लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी की सुनामी से हुआ विरोधियों का सूफडा साफ
50 प्रतिशत से अधिक मतों को अर्जित करने वाले प्रथम सरकार बनी
नेहरू व इंदिरा की तरह ही दो बार लगातार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाले प्रधानमंत्री बने मोदी
लोकसभा चुनाव 2019 परिणाम भाजपा 303 (राजग-353) कांग्रेस 52 महागठबंधन(बसपा-10, सपा-5)
प्यारा उतराखण्ड डाट काम
30 मई को भाजपा नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संसदीय दल के नेता नरेन्द्र मोदी 17वीं लोकसभा में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेगे। इससे पहले नरेन्द्र मोदी 26 मई को गुजरात जा कर अपनी माता से आशीर्वाद लेंगे। 27 मई को नरेन्द्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र बनारस जा कर जनता को भारी बहुमत से विजय बनाने के लिए धन्यवाद देंगे।
इससे पहले 16वीं लोकसभा में सत्तासीन रही मोदी सरकार ने 24मई राष्ट्रपति को नयी सरकार के गठन के लिए अपना इस्तीफा सौंप दिया था। 25मई को भाजपा संसदीय दल ने नरेन्द्र मोदी को संसदीय दल का नेता चुना। 25 मई को भाजपा व राजग गठबंधन के नेेता नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति से भेंट कर सरकार बनाने का दावा पेश किया।
उल्लेखनीय है कि 23 मई को 17वीं लोकसभा के गठन के लिए 7चरणों में हुए लोकसभा चुनाव 2019 की मतगणना से साफ हो गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नेतृत्व वाली राजग को पूर्ण बहुमत से भारी विजय मिली। चुनाव परिणामों के अनुसार 542 लोकसभाई सीट के लिए हुए चुनाव में अकेले भाजपा को 303 सीटों पर भारी विजय मिली। इसके साथ भाजपा नेतृत्व वाली राजग गठबंधन को 353 सीटें मिली।
दूसरी तरफ कांग्रेस नेे 52 सीटें जीती। महागठबंधन को 15 सीटें मिली। इसमें बसपा को 10 व सपा को 5 सीटें मिली। द्रुमुक-23, तृणमूल-22, जगन की कांग्रेस-22, जद बीजू-12, तेरास को 9 सीटें मिली ।
वहीं वामपंथी दलों को 6 सीटें मिली। उप्र में महागठबंधन बना कर मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की हुंकार भरने वाली सपा, बसपा व रालोद नेतृत्व वाली महागठबंधन को मात्र सीटें मिली। उतराखण्ड, हिमाचल, गुजरात, दिल्ली व हरियाणा सहित 17 प्रांतों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं जीती।
इसके साथ 2019 के लोकसभा चुनाव में 54.4 प्रतिशत से अधिक मतों को अर्जि्रत करने वाले पहले सरकार बनी मोदी सरकार। नेहरू व इंदिरा के बाद प्रधानमंत्री मोदी देश के ऐसे तीसरे प्रधानमंत्री हो गये जिन्होने अपने दो लगातार कार्यकाल में पूर्ण बहुमत अर्जित किया।
पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने लगातार दो कार्यकाल में 364 व 371 सीटें जीती थी। वहीं इंदिरा गांधी ने अपने दो कार्यकाल में283 व 352 सीटें अर्जित की थी। वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 2014 में 282 व 2019 में 300 से अधिक सीटें जीती।
