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नेता व नौकरशाह नीरो बन देहरादून की ऐशगाहों में है मस्त, पर शिक्षा, चिकित्सा व शासन तंत्र से वंचित उतराखण्डी है त्रस्त

गैरसैंण राजधानी  बनने से ही आबाद होगा उतराखण्ड

देवसिंह रावत
उतराखण्ड राज्य अपना 19वां स्थापना दिवस आगामी 9 नवम्बर को मनायेगा। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अपनी उपलब्धियों के लाखों रूपये के विज्ञापन समाचार पत्रों व खबरिया चेनलों में लुटायेंगे। परन्तु हकीकत यह है कि इन 18 सालों में जिन लोेगों ने राव मुलायम के दमन सहते हुए भी पृथक राज्य गठन के लिए ऐतिहासिक संघर्ष किया था, वह उतराखण्ड, लखनवी मानसिकता से पीड़ित प्रदेश सरकारों में काबिज रहे हुक्मरानों व नौकरशाहों द्वारा जनांकांक्षाओं की राजधानी गैरसैंण के बजाय देहरादून में ही डेरा डालने के कारण बर्बाद सा हो गया है। इन 18 सालों में सीमांत प्रांत के 3000 गांव उजड गये है। यहां से लोग शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन के अभाव के कारण देहरादून सहित देश के महानगरों में पलायन करने के लिए मजबूर हो गये है। 18 सालों में भाजपा व कांग्रेस सहित तमाम दलों की सरकारें प्रदेश की सत्ता में आसीन रही। परन्तु इन पदलोलु हुक्मरानों में इतनी भी नैतिकता नहीं रही कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 की धधक से उतराखण्ड राज्य का गठन करने के लिए सरकारें मजबूर हुई थी उस काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए एक भी सरकार ने ईमानदारी से एक कदम भी नहीं उठाया। कहने को कोई विकास पुरूष व कोई ईमानदार व कोई जमीनी नेता का तकमा पहन कर प्रदेश की जनता की आंखों में धूलझौंक कर विश्वासघात कर उन गुनाहगारों को ेसजा दिलाने के बजाय उन हैवानों को उतराखण्ड में लाल कालीन बिछाते रहे। इन धूर्तो ने प्रदेश के आत्मसम्मान, हक हकूकों व विकास को अपनी अंध सत्तामोह व भ्रष्टाचारी प्रवृति के तले रौंदने का कृत्य किया।
2 अक्टूबर के दिन जिस समय संसद की चैखट जंतर मंतर पर उतराखण्डी समाज मुजफ्फरनगर काण्ड के गुनाहगारों को सजा देने की गुहार लगा रहे थे उस समय प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत , मुजफ्फरनगर में शहीद स्थल पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के नाम पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व अपनी सरकार के कार्यों के कसीदे पढ़ते हुए एक शब्द भी इस काण्ड में शहीद हुए सपूतों के हत्यारों को सजा देने के बारे में कहने का साहस तक नहीं जुटा पाये। उतराखण्ड ही नहीं देश विदेश में रहने वाले सवा करोड़ उतराखण्ड 2 अक्टूबर के दिन इस काण्ड के गुनाहगारों को सजा देने के लिए प्रदेश की सरकारों के साथ उप्र व केन्द्र की सरकारों को लानतें भेज रहे थे।
प्रदेश गठन की मूल भावनाओं को ही जमीदोज करते हुए जिस प्रकार से प्रदेश की सरकारों ने भू कानून व जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई सीटों का परिसीमन थोपवाया। उससे उतराखण्ड स्तब्ध है। इनकी भूल का दण्ड उतराखण्ड को दशकों तक भोगना पडेगा।
प्रदेश में इन सत्तासीनों ने अपनी सनक के कारण भ्रष्टाचार, व्यभिचार, जातिवाद व क्षेत्रवाद को प्रदेश की राजनीति का हथियार बना कर प्रदेश के विकास की आशाओं पर ही बज्रपात कर दिया। इन बेशर्म हुक्मरानों को अपने पडोसी पर्वतीय राज्य हिमाचल से सीख लेकर बागवानी, कृषि आदि नीति बनाने की सुध तक नहीं है। इन्होने प्रदेश की कोई भी ऐसी नीति नहीं बनायी जिससे प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिल सके और प्रदेश हिमाचल की तरह विकास की राह पर चल सके। केवल ये सत्तासीन हो कर अपनी तिजोरी भरने व अपने प्यादों का पोषण करने के अलावा अगर कोई काम किया तो अपने दिल्ली दरवार के नेताओं की गणेश परिक्रमा करना।
