नई दिल्ली(प्याउ)। आखिरकार मोदी सरकार ने तीन तलाक के दंश से शताब्दियों से पीड़ित व आशंकित महिलाओं को ऐतिहासिक कानून बना कर मुक्ति दिला ही दी। राष्ट्रपति ने भी संसद में पारित इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी। जुलाई के अंतिम सप्ताह राजसभा में पूर्ण बहुमत न होने के बाबजूद तीन तलाक पर अंकुश लगाने वाले मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 को मोदी सरकार ने 99 बनाम 84 के अंतर से पारित कराने में सफलता प्राप्त की। लोकसभा इसको पहले ही पारित कर चूकी थी। इस कानून की सरकारी अधिसूचना भी जारी कर दी। यह प्रथा मुस्लिम समाज में व्याप्त इस कानून के अनुसार पत्नी को तीन तलाक के जरिए छोड़ने वाले पुरुष को तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
इसकी शिकायत पीड़ित महिला या उसके परिजन ही कर सकते है। इसके बाद मजिस्टेट, महिला से सुनवायी करने के बाद पति को जमानत भी दे सकता है।
इस पारित हुए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के कुछ अनुच्छेदों को मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला बताते हुए वकील व सामाजिक कार्यकर्ता शाहिद अली ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इस जनहित याचिका में इस अधिनियम की धारा 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई। इन धाराओं के तहत मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को तीन तलाक कहना अपराध है, जिसके लिए तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन इस अधिनियम में पति और पत्नी के बीच सुलह कराने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।