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21 जुलाई को भारतीय भाषा आंदोलन ने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर दिया धरना व प्रधानमंत्री को दिया ज्ञापन

1947 में अंग्रेजों से आजाद हुए भारत को फिर अंग्रेजों की ही भाषा व अंग्रेजों द्वारा थोपे गये नाम ‘इंडिया’ का बलात गुलाम बना कर देश को पुन्न 72 सालों से अंग्रेजों का ही गुलाम बनाना राष्ट्रद्रोह है?

भारतीय भाषा आंदोलन के 76 माह से चल रहे ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति के सतत सत्याग्रह पर सरकार का शर्मनाक मौन क्यों?

नई दिल्ली( 21 जून 2019)। भारतीय भाषा आंदोलन ने 21जुलाई को, ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने के के लिये चलाये जा रहे सत्याग्रह के 76 वें माह में प्रवेश करने के दिन राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर धरना देकर देश के हुक्मरानों की कडी भत्र्सना करते हुए प्रधानमंत्री से अविलम्ब देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा।
प्रधानमंत्री को भेजे गये ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को दो टूक शब्दों में लिखा कि 21 जुलाई 2019 को भी 76 माह से ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग को लेकर देश की आजादी के लिए ऐतिहासिक सत्याग्रह कर रहा भारतीय भाषा आंदोलन इस मांग पर शर्मनाक मौन रखने के लिए देश के हुक्मरानों को धिक्कार रहा है।भारतीय भाषा आंदोलन आहत ही नहीं अपितु आक्रोशित है कि देश के पदलोलुपु हुक्मरानों ने अंग्रेजों के जाने के बाद 72सालों से भारत की आजादी,लोकशाही,संस्कृति, मानवाधिकार व स्वाभिमान को रौदकर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी थोप कर क्यों देश को उन्हीं अंग्रेजों का गुलाम बना रखा है जिनसे 1947 में देश के सपूतों ने असंख्य बलिदान देकर भारत को आजाद करा दिया था?भारतीय भाषा आंदोलन सहित पूरा देश इस बात से आहत होकर प्रधानमंत्री सहित संसद व न्यायपालिका सहित पूरी व्यवस्था के मठाधीशों से दो टूक शब्दों में एक यज्ञ प्रश्न पूछ रहा हैं कि जब रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी भारत क्यों बना हुआ है अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम ?
मान्यवर, शर्मनाक बात यह है कि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के 72 साल बाद भी भारत को उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम (शिक्षा,रोजगार,न्याय व शासन) बनाकर देश के हुक्मरान,देश से विश्वासघात कर रहे हैं। आपातकाल की निंदा करने वाली आपका दल व सरकार के शासनकाल में भी जनहित व देशहित के लिए संघर्ष करने वाले राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर सतत् आंदोलन कर सकते है व न हीं देश की इस सबसे ज्वलंत राष्ट्रीय समस्या का समाधान आपकी सरकार कर रही है। आपकी सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह राष्ट्रघाती शर्मनाक मौन साधे हुए है। सैकडों ज्ञापन आपके नाम आपके कार्यालय तक पंहुचाये गये परन्तु न तो उनका कोई जवाब ही आया व नहीं मुलाकात की मांग करने के बाबजूद मुलाकात के लिए ही समय दिया गया। यह किसी आपातकाल से कम नही इसके लिए उन्होनेे भारतीय भाषाओं में देश को संचालित करने के बजाय, अंग्रेजों की ही भाषा ‘अंग्रेजी’ व उनके द्वारा थोपे गये नाम ‘इंडिया’ से संचालित करके भारत को रौदने का काम बेशर्मी से देश की सरकारों करके राष्ट्र को कमजोर करने का कृत्य किया। भारत को इस अंग्रेजी व इंडिया के कलंक से मुक्ति किये बिना न तो देश में लोकशाही स्थापित हो सकती है व नहीं देश आजाद ही हो सकता है। फिरंगी गुलामी ढोते हुए विश्व की महाशक्ति व जगतगुरू बनना तो दीवास्वप्न के समान ही है। इसलिए भारत को महाशक्ति व विश्व गुरू बनने के लिए भारतीय भाषाओं को लागू करने वाले राष्ट्रीय महायोग का अमृतपान तो हर हाल में करना ही पडेगा।