प्रदेश की बची हुई आशाओं पर भी राजधानी गैरसैंण न बनने के कारण निरंतर बज्रपात हो रहा है। प्रदेश सरकारों ने राज्य गठन के 19वंे साल में प्रवेश करने के बाबजूद प्रदेश की एक भी नीति नहीं बनायी। इस कारण यहां चारों तरफ समस्याओं के विकराल पहाड प्रदेश की आशाओं को दम तोड़ने के लिए विवश कर रहे है।
राजधानी गैरसैंण न बनाये जाने से सभी नेता नौकरशाह व कर्मचारी देहरादून व इसके आसपास के मैदानी जनपदों में ही सीमिट कर रह गये है। पर्वतीय जनपदों जिन्होने राज्य का गठन कराया था उनको शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन से वंचित रहना पड रहा है। इसका नमुना यह है कि    इसी सप्ताह सीमान्त जनपद पिथोरागढ में देखने को मिला। यहां अस्पतालों में चिकित्सकों व उचित सुविधाओं के अभाव में पर्वतीय जनपदों की तरह लोग दम तोड़ने के लिए मजबूर हो रहे है। यहां पर एक ऐसी घटना प्रदेश भाजपा की विधायिका के परिजनों को भुगतनी पड़ी जिससे प्रदेश के नेताओं के देहरादून मोह को जहां बेनकाब कर दिया वहीं राजधानी गैरसैंण बनाने की जरूरत को बल दिया। सीमान्त जनपद पिथोरागढ के गंगोलीहाट की भाजपा विधायक मीना गंगोला की देवरानी 29 वर्षीय दीपा गंगोला 3 अक्टूबर की रात को भुगतना पडा। प्रसव पीड़ा के कारण दीपा को बेरीनाग अस्पताल में भत्र्ती कराया गया। 4 घण्टे  तक भर्ती रहने के बाद अस्पताल ने हाथ खडे कर दिये क्योंकि वहां पर कोई महिला चिकित्सक ही नहीं थी। बेरीनाग अस्पताल में सीएचसी अस्पताल में संविदा पर तैनात महिला चिकित्सक 5 दिनों से अस्वस्थ होने के कारण छूटी पर होने के कारण अस्पताल में इलाज नहीं हो पाया। बेरीनाग अस्पताल में चिकित्सक न होने के कारण उसे अल्मोडा अस्पताल में भेजा गया। अल्मोडा अस्पताल पंहुचने से पहले ही गर्भवती का 108 की एंबुलेंस में ही प्रसव कराना पडा। अस्पताल पंहुचने से पहले नवजात ने दम तोड़ दिया।
सीएचसी बेरीनाग के प्रभारी डॉ. देवेश कुमार, के अनुसार महिला सामान्य स्थिति में थी जांच के बाद नवजात की स्थिति को देखते हुए व अस्पताल में महिला चिकित्सक न होने के कारण उसे हायर सेंटर रेफर किया गया। महिला के साथ एक स्टाफ नर्स को साथ में भेजा गया है।
यह घटना सत्तारूढ़ विधायक के साथ घटित हुई। इसलिए चर्चा में आ गयी। प्रदेश के पर्वतीय जनपदों की जनता को हर दिन ऐसी घटनाओं से दो चार होना पड़ता है। अगर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण होती तो गैरसैंण सहित पर्वतीय जनपदों में चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार व शासन की दयनीय स्थिति में भारी सुधार होता। प्रदेश सरकार पर्वतीय समस्याओं का निदान करती। 18 साल बाद भी देहरादून में बैठी सरकार ने अभी तक प्रदेश की जनता को जंगली जानवरों के आतंक से ही निजात दिलाने के लिए कोई नीति तक नहीं बनायी। आये दिन पर्वतीय क्षेत्रों में बाघ, बंदर, सुवर व रीछ सहित जंगली जानवरों का आतंक है। परन्तु सरकार की कान में जूं तक नहीं रैंग रही है। ये सब देहरादून के पंचतारा ऐशगाहों में मौज ले रहे है। इसी सप्ताह पौडी जनपद में आदमखोर बाघ ने एक को अपना शिकार बनाया। वहीं बागेश्वर जनपद  स्थित कपकोट के उतरदुर्ग क्षेत्र के भूलगांव में 4 अक्टूबर की शाम सुंदर सिंह की 4 साल की बेटी को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते समय बाघ ने उठा दिया, उसकी आधी खाई लांश घर से डेढ किमी दूरी मिली। सरकार ने कोई नीति तक नहीं बनायी।
प्रदेश शराब,बांध, बाघ, बंदर व नेताओं से परेशान है। इन पर कोई नीति बनाने को सरकार तैयार नहीं है। यहीं नहीं प्रदेश में एक साथ पंचायती चुनाव तक 18 सालों में नहीं करा पायी।

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