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पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के भूल सुधार से प्रेरणा लेकर तत्काल गैरसैंण को राजधानी घोषित करे मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र

उतराखण्ड की राजधानी एक ही होगी वो होगी गैरसैंण। शीतकालीन व ग्रीष्मकालीन का भ्रम राज्य के लिए घातक होगा–हरीश रावत
 
राजधानी गैरसैंण घोषित न करने के गुनाहगार रहे हरीश रावत से आंदोलनकारियों का गुस्सा जायज पर अब राजधानी गैरसैंण के लिए उनके आंदोलन का विरोध करना गैरसैंण आंदोलन के साथ उतराखण्ड के हितों पर ही होगा कुठाराघात

 

प्यारा उतराखण्ड डाट काम

उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को अगर उतराखण्ड से जरा सा भी प्रेम है तो उन्हें तत्काल प्रदेश की राजधानी गैरसैंण घोषित करके जनभावनाओं का सम्मान करना चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रदेश के सबसे जनता से सम्पर्क रखने वाले वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से प्रेरणा लेकर तत्काल प्रदेश की राजधानी गैरसैंण घोषित करे और अब तक के तमाम मुख्यमंत्रियों द्वारा प्रदेश की स्थाई राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय पंचतारा सुविधाओं के मोह में देहरादून में ही प्रदेश की राजधानी बनाने का षडयंत्र पर अंकुश लगाये।
उल्लेखनीय है कि  जिस प्रकार से गैरसैंण में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने 15 जुलाई को दो टूक ऐलान किया कि प्रदेश की राजधानी गैरसैंण ही होगी। उसके साथ उन्होने  प्रदेश की  राजधानी को बलात देहरादून में ही बनाये रखने के लिए ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन राजधानी का जुमला उछाल कर प्रदेश के वर्तमान व भविष्य को रौंदना चाह रहे प्रदेश के कुछ दिशाहीन नेताओं को भी एक प्रकार से नसीहत व फटकार लगाते हुए उतराखण्ड के सबसे जझारू व जनसंवाद करने वाले नेता हरीश रावत ने 15 जुलाई को फेसबुक पर ‘‘राजधानी एक, वो होगी गैरसैंण’ प्रदेश की राजधानी। श्री रावत ने साफ लिखा कि ‘ये शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन का भ्रम नहीं पाला जाना चाहिए, ये भ्रम राज्य के एक बड़े हिस्से के लिये बहुत घातक होगा, पौड़ी किसका उदाहरण है। पौड़ी में कमिश्नरी है मगर कमिश्नर का कैंप कार्यालय देहरादून में खोलने की अनुमति देकर स्थिति ये कर दी गई कि आज जिस पौड़ी के अंदर उत्तर प्रदेश में अफसर बैठता था, आज उत्तराखंड के अंदर कमिश्नर देहरादून में बैठता है।   श्री रावत ने गैरसैंण पर अपने विचार को स्पष्ट करते हुए कहा कि
मैं समझता हूं कि इस विवाद का समाधान बहुत पहले हो चुका है कि गैरसैंण राजधानी होगी, हां शीतकालीन सत्र विधानसभा का कहीं और भी आहूत हो सकता है। देहरादून में जो सुविधायें हमारे पास उपलब्ध हैं, उसका उपयोग किया जा सकता है मगर राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिए।
अपने इस दो टूक विचार को तीन दिन पहले ही धरातल में उतराते हुए उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता
हरीश रावत ने गैेरसैंण राजधानी बनाने की मांग को लेकर गैरसैंण में आंदोलन करने वाले 35 आंदोलनकारियों को जेल भेजने से आक्रोशित होकर 12 जुलाई को  हरीश रावत ने गैरसैंण में गिरफ्तारी देने के लिए अपने समर्थकों के साथ धरना प्रदर्शन किया। पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रदेश सरकार को पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अगर आंदोलनकारियों की गिरफ्तारी की गई और उन पर लगाये गए झूठे मुकद्दमे वापिस नही लिये गये तो वे  आन्दोलनकारियों के पक्ष में गिरफ्तारी देंगे।

