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26 साल से दिल्ली की जनता से अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने के नाम से हो रहा छल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने  के दावे पर शहरी मामलों के विशेषज्ञ ममगांई ने उठाए सवाल                    

बहुत कठिन है डगर अनधिकृत कालोनियों के नियमन की                                

                                                                                                                                                                                                              

नई दिल्ली(प्याउ)। एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष रहे शहरी मामलों के विशेषज्ञ जगदीश ममगांई ने कहा है कि हर बार जब चुनाव आता है, अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया जाता है और चुनाव समाप्त होते ही ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है । पिछले 26 वर्ष से बनती-टूटती उम्मीदों के बीच अनधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को एक बार फिर छले जाने की कोशिश हो रही है । आगामी 6 माह में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव को देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कच्ची कालोनियों में रहने वाले लोगों को अपने मकान का मालिकाना हक मिलने एवं इन कालोनियों में जल्द रजिस्ट्री प्रारम्भ करने की घोषणा की है । वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व 6 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की आखिरी केंद्रीय कैबिनेट द्वारा दिल्ली में स्वामित्व या हस्तांतरणमार्टगेज(रेहन) अधिकारों को प्रदान करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की सिफारिश करने के लिए उपराज्यपाल की अध्यक्षता में एक 10 सदस्य समिति का गठन किया था । इससे पूर्व 29 दिसम्बर 2014 को भी 7 फरवरी 2015 को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव को नजर में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कैबिनेट ने दिल्ली में 2000 अनधिकृत कॉलोनियों के नियमतिकरण की घोषणा की थी । वर्ष 2012 में भी कॉलोनियों को नियमित करने की अधिसूचना केन्द्र सरकार द्वारा जारी हुई थी, वर्ष 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव था । दिसमबर 2008 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से दो माह पहले ही अक्टूबर 2008 में तत्कालीन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के नाम पर छत्रसाल स्टेडियम में एक विशाल रैली का आयोजन कर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों अंतरिम (प्रोविजनल) प्रमाण पत्र वितरित कराए थे ।

जगदीश ममगांई ने बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के 1 नवंबर 2015 तक निर्मित अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित किए जाने के दावे पर सवाल उठाए हैं । उन्होंने पूछा कि क्या दिल्ली सरकार के पास 1 नवंबर 2015 तक निर्मित कालोनियों की वैधानिक जानकारी है, क्या उन्होंने इसके निमित्त कोई सर्वे कराया है ? क्या कालोनियों की हदबंदी (बाउंड्री) की गई है ? संरक्षित वनभूमि, हरित क्षेत्र एवं केन्द्र सरकार की भूमि पर निर्मित अनधिकृत कॉलोनियों को दिल्ली सरकार कैसे नियमित कर सकती है जबकि उसका स्वामित्व ही उनके पास नहीं है ? इससे पूर्व 29 दिसम्बर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने कट-ऑफ डेट 31 मार्च 2002 से बढाकर 1 जून 2014 तक बनी सभी अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने का निर्णय लिया था, तब भी 1 जून 2014 तक बनी अनधिकृत कालोनियों की न तो सूची थी और न ही इसके निमित्त कोई सर्वे कराया गया था । केन्द्र सरकार वं दिल्ली सरकार के बीच कट-ऑफ डेट पर एक रॉय नहीं है, सिविक एजेंसी या अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले निवासी कैसे सत्यापित करेंगे कि उनका निर्माण कथित कट-ऑफ डेट के पूर्व हुआ है ? जबकि सरकार के पास अंतिम एरियल सर्वे वर्ष 2002 का उपलब्ध है !  

