूकी उतराखण्ड की जनता की नाराजगी को भी कांग्रेस के पक्ष में समेटने में उतराखण्ड कांग्रेस भी पूरी तरह असफल साबित हो रही है। इसका एक नजारा पिथोरागढ विधानसभा उप चुनाव में देखने में आ रहा है। प्रदेश कांग्रेस के पास न केवल संसाधनों की कमी है अपितु जुझारू नेतृत्व की कमी कांग्रेसी कार्यकत्र्ताओं को कदम कदम पर महसूस हो रही है।
उल्लेखनीय है कि केवल 2012 में इस पिथौरागढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा को मात दिये जाने के बाबजूद यह सीट भाजपा की परंपरागत सीट मानी जाती रही। सन2002, 2007 व 20017 के चुनावों में कांग्रेस को धूल चटाने वाली भाजपा को गहरा झटका तब लगा जब प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार समझे जाने वाले वर्तमान त्रिवेन्द्र सरकार में कबीना मंत्री प्रकाश पंत का यकायक अस्वस्थता के कारण निधन हो गया। प्रकाश पंत के निधन के कारण 2019 में यह पिथोरागढ़ सीट पर उप चुनाव  25 नवम्बर को होने जा रहा है। प्रकाश पंत की लोकप्रियता व आकस्मिक निधन से उपजी सहानुभूति को बटोर कर इस सीट को अपनी झौली में डालने की लालशा से ही कांग्रेस के परिवारवाद को पानी पी पी कर कोसने वाली भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने प्रकाश पंत की धर्मपत्नी चंद्रा पंत को चुनावी दंगल में उतरा। हालांकि भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा को भांप कर ही प्रदेश भाजपा ने प्रदेश में अध्यापन सेवा में जुडी चंद्रा पंत से एैच्छिक सेवा निवृति लेने को तैयार किया। इसके बाद ही उनको इस चुनावी दंगल की प्रत्याशी घोषित किया गया। हालांकि इस सीट पर भाजपा के अनैक ऐसे वरिष्ठ कार्यकत्र्ता भी दावेदार थे जिनको विश्वास था कि परिवारवाद के रोग से केवल कांग्रेस ही ग्रसित है। उन्हे यह रटाया गया था कि भाजपा तो जमीनी कार्यकत्र्ताओं को ही प्राथमिकता देती है वहीं कांग्रेस परिवारवाद से ग्रसित है। पर प्रदेश भाजपा  के वरिष्ठ कार्यकत्र्ता यमकेश्वर में भाजपा की विधायक बनी भाजपा नेता भुवनचंद खण्डूडी की पुत्री रितु खण्डूडी को भाजपा की ताजपोशी हो या कांग्रेस से विद्रोह करके भाजपा का दामन थामने वाले नैनीताल से कांग्रेस दिग्गज यशपाल आर्य व उनके पुत्र को विधायक का प्रत्याशी बनाने या भाजपाई नेता मुन्ना चैहान व मधु चैहान दम्पति को विधायक का दावेदार बनाने का काम भाजपा ने अपनी घोषित नीति को दरकिनारे करके ही किया। यही नहीं इसी विधानसभा के कार्यकाल में थराली विधानसभा सीट से प्रदेश के सबसे अजा के जमीनी नेता मगन लाल शाह के आकस्मिक निधन के बाद जिस प्रकार से भाजपा ने जमीनी वरिष्ठ कार्यकत्र्ताओं को दर किनारे करके दिवंगत मगनलाल शाह की पत्नी को थराली विधानसभा उपव चुनाव में अपना प्रत्याशी बना कर इस सीट पर अपनी पकड बरकरार रखी।
हालांकि इस सीट पर चुनावी रस्म अदायगी के लिए वामदल व अन्य दल भी ताल ठोकेंगे। पर चुनावी जंग केवल चुनावी समर में प्रत्याशी बन कर उतरने मात्र या नारों से नहीं जीता जाता। इसमें विजय वरण करने के लिए मतदान केन्द्रों तक अपना मजबूत प्रबंधन के साथ आर्थिक व संगठन की मजबूती के साथ मतदाताओं का दिल जीतना जरूरी होता है। वर्तमान हालत में इस सीट पर पिथोरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में चुनावी समर भाजपा के पक्ष में दिखायी दे रहा है परन्तु उसे टक्कर कांग्रेस से ही होगी। हाॅ इस जीत से हर मोर्चे में विफल साबित हो रही प्रदेश की भाजपा सरकार के मुखिया त्रिवेन्द्र रावत को अपनी पीठ खुद थपथपाने का मौका मिल जायेगा। वहीं हरियाणा व महाराष्ट्र चुनाव में आशातीत सफलता अर्जित न करने से हताश भाजपा कार्यकत्र्ताओं में इस जीत से नई आश जरूर जागेगी।

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