प्रदेश के जनविरोधी नेताओं का उतराखण्ड विरोधी षडयंत्र है कि प्रदेश में अब तक बनी एकमात्र विधानसभा व जनांकांक्षाओं की राजधानी गैरसैंण को शीतकालीन राजधानी घोषित कर पंचतारा ऐशगाह देहरादून में प्रदेश की राजधानी थोपी जाय। इस षडयंत्र को भांप कर प्रदेश के समर्पित आंदोलनकारी निरंरत गैरसैंण को राजधानी बनाने के लिए आंदोलन जारी रखकर दवाब बनाये हुए है।

गैरसैंण आंदोलन में हरीश रावत के कूदने से प्रदेश सरकार सहित प्रदेश की राजनीति में एक प्रकार से हड़कंप मच गया। प्रदेश सरकार इस बात से परेशान थी कि हरीश रावत के इस आंदोलन में कूदने से जहां भाजपा पूरी तरह से कटघरे में खड़ी होगी। वहीं गैरसैंण आंदोलन पूरे प्रदेश में एक प्रकार से ऐसा बडा जनांदोलन फैलेगा जिसके आगे प्रदेश को सरकारों को नतमस्तक होना पडेगा।
वहीं हरीश रावत के गैरसैंण आंदोलन में कूदने से राज्य आंदोलनकारियों व समर्पित उतराखण्डियों को राजधानी गैरसैंण बनने वाली आशा की किरण सी नजर आने लगी। वहीं कुछ आंदोलनकारियों ने हरीश रावत के गैरसैंण आंदोलन में कूदने को एक प्रकार की नौटंकी करने व आंदोेलन को हडपने का भी आरोप लगाया।
उतराखण्ड हरीश रावत के खिलाफ कर रहे आंदोलनकारियों का गुस्सा बेवजह नही है। क्योंकि मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने भी पूर्ववती मुख्यमंत्रियों की तरह प्रदेश की राजधानी गैरसैंण में घोषित न करके देहरादून में ही कुण्डली मारे रखा।
खुद उतराखण्ड राज्य गठन व राजधानी गैरसैंण के प्रमुख आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने खुद हरीश रावत सत्ताच्युत होने के बाद दो टूक शब्दों में कहा था कि आपने राजधानी गैरसैंण घोषित न करके बडी भूल की। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि चुनाव सर पर थे….कैसे करता……जो काम मैने गैरसैंण राजधानी बनाने की दिशा में किये वह अन्य नेता सपने में भी नहीं कर सकता। अब कोई सरकार राजधानी गैरसैंण को नजरांदाज नहीं कर सकता। इस पर आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि आप की हार अटल थी। क्योंकि मोदी हर हाल में उप्र व उतराखण्ड जीतना चाहते थे। आपने राजधानी गैरसैंण के निराकार से साकार करने के दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किये। आपसे ही आशा थी। इसलिए आपको जीत हार से उपर उठ कर राजधानी गैरसैंण घोषित करनी चाहिए। ऐसे अवसर बार बार नहीं मिलते।
आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने दो टूक शब्दों में कहा कि पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह ही हरीश रावत भी अपने कार्यकाल में राजधानी घोेषित न करने के गुनाहगार रहे। आंदोलनकारियों का गुस्सा जायज है। परन्तु आंदोलनकारियों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हरीश रावत ने बहुत ही कुशलता से राजधानी गैरसैंण के निराकार विचार को साकार करने के दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज अगर वे राजधानी गैरसैंण के पक्ष में आंदोलन में उतर रहे हैं तो उनका सावधानी से स्वागत करना चाहिए । इससे राजधानी आंदोलन को नजरांदाज करने वाले सत्तासीनों को भारी परेशानी व बडा दवाब पडेगा। इसके साथ यह आंदोलन और मजबूत होगा।
