प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रामलीला मैदान में उतराखण्डियों का उल्लेख न किये जाने से आहत उतराखण्डी
भाजपा व कांग्रेस की तरह केजरीवाल भी जानबुझ कर रहे है दिल्ली में उतराखण्डियों की उपेक्षा
देवसिंह रावत
आज 9 मई को जैसे ही अपने मित्र रघुवीर बिष्ट से दूरभाष पर बात हुई तो उन्होने आश्चर्य प्रकट किया कि कल रामलीला मैदान की रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में पूर्वांचल सहित दिल्ली के सभी प्रमुख समाजों का उल्लेख किया परन्तु दिल्ली की आबादी का एक बडे हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उतराखण्डी समाज का उल्लेख तक नहीं किया।
मैने कहा रघुवीर भाई, उतराखण्डियों की ऐसी उपेक्षा केवल प्रधानमंत्री मोदी या उनकी पार्टी भाजपा ही नहीं कर रही है अपितु उतराखण्डियों की उपेक्षा करने में दिल्ली में सभी स्थापित दल कांग्रेस व नयी नवेली आम आदमी पार्टी भी सम्मलित है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि उतराखण्डियों का सबसे हितैषी होने का दंभ भरने वाली इन तीनों दलों ने दिल्ली में संसद की 7 सीटों में से एक भी सीट 2019 के लोकसभा चुनाव में उतराखण्डियों को नहीं दी। जबकि इन दलों से कई दशकों से जुडे उतराखण्डी समाज से राजनैतिक नेता इसकी पुरजोर मांग कर रहे है। परन्तु किसी भी राजनैतिक दल ने दिल्ली में अपने दल से दशकों से जुडे कार्यकत्र्ताओं की सुध तक नहीं ली।
ऐसा नहीं की यह वेदना केवल रघुवीर बिष्ट या मुझे महसूस हो रही है। इस वेदना से दिल्ली की जनसंख्या के सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उतराखण्डी समाज के अधिकांश प्रबुद्ध लोगों व इन दलों से जुडे राजनेताओं के साथ दिल्ली में उतराखण्डियों की 2000 से अधिक सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी समय समय पर प्रकट करते रहते। उतराखण्डी समाज दिल्ली की राजनैतिक दलों से की जा रही घोर उपेक्षा से बेहद आहत है। उसकी इसी समस्या के समाधान निकालने के लिए दिल्ली में उतराखण्डी समाज के समर्पित लोगों ने दलगत राजनीति से उपर उठ कर उतराखण्डी हक हकूकों, के साथ सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक हितों के प्रति समाज को जागरूक करके एकजूट एकमुठ करने के लिए व उतराखण्डी समाज की जानबुझ कर उपेक्षा करने वाले दिल्ली के स्थापित राजनैतिक दलों पर दवाब बनाने के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के विशाल उतराखण्डी समाज को ‘ उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली’ के बैनर तले लामबद किया।
उतराखण्ड एकता मंच के समर्पित युवाओं के नेतृत्व में उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली ने उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के बाद पहली बार हजारों की संख्या में उतराखण्डियों को सड़कों पर उतारने में सफलता प्राप्त की। संसद की चैखट जंतर मंतर पर आयोजित उतराखण्डी महापंचायत हो या बुराड़ी में उतराखण्डी समागम, या रामलीला मैदान में विशाल सम्मेलन, में उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली ने उतराखण्ड की अन्य सामाजिक संस्थाओं की तरह मात्र सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के बजाय समाज के हक हकूकों व राजनैतिक प्रतिनिधित्व के लिए पहली बार सड़कों में उतराखण्डी जनता को उतारने में सफल रहा। इसकी गूंज दिल्ली से लेकर उतराखण्ड सहित देश विदेश में रहने वाले उतराखण्डियों