महाराष्ट्र व हरियाणा में बनी भाजपा गठबंधन सरकार, पर मिला नहीं आशानुकूल जनादेश
हार को भी जीत में बदलने की कला महारथी है मोदी
नई दिल्ली (प्याउ)। 24 अक्टूबर को हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने से एक बात साफ हो गई कि हरियाणा व महाराष्ट्र में भले ही भाजपा गठबंधन को आशानुकूल जनादेश न मिला हो पर सरकार भाजपा गठबंधन की ही बनी । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र ही बने रहेंगे व हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही बनेंगे।
हालांकि हरियाणा में जिस प्रकार से अप्रत्याशित चुनाव परिणाम आए उससे भाजपा की एक प्रकार से चूलें हिल गई। हरियाणा के चुनाव परिणामों ने भाजपा के कार्यकर्ताओं की आशाओं पर एक प्रकार से ग्रहण सा लगा दिया। चुनाव परिणाम इतने घातक रहे कि उसके असर को कम करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसे ऐतिहासिक विजय बताने का मरहम लगाना पड़ा।
चुनाव परिणाम आने के बाद हरियाणा चुनाव से हताश और निराश कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शाह,भारतीय जनता पार्टी मुख्यालय दिल्ली पहुंचे और वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करके हरियाणा में मिली अप्रत्याशित हार को भी ऐतिहासिक जीत बता कर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया। श्री मोदी व शाह ने कार्यकर्ता ही नहीं देश की आम जनता को भी संदेश दिया,मानो हरियाणा में ऐतिहासिक जीत मिली हो। इसके साथ महाराष्ट्र में भी आशानकुल सफलता न मिलने के बावजूद ऐतिहासिक जीत बता कर मोदी ने यह सिद्ध कर दिया कि वह ऐसे नेता है कि जो हार को भी जीत में बदलने का माद्दा रखते हैं।
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस को लोकसभा में मिली हार के बाद जिस ढंग से राहुल गांधी, राजद नेता लालू पुत्र, सपा नेता अखिलेश व बसपा नेत्री मायावती हताश व निराश दिखी और ये अपने कार्यकर्ताओं के टूटे मनोबल को भी नहीं बढ़ा पाए।
सबसे चौंकाने वाला फैसला हरियाणा का रहा जहां भाजपा एक प्रकार से हरियाणा में स्पष्ट जनादेश न मिलने के बावजूद हर हाल में खट्टर को ही मुख्यमंत्री बनाने के साथ भाजपा की ही सरकार बनाने का निर्णय लिया। लोगों को आशा थी कि अबकी बार 75 पार तो रहा दूर साधारण बहुमत भी न जुटा पाने वाले मुख्यमंत्री खट्टर को भाजपा नेतृत्व नैतिक आधार पर हटा कर विपक्ष में बैठने का फरमान जारी करेंगे ।
भाजपा नेतृत्व ने खट्टर को बनाए रखने का फरमान जारी कर के साफ कर दिया कि भाजपा नेतृत्व अब हर हाल में हमारी सरकार की रणनीति पर ही अमल करती है। क्योंकि भाजपा नेतृत्व जानता है जो जीता वही सिकंदर ।इसी को दुनिया प्राय स्वीकार करती है।
हालांकि पूर्ण बहुमत न मिलने पर नैतिक आधार पर विपक्ष में बैठने के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं । जैसे 1 मत की कमी से अटल बिहारी वाजपेई की सरकार को अपदस्थ होना पड़ा था तथा विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में तिवारी सरकार को पूर्ण बहुमत न मिलने पर भी जब कांग्रेस ने बहुमत जुटाने का तिकड़म कर लिया था तो नारायण दत्त तिवारी ने एक नैतिक ड्रामा कर विपक्ष में बैठने का ऐलान केंद्रीय नेतृत्व से कराया । क्योंकि उस समय तिवारी को यह आशंका थी कि इससे उनके विरोधी कांग्रेसी नेता हरीश रावत कहीं मुख्यमंत्री ना बन जाए। इसलिए उन्होंने हरीश रावत को रोकने के लिए भाजपा की सरकार बनाना भी स्वीकार किया था।
88 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा कि चुनाव से पहले जिस प्रकार से भाजपा ने अब की बार 75 पार का नारा दिया था वह नारा भाजपा के लिए चुनाव परिणाम निकलने के बाद जी का जंजाल बन गया। 2019 के अक्टूबर माह मे हुये इन चुनाव मेें भाजपा को जहां 75 पार करना तो रहा दूर उसे पूर्ण बहुमत पाने के लिए भी तरसना पड़ा तमाम दावों
के बावजूद भाजपा केवल 40 सीटों पर ही सिमट कर रह गयी। भले ही भाजपा अपने केंद्र की सत्ता की बदौलत पूर्ण बहुमत पाये बिना भी सरकार बनाने के लिए उद्धत है परंतु उसी पूर्ण बहुमत पाने के लिए निर्दलीयों को अपने प्रलोभन में फ़साना पड़ेगा।
वही इस चुनाव में दो चार माह पहले ही कांग्रेस की कमान संभालने वाले भूपेंद्र हुड्डा ने अपनी जमीनी पकड़ का परिचय देते हुए पतन के गर्त में फंसी कांग्रेस को 31 सीटों तक पहुंचा दिया। इसके साथ हरियाणा में देवीलाल के पोते दुष्यंत चौटाला के करिश्माई नेतृत्व में केवल 10 माह पुरानी बनी जननायक जनता पार्टी ने 10 सीटें जीतकर भाजपा की एक प्रकार से हवा निकाल दी। हरियाणा में अन्य दलों को 9 सीटें मिली है।
