उत्तराखंड देश

दिल्ली सरकार ने दिल्ली में उतराखण्डी (गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी) भाषा अकादमी खोली

दिल्ली सरकार से प्रेरणा लें केन्द्र व उतराखण्ड सरकार
उतराखण्ड के शीर्ष लोक गायक हीरासिंह राणा को बनाया उपाध्यक्ष
उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली को उतरैणी/मकरैणी  पर्व को मान्यता दिलाने के बाद मिली उतराखण्डी अकादमी बनाओें आंदोलन में भी मिली सफलता
नई दिल्ली(प्याउ)। आज दिल्ली के कार्यकारी(उप) मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने जैसे ही सांयकाल एक ट्वीट कर ऐलान किया कि जाने माने कवि गीतकार हीरासिंह राणा ‘गढवाली-कुमाऊॅनी-जौनसारी’भाषा अकादमी दिल्ली के पहले उपाध्यक्ष होंगे।
दिल्ली सरकार द्वारा गठित यह देश की पहली अकादमी है जो उतराखण्ड से सम्बद्ध भाषा साहित्य संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए काम करेगी। तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में रहने वाले 30 लाख उतराखण्डियों में खुशी की  लहर दौड पड़ी। उतराखण्ड आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी व प्यारा उतराखण्ड के संपादक देवसिंह रावत सहित सबने एक स्वर में दिल्ली सरकार को जो काम केन्द्र व उतराखण्ड की सरकारें विगत 19 साल में नहीं कर पायी वह काम दिल्ली की सरकार कोग्व्व2व2 व   ए एव्व्+ 2 साल में करने के लिए हार्दिक बधाई दी। इसके साथ दिल्ली व उतराखण्ड सरकारों को दिल्ली सरकार से जनभावनाओं का कैसे सम्मान किया जाता है उसकी प्रेरणा लेनें की सीख दी। श्री रावत ने कहा कि उतराखण्ड सरकार को दिल्ली की केजरी सरकार ने जो आईना दिखाया उससे उसे समझ लेना चाहिए कि जो काम उतराखण्ड की सरकारों ने 19 साल पहले करना चाहिए था वह काम अब दिल्ली की सरकार कर रही है। बेहतर होता कि प्रदेश सरकार केन्द्र की सरकार से उतराखण्डी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में सम्मलित करती। परन्तु प्रदेश के कबीना मंत्री सतपाल महाराज आदि के इस दिशा में किये गये सभी मेहनत पर पानी फेरने के अलावा 19 सालों की उतराखण्ड व केन्द्र सरकारों ने कोई काम नहीं किया।
श्री रावत ने इस कार्य को दिल्ली की वर्तमान सरकार के संज्ञान में लाने के लिए व्यापक आंदोलन रूपि आंदोलन चलाने के लिए उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली को भी बधाई दी। उल्लेखनीय है उतराखण्ड  एकता मंच दिल्ली  ने व्यापक आंदोलन किया था जो मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने, उतराखण्ड की राजधानी गैरसैंण बनाने, दिल्ली में उतराखण्ड की भाषा अकादमी गठित करने, उतरैणी/मकरैणी पर्व को मान्यता देने व दिल्ली में उतराखण्डियों को राजनीति में व्यापक भागीदारी दिलाने के लिए केन्द्र, दिल्ली व उतराखण्ड सरकारों के कार्यकारी प्रमुखों को आमंत्रित कियास था। रामलीला मैदान में आहुत इस विशाल रैली में दिल्ली के कार्यकारी मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने अपने संबोधन में मकरैणी/उतरैणी को दिल्ली सरकार द्वारा छट आदि पर्व की तरह मान्यता देने के साथ उतराखण्डी भाषा अकादमी के गठन करने का वचन दिया था। इस टवीट् के साथ दिल्ली सरकार ने अपने दोनों बचनों को पूरा कर दिया। बाकि दोनों काम उतराखण्ड व केन्द्र सरकार में सत्तासीन रही भाजपा व कांग्रेस के पाले में थे जो पूरे नहीं किये गये। नहीं ईमानदारी से इस दिशा में काम किया गया। वहीं दिल्ली में उतराखण्डी बोली भाषा को बढावा देने के लिए दिल्ली के उतराखण्डी समाजसेवी विनोद बछेती का भी महत्वपूर्ण हाथ रहा। उन्होने दिल्ली में बडे स्तर पर उतराखण्डी बोली भाषा की कक्षाओं से आम जनता को विगत दो तीन साल से जोडा।
इस अकादमी में कई लोग पदाधिकारी बनने के लिए हाथ पैर मार रहे थे। वेसे मनीष सिसौदिया ने अपने टवींट  में लगाई दो तस्वीरों से अपनी पसंद सार्वजनिक कर दी। वैसे इस अकादमी को उतना महत्व नहीं है जितना उतराखण्डी भाषा को आठवीं अनुसूचि में सम्मलित होने के बाद स्थान मिलता। पर वह काम दिल्ली सरकार के बस का नहीं था। वेसे इस अकादमी का नाम गढवाली-कुमाउनी -जौनसारी करने के बजाय उतराखण्डी भाषा अकादमी दिल्ली सरकार करती तो इसका अच्छा संदेश जाता। परन्तु राजनैतिक दलों की अपनी प्राथमिकता है। वैसे उतराखण्डी सरकार इस दिशा में काम कर सकती थी परन्तु उसे अपने निहित स्वार्थों से उपर उठ कर काम करने की कहां फुर्सत रही।
वैसे एकता मंच इस मामले में दिल्ली सरकार पर दवाब बनाने के लिए 9 नवम्बर को बडा आंदोलन करने जा रहा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले केजरीवाल सरकार ने बहुत ही मंझा दाव चल कर दिल्ली की आबादी का सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उतराखण्डी समाज का दिल्ली जीत लिया।

अब देखना है कि दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव में कितने उत्तराखंडियों  को प्रतिनिधित्व देती है या भाजपा व कांग्रेस की तरह पुनः उत्तराखंडियों को झुनझुना पकड़ा कर निराश करती है।

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