के बीच साफ सुनाई दी। दिल्ली सरकार के कार्यवाहक मुख्यमंत्री सिसौदिया ने रामलीला मैदान से उतरैणी/मकरेणी को दिल्ली सरकार की तरफ से धूमधाम से मनाने के साथ उतराखण्डी भाषाओं की अकादमी दिल्ली सरकार में बनाने का भी वचन दिया। वहीं तत्कालीन उतराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी दूरभाष से इस विशाल जनसमुदाय को संबोधित करते हुए उतराखण्डी हक हकूकों की रक्षा करने का वचन दिया। राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने, उतराखण्डी भाषा को मान्यता दिलाने, दिल्ली में उतराखण्डियों को राजनैतिक प्रतिनिधित्व दिलाने व उतराखण्ड की सांस्कृतिक विरासत का संवर्धन करने जैसे ज्वलंत मुद्दों पर यह विशाल आयोजन किया गया। इससे पहले उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली ने कई दर्जन वाहनों के साथ 29 सितम्बर को संसद की चैखट से प्रारम्भ करते हुए शहीद स्थल मुजफ्फरनगर होते हुए कोटद्वार, सतपुली, पौडी, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, गोचर, कर्णप्रयाग, सिमली, आदिबदरी होते हुए उतराखण्डी विधानसभा भराड़ी सैण (गैरसैंण), गैरसैंण, चैखुट्यिा, द्वाराहाट, रानीखेत,बेतालघाट, रामनगर होते हुए 2 अक्टूबर को विशाल राजधानी गैरसैंण राजधानी बनाओं यात्रा का संसद की चैखट पर मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए व देश के हुक्मरानों को धिक्कारते हुए समापन की। परन्तु दिल्ली के समाज को एकजूट एकमूठ करके आशा की किरण बने उतराखण्ड एकता मंच दिल्ली में दिगभ्रमित नेतृत्व के कारण यह प्रयोग अचानक दम तोड़ गया। उससे उतराखण्डियों को गहरा झटका लगा।
परन्तु राजनैतिक दलों ने उसके बाद हो रहे 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में उतराखण्डियों को प्रतिनिधित्व से वंचित करके खुद अपने तथाकथित लोकतांत्रिक मुखौटे को बेनकाब कर दिया।
ऐसा नहीं कि इन दलों में ऐसे सक्षम व योग्य उतराखण्डी दावेदार नहीं होते। इस बार भी प्रबल दावेदारों में जहां भाजपा से दिल्ली प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट (जो चार बार के विधायक भी रहे), भाजपा के उभरते हुए नेेता विनोद बछेती(जो उतराखण्ड समाज के वरिष्ठ समाजसेवी व व्यवसायी भी है), कांग्रेस में लक्ष्मण रावत (पूर्व जिलाध्यक्ष भी रहे)। इनके अलावा भाजपा में वरिष्ठ नेताओं में पूर्व विधायक व जिलाध्यक्ष रहे मुरारी सिंह पंवार व अविभाजित दिल्ली नगर निगम के पूर्व नेता जगदीश मंमगाई व आदि प्रमुख है। वहीं दिल्ली में कांग्रेस के नव नियुक्त संयुक्त सचिव हरिपाल रावत ने भले ही अभी लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारी नहीं की परन्तु उनको भविष्य का बड़े नेता के रूप में लोग देख रहे हैं।
नयी नवेली आम आदमी पार्टी में भारी संख्या में उतराखण्डी जुडे हैं। आप में भी किसी ने इस लोकसभा चुनाव में दावेदारी नहीं की पर आप में वरिष्ट नेताओं में प्रवक्ता हरीश अवस्थी, बचन सिंह धनोला, उतराखण्ड प्रकोष्ठ के अध्यक्ष बृजमोहन उप्रेती व दीवान सिंह नयाल आदि सक्रिय हैं।
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में रहने वाले 30 लाख से अधिक उतराखण्डियों के दिलों दिमाग में एक प्रश्न रह रह कर उठता रहता है कि आखिर दिल्ली की राजनीति में उतराखण्डियों की उपेक्षा क्यों की जाती है? कुछ लोग कहते हैं कि उतराखण्डियों में एकजूटता नहीं है। कुछ का कहना है कि हमारे राजनैतिक दलों से जुडे नेता कमजोर हैं?
