उत्तराखंड देश

सांसद बलूनी का सराहनीय प्रयास पर विशेष फंड के झूनझूने से नहीं अपितु राजधानी गैरसैंण बनाने से ही होगा उतराखण्ड का चहुमुखी विकास व लगेगा पलायन पर अंकुश

देवसिंह रावत


प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने की राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय पंचतारा सुविधाओं में धृतराष्ट्र बने उतराखण्डी हुक्मरानों द्वारा देहरादून में ही डेरा डालने से निराश व बदहाल उतराखण्ड पलायन की त्रासदी के दंश से जुझ रहा है। प्रदेश की सत्तासीन त्रिवेन्द्र सरकार जहां प्रदेश को पलायन के दंश से उबारने के लिए ‘पलायन आयोग ’ का झूनझूना बजा कर प्रदेश की जनता की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रही है। उतराखण्ड को पलायन के दंश से मुक्त करने वाले झूनझूने के सर्वेसर्वा खुद भी ही आयोग के मुख्यालय पौडी के बजाय देहरादून में ही कुण्डली मारे बेठे हैं।
वहीं  दूसरी तरफ भारत के सर्वशक्तिमान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के सबसे विश्वस्तों में गिने जाने वाले उतराखण्ड से राज्यसभा के सांसद अनिल बलूनी इन दिनों उतराखण्ड की बेहतरी के लिए व पलायन के दंश से उबारने के लिए नये नये कदम उठाने से प्रदेश में चर्चाओं में है। सांसद बलूनी का मानना है कि ‘माना अंधेरा घना है ,लेकिन दिया जलाना कहाँ मना है।’
भले ही उतराखण्ड से 5 लोकसभा व 2 राज्य सभा के सांसद है,  पर उतराखण्ड के सबसे युवा सांसद होने के साथ सन् 2014 से देश की सत्ता में आसीन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी,अपने मजबूत सम्पर्को का सदप्रयोग कर रहे है। उतराखण्ड के चहुमुखी विकास करके प्रदेश में हो रहे विनाशकारी पलायन पर अंकुश लगाने के लिए नयी नयी योजनाओं लागू करना चाह रहे है। इसी के लिए सांसदं अनिल बलूनी ने 18 जून को देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से भेंट कर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पलायन रोकने के लिए विशेष कोष बनाने का आग्रह किया।
वहीं 19 जून को सांसद अनिल बलूनी ने  नीति आयोग के उपाध्यक्ष  राजीव कुमार जी से उत्तराखंड के पलायन के विषय पर भेंट की। नीति आयोग निम्न तीन बिंदुओं पर उत्तराखंड को सहयोग करेगा ।
-एक, 10 पर्वतीय जनपदों के एक-एक निर्जन (घोस्ट विलेज) को विकसित करने में सहयोग करेगा।
’’ दूसरा पलायन पर एक उच्चस्तरीय अध्ययन रिपोर्ट तैयार करेगा।
’’ तीसरा शीघ्र ही सांसद बलूनी द्वारा गोद लिए गए बौरगांव का दौरा करेगा।
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख  अनिल बलूनी ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से कहा कि पलायन के कारण सैकड़ों गांव निर्जन हो चुके हैं और यह क्रम तेजी से जा रही जारी है। इस भयावह समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार के सहयोग की महती आवश्यकता है। मूलभूत सुविधाओं और सामान्य से रोजगार के लिए होने वाले पलायन के उन्मूलन के लिए धरातल पर व्यावहारिक नीति बन सके और ठोस कार्य हो सके। उत्तराखंड के चमोली, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़,बागेश्वर, अल्मोड़ा, चंपावत  तथा नैनीताल जनपद का पर्वतीय क्षेत्र पलायन की समस्या से अत्यधिक ग्रस्त हैं।’पलायन की त्रासदी के दंश से पूरा उतराखण्ड बेहाल है। उतराखण्ड में पूरी तरह खाली हो चूके गांवों की संख्या सन 2011 में जहां 1034 गांव थे, वे आज 1800 हो चूके हैं। एक दशक में ही उतराखण्ड से पांच लाख लोगों ने शिक्षा व रोजगार के लिए शहरों के लिए पलायन किया।