उल्लेखनीय है कि दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश भारत की 17वीं लोकसभा के 543 निर्वाचित सदस्यों को लगभग 91 करोड़ मतदाताओं में से तकरीबन 67.11 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया। जबकि 2014 में कुल मतदान 66.40 प्रतिशत दर्ज किया गया था। देश के करीब 90 करोड़ मतदाताओं में 71,735 विदेशी मतदाताओं भी सम्मलित है। इसमें 46.8 करोड़ पुरुष व 43.2 करोड़ महिला, व 38,325 तृतीय लिंग मतदाता हैं। 23 मई को हुई मतगणना में पहले-पूर्व-पोस्ट-पोस्ट मतदान द्वारा चुना गया। भारत के राष्ट्रपति एक अतिरिक्त दो सदस्यों को नामांकित करते हैं।
सभी 542 सीटों पर मतदान चुनावी मशीन के द्वारा किया गया। चुनावों के दौरान कुल 17.4 लाख वीवीपीएटी इकाइयों और 39.6 लाख चुनावी मशीनों (ईवीएम) का उपयोग 10,35,918 मतदान केंद्रों के रूप में किया जाएगा।
वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) प्रणाली जो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को ईवीएम स्लिप जनरेट करके प्रत्येक वोट को रिकॉर्ड करने में सक्षम बनाती है। हालांकि विपक्षी दलों में चुनावी मशीन से चुनाव कराये जाने पर इसकी निष्पक्षता पर शुरू से ही प्रश्न खडे किये थे। परन्तु चुनाव आयोग व सर्वोच्च न्यायालय ने विपक्ष के तमाम आरोपों को सिरे ने नकारा। सर्वोच्च न्यायालय ने 9 अप्रैल 2019 को चुनाव की निष्पक्षता बनाये रखने के लिए व चुनावी मशीनों पर उठ रहे संदेहों को दूर करने के लिए भारत के चुनाव आयोग को टटच्।ज् स्लिप वोट काउंट को पाँच बेतरतीब ढंग से चुने गए चुनावी मशीन (ईवीएम) प्रति विधानसभा क्षेत्र में बढ़ाने का आदेश दिया, जिसका अर्थ है कि भारत के चुनाव आयोग को 20,625 म्टड के टटच्।ज् स्लिप की गिनती की गयी। हालाँकि विभिन्न विधानसभा चुनावों में वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) पर्चियों के साथ ईवीएम परिणामों के मिलान की कवायद की जा रही थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में यह पहली बार हुआ।
चुनाव आयोग ने 22 मई को बैठक के बाद विपक्षी दलों की तमाम आशंकाओं व किन्तुू परंतुओं को दरकिनारे करते हुए पुराने ही तर्ज पर मतगणना करने का निर्णय लिया था।
सत्रहवीं लोक सभा के गठन के लिए भारतीय आम चुनाव, देशभर में 11 अप्रैल से 19 मई 2019 के बीच 7 चरणों में अयोजित कराये गये। चुनाव के परिणाम 23 मई को घोषित किये गये।
भगवान राम व कृष्ण के इस देश में विगत 100 साल से एक कहावत लोगों की जुबान में प्रायः सुनाई देती रही कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। परन्तु जैसे हमारे देश के लोगों ने अंग्रेजांें के बाद इस देश की सत्ता संभाली तो एक दशक तक यह देश प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मय हो गया। उन दिनों यहां पर नेहरू का कोई विकल्प जनादेश से आया। नेहरू की अंतिम सांस तक यह देश नेहरूमय रहा। उसके बाद इंदिरा गांधी ने दो दशक तक भारत के जनमानस पर एकछघ्त्र राज किया। देश इंदिरामय हो गया। यानी जिस देश में कभी मजबूरी का नाम गांधी व नेहरू कहा जाता था उसके बाद लोग इंदिरा के जीवनकाल में मंजबूरी का नाम इंदिरा गांधी कहा जाने लगा। उसके बाद समय ने करबट ली, देश में मुरारजी, चरणसिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, गुजराल, देवेगोडा, अटल बिहारी वाजपेयी व मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बन कर इतिहास में दर्ज हो गये पर देश के लोगों के जेहन में इंदिरा गांधी जीवंत रही। उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी देश की सत्ता में आसीन हुए। उनके देश की सत्ता पर आसीन होने की हुंकार भरने के बाद से प्रधानमंत्री बनने के बाद पहले कार्यकाल मेंही पूरा देश मोदीमय हो गया।इनके सामने नेहरू व इंदिरा की तरह ही विपक्ष बौना नजर आने लगा।