पिछले 5 दशकों में अनियमित कॉलोनियों के निमित्त कई नीतियां बनी एवं निर्णय हुए, जिन्हें समय-समय पर लागू किया गया । पहली नीति 19 जुलाई 1961 को अस्तित्व में आई और उसके बाद मई 1977 तक 9 बार कॉलोनियों को नियमित करने की कार्यवाही हुई । वर्ष 2002 में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा कराए गए एरियल सर्वे के आधार पर 31 मार्च 2002 तक बनी अवैद्य कालोनियों के लिए 8 फरवरी 2007 को दिशा-निर्देश (गाइडलाइन) जारी हुई जिन्हें कुछ संशोधनों के साथ 5 अक्तूबर 2007 को जारी किया गया । इसमें जमीन अधिग्रहण एवं विकास शुल्क को भी अधिसूचित किया गया । चूंकि सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली भूमि उपयोग (लैंड यूज) पर एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ की 29 अगस्त 2000 को दायर याचिका (सिविल) प्रक्रियाधीन है और उपरोक्त दिशा-निर्देर्शों को सुप्रीम कोर्ट से भी संस्तुती प्राप्त थी इसके बावजूद इन दिशा-निर्देर्शों को लागू कर एक भी कालोनी केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयास से नियमित नहीं हुई, ऐसे में नए सिरे से फिर दिशा-निर्देश तैयार करने का औचित्य क्या है ? केन्द्र व राज्य सरकार नए सिरे से अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया चला रहे है जिसमें नई कट-ऑफ डेट के साथ नए दिशा-निर्देश होंगे तो इन्हें अधिसूचित करने से पहले पुनः सुप्रीम कोर्ट में जाकर संस्तुति लेनी होगी, ऐसे में एक बार फिर प्रक्रिया के चुनाव तक लंबित होने और अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले लाखों निवासियों के छले जाने की आशंका है ।

ममगांई ने कहा कि केजरीवाल ने जल्द रजिस्ट्री शुरू करने की बात भी कही है, यह होनी ही चाहिए । वैसे भी निजी संपत्ति के स्वामित्त्व स्थानांतरण हेतु रजिस्ट्री पर रोक का औचित्य नहीं था । वर्ष 2007 में, राजस्व विभाग के अधिकारियों ने आनन – फानन में अनधिकृत कॉलोनियों के आधिकारिक रूप से अधिसूचित नहीं होने की आड में संपत्तियों की रजिस्ट्री पर प्रतिबंध लगा दिया । इसके चलते वन क्षेत्र व सरकारी जमीनों पर अवैद्य कब्जे हो गए तथा पावर-ऑफ-अटॉर्नी के माध्यम से संपत्ति का लेनदेन हो गया । यदि रजिस्ट्री बंद नहीं की गई होती तो निजी संपत्ति (भले ही निर्माण कर) की ही रजिस्ट्री होती और सरकारी जमीन की जब रजिस्ट्री नहीं होती तो खरीददार भी इससे परहेज करता । इन इलाकों में संपत्ति की बिक्री कभी नहीं रुकी और खरीदार पावर-ऑफ-अटॉर्नी के माध्यम से संपत्तियों की बिक्री एवं स्थानांतरण करते रहे और इससे सर्वाधिक नुकसान में दिल्ली की राज्य सरकार रही है। हाल ही में 8 जनवरी 2019 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध कॉलोनियों में संपत्तियों के पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाने के जिला प्रशासन के आदेश को रद्द किया है । न्यायालय ने फैसले में कहा है कि राजस्व विभाग अपने आप संपत्तियों के पंजीकरण को रोक नहीं सकता है और संपत्ति के किसी भी स्वामित्व के विवाद के मामले में नागरिक अदालत (सिविल कोर्ट) है जिसे मामले पर निर्णय लेने के लिए शक्तियों के साथ निहित किया गया है ।

दिसम्बर 1993 में सबसे पहले दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना सरकार ने 31 मार्च, 1993 तक बनी 1071 कालोनियों को नियमित करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया था। फिर अक्टूबर 2004 में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार ने एक सार्वजनिक सूचना जारी की जिसमें 31.03.2002 तक बनी अनधिकृत कॉलोनियों से आवेदन और ले-आउट प्लान आमंत्रित किए, आरडब्ल्यूए के माध्यम से 1642 आवेदन आए जिनमें 448 ओवरलैपिंग थी। वर्ष 2008 में सोनिया गांधी ने 1218 अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीकरण के लिए अतंरिम प्रमाणपत्र भी दिए। वर्ष 2007 में यूपीए सरकार के केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने अनधिकृत कालोनी, गांव एवं झुग्गी-झोपडी क्षेत्र में हुए अवैध निर्माण पर एक वर्ष के लिए कार्रवाई रोकने के लिए अधिसूचना जारी की थी। तबसे लगातार कभी एक वर्ष तो कभी तीन वर्ष तक कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगती रही पर स्थायी समाधान के प्रति सार्थक प्रयास नहीं हुए। वर्ष 2007 में 8 फरवरी 2007 तक बने अवैध निर्माण पर कार्रवाई को अस्थायी संरक्षण मिला जो बढते-बढते अब 30 जून 2014 तक बने अवैध निर्माण पर कार्रवाई रोकने तक पहुंच गया। फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (विशेष प्रावधान) को दिसम्बर 2020 तक विस्तार मिला हुआ है ।


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