भले ही भाजपा नेतृत्व ने खट्टर को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न समझते हुए पूर्ण बहुमत अर्जित न करने के बावजूद पुनः मुख्यमंत्री बनाए रखने का निर्णय लिया है। उसके पीछे एक ही कारण साफ उजागर होता है कि भाजपा नेतृत्व ने पहले ही एलान कर रखा है कि वह जातिवादी, क्षेत्रवाद, परिवारवादी व भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाले दलों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा। भले ही हरियाणा में खट्टर के खिलाफ सारे विपक्षी दल एकजुट हो रखे हो ।हरियाणा में लंबे समय तक राजनीति में वर्चस्व रखने वाली जाट समाज को यह असीम वेदना थी कि गैर जाट कैसे प्रदेश में मुख्यमंत्री बना। इसके साथ जिस प्रकार से भाजपा शासनकाल में जाटों अन्य समाज के बीच में दूरियां बढ़ती रही उसे भी भाजपा विरोधी दलों ने खट्टर को हटाना व भाजपा को धूल चटा ना अपना प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।
हरियाणा में कांग्रेस का नेतृत्व हुड्डा के पास आने के बाद जिस प्रकार से उन्होंने जाट, मुस्लिम व दलित का एक मजबूत गठजोड़ बनाया, उससे भाजपा की आशाओं पर पानी फिर गया। अगर केंद्र में भाजपा सरकार व मोदी शाह जैसा नेतृत्व नहीं होता तो हरियाणा में कांग्रेस की ही सरकार बनती व खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा दहाई का अंक भी नहीं छू पाती।
यही नहीं महाराष्ट्र में भी भाजपा के देवेन्द्र मुख्यमंत्री नहीं बन पाते। नहीं शिवसेना और भाजपा की सरकार बनती।इसके साथ अगर भाजपा शिवसेना की सरकार बन भी जाती, तो शिवसेना, आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा की नकेल कस कर ही दम लेती। परंतु मोदी शाह के मजबूत नेतृत्व ने न केवल कांग्रेस आदि विरोधी पार्टियों की हसरतों पर पानी फेरा ।वहीं शिवसेना जैसी सहयोगी पार्टी की भी नकेल कस दी।
कांग्रेस व अन्य विरोधी दलों की इसी मंशा को भांप कर भाजपा आलाकमान ने इसे खट्टर को बनाए रखना अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न समझा । इसीलिए उन्होंने हर हाल में खट्टर को बनाए रखने का चौंकाने वाला निर्णय लिया।
उल्लेखनीय है कि 24 अक्टूबर को हुई मतगणना में 288 सदस्य महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा व शिवसेना गठबंधन को 159 सीटें मिली महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत भले ही मिल गया हो परंतु जिस प्रकार के दावे चुनाव के समय किए जा रहे थे उन दावों से काफी कम इस गठबंधन को महाराष्ट्र में सफलता मिली। यही नहीं 2014 से भी कम सफलता इस चुनाव में भाजपा शिवसेना गठबंधन को इन दोनों दलों को 159 सीटें मिली। वहीं विपक्षी दल कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के गठबंधन को 100 सीटें मिली और 29 सीटें अन्य दलों को मिली। कांग्रेस को पछाड़ते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 56 सीटें हासिल की ।वहीं कांग्रेस 44 पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि कांग्रेस का प्रदर्शन गत विधानसभा से बेहतर है। अन्य दलों को इस चुनाव में 29 सीटें मिली ।
महाराष्ट्र में जहां शिवसेना इन विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही उद्धव ठाकरे की पुत्र आदित्य ठाकरे को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की हुंकार भर रहा है वहीं भारतीय जनता पार्टी के आला नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र में देवेन्द्र ही प्रदेश के मुख्यमंत्री बने रहेंगे वहीं 24 अक्टूबर को निकले चुनाव परिणामों ने एक बार फिर शिवसेना की महत्वाकांक्षा को हवा देने का काम किया चुनाव परिणामों के बाद शिवसेना ने सत्ता में बराबरी का हिस्सेदारी का दावा ठोक दिया। सत्ता में बराबरी का दावे का अर्थ यहां पर, ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री होगा और ढाई साल भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री होने से है ।हालांकि भाजपा ने इस प्रकार की किसी भी समझौते को सिरे से नकार दिया है और दो टूक शब्दों में कहा है कि देवेन्द्र ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहेंगे ।अब सवाल उठता है क्या शिवसेना अपनी महत्वाकांक्षा के चलते हुए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंसकर मुख्यमंत्री की अपनी अभिलाषा पूरी करेंगे या भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखेंगी।
वहीं दूसरी तरफ हरियाणा में भाजपा की सरकार निर्दलीयों के समर्थन से बनने के बाद प्रदेश की राजनीति में आया राम गया राम का इतिहास वर्तमान होगा या हरियाणा में भाजपा की वर्चस्व को चुनौती देने की कॉन्ग्रेस आदि दलों की चुनौती को भाजपा जमींदोज करेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा परंतु कुल मिलाकर इन चुनाव के परिणाम सी बात साफ हो गई कि अब देश की जनता जुमलों के बजाय जमीनी हकीकत को वरीयता देती है अब नारों से चुनाव नहीं जीता जा सकता है।