राज्य गठन के अंतिम व निर्णायक चरण में हरीश रावत उतराखण्ड आंदोलन में उतरे थे। वे हमारे संगठन ‘ उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा’ (जो ऐतिहासिक आंदोलन जंतर मंतर पर 6 साल के लिए चला कर देश के राज्य गठन का एक नया कीर्तिमान स्थापित कर इतिहास रचने के लिए विख्यात रहा) को अपने नेतृत्व वाली संयुक्त संघर्ष समिति में सम्मलित कराने के लिए दो बार मेरे व हमारे संयोजक अवतार रावत के पास आये। दोनों बार हमने उनके साथ आंदोलन करने से मना कर दिया। हमारा मानना था आप आंदोलन करें पर झारखण्ड की कांग्रेस अध्यक्षा सुशीला करकटा की तरह कांग्रेस के बेनर पर। हम आंदोलन के संगठन है राजनैतिक दल अपने दलीय स्वार्थ के लिए समझोता कर सकते है परन्तु हमारे लिए उतराखण्ड ही सर्वोच्च है। इसलिए राजधानी गैरसैंण व उतराखण्ड के हक हकूकों के लिए किसी दल व अन्य संगठन में सम्मलित नहीं हो सकते। उस समय दिल्ली में हमारे संगठन को छोड कर अधिकांश सभी सक्रिय संगठन हरीश रावत के साथ संयुक्त संघर्ष समिति में सम्मलित थे।
इसके बाबजूद मैने कभी भी हरीश रावत के आंदोलन में दूसरे चरण के योगदान को नहीं नकारा। इसलिए मै आज सभी आंदोलनकारियों से अनुरोध करता हॅू कि हरीश रावत को भी उतना ही अधिकार है जितना हमें, गैरसैंण आंदोलन चलाने का। किसी की थोकदारी नहीं। अब लोकशाही है। उतराखण्ड के हक हकूकों की रक्षा करने का दायित्व हमारी तरह हरीश रावत का भी है। हाॅ वे अवश्य गुनाहगार रहे अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह अपने कार्यकाल में राजधानी गैरसैंण घोषित न करने के। परन्तु अगर वे अब अपनी भूल में सुधार करना चाहते है तो हमें अपने छुद्र अहं के लिए उनका विरोध नहीं करना चाहिए। अगर हम स्वागत नहीं कर सकते तो कम से कम अपना आंदोलन तेज तो कर सकते है।
परन्तु जो लोग हरीश रावत का तो विरोध कर रहे है और अन्य गुनाहगारों को जन्म दिन व तापपोशी की बधाई दे रहे है उन्हें अपनी मनोवृति के दंश से उतराखण्ड को नहीं डंसना चाहिए। वहीं जब ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन राजधानी का विधवा विलाप करने वाले उतराखण्ड द्रोहियों के खिलाफ मूक रहने वालों को भी अपने मनोवृति से उतराखण्ड को नहीं   डंसना चाहिए। राज्य आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि गैरसैण राजधानी का निर्णय व्यापक जनांदोलन के साथ विधानसभा में होगा।  तमाम संगठन अपनी लक्ष्मण रेखाओं में बंधने के साथ सीमित साधनों के कारण व्यापक जनांदोलन नहीं कर पा रहे है। ऐसे में प्रदेश का एक बडा नेता जो व्यापक जनाधार रखता हो वह अगर राजधानी गैरसैंण की मांग उठाता है तो आंदोलन मजबूत ही होगा।
