– विनोद बंसल
(लेखक स्तंभकार, समाज-चिन्तक व विश्व हिन्दू परिषद् के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है जहाँ, एक ही वोट से मतदाता चार संस्थाओं/ पदों के चुनावों का मार्ग प्रशस्त करता है. वोट तो वह सिर्फ लोक सभा सदस्य को करता है किन्तु उसके उसी वोट से सरकार व प्रधान मंत्री के साथ राष्ट्रपति के चुनाव का मार्ग भी खुल जाता है. देश के सम्पूर्ण भूगोल के कोने कोने से 543 सदस्यों का गुप्त मतदान प्रणाली से सीधे शांतिपूर्ण व निष्पक्ष चुनाव कराना किसी भी चुनाव संस्था के लिए बेहद चुनौती भरा कार्य है. वह भी तब जबकि एक नहीं, दो नहीं, चार नहीं वल्कि, अनगिनत राजनैतिक दल, धुर विरोधी विचार-धारा के साथ चुनाव मैदान में होते हैं. और निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या का तो अनुमान लगाना भी दुष्कर है. एक ही समय में देश में कहीं सर्दी अधिक है, तो कहीं गर्मी चरम पर है, कहीं वर्षा हो रही होती है, तो कहीं सूखे व बाढ़ की स्थिति है. और तो और जब चुनावों के दौरान ही फोनी जैसी भीषण प्राकृतिक आपदा आ गई तो भी चुनाव प्रक्रिया लेश-मात्र भी प्रभावित नहीं हुई और पहली वार इतनी बड़ी आपदा से निपटने के लिए सरकार ने इतने व्यापक इंतजाम किए कि 11लाख लोगों को समय पूर्व सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा कर जन-धन की अपार हानि को बचा लिया. सम्पूर्ण विश्व हमारी इस व्यवस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा है. यह सब भारत की दूरदर्शिता पूर्ण प्रशासनिक इच्छा शक्ति व लोकतांत्रिक मजबूती को ही दर्शाता है.
चुनाव आयोग व राजनैतिक दल अपने-अपने तरीकों से चुनावों की प्रक्रिया रूपी समुद्र मंथन से अमृत निकालने के प्रयास में रहते ही हैं किन्तु यह प्रयास तब तक सफल नहीं कहा जा सकता है, जब तक कि, जिस देशवासी के लिए यह सब किया जा रहा है, वह स्वयं इस प्रक्रिया में अपनी सक्रिया भागीदारी न दिखाए. प्रत्येक वोटर का एक-एक वोट, चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है. एक-एक वोट देश के विकास का आधार व विकसित मानसिकता का परिचायक तो है ही, साथ ही यह हमारी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु हमारे आगे आने वाली पीड़ियों के लिए एक उपहार भी है. कहा जाता है कि यदि लोकतंत्र एक महल है तो हम सबका एक-एक वोट उस ईंट की तरह है जिससे लोकतंत्र की बुनियाद बनी है।
अनेक बार मन में प्रश्न आता है कि क्या होगा यदि मैं अपना वोट न डालूँ? उत्तर मिलेगा कि लोकतंत्र की बुनियाद की एक ईंट कमज़ोर हो गई। और यदि मेरा पड़ोसी भी मतदान नहीं करेगा या उसने नोटा दबाया तो बुनियाद की दो ईंटें कमज़ोर हो जाएंगीं। और इस प्रकार हज़ारों बलिदान देने के बाद बने लोकतंत्र के महल को ढहने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा। ध्यान रहे कि देश में ही अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार सिर्फ एक वोट से विश्वास मत हारी थी। इन सबसे ऊपर बात यह है कि जब हम पाँच वर्ष में एक बार मात्र एक घंटे का निवेश कर वोट ही नहीं डालेंगे तो हमें किसी सरकार, संसद, राजनेता या व्यवस्था के प्रति कुछ कहने या उस पर प्रश्न चिन्ह लगाने का भी कोई अधिकार नहीं है. कुल मिला कर मतदान अवश्य करें और अधिकाधिक जागरूक लोगों से कराएं जिससे एक स्थिर व विकासशील सरकार चुन सकें.
अब प्रश्न आता है कि चुनाव किसका, क्यों व किस आधार पर करें? बचपन में जब मैंने अपनी दुकान छोड़, थोड़ी देर के लिए पडौस में अखबार पढ़ने लगा और इतने में ही एक ग्राहक देख पिताजी ने कहा कि छोड़ यह सब! अखबारों में कुछ नहीं रखा. ग्राहक को सौदा दे. ऊपर से उन्होंने राम चरित मानस की एक चौपाई भी सुना दी कि देख; “कोऊ होए नृपति, हमें का हानी, चेरी छोडि होइ नहीं रानी”. मेरा वह बाल मन सोचने को मजबूर हो गया कि क्या वाकई इन अखबारों व घर के बाहर की दुनिया में कुछ नहीं रखा और अपना तथा परिवार का पेट पालना ही हमारा एक मात्र धर्म है और सरकार की कोई भी योजना या निर्णय हमें प्रभावित नहीं करता. मैंने राम चरित मानस का नियमित पठन-पाठन प्रारंभ किया.