भले ही 17वीं लोकसभा गठन के लिए हो रहे 7 चरणों में से आज 12 मई को छटे चरण के मतदान हो रहा है।े लोगों के दिलों दिमाग में यकीन हो गया है कि अबकी बार फिर से मोदी सरकार यानी आयेगा तो मोदी ही। भले ही देश के खबरिया चैनल व राजनीति के धुरंधर मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत जुटाने पर भी किन्तु परंतु लगा रहे हैं। पर देशकी राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले प्यारा उतराखण्ड के सम्पादक देवसिंह रावत को मोदी व शाह के इन दावों में सत्यता नजर आ रही है कि उनको 2014 से अधिक सीटें 2019 के चुनाव में अर्जित होगी। श्री रावत का साफ मानना है कि भले ही प्रधानमंत्री मोदी अपने इस पांच साल का कार्यकाल में अपने चुनावी वादों व भाजपा के दशकों से स्वयं घोषित लक्ष्यों पर कहीं दूर दूर तक खरे नहीं उतरे है । परन्तु मोदी ने बहुत ही कुशलता से पुलवामा प्रकरण के बाद बालाकोट पर हमला करके इस चुनाव को पूरे तरह से देश की सुरक्षा से जोड दिया। मोदी की इस चक्रव्यूह में विपक्ष पूरी तरह से समझने में विफल रहे और उनकी मंशा पर किन्तु परंतु लगा कर खुद ही फंस कर देश की जनता की नजरों में खलनायक व मोदी देश के नायक बन कर मतदाताओं के समक्ष उभर के सामने आये।
जहां तक बात है कार्यों व अपने चुनावी वादों की तुला पर मोदी पूरी तरह असफल रहे। देश की जनता व उनके समर्थकों को आशा थी कि वे अपने पूर्ण बहुमत की सरकार से 2014 के समय अपने चुनावी वादों सहित भाजपा के मुद्दों को साकार करेंगे। पूर्ण बहुमत की सरकार बनी भी, परन्तु मोदी चुनावी वादों को पूरा करने व भाजपा के दशकों तक के संकल्पों को पूरा करने के बजाय नोटबंदी, जीएसटी, मन की बातें व गांधी के नाम की जाप करते हुए सफाई अभियान में यह कार्यकाल समाप्त हो गया। देश के युवाओं को न रोजगार मिला व नहीं भाजपा के संकल्पों को ही साकार होने की कहीं दूर तक आशा की किरण नहीं दिखाई दी। संघ समर्पित व देशभक्त हैरान है कि अपने पांच साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी न तो गो हत्या व गो मांस निर्यात पर प्रतिबंध नहीं लगा पाये, देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त नहीं कर पाये, विदेशी आक्रांता द्वारा देश की अस्मिता को रौंदने के लिए अयोध्या, काशी व मथुरा में लगाये गये कलंक को मुक्त करने काम नहीं कर पाये। देश स्तब्ध है कि सौगंध राम की खाते है मंदिर वहीं बनायेेगे के नारे लगाने वाले व गौ हत्या पर घडियाली आंसू बहाने वाले नेता जब देश की सत्ता में आसीन हुए तो मंदिर बनाने व गो हत्या पर प्रतिबंध लगाने के बजाय भगवान राम जन्म भूमि मंदिर के दर्शन करने तक नहीं गये। नहीं देश की आम जनता को शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व न्याय को वंचित करने वाले माफियाओ से मुक्त करा पाये।