पर हकीकत कुछ और ही है। उतराखण्ड के भोले भाले लोगों को देश के आम जनमानस की तरह इसी गलत धारणा से भ्रमित हैं कि इन राजनैतिक दलों में शायद लोकतंत्र जीवंत है। पर हकीकत इससे कोसों दूर है। न तो दिल्ली में उतराखण्डी समाज में एकता की कमी है। हकीकत यह है देश के अन्य समाजों से कहीं अधिक एकता उतराखण्डी समाज में दिल्ली सहित देश विदेश में रहने वाले उतराखण्डियों में दिखाई देती है। वेसे भी दिल्ली एक प्रकार से लघु भारत के साथ विश्व की महानगरी भी है। यहां देश का ही नहीं अपितु विश्व का हर समाज विद्यमान है। यहां पर जाति, धर्म व क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए परन्तु सवाल तब उठता है जब जानबुझ कर दिल्ली की आबादी के एक बडे हिस्से को वंचित रखा जाता है, उनकी उपेक्षा की जाती है।
देश की राजधानी की राजनीति का असली शर्मनाक चेहरा यह है कि यहां पर पांच छह दशक से दिल्ली की राजनीति में काबिज रहे भाजपा व कांग्रेस दोनों में केवल पंजाबी व बनिया समाज काबिज है। सरकारें किसी का रहा हो पर दिल्ली की राजनीति में इन्हीं दो तबकों को कब्जा रहा। यहां तक दिल्ली के मूल लोगों यानी दिल्ली देहात की भी उपेक्षा होती रहती। यहां पर निर्णय कत्र्ता मठाधीश यही लोग रहे। बहुत ही जिद्दोजहद के बाद दिल्ली के शाशन पर साहिब सिंह वर्मा आसीन हुए। उसके बाद दिल्ली की राजनीतिक मठाधीशी पर परिवर्तन हुआ, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के सत्तासीन होने के बाद दिल्ली में पूर्वांचलियों को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया गया। इसके कारण अब तक पंजाबी व बनिया समाज को ही दिल्ली की मठाधीशी का ताज पहनाने में एकमत रहने वाली भाजपा व कांग्रेस में खलबली मच गयी। दोनों को भी केजरीवाल के पूर्वांचली दाव से अपने वजूद की रक्षा करने के लिए मजबूरी में पूर्वांचलियों को दिल्ली की राजनीति में स्थान देने के लिए मजबूर हुए। दिल्ली भाजपा के नेतृत्व पर अपना दावा करने वाले उतराखण्डी जगदीश मंमगाई को दिल्ली भाजपा ने मठाधीशी लक्ष्मण रेखा का बोध कराने वाली भाजपा ने केजरीवाल के पूर्वांचली दाव से बचने के लिए मनोज तिवारी को ही दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बना दिया। कांग्रेस ने भी पूर्वांचलियों को प्रतिनिधित्व दिया। पर उतराखण्डियों को आज भी कांग्रेस, भाजपा व आप ने उपेक्षित कर लोकशाही पर कुठाराघात कर रखा है।
लघु भारतीय महानगर दिल्ली में लोकसभाई क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशी का जीतना प्रायः संभव नहीं है। यहां पर जनता को यहां की स्थापित राजनैतिक दलों द्वारा थोपे गये प्रत्याशियों में से एक को ही चुनना पडता है। इसलिए नेता प्रायः राजनैतिक दल ही बनाते है। जिसे टिकट मिलेगा व उसका दल मजबूत होगा वही प्रत्याशी जीतता है और जो मंत्री, सांसद इत्यादि बनता है उसे नेता जनता मानती है।
