Almora उत्तराखंड

घुमंतु बैठकों व पलायन आयोग जैसे टोटकों से नहीं अपितु गैरसैंण में राजधानी बनाने से होगा उतराखण्ड का विकास

अल्मोडा में सम्पन्न हुई त्रिवेन्द्र सरकार की मंत्रीमण्डल की बैठक

अल्मोड़ा(प्याउ)। 23 अक्टूबर को उतराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार ने अल्मोडा में  मंत्रिमण्डल की बैठक का आयोजन किया। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की अध्यक्षता में आयोजित हुई इस अल्मोड़ा कैबिनेट बैठक में मंत्रिमण्डल ने 4 महत्वपूर्ण फैसले लिए । अल्मोडा घोषणा के अनुसार मंत्रिमण्डल ने कुमायूं मण्डल में जनसंघ/भाजपा की नींव रखने वाले स्व. सोबन सिंह जीना को नमन करने के लिए अल्मोड़ा में सोबन सिंह जीना यूनिवर्सिटी को मंजूरी प्रदान की गयी। सरकारी स्कूलों के 6 लाख बच्चों को हफ्ते में एक दिन पौष्टिक दूध मिलेगा। जंगली जानवरों से जान-माल की क्षति पर अब वन विभाग की जगह आपदा फंड से मुआवजा मिलेगा तथा टिहरी झील के पास भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस का एडवेंचर सेंटर बनाने का भी निर्णय लिया गया।
हालांकि अल्मोडा में हुई मंत्रिमण्डल की बैठक से एक दिन पहले  टिप्पणी करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि गैरसैंण, टिहरी और पौड़ी में सफल कैबिनेट बैठक के बाद कल अल्मोड़ा में कैबिनेट बैठक हो रही है। हमारी कोशिश है सरकार पर्वतीय क्षेत्रों में आपके बीच पहुंचे व पहाड़ के विकास पर मंथन करे। पहाड़ के विकास के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।
त्रिवेन्द्र सरकार की अल्मोड़ा में मंत्रिमण्डल की बैठक पर दो टूक प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए उतराखण्ड राज्य गठन के शीर्ष आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि उतराखण्ड का जिस चहुमुखी विकास को  उतराखण्ड के वर्तमान मुख्यमंत्री सहित 19 साल की तमाम सरकारें, अपनी अल्मोडा जैसी घुमंतु बैठकों व  पलायन आयोग जैसे टोटकों से ढूंढने में असफल रहे। वह विकास उतराखण्ड में तभी साकार होगा जब प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनायी जायेगी। श्री रावत ने कहा कि उतराखण्ड की 19 सालों के मुख्यमंत्री, राजनैतिक दल व नौकरशाहों ने देहरादून के पंचतारा सुविधाओं की अंधमोह में अंधे हो कर उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं व चहुमुखी विकास की कुंजी गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं कर रही है। जिस कारण प्रदेश के पर्वतीय व दूरस्थ गांव शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार व शासनाभाव के कारण पलायन से उजड़ से गये है। परन्तु अपने निहित स्वार्थ में अंधे हुए प्रदेश के इन नीरों को न तो प्रदेश की बर्बादी दिखाई दे रही है व नहीं उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन की जनांकांक्षाओं व शहीदों की शहादत का प्रतीक गैरसैंण में बना प्रदेश की एकमात्र विधानसभा। अगर इनमें लोकशाही, व उतराखण्ड  के प्रति एक रत्तीभर भी प्रेम रहता तो ये घुमंतु बैठकों व पलायन आयोग के टोटकों के बजाय बिना वक्त गंवाये तुरंत राजधानी गैरसैंण को घोषित करते। परन्तु इनकी अपनी सनक के कारण उतराखण्ड के हितों  के प्रति जो निर्ममता से 19सालों से कुठाराघात किये उसी के कारण प्रदेश की एकमात्र विधानसभा भवन बन जाने व बजट-शीतकालीन आदि सत्र होने के बाबजूद गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं की गयी। नहीं प्रदेश सरकारों ने सीबीआई व इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा घोषित मुजफ्फरनगर काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए एक कदम भी ईमानदारी से उठा पाये। यही नहीं प्रदेश सरकारों की इस अंध सत्तालोलुपुता के कारण प्रदेश में जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई क्षेत्रों का परिसीमन थोपा गया। जबकि इस परिसीमन के दंश से पूर्वोतर के राज्यों के अलावा झारखण्ड की तत्कालीन सरकारों ने बचा लिया। न तो प्रदेश की सरकारें प्रदेश में हिमाचल की तरह भू की रक्षा कर पायी व नहीं जनता को झारखण्ड की तरह मूल निवास ही दिला पायी। प्रदेश सरकारें उतराखण्ड के हक हकूकों के प्रति कितनी उदासीन रही इसका नजरिया है यहां पर छोडे गये दिल्ली व मध्य प्रदेश के बंदर आदि  जानवर। ये सरकारें मूक बनी रही। आज इनकी मूकता का दण्ड प्रदेश के पर्वतीय जनपदों के किसानों को अपनी फसलों को इन जानवरों से तबाह होते देखने के लिए मजबूर है। प्रदेश सरकार न तो कोई जंगली हिंसक पशुओं से जनता का बचाव करने का कानून बना पायी व नहीं सरकार की कोई रोजगार परख हिमाचल की तरह ठोस नीति ही यहां है। उल्टा सरकार ने बाघ, बांध,शराब से प्रदेश को पतन के गर्त में धकेल दिया। इन 19सालों में सरकारों की उदासीनता के कारण उतराखण्ड अपराधियों, सत्ता के दलालों, माफियाओं का अभ्यारण बन कर देवभूमि की गरिमा पर ग्रहण लगा रहा है।
अब भी समय है सरकार को प्रदेश की रक्षा करने के लिए अविलम्ब राजधानी गैरसैंण घोषित कर देना चाहिए। तभी प्रदेश का चहुमुखी विकास होगा और जनांकांक्षायें साकार हो पायेगी।

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