उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार ने एक एहम फैसला लिया है। जो उत्तराखंड के शहीद जवानो के बलिदान को याद रखने और उनके नाम को अमर रखने का फैसला है। इस फैसले के अनुसार सरकारी संस्थान, स्कूल, कॉलेज, पार्क और सड़कों को देश की खातिर शहीद होने वाले जांबाजों के नाम से जाना जाएगा। सरकार ने शहीदों के नामकरण से जुडे़ मानक को बेहद सरल कर दिया है। मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने इस पर कार्रवाई के लिए सभी अपर मुख्य सचिव, सचिव और डीएम को आदेश दे दिए हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भी कुछ समय पहले इस संबंध में घोषणा की थी। जिलों में डीएम की अध्यक्षता वाली कमेटी अब तक नामकरण पर निर्णय लेती थी। मगर, अब से हर विभाग अपने स्तर से निर्णय लेगा। इससे ज्यादा से ज्यादा शहीदों के नाम से भवन-पार्क और सड़कें बनेंगी। मुख्य सचिव के अनुसार, आजादी के आंदोलन के शहीद, विभिन्न युद्धों के साथ ही आंतरिक सुरक्षा और सीमांत झड़पों में प्राणों का बलिदान करने वाले सेना और अर्द्धसैनिक बलों के शहीदों के नाम भी शामिल होंगे।
इसके बाद हर जिले में स्थानीय शहीद का नाम, हर क्षेत्र में वहां के स्थानीय शहीद को प्रमुखता दी जाएगी। इससे स्थानीय लोग और युवा पीढ़ी अपने शहीदों के बारे जानेंगे। युवा पीढ़ी के लिए ये प्रतीक प्रेरणा का काम करेंगे। उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक उत्तराखंड के तीन सौ 63 से ज्यादा बहादुर बेटे भारतमाता की आन-बान-शान के लिए प्राणों का बलिदान दे चुके हैं। कारगिल युद्ध में शहीद हुए 525 सैनिकों में 75 उत्तराखंड से थे। देश की आजादी के आंदोलन में भी उत्तराखंड ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।
देश के लिए शहादत देने में उत्तराखंड सबसे आगे
देश की सीमाओं की हिफाजत की बात हो या फिर देश के भीतर अराजक तत्वों से मुकाबला, उत्तराखंड के जांबाज हर मौके पर सबसे आगे रहते हैं। उत्तराखंड गठन के बाद से अब तक उत्तराखंड के तीन सौ 63 से ज्यादा बहादुर बेटे भारतमाता की आन-बान-शान के लिए प्राणों का बलिदान दे चुके हैं। कारगिल युद्ध में शहीद हुए 525 सैनिकों में 75 उत्तराखंड से थे। देश की आजादी के आंदोलन में भी उत्तराखंड ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था।