राज्य आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि मैं राज्य आंदोलन में भाजपा व कांग्रेस की संकीर्ण मनोवृति से बहुत आहत था। परन्तु जब राज्य के लिए भाजपा ने संसद पर प्रदर्शन किया तो मैं, बलराज पासी आदि नेताओं के साथ संसद के समीप गोलमेथी चैक पर पंहुच गया था वहां पुलिस ने गोली चलाने की धमकी दे कर हमें बल पूर्वक रोका।
गैरसैंण पर हरीश रावत ने अब अपना नजरिया साफ कर दिया। जो प्रदेश के तमाम नेताओं के लिए नजीर है। आंदोलनकारी अपना आंदोलन अलग ही चलायें या मजबूत धारा के साथ। इसका निर्णय उनको लेना चाहिए।   इसी रविवार को दिल्ली के उतराखण्ड सदन में भाजपा के पूर्व सांसद बलराज पासी ने वचन दिया है कि वे गैरसैंण का विरोधी नहीं है।
अपने लेख में हरीश रावत ने साफ शब्दों में लिखा कि गैरसैंण को लेकर हमारी स्थिति हमेशा बिल्कुल साफ रही है। हमने वहां राजधानी के रूप में रुगैरसैंण का ढांचागत विकास करवाया। गैरसैंण में जहां 10 लोगों के रहने का स्थान उपलब्ध नहीं होता था, आज 2000 लोग वहां निवास कर सकते हैं, उसकी व्यवस्था की गई है। विधानसभा भवन सबसे भव्यतम भवन बनाया गया, 47 करोड़ रुपये सचिवालय के लिये स्वीकृत कर उसका काम वेबकॉस भारत सरकार की एक कंपनी को सौंपा गया और उनको एडवांस भी दे दिया गया है, पौने तीन साल में उसमें काम आगे नहीं बढ़ा है।
अपने लेख में हरीश रावत ने साफ शब्दों में लिखा कि आज भाजपा के उतराखण्ड प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा है कि वहां आवासीय भवनों का निर्माण होना आवश्यक है, हमने 500 भवनों के निर्माण की स्वीकृति देकर उसपर भी काम प्रारंभ किया। विधायकों  और मंत्रियों के रहने की पहले से ही व्यवस्था की गई है केवल मुख्यमंत्री आवास और राजभवन के निर्माण की दिशा में हमने कदम नहीं उठाये थे, मुख्यमंत्री आवास और राजभवन के लिये हम स्थान का चयन कर रहे थे। रुभराड़ीसैंण टाउनशिप विकसित करने के लिये उस क्षेत्र को नोटिफाईड किया गया और यू हुड्डा को उसका काम सौंपा गया, एक स्पेशलाइज्ड एजेंसी इसके लिये यू हुड्डा के रूप में स्थापित की गई। गैरसैंण को राज्य के दूसरे भागों से जोड़ने के लिये 6 सड़कें स्वीकृत की गई और उसमें टनल निर्माण का कार्य भी सम्मिलित था तो उसके लिये एक कॉरपोरेशन बनाया गया और उस कॉरपोरेशन को पूंजी उपलब्ध कराई गई। गैरसैंण विकास परिषद को स्थानीय अवस्थापना विकास के लिये ताकि चैखुटिया और गैरसैंण में कुछ काम हो सकें, पैसा उपलब्ध करवाया गया और 2 साल से वो संस्था लगातार हमारे कार्यकाल में वहां काम करती रही। पेयजल की उपलब्धता को बढ़ाया गया, विद्युतीकरण किया गया और विद्युत क्षमता को बढ़ाने के लिये सबस्टेशन आदि वहां निर्मित किये गये।
अपने लेख में हरीश रावत ने साफ शब्दों में लिखा कि हमने उन प्रारंभिक कार्यों को जो राजधानी के लिये आवश्यक थे, उनको या तो पूरा करवाया या उनकी बुनियाद रखने का काम किया। पौने तीन साल से उस दिशा में भाजपा की सरकार ने कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया है, एक ईंट भी गैरसैंण में नहीं लगाई है इसलिये एक बात सबके दिमाग में स्पष्ट होनी चाहिए।

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