’सांसद बलूनी ने वित्तमंत्री से विशेष आग्रह करते हुए कहा कि आगामी बजट में अगर उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों के लिए विशेष फण्ड की व्यवस्था होती है तो यह राज्य के लिए मील का पत्थर होगा और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस हिमालयी राज्य के लिए जीवनदान होगा। उन्होंने कहा वह इस क्रम में विभिन्न मंत्रालयों और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों से संवाद कर इस कड़ी को आगे बढ़ाएंगे।’’सांसद बलूनी ने कहा अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ रोजगार उन्मूलन की नीति बनती है तो वह पलायन रोकने में कारगर होगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि केंद्र सरकार इस विषय में अवश्य गंभीरता से विचार करेगी।’

पलायन के दंश से उजडे हुए गांवों को आबाद करने के लिए दूसरा कदम उठाते हुए सांसद बलूनी ने अपना नाम अपने मूल गांव की मतदाता सूची में अपना नाम जोड़ने का निर्णय किया है। अभी तक मेरा नाम मालवीय उद्यान, कोटद्वार की सूची में था, जिसे मैंने स्थानांतरित कर ग्राम- नकोट, पट्टी- कंडवालस्यु, विकासखंड कोट, जिला पौड़ी में स्थानांतरित कर दिया है।
सांसद बलूनी ने कहा कि यह मेरी निजी स्तर पर प्रतीकात्मक शुरुआत है ताकि हम अपने छूट चुके गांव से जुड़ने का शुभारंभ करें और जनअभियान बनायें। पलायन के समाधान के लिए केवल सरकारों पर आश्रित नहीं रहा जा सकता। पहल अपने-अपने स्तर पर हमें भी करनी होगी। ऐसा कर प्रवासियों का अपने मूल गांव से पुनः भावनात्मक रिश्ता बनेगा, गांव की समस्याओं से अवगत होंगे और मिलजुलकर उनका समाधान करेंगे। तभी हमारी समृद्ध भाषा, संस्कृति, खानपान, रीति-रिवाज और महान परंपरायें जीवित रह सकेंगी।मेरा मानना है कि मैं अपने गांव, अपने परिवेश और अपनी संस्कृति से निकटता से जुडूंगा, किंतु इसका महत्वपूर्ण पहलू यह है कि राज्य बनने के बाद हुए भारी पलायन से गांव के गांव खाली हुए हैं। भारी संख्या में पहाड़ की विधानसभा सीटें घटी है और स्वाभाविक रूप से विकास के लिए अपेक्षित धन और संसाधन में पहाड़ों की हिस्सेदारी घटी है। सांसद बलूनी ने फेसबुक सहित सोशल मीडिया में मैदानी हिस्सों में रहने वाले उतराखण्डियों से आवाहन करते हुए कहा कि आइए मिलजुल कर इस अभियान के भागीदार बने और अपना वोट, अपने गांव में जोडे।
सांसद बलूनी के अपना वोट अपने गांव अभियान को विख्यात लेखक व कवि  प्रसून जोशी का समर्थन मिला है।
ऐसा नहीं कि प्रदेश को संवारने व बेहतरी के लिए अन्य सरकारों व नेताओं कुछ सकारात्मक प्रयास नहीं किया। स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी व निशंक ने अपने शासनकाल में प्रदेश में जो पहला काम करना था वह आज 18 साल बाद भी पूर्ण बहुमत के पहले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने भी नहीं किया। वह काम है प्रदेश की दशा व दिशा सुधारने के साथ प्रदेश के चहुमुखी विकास के लिए राज्य को उप्र की लखनवी दंश से बचा कर उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं को साकार करने के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाना। प्रदेश गठन के दस सालों तक षडयंत्र के तहत भाजपा व कांग्रेसी की सरकारों ने जानबुझ कर देहरादून को ही राजधानी बनाये रखने के लिए ‘राजधानी चयन आयोग’ नामक झूनझूना लोगों के आंखों में धूल झोंकने के लिए किया। जिससे प्रदेश के सीमान्त व पर्वतीय जनपदों से  अधिकांश चिकित्सक, शिक्षक, नेता, सरकारी अधिकारी देहरादून व इसके आसपास ही तबादला करने का तिकडम करने में ही व्यस्त हो गये। जिससे पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, सरकारी कामकाज व रोजगार बुरी तरह से प्रभावित हो गया। समर्थ लोग बेहतर शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार के लिए देहरादून सहित शहरों की तरफ पलायन कर गये। इससे न केवल उतराखण्ड के गांव उजडने लगे अपितु देश की सुरक्षा भी खतरे में पड गयी। देहरादून में काबिज नेताओं, नौकरशाहों का रूख भी लखनऊ की तरह उतराखण्ड विरोधी ही बन गया। खंडूडी के बाद सत्तासीन हुए विजय बहुगुणा व हरीश रावत ने भले ही अपने अपने शासनकाल में गैरसैंण में राजधानी बनाने की दिशा में कदम बढाया परन्तु वे भी सत्तामोह में ऐसे डूबे रहे कि गैरसैंण को राजधानी घोषित करने का साहस नहीं जुटा पाये। प्रदेश की एकमात्र विधानसभा गैरसैंण में बनने व बजट  सत्र सहित अनैक सत्रों का आयोजन गैरसैंण में होने के बाबजूद राजधानी गैरसैंण घोषित नहीं कर पाये। इसका दण्ड उतराखण्ड को विनाशकारी पलायन से चूकाना पड रहा है।

