आतंकवादियों का गढ से अमेरिका को बचाने का अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रप का कश्मीरी दाव,
मोदी का नाम पर कश्मीर मध्यस्थता के लिए क्यों झूठ बोल रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति?
अमेरिका के लिए न्याय व मित्रता का कोई महत्व नहीं अमेरिकी हित ही सर्वोच्च
देवसिंह रावत
22 जुलाई को अमेरिका के राष्ट्रपति भवन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करने आये पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से हुई मुलाकात के दौरान जैसे ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ने ट्रंप से मुलाकात कर भारत के साथ हो रहे विवाद में मध्यस्थता करने की गुहार लगायी तो जवाब में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि कुछ समय पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी से मुलाकात हुई थी, उन्होने ने भी मुझसे मध्यस्थता करने को कहा। ट्रंप ने कहा मैने मोदी से पूछा कि किस मामले में मध्यस्थता करनी है तो मोदी ने कहा कि कश्मीर मामले मे।
ट्रंप के इस बयान से भारत की राजनीति में भूचाल आ गया। भारतीय जनमानस को विश्वास नहीं हो रहा है कि मोदी ने ट्रंप से ऐसी मांग की होगी। 23 अगस्त को कांग्रेस ने राज्यसभा व लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव के द्वारा प्रधानमंत्री से तुरंत मांग की। भारत सरकार के इस रूख को सदन के दोनों सदनों में रखते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने राज्यसभा व लोकसभा में दो टूक शब्दों में कहा कि इस मामले में किसी प्रकार की मध्यस्थता स्वीकार नहीं है। नहीं भारत प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से कश्मीर पर मध्यस्थता करने की।
परन्तु विपक्ष ने विदेश मंत्री के बयान के बजाय प्रधानमंत्री मोदी से ही इस पर अपना पक्ष सदन में रखने की पुरजोर मांग की। कांग्रेस की तरफ से सदन में प्रधानमंत्री को कटघरे में खडा करते हुए आनंद शर्मा ने कहा कि यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। भारत की अभी तक की नीति से हटकर हैे। इसलिए प्रधानमंत्री को खुद बयान देना चाहिए, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी का नाम लेकर मध्यस्थता की बात कही।
हालांकि इस विवाद में भारत में हो रही तीब्र प्रतिक्रिया को देखते हुए अमेरिका ने भी बाद स्पष्ट किया कि कश्मीर मामला भारत व पाकिस्तान के बीच का मामला है। इसके साथ अमेरिका द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की हुई वार्ता का जो अधिकृत बयान जारी हुआ उसमें भी किसी प्रकार की मध्यस्थता की बात का जिक्र तक नहीं है।
भारत सदैव इस मामले में शिमला समझोता के तहत ही हल करना चाहता, इसमें किसी भी तीसरे की मध्यस्थता किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं है।
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने मनगढंत बयानों के लिए भी जाने जाते है। परन्तु कश्मीर मामला भारत व पाकिस्तान के लिए बेहद संवेदनशील है।
अमेरिका हमेशा ही कश्मीर मुद्दे में पाकिस्तान के साथ रहा । सच तो यह है कि कश्मीर मुद्दे को विवादस्त बनाने में पाकिस्तान से अधिक अमेरिका का हाथ रहा। यही नहीं भारत में आतंक वाद को फैलाने में भी पाकिस्तान को शह देने में संरक्षण देने में अमेरिका का ही हाथ रहा।