धरने में वक्ताओं ने दो टूक शब्दों में कहा कि देश में 72 सालों से व्याप्त अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के मार्ग में जो राजनैतिक दल अपने निहित स्वार्थ के लिए हिंदी के नाम पर भारतीय भाषाओं का विरोध करने का जो षडयंत्र चल रहा है उसको विफल करने के लिए सरकार को निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए-
(1)-संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाओं में से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाकर केवल भारतीय भाषाओं में ली जाय।
(2) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय।
(3) प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा केवल दो भाषा में प्रदान की जाय। नौनिहालों को शिक्षा, मातृभाषा यानी प्रांतीय भाषा व भारतीय भाषाओं में प्रदान की जाय। देश में अंग्रेजी सहित विदेशी भाषाओं के साथ प्राचीन भारतीय भाषाओं को ऐच्छिक विषय के रूप में
(4) शासन प्रशासन भी केवल भारतीय भाषाओं (अंग्रेजी)में संचालित किया जाय।
उपरोक्त कदमों से कोई भी दल व व्यक्ति भारतीय भाषाओं का विरोध नहीं कर पायेगा। उदाहरण के लिए तमिलनाडू में न्याय व रोजगार जब तमिल में मिलेगा तो विरोध कोई भी दल नहीं कर पायेगा। जो करेगा उसको राष्ट्रद्रोह के तहत फांसी की सजा दी जाय। यहां पर विरोध केवल भारत की शिक्षा, रोजगार,न्याय व शासन के मठों पर काबिज अंग्रेजी के माफिया करते है, उन पर अंकुश लगाये बिना देश में लोकशाही स्थापित नहीं हो सकेगी।
सरकार को इस षडयंत्र को तोड़ने के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता की फांस रोजगार, न्याय व शिक्षा से हटा देनी चाहिए।
मान्यवर आपको विदित ही होगा कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो से मुक्ति के बाबजूद भी देश के गुलाम मानसिकता के हुक्मरानों ने बेशर्मी से विगत 72 सालों से देश की लोकशाही, सम्मान व मानवाधिकारों को जमीदोज करके देश को अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बनाया हुआ है। दूसरी तरफ पूरे विश्व के चीन, रूस, जर्मन, फ्रांस, जापान, टर्की, इस््रााइल सहित सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा में अपनी व्यवस्था संचालित करके विकास का परचम पूरे विश्व में फंेहरा रहे हैं।परन्तु भारत में अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी बेशर्मी से फिरंगी भाषा में ही न केवल राजकाज व न्याय व्यवस्था संचालित की जा रही है अपितु शिक्षा(चिकित्सा, यांत्रिकी, सामान्य)ही नहीं रोजगार व सहित पूरी व्यवस्था अंग्रेजी को ही पद प्रतिष्ठा व सम्मान का प्रतीक बना कर भारत व भारतीय संस्कृति को अंग्रेजियत के प्रतीक इंडिया का गुलाम बनाया जा रहा है।भारतीय भाषा आंदोलन इसी गुलामी के कलंको से माॅ भारती को मुक्त कराने व भारतीय भाषाओं के साथ भारत से देश को महाशक्ति व विश्व गुरू बनाने के लिए 21 अप्रैल 2013 से सतत् सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि देश की सरकारों ने अपनी राष्ट्रघाती भूल पर तुरंत सुधार करने का काम करने के बजाय देशभक्त आंदोलनकारियों का अलोकतांत्रिक दमन किया गया व आंदोलन को उजाडने का कृत्य किया गया। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है। आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।
भाषा आंदोलन में सम्मलित होने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, रामजी शुक्ला,  राकेश बसवाला,मुन्ना अशरफ खान, कमल किशोर नोटियाल खुशहाल सिंह बिष्ट, पदम सिंह बिष्ट, विनोद नेगी,जोगिंदर रोहिल्ला आदि उपस्थित थे

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