येदियुरप्पा को 31 जुलाई तक साबित करना होगा बहुमत
27 फरवरी 1943 में मांड्या जिले के बुकानाकेरे में लिगांयत परिवार में जन्में बुकनाकेरे सिद्दलिंगप्पा येदियुरप्पा ने आखिरकार 26 जुलाई की सांयकाल को चोथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री की शपथ ले कर पिछले महिने से कर्नाटक में चल रहे सियासी ड्रामें का पटाक्षेप किया। मोदी की भाजपा में आडवाणी से लेकर मुरली मनोहर जोशी आदि दर्जनों नेताओं पर चले 75 साल की उम्र सीमा की लक्ष्मण रेखा को लांघ कर पहली बार मोदी की सरपरस्ती में बडे संवैधानिक पद पर आसीन होने 76 साल के येदियुरप्पा को 31 जुलाई तक विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना होगा। जदस व कांग्रेस गठबंधन की कुमार स्वामी सरकार के इस्तीफे के तीन दिन बाद कर्नाटक में सरकार गठन करने वाले येदियुरप्पा अपने 50 साल के राजनैतिक जीवन में सत्तासीन होने के बाद विरोधियों के साथ अपनों के धात प्रतिघात के शिकार रहे। वर्तमान कार्यकाल में भी उनका राज एक प्रकार से कांटो से सजा हुआ है।
225 सदस्यीय विधानसभा में विधानसभाध्यक्ष द्वारा 3 विधायकों की सदस्यता रद्द किये जाने के बाद सदन में विधायकों की संख्या 222 है और एक निर्दलीय सहित 106 विधायकों के साथ भाजपा अभी भी बहुमत के आंकड़े से अब भी पीछे है। विधानसभा के अध्यक्ष के पास 14 विद्रोही विधायकों का भाग्य का फैसला लंबित है। भाजपा को बहुमत अर्जित करने के लिए अभी काफी पापड़ बेलने पडेंगे।
येदियुरप्पा अपनी सबसे प्रिय विधानसभा सीट शिकारीपुर 9 बार विधायक रहे। वे 2014 में शिमोगा संसदीय क्षेत्र से सांसद भी रहे। येदियुरप्पा की मेहनत से सन 2008 में भाजपा को दक्षिण भारत के किसी राज्य में सत्तासीन होने का अवसर मिला। 2008 में कर्नाटक में पहली बार भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा सत्तासीन हुए।
सन् 2007 में उन्होंने जदस के समर्थन से सरकार बनाई थी जो कि 9 दिन ही चल सकी थी। 2008 में कर्नाटक में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी। भाजपा अपने दम पर 224 सदस्यीय विधानसभा में 110 सीटें जीत सत्ता में आई थी। तब येदियुरप्पा 2011 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा आला कमान की कटोरी के षडयंत्र में फंसकर उनको सत्ता से बेदखल होना पडा। मुख्यमंत्री के पद पर इस कार्यकाल में उनपर जमीन की धोखाधड़ी के आरोप लगने के साथ उनकी गिरफ्तारी भी हुई। इसी कारण उनको इस्तीफा भी देना पडा। उनके चरित्र हनन का भी प्रयास किया गया।
सन् 2012 में भाजपा आलाकमान के करीबियों के षडयंत्र से सत्ताच्युत हो कर परेशान येदियुरप्पा ने भाजपा से अलग होकर कर्नाटक जनता पक्ष पार्टी का गठन किया।
परन्तु 2013 में नरेंद्र मोदी के आग्रह पर वे भाजपा की राज्य इकाई के विरोध के बाबजूद भाजपा में सम्मलित हुए। इसका साकारात्मक परिणाम सन 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने राज्य में 28 सीटों में से 17 सीटों को अपनी झोली में डाली। इसी सफलता को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया। प्रदेश के सबसे प्रभावशाली वर्ग लिंगायत समुदाय के येदियुरप्पा के नेेतृत्व में भाजपा को प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही पूर्ण बहुमत अर्जित नहीं किया परन्तु प्रदेश विधानसभा में सबसे बडे दल के रूप में 104 विधायक जीते। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरकार बनाने के लिए येदियुरप्पा को आमंत्रित किया गया था। परन्तु 3 दिन बाद ही येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पडा। उसके बाद कांग्रेस व जदस ने मिल कर सरकार बनायी जो तीन दिन पहले दो दर्जन से अधिक विधायकों के विद्रोह के बाद तमाम नाटकों के बाबजूद ढह गयी।
कर्नाटक के सबसे दिग्गज नेता येदियुरप्पा के छात्र जीवन से ही संघ की छात्र ईकाई से जुडे थे। येदियुरप्पाप ने अपना राजनैतिक सफर शुरू करने से पहले 1965 में सामाजिक कल्याण विभाग में लिपिक की नौकरी छोड़कर एक चावल मिल में लिपिक की नौकरी भी की। इसके बाद 1970 में समाजसेवा में जुट गये। इसके बाद वे जनसंघ से जुड कर शिकारीपुर तालुक के जनसंघ के अध्यक्ष भी बने। इसके बाद आपातकाल के बाद वे जनता पार्टी के सचिव भी रहे। 1983 में वे पहली बार विधानसभा सदस्य बने।