उतराखण्ड के चहुमुखी विकास के लिए उतराखण्डियों ने राव मुलायम की जन विरोधी सरकारों के अमानवीय दमन सह कर पृथक उतराखण्ड राज्य गठन कराने में सफलता हासिल की थी। दशकों वर्षो के संघर्ष व दर्जनों शहादतें देने से अर्जित उतराखण्ड राज्य गठन के 18 साल में ही पंचतारा सुविधाओं के मोह में नीरों बने प्रदेश के हुक्मरानों ने राज्य गठन की जनांकांक्षाओं (राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड, भू कानून व सुशासन) को इतनी निर्ममता से रौंदने से जनता ठगा सा महसूस कर रही है। जिन उतराखण्ड के सीमान्त व पर्वतीय जनपदों ने ऐतिहासिक आंदोलन किया था, उन्हीं जनपदों से लाखों लोगों ने अपने गांवों से पलायन कर दिया। सरकारी अनुमानों के अनुसार करीब 3000 से अधिक गांव उजड चूके है।

प्रदेश में इन 18 सालों में भाजपा व कांग्रेस ने समय समय पर बसपा व उक्रांद सहित निर्दलीयों के साथ सरकारें बनायी। पर प्रदेश के किसी भी मुख्यमंत्री ने ईमानदारी से राज्य गठन के प्रमुख जनांकांक्षा राजधानी गैरसैंण को निर्ममता से रौंद कर पंचतारा सुविधाओं के मोेह में नौकरशाहों के साथ मिल कर देहरादून में ही कुण्डली मारे बेठे है। इसके कारण प्रदेश के पर्वतीय व सीमान्त जनपदों से शिक्षक, चिकित्सक, कर्मचारी व अधिकारी ही नहीं अपितु इन जनपदों के सम्पन्न लोगों ने देहरादून सहित मैदानी जनपदों में पलायन कर न केवल पहाड को पतन के गर्त में धकेल दिया है।
इस समस्या का स्थाई निदान करने के बजाय प्रदेश की सरकार हवा में हाथ पांव मार रही है। जबकि त्रिवेन्द्र सरकार प्रदेश की सबसे मजबूत व  पहली पूर्ण अभूतपूर्व बहुमत की सरकार है। इसके बाबजूद पलायन के दंश से बेहाल प्रदेश का सहज व सरल समाधान करने के लिए देहरादून के पंचतारा सुविधाओं के मोह से त्रिवेन्द्र सरकार भी नहीं उबर पा रही है। त्रिवेन्द्र सरकार को चाहिए था कि पलायन आयोग का गठन करने के बजाय तत्काल राजधानी गैरसैंण घोषित करके गैरसैंण से ही सरकार संचालित करना चाहिए। जिससे गैरसैंण सहित पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार की भीषण समस्या का समाधान काफी हद तक पटरी पर उतर जाता। इससे प्रदेश का जहां चहुमुखी विकास होता वहीं पलायन जैसी त्रासदी पर अंकुश लगता। प्रदेश के भाग्य विधाताओं को समझना चाहिए कि प्रदेश के चहुमुखी विकास व राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने का मूल ही राजधानी गैरसैंण है। प्रदेश के नेताओं व नौकरशाहों में लखनवी मानसिकता की तरह ही व्याप्त उतराखण्ड विरोधी देहरादूनी मानसिकता से उबारने का मूल सूत्र है राजधानी गैरसैंण। इसलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र व सांसद अनिल बलूनी को समझना चाहिए कि राजधानी गैरसैंण बनाये बिना उतराखण्ड विरोधी देहरादूनी मानसिकता के चलते विकास के तमाम संसाधन व प्रयोग भी असफल ही साबित होंगे। अगर उतराखण्ड का वास्तव में हित चाहते है तो उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाते हुए अविलम्ब गैरसैंण राजधानी से शासन संचालित करके शहीदों के सपने को साकार करना चाहिए।

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