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भारत के चहुमुखी विकास के लिए उप्र के साथ गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कर्नाटक, बिहार,उडिसा व राजस्थान को छोटे राज्यों में बांटना जरूरी

उतराखण्ड जैसे हिमालयी राज्यों में मैदानी भूभाग को सम्मलित करके देश की सुरक्षा व अमन चैन पर ग्रहण लगाने वाला आत्मघाती कदम उठाने से बचे सरकार

 
बढ़ते हुए क्षेत्रवाद व जातिवाद  पर अंकुश लगाने के के लिए राज्यों के बजाय जिला सरकार जरूरी।

 

दिल्ली में विधानसभा की जरूरत नहीं, विकास के लिए नगर निगम का काफी ।

 

देवसिंह रावत

कुछ दिनों से देश में उत्तर प्रदेश को तीन राज्यों में विभाजित करने की चर्चाएं जोरों पर है । इसके साथ हरियाणा दिल्ली और उत्तराखंड की भूगोल मेें भी कुछ बदलाव करने की चर्चाएं जोरों पर है। उप्र को तीन भागों में विभाजित करने की मांग व सरकार की मंशायें दशकों से है। मोदी सरकार के दूबारा सत्तासीन होने के बाद ऐसी अटकलें जोरों पर है कि उप्र को तीन प्रदेशों उप्र, पूर्वांचल व बुंदेलखण्ड में विभाजित करने की अटकलें जोरों पर है। दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार अवतार नेगी ने आज व्हाटएप पर एक ऐसा पत्र भेजा जिसमें उप्र को तीन राज्यों में बांटने, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, उप्र के साहरनपुर जनपद को हरियाणा में सम्मलित करना, मुरादाबाद मण्डल को उतराखण्ड में सम्मलित करने, हरियाणा के सोनीपत, रोहतक, झज्जर, गुरूग्राम, रेवाड़ी, पलवल, फरीदाबाद, को दिल्ली में सम्मलित करने के अलावा उप्र के मेरठ मंडल के बागपत, गाजियाबाद, हापुड़ बुलंदशहर, मेरठ को भी दिल्ली में सम्मलित करने का संकेत दिया। इस पर दो टूक शब्दों में लिखा भाई जी पता नहीं इसमे कहां तक सच्चाई है ।पर कुछ ना कुछ मोदी के नेतृत्व में भाजपा पूर्व सरकारों से हटकर ही काम करेगी।
इस पत्र में ऐसे संकेत दिये  कि उप्र में लखनऊ मण्डल, आगरा, अलीगढ़, बरेली, कानपुर संभाग सहित कुल 20 जिलों को रखा जायेगा। वहीं बुंदेलखण्ड  में प्रयागराज मंडल, चित्रकुट मंडल, झांसी मंडल, मिर्जामण्डल व कानपुर मण्डल के 17 जिले सम्मलित किये जायेंगे। इसके अलावा पूर्वांचल में गोरखपुर, आजमगढ, बस्ती,देवीपाटन, अयोध्या व वनारस मण्डल के 23 जिलों को सम्मलित किया जाना है।

वेसे भी उप्र के विराट  स्वरूप व देश की राजनीति में उसके महत्व को देखते हुए देश के अधिकांश प्रदेश के राजनेताओं के दिलों दिमाग में इसके विभाजन की मांग दिलों में हिलोरे लेते रहती है। हालांकि उप्र के विभाजन के लिए बुंदेलखण्ड व हरित प्रदेश को लेकर भी समय समय पर आंदोलन होता रहता। कोई उप्र के तीन व कोई चार व पांच भागों में उप्र का विभाजन करना चाहता।
वेसे देखा जाय तो देश के राज्यों के स्वरूप को देख कर उत्तर प्रदेश का विभाजन बहुत जरूरी है। इसके साथ न केवल उत्तर प्रदेश का विभाजन जरूरी है अपितु गुजरात, महाराष्ट, तमिलनाडु कर्नाटक, बिहार, राजस्थान, बंगाल आदि राज्यों को भी छोटे राज्यों में बांटना चाहिए।
राज्यों का गठन आकार और जनसंख्या के आधार पर न्याय संगत नहीं है। हां कुछ राज्य भौगोलिक दृष्टि से हिमालयी राज्यों का गठन न्याय संगत प्रतीत होता है।

रही बात दिल्ली की दिल्ली को इतना बड़ा क्यों मनाया जा रहा है दिल्ली से विधानसभा हटाकर केवल नगर निगम को ही सक्षम बनाना चाहिए।

हरियाणा का जिस प्रकार से बनाया जा रहा है उसमें भी एक प्रकार से लगता है कि वहां पर समाज का संतुलन बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है।

रही बात उत्तराखंड कि उत्तराखंड मेें किसी भी हालत में मैदानी क्षेत्रों को नहीं जोड़ना चाहिए ।यह कृत्य देश की सुरक्षा और सामाजिक समरसता के लिए के साथ साथ उत्तराखंड के विकास के लिए घातक ही होगा । कभी भी विषम भौगोलिक स्थानों को एक राज्य में है नहीं रखना चाहिए इससे वहां का सामाजिक ताना-बाना समाप्त होगा । पहले अटकलें लगायी जा रही थी कि उतराखण्ड में उप्र के सहारनपुर, बिजनौर व मुरादाबाद आदि क्षेत्र मिलाये जा रहे है।

जहां तक भाजपा व उसकी मातृ संगठन संघ की मजबूत भारत के लिए देश में पनप रहे क्षेत्रवाद को कमजोर करने की मंशा है तो उसके लिए राज्यों को इस बेमेल विभाजन किसी सूरत में साहयक नहीं होगा। अगर सच में संघ व उसकी सरकार क्षेत्रवाद पर अंकुश लगाना चाहती है तो उसे बहुत ही सोच समझ कर कदम उठाना होगा। हमारा साफ मानना है कि  क्षेत्रवाद व जातिवाद तभी कुंद होगा जब सरकार, सभी राज्यों को भंगकर देश में जिला सरकार की अवधारणा को धरातल पर उतारकर, केंद्रीय सत्ता को मजबूत करने का काम करे।इसके लिए जरूरी है भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करके देश में शिक्षा व चिकित्सा को पूर्ण रूप से सरकार द्वारा संचालित किया जाय।

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