देश को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शिंकजे से मुक्त कर स्वदेशी उद्योग को बढ़ावा नहीं दे पाये, देश में भारत विरोधी मैकाले शिक्षा व्यवस्था से मुक्त कर भारतीय संस्कृति को समावेश करने वाली शिक्षा व्यवस्था व शासन तंत्र को स्थापित करना, देश की लोकशाही व अखण्डता पर ग्रहण लगाने वाली धारा 370, पाक आतंक व नक्सलवाद से मुक्ति पाने, समान नागरिक संहिता लागू करना, परन्तु अपनी चतुर चुनावी रणनीति से मोदी ने 2019 का चुनाव मनोवेज्ञानिक रूप से चुनाव घोषणा कोने से पहले ही जीत लिया।
अपने अभूतपूर्व प्रचार, भाषण प्रवीणता व विपक्ष के कृत्यों को बेनकाब करके विपक्ष को देश की जनता की नजरों में जातिवादी, भ्रष्टाचारी, परिवारवादी, देश की सुरक्षा की उपेक्षा करने वाला गठजोड प्रचारित किया। वहीं मोदी खुद को देश को विकास, देश की सुरक्षा, अमन चैन स्थापित करने के साथ विश्व में भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन करने वाला एकमात्र समर्पित नेता साबित किया। इससे देश की आम जनता के सामने एकमात्र सशक्त विकल्प नेहरू व इंदिरा की तरह बन कर उभरे हैं।
देशवासियों को ऐसा लग रहा है कि मोदी ही भारत को विश्व की महाशक्ति बना सकता। लोग कह रहे है मोदी है तो मुमकिन है। इस प्रकार मोदी आज अपने दल पर भी भारी पड़ गया है। खुद प्रधानमंत्री मोदी कह रहे हैं कमल बटन पर दिया आपका एक एक मत, सीधे मोदी को मिलेगा। यानी सांसद व दल गौण हो गया।
संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी के लिए जनादेश मांगते समय कई जगह लोगों ने कहा कि हम प्रत्याशी का नाम सुनना भी पसंद नहीं करते हम तो केवल मोदी पर विश्वास करके भाजपा को मत दे रहे है। लोगों का ऐसा विश्वास हवाई नहीं अपितु खुद प्रधानमंत्री मोदी भी अपने चुनावी सभाओं से जनता से ऐसा ही आवाहन खुले आम किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आपका एक मत सीधे मुझे मिलेगा। उनके इस प्रकार के बयानों का जनता में भारी असर हुआ। इसलिए जनता ने कांग्रेस की मजबूत प्रत्याशियों के तमाम तर्को को नजरांदाज करके फिर एक बार मोदी सरकार के नाम पर भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में जम कर मतदान किया।
मोदी के पक्ष मेें मतदान का एक महत्वपूर्ण कारण ‘पाकिस्तानी आतंकी अड्डों पर भारतीय सेना द्वारा सीधा हमला व मोदी का यह बयान भी रहा कि हम दुश्मन के घर में घुस पर हमला करते है। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष का इस पर बिलकुल ढुलमुल रवैया है। कांग्रेस जहां अपने कश्मीर मामले पर खुद कटघरे में घिरी नजर आ रही है। सपा, बसपा, तृणमूल,वामपंथी व राजद आदि केवल अपनी अंध पदलोलुपता के चलते देश की सुरक्षा के मुद्दे पर कहीं जनता के विश्वास पर खरे उतरते नजर नहीं आ रहे है। इसलिए आतंक से तंस्त्र उतराखण्ड की देशभक्त जनता ने विरोधियों के तमाम तर्को व भाजपा के कमजोर प्रत्याशियों को नजरांदाज करके केवल मोदी पर विश्वास करके भाजपा को मतदान कर रहे हैं।