आज राजनैतिक दल प्रायः समाजसेवियों, प्रतिभाओं व दल के समर्पित कार्यकत्र्ता के बजाय दल के मठाधीश अपने प्यादों व धनपशुओं को ही प्रत्याशी बनाते है। अगर राजनैतिक दल अपने दल के समर्पित व प्रतिभाओं को प्रत्याशी बनाती तो यह उपेक्षा का प्रश्न उठता ही नहीं। प्रतिभा व कर्मठ उतराखण्डी किसी भी दौड में पीछे नहीं रहते। परन्तु जानबुझ कर उतराखण्डियों की उपेक्षा इसलिए होता है कि इन दलों की मठाधीशों में उतराखण्डी हितों के पैरोेकार नहीं है। इसीलिए दिल्ली की जनसंख्या के सातवें हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले उतराखण्डी समाज के अस्तित्व को दिल्ली के मठाधीश बने जातिवादी व क्षेत्रवादी नेतृत्व नक्कार रहा है। इनके सर पर चढ़े इस भूत को उतारने के लिए उतराखण्डी समाज को इनके प्रति अपनी अंध भक्ति को छोड कर इनको लोकशाही का पाठ पढ़ाना ही होगा। पर इसके लिए उतराखण्डी समाज को उतराखण्डी हितों के लिए समर्पित हो कर इन दलों के अंधभक्तों, संकीर्ण जातिवादी व क्षेत्रवादी निहित स्वार्थी तथाकथित समाजसेवियों के शिकंजे से मुक्त होकर अपने हक हकूकों व सम्मान की रक्षा करना होगा।
जब तक दिल्ली की राजनीति से संकीर्ण जातिवादी व क्षेत्रवादी मठाधीशों के शिकंजे से मुक्त नहीं किया जायेगा तब तक दिल्ली की राजनीति में लोकतंत्र स्थापित हो ही नहीं सकता। क्योंकि जब दलों के मठाधीश समर्पित व प्रतिभावान कार्यकत्र्ताओं के बजाय अंधा बांटे रेवडी अपने अपने दे वाली कहावतों को चरितार्थ करती रहेगी तब तक उतराखण्ड जैसे ईमानदार समाजों के वजूद को दिल्ली में न तो प्रधानमंत्री मोदी ही बखान कर पायेंगे व नहीं राहुल गांधी। क्योंकि इन दोनों के दलों के दिल्ली के मठाधीश कभी उन वंचित समाजों के वजूद की खबर अपने राष्ट्रीय आकाओं को देंगे नहीं तो आका कहां से जानेगे। वहीं केजरीवाल भी भाजपा व कांग्रेस के पदचिन्हों पर चल कर जानबुझ कर जानते हुए भी उतराखण्डियों का वजूद को नजरांदाज कर रहा है। इस शर्मनाक षडयंत्र को इन तीनों दलों से जुडे जागरूक उतराखण्डी नेता अंदर ही अंदर खुद को अपमानित हो रहे हैं पर वहीं इन दलों में अंधभक्त इसके बाबजूद इन दलों की जय हे जय हे करने में मस्त है। इसी कारण ये दल उतराखण्डियों की शर्मनाक उपेक्षा कर रहे हैं।
दिल्ली की राजनीति के इन तीनों दलों के मठाधीशों को आशंका है कि अगर उतराखण्डियों को दिल्ली में प्रतिनिधित्व देना शुरू किया तो उनकी मठाधीशी खतरे पर पड़ जायेगी। क्योंकि वे भयभीत है प्रतिभावान, शिक्षित, ईमानदार, मेहनती व मिलनसार उतराखण्डी दिल्ली की राजनीति में छाकर उनकी मठाधीशी पर ग्रहण लगा सकते है। इसी आशंका के कारण दिल्ली केे तीनों दलों के मठाधीश उतराखण्डियों के वजूद को नक्कारते हुए उन्हें दिल्ली की राजनीति में पाव न रखने का षडयंत्र मिल कर करते हैं।ऐसा नहीं दिल्ली में केवल उतराखण्डी समाज की उपेक्षा की जाती है। हकीकत यह है कि अन्य तबकों की भी उपेक्षा की जाती है। जो चंद तबके तीनों दलों में मठाधीश बने हैं वे अन्य वंचित वर्ग को दिल्ली की सत्ता में पांव नहीं रखने के लिए एकजूट हैं।