कुछ समय के बाद ही सुना कि पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोला दिया. कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का पलायन, धर्मांतरण व उनकी हत्याएं होनी शुरू हो गईं. केरल, बंगाल व पूर्वोत्तर के राज्यों में भारत विरोधी स्वर स्वच्छन्दता से उठने लगे. नक्सलवाद, माओवाद व जिहादी आतंकवाद देश में घुसपैठ कर भोले भाले नागरिकों, गैर इस्लामिक धर्मस्थलों, रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, भरे बाजारों व सिनेमाघरों इत्यादि सार्वजनिक स्थलों को अपना शिकार बनाने लगा. सीमा पार से इस्लामिक जिहादी बांग्लादेशी व रोहिंग्या मुसलमान बे-रोक-टोक देश की सीमा में घुस कर खुला राजनैतिक संरक्षण प्राप्त करने लगे. देश की पश्चिमोत्तर सीमा पार कर स्थानीय लोगों के संरक्षण व सहयोग से पाकिस्तानी आतंकी कश्मीर घाटी में अपनी जगह बनाने लगे और केंद्र सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें पार कर, साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक-2011, जैसा अंग्रेजी सरकार के रोलर एक्ट से भी कई गुना खतरनाक व हिन्दू दमनकारी, कानून बनाने की तैयारी में जुट चुकी थी. इन सब के ऊपर, जब तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री ने देश के बहु संख्यक हिन्दू समुदाय को ही आतंकी बता कर हिन्दू आतंकवाद का नया शब्द गढ़ दिया तब, वोट की कीमत समझ में आ गई. जनता ने ठान लिया कि अब अगले चुनावों में हम अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और ऐसे राजनेताओं को जबाव देंगे. 2014 के लोक सभा तथा विधान सभाओं के चुनावों ने जनता के उस संकल्प को पूरा कर एक नई सरकार को बागडोर सौंपी.
नई सरकार ने जब अपनी विकास योजनाओं का पिटारा खोल कर जनता के समक्ष रखा, विकास की गति विश्व में सबसे ऊपर पहुँच गई. उरी में आतंकी हमले का जबाव सीमा पार सर्जीकल स्ट्राइक से तो पुलवामा का बदला एयर स्ट्राइक से तुरंत लिया. विंग कमांडर अभिनन्दन की 72 घंटों में पाकिस्तान से वापसी हुई तो डोकलाम व मसूद अजहर मुद्दे पर चीन को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. कश्मीरी अलगाववादियों पर नकेल कसकर उनकी सुरक्षा वापस ली और जेल में डाला. अंतरिक्ष में भारत के कीर्तिमान, सेना को सम्मान, स्वछता, शौचालय, ग़रीबों को गैस कनेक्शन, आवास, स्वास्थ्य बीमा, बैंक खाते, योग को वैश्विक मान्यता, नक्सलवाद, माओवाद व जिहादी आतंकवाद पर नकेल, मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक व हलाला से मुक्ति, सामान्य वर्ग के सभी ग़रीबों को अतिरिक्त 10% आरक्षण इत्यादि कुछ ऐसे कार्य जिनमें से अनेक ने विश्व कीर्तिमान बनाए हैं. विश्वभर में भारत की बढाती शक्ति का ही परिणाम है कि आज फ्रांस जैसे अनेक देशों ने भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बनाने की स्वयं ही पहल की है. योग को दुनिया के 170 देशों ने पूर्ण मनोयोग से अपनाया है. अमेरिका जैसा दुनिया का दादा जिसके समक्ष हमारे राजनेता गिड़गिड़ाते दिखाते थे, आज भारत से कस्टम ड्यूटी कम व्यापार बढाने की गुहार लगा रहा है. मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कराने में हमारी पहल का सम्पूर्ण विश्व ने समर्थन किया. अंतर्राष्ट्रीय पीसकीपिंग फ़ोर्स में सामिल हमारे जबानों को विशेष सम्मान मिला. अर्थात्, भारत को अब लगाने लगा है कि देश के भौतिक विकास के साथ-साथ यदि इसी गति से सांस्कृतिक विकास भी होता रहे तो अब भारत पुन: विश्व गुरु बन सोने की चिड़िया बन ही जाएगा.
ये चुनाव स्थानीय चुनाव नहीं हैं जिनमें नाली-पानी सीबर सड़क सफाई इत्यादि के आधार पर प्रत्यासी चुना जाए. अपितु यह चुनाव राष्ट्र को मजबूत सुरक्षित स्वाभिमानी व चहुंमुखी विकास की ओर ले जाने का आधार है. हमें ऐसी सरकार चाहिए जो देश में सर्वाधिक ईमानदारी से त्वरित गति से काम करे और विश्व पटल पर इसका नाम करे. यह कार्य किसी स्थिर सरकार के माध्यम से ही संभव है जो पूरे मनोयोग से बिना किसी टांग खिंचाई के पाँच वर्ष तक सबको साथ लेकर सत्ता की बागडोर सम्भाल सके. सरकार बनाने के लिए कम से कम 272 सांसदों का समर्थन आवश्यक है. वर्तमान में चुनाव लड़ रहे सभी दलों में से, सत्ताधारी दल को छोड़, कोई भी दल इतनी सीटों पर चुनाव ही नहीं लड़ रहा, तो वह जीतेगा कैसे और सरकार बनाएगा कैसे?
अब समय आ गया है कि चुनाव आयोग की वेव साईट पर जाकर या अन्य माध्यमों से अपना व अपने परिचितों का नाम मतदाता सूची में जांचें, ग्यारह में से कोई एक पहचान का पत्र साथ में लें और निकलें ईवीएम की ओर जहां चुनाव आयोग ने अनेक प्रकार के व्यापक प्रवंध किए हैं. दिव्यांगों को लाने ले जाने के लिए जहां विशेष व्यवस्था है. अब जब बात देश की सुरक्षा व स्वाभिमान से जुड़ी हो तो भला कोई जागरूक देश भक्त भारत वासी अपने मताधिकार से बंचित रह भी कैसे सकता है. चुनाव आयोग का स्लोगन है :
ठण्डा पानी और है ओट, अब सब मिलाकर डालें वोट.
नेशन फर्स्ट, वोटिंग मस्ट.
पहले मतदान, फिर जलपान.