राष्ट्रघाती ही साबित होगी भारत की आतंकी पाकिस्तान से करतारपुर गलियारा की बातचीत के लिए नयी पेशकश
नई दिल्ली से देवसिंह रावत
एक तरफ भारत सरकार, भारत के हितों व सिद्धांतों को ताक पर रखकर अमेरिका की गिदड़ धमकी के आगे झूक कर अपने मित्र ईरान से तेल आदि खरीदना बंद कर रही है, वहीं दूसरी तरफ दशकों से आतंकबाद से भारत को तबाह कर रहे पाकिस्तान को आतंकी व दुश्मन देश घोषित करके सभी संबंध तोड़ने के बजाय मोदी सरकार पाकिस्तान से बेशर्मी से विश्वकप में क्रिकेट खेल रही है और उससे करतारपुर गलियारा पर वार्ता करने की नयी पेशकश कर रही है।
चैकान्ने वाली एक खबर आ रही है कि आतंकी पाकिस्तान को करारा सबक सिखाने के लिए चुनावों में घर में घुस कर मारकर सबक सिखाने की हुंकार भरने वाली मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्तासीन होने के बाद आतंकी पाक का फन कुचलने के बजाय न जाने किसके दवाब में आकर आतंकी पाकिस्तान से करतारपुर गलियारे को लेकर जारी गतिरोध समाप्त करने का प्रयास करते हुए दोनों देशों के बीच 11 जुलाई से 14 जुलाई के बीच वार्ता करने का मन बना लिया है।
सुरक्षा विशेषज्ञों को ऐसी आशंका है कि पाकिस्तान भारत से बंगलादेश का बदला लेने के लिए अपने विफल हो चूके पंजाब आतंकबाद को पुन्न हवा देने के लिए ही करतारपुर गलियारे का दाव खेल रहा है। पाकिस्तान इस दाव को पहले भी चलना चाहती थी पर उस समय पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह व तत्कालीन सप्रंग सरकार ने पाकिस्तान का खौफनाक व भारतघाती हथकंडा बताते हुए इसका पुरजोर विरोध कर इसे सिरे से ठुकरा दिया था। उसके बाद भारत में मोदी सरकार के सत्तारूढ होने के बाद पाकिस्तान ने अपनी यह चाल चल दी। जिसको भांपने में भारत की वर्तमान सरकार विफल रही। भारत सरकार को अपनी भूल का अहसास तब भी नहीं हो रहा है जबकि पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान व पाकिस्तान में सर्वशक्तिमान सेना ने गोपाल चावला को आगे करके पंजाब आतंक को फिर से हवा देने के लिए करतारपुर गलियारे का दाव चला। जिस दाव में भारत सरकार के साथ कांग्रेसी नेता सिद्धू भी पूरी तरह फंस गये।
हालांकि भारत का रक्त रंजित व अमानवीय विभाजन के बाद पाकिस्तान में भारतीयों के अनैक धार्मिक तीर्थ रह गये है। उनमें गुरू नानक का जन्म स्थान से लेकर अनैक तीर्थ पाकिस्तान में है। करतारपुर गुरूद्वारा भी इनमें एक है। फिरंगियों व मित्रराष्ट्रों के कुचक्र के दंश से भारत का बर्बर विभाजन से करोड़ों भारतीयों को बरबस दो -तीन देशों में विभाजित होकर अपने तीर्थो व जन्म स्थान के साथ स्वजनों को भी खोना पडा। लाखों भारतीयों का कत्ल किया गया। लोग अपनी जमीन,घरबार संपति सबब कुछ लुटा बेठे। इसका दंश करोड़ों लोगों के दिलों में दशकों से है।
विभाजन के बाद पाकिस्तान जिस प्रकार से भारत के अंध विरोध का जहर अपने देश में घोलता रहा। उसके दंश से भारत के साथ पाकिस्तान भी परेशान है।
भारत की सरकारें न जाने किसके दवाब में पाकिस्तान से मित्रता की आश लगाये बेठे है। जबकि पाकिस्तान के शासकों के साथ उनके नीति निर्धारकों के साथ जनमानस के तन मन में भारत कर तबाह करने का जहर कूट कूट कर भरा है।
जब तक पाकिस्तान में इस जहर को बाहर निकाला जायेगा तब तक पाकिस्तान से वार्ता करना न केवल भारत घाती होगा अपितु यह मानवता के खिलाफ भी होगा। जब तक पाकिस्तान में अमन परस्ती माहौल नहीं होता तब तक पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की वार्ता करना राष्ट्रघाती ही होगा। क्योंकि देश की सुरक्षा व अमन चैन सबसे बढ़कर है। मित्रता के नाम पर देश को तबाह करने को तुले आतंकी से किसी प्रकार का मेलजोल करना एक प्रकार से आत्महत्या करना जैसा ही कदम है। जिसको किसी भी जागरूक समाज व देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इसलिए दोस्ती की आड में आतंकी पाकिस्तान द्वारा भारत को तबाह करने को तैयार आतंकी षडयंत्र में फंस कर एक नयी त्रासदी को क्यों आमंत्रण दे भारत। हां पाकिस्तान दिल से भारत से दोस्ती चाहता तो दोनों देश जर्मन की तरह एक भले न हो पर दोनों देशों में नेपाल की तरह बिना पासपोर्ट के एक दूसरे के यहां बेरोकटोक आ जा सकते। परन्तु पाकिस्तान एक तरफ दोस्ती का पेंगाम भेजता है वहीं दूसरी तरफ कश्मीरसहित भारत में तबाह करने वाले आतंकियों से हमले कराता है। पुलवामा हमले के बाद भी सैकडों आतंकी हमले पाकिस्तान भारत पर करा चूका है। इसलिए पाकिस्तान, भारत से दोस्ती नहीं दुश्मनी चाहता है वह भी भारत को दुनिया के नक्शे से मिटाना चाहता है। एक तरफ वह अपने देश में भारत विरोधी आतंकी संगठनों को भारत पर हमला करवाता है व दूसरी तरफ भारत में असामाजिक व भारत विरोधी तत्वों का पोषण कर भारत को बर्बाद करने के लिए तुला है। ऐसे में ऐसे अंध विरोधी से मित्रता का नाटक हर प्रकार से राष्ट्रघाती ही होगा। सहृदय इंसानों का दिल प्रेम से जीता जा सकता है परन्तु हैवान को प्रेम से नहीं अपितु रौंद कर ही अंकुश में रखा जा सकता है।