भले ही अब स्थितियां बदल गई है परंतु अफगानिस्तान से छुटकारा पाने के लिए एक बार फिर अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत है ।अमेरिका अफगानिस्तान में अपने सैनिकों को नहीं मरना चाहता है इसके लिए वह बलि का बकरा पाकिस्तान को बनाना चाहता है जिसके कंधों में बंदूक रखकर अमेरिका ने इस्लामिक आतंक को प्रश्रय दिया और अफगानिस्तान में काबिज सोवियत संघ को वहां से बाहर खदेड़ा। पाकिस्तानी पांच दशकों से अमेरिका का प्यादा रहा है । पाकिस्तान के ही पन्नों में बंदूक रखकर अमेरिका भारत में पूर्वोत्तर से लेकर पंजाब और कश्मीर आतंकवाद को हवा देता रहा ।मुंबई हमलों में भी अमेरिका के ही डेसमंड हेडली की द्वारा पाकिस्तान ने मुंबई में आतंकी हमलों को अंजाम दिया। अमेरिका से जिसको मांगने की अभी तक किसी भी भारत सरकार की हिम्मत नहीं हुई उसी दो टूक शब्दों में मांगने की।
अमेरिका का पाकिस्तान में न केवल राजनीतिक दलों पर शिकंजा है अपितु सेना व आईएसआई से लेकर अमेरिका के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों व समुदायों हिसाब आतंकी संगठनों में भी गहरी पकड़ है भले ही आप सोवियत संघ के बिखरने के बाद वह अफगानिस्तान में संघर्ष कमजोर होने के बाद अमेरिका की नजर चीन पर लगी है वहीं भारत में अमेरिकी पर सरकार होने के कारण पाकिस्तान के बाजार अब अमेरिका भारत को ज्यादा वरियता दे रहा है परंतु अभी आप कहां मैं बलि का बकरा बनाने के लिए आपको थोड़ा चारा डाल रहा है हकीकत यह है कि संसार में अमेरिका किसी का भी मित्र नहीं है अमेरिका की वॉल इस धारणा पर अपने देश की विदेश नीति संचालित करता है कि संसार में अमेरिकी ही शासन करने के लिए होते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रप ने अफगानिस्तान में आतंक की दलदल में एक दशक से अधिक समय से बुरी तरह से फंसें अमेरिका को हर हाल में निकालने का मन बना चूके हैै। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए बलि का बकरा भी ढूंढ लिया है। ट्रंप ने अमेरिका को सुरक्षित निकालने के लिए बलि का बकरा अपने प्यादा पाकिस्तान को बनाने चाहते है। अफगानिस्तान को सोवियत संघ के शिकंजे से बचाने के साथ विश्व में अपना बर्चस्व स्थापित करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान के कंधे में बंदुक रख कर इस्लामी आतंकवाद का पोषण किया अपने इस सपने को साकार किया। परन्तु एक दशक से अधिक समय से अमेरिका के लिए अफगानिस्तान में बना रहना बहुत आत्मघाती साबित हुआ। अमेरिका के करोड़ों डालर के साथ असंख्य सैनिक यहां बर्बाद हो गये। डोनाल्ड ट्रंप ने सत्तासीन होते समय ही वादा किया था के वे अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को पूरी तरह से हटा देंगे। अब अमेरिकी के राष्ट्रपति का चुनाव की प्रतिध्वनि साफ सुनाई दे रही है, टंªंप चाहते हैं कि हर हाल में अमेरिका के सैनिक अफगानिस्तान से बाहर हों और अफगानिस्तान में ऐसी सरकार बने जो अमेरिका के विरूद्ध न हो। अमेरिका को भी मालुम है कि उसके जाने के बाद अफगानिस्तान में अलकायदा व अन्य आतंकी अफगानिस्तान में काबिज हो जायेंगे। इसलिए वह पहले भारत को यहां पर बलि का बकरा बनाना चाहता था। पर भारत की स्थिति व भारत के अनिच्छा को भांप कर उसने अपने सबसे विश्वस्थ प्यादा रहे पाक को इसके लिए सबसे योग्य पाया। इसके लिए अमेरिका ने पाकिस्तान पर डोरा डाला। इसके तीन कारण प्रमुख है। पहला कारण अलकायदा व अन्य आतंकियों पर पाकिस्तान का बडा प्रभाव है। दूसरा कारण पाकिस्तान को चीन की गिरफ्त से मुक्त कर अपने चुंगुल में लाना। तीसरा पाकिस्तान को आर्थिक मदद देकर उसके दिवालीयेपन से बचा कर अपने पाले में बनाये रख कर भारत पर भी दवाब बनाये रखना। इस पूरे प्रकरण से साफ हो गया कि अमेरिका दुनिया में अपना मित्र व मूल्यों पर विश्वास नहीं करता है वह अमेरिकी हितों के लिए सबकुछ दाव पर लगा सकता है। उसके लिए अमेरिकी हित ही सर्वोच्च है।