दूसरा सबसे बडा कारण चुनाव से पहले मोदी सरकार द्वारा किसानों के कल्याण के नाम पर जो 2 हजार रूपये की पहली किस्त लोगों के खाते में आये उससे भी लोगों का विश्वास मोदी पर बढ़ा। इसके साथ भाजपा के अलावा कांग्रेस सहित विरोधी दलों के पास संगठन की नितांत कमजोरी भी उजागर हुई। कांग्रेस की गरीबों को सबल बनाने की 72000 का वादा भी जनता के गले इस लिए नहीं उतर रहा है कि कांग्रेस दशकों से गरीबी हटाओ के नारों को भूना चुकी है, जिसका धरातल पर कहीं असर नहीं पडा।
चुनावी दंगल केवल नारों के भरोसे नहीं लडा जा सकता इसके लिए मजबूत संगठन, संसाधन के साथ जनभावनाओं को अपने पक्ष में करने वाला माहौल बहुत जरूरी है, इस दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी भाजपा तमाम आशाओं व अपेक्षाओं पर खरी न उतरने के बाबजूद अन्य विपक्षी दलों की तुलना में 21 ही साबित हुई। भाजपा पूरी तरह से जनता का विश्वास जीतने में सफल रही। लोगों को ऐसा विश्वास है कि भले ही मोदी अपने पहले कार्यकाल में किसी रणनीति या मजबूरी के चलते अपने चुनावी वादों व भाजपा के दशकों के संकल्पों को साकार करना तो रहा दूर छू तक नहीं पाये हो, पर वे अपने दूसरे कार्यकाल में अवश्य इन कार्यों को साकार करेंगे।
12 मई को छटे चरण के मतदान के बाद भी जहां प्रधानमंत्री मोदी पूरे विश्वास से दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार पहले से अधिक समर्थन से देश की सत्ता में आसीन होगी। वहीं इस चुनाव में पूरी तरह से बिखर चूका विपक्ष, कभी मतदान मशीनों पर व कभी मोदी पर अपनी खीज उतारने के बाबजूद अपनी हवा बनाये रखने के लिए 23 मई यानी मतगणना से पहले ही विपक्षी दल, मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक करने का ऐलान कर चूके हैं।
पर 23मई को मतगणना के परिणाम से पहले ही यह साफ हो गया था कि देश में एक बार फिर आसीन होगी मोदी सरकार । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जिस भारत में लम्बे समय से मजबूरी का नाम महात्मा गांधी, नेहरू व इंदिरा गांधी गूजता रहा उस देश में अब मजबूरी का नाम नरेन्द्र मोदी गूंज रहा है।
यहां एक बात साफ है कि देश में मजबूरी का नाम नरेन्द्र मोदी के नारे को गूंजायमान कराने में कांग्रेस व अरविंद केजरीवाल का सबसे बडा हाथ है। अगर कांग्रेस नेतृत्व ने अपने जिन निहित स्वार्थी मठाधीशों की आत्मघाती सलाह पर 2012 में राहुल गांधी को मनमोहन की जगह प्रधानमंत्री बना देते तो भाजपा व मोदी, राहुल गांधी को आज पप्पू प्रचारित नहीं कर पाते।
भारत की मजबूरी मोदी बनाने में दूसरा योगदान अगर किसी का है तो अरविंद केजरीवाल का, जिसने अपनी अंध महत्वकांक्षा व पदलोलुपता के लिए कांग्रेस व भाजपा आदि दलों के कुशासन से व्यथित देश की जनता को मजबूत विकल्प देने में सक्षम ‘जनलोकपाल आंदोलन व आम आदमी पार्टी में जुडे समर्पित नेताओं को अपमानित करके बाहर होने के लिए मजबूर किया। देश की जनता जातिवाद, क्षेत्रवाद, परिवारवाद, भ्रष्टाचार, अवसरवादी व अलगावादियों पर नरम की भारत घाती राजनीति से व्यथित हो कर मजबूरी का नाम नरेन्द्र मोदी कह रही है।
अब इस ऐतिहासिक विजय के बाद प्रधानमंत्री मोदी के कंधों पर भारी जिम्मेदारी है देश की जनांकांक्षाओं को पूरा करने का।