बिना काले धन के गटर में डुबकी लगाये चुनावी जंग जीतना एक प्रकार से असंभव
देवसिंह रावत
जब लूट खसोट के करोड़ों रूपये खर्च करने पर ही व्यक्ति जनप्रतिनिधी बन सकता है। बिना काले धन के गटर में डुबकी लगाये व्यक्ति का चुनावी जंग जीतना एक प्रकार से असंभव सा है। क्योंकि अकूत काला धन शराब, व बाहुबल के बिना चुनावी समर में मजबूती से लडना संभव नहीं है। वहीं तमाम तिकडमों करने व अरबों रूपये खर्च करके ही एक दल सरकार का गठन करता है। ऐसे भ्रष्टाचार के गटर में आकंठ डूबी व्यवस्था (दल व जनप्रतिनिधी)से ईमानदारी की आश करना भी मूर्खता है। जो लोग ऐसे मोहरों (दल व जनप्रतिनिधियों) पर दाव लगाते हैं वे सत्तासीन होने के बाद अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति नहीं करेगा यह सोचना भी एक नासमझी है। सच्चाई यह है कि काले धन में आकंठ डूबी देश की पूरी व्यवस्था काले धनिकों व भ्रष्टाचारियों के हाथों की ही कठपुतली मात्र बन कर रह गयी है। ऐसे काले धन के मोहरे ही अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जाति, क्षेत्र, संप्रदाय व धनबल की विषबेल से लोकशाही का हरण करके समाज के अमन चैन को डस देते है।
जब तक देश में निर्वाचन प्रणाली में आमूल परिवर्तन करके काले धन की काली छाया से मुक्त नहीं किया जायेगा तब तक देश से भ्रष्टाचार मुक्त लोकशाही स्थापित नहीं हो सकती। अपवाद छोड़ दे तो आम आदमी काले धन के अभाव में न तो मजबूती से चुनाव लड़ सकता है। ऐसे माहौल में बिना काले धन की सरकार बनाने की बात सोचना भी दिवास्वप्न देखने के ही समान है।
सबसे हैरानी की बात है कि भारत में लोेकशाही स्थापित करने का दंभ भरने वाले निर्वाचन प्रणाली ही देश के गरीब को जनप्रतिनिधी बनने से रोकने की लक्ष्मण रेखा (धन राशि) खिंचे हुए है। इस चुनाव में आम जनमानस को अपना पक्ष जनता के समक्ष रखने का समान अवसर निर्वाचन संस्थान उपलब्ध नहीं कराती। इस कारण पूरी प्रणाली काले धनिकों के हाथों का मोहरा बन कर रह जाती है। धनाभाव में योेग्य गरीब व्यक्ति भी जनप्रतिनिधी नहीं बन सकता और काले धन के दम पर अयोग्य व्यक्ति भी देश का भाग्य विधाता बन कर लोकशाही को बेशर्मी से रौंदता है।