उत्तराखंड देश

अपनी जन्मभूमि(उतराखण्ड) की पावन माटी में ही विलीन होने की चाह लेकर दुनिया से विदा हुए बडे भाई बलवंत सिंह रावत

अचानक तबियत बिगडने पर 84 वर्षीय पूर्व सैनिक बलवंत सिंह रावत ने फरीदाबाद में ली अंतिम सांस
देवसिंह रावत
आज 24 अप्रैल की दोपहरी को जैसे ही मेरे भतीजे भरत सिंह रावत का फोन आया कि चाचा जी, पिताजी की तबियत बहुत खराब है आप बल्लभगढ आ जाओ। मैं सन्न रह गया। इसी पखवाडे मैं बल्लभगढ में भाई बलवतं सिंह रावत जी से मिल कर आया था।  भारतीय सेना से सेवा निवृत होने के बाद वे 84 साल की उम्र में भी स्वस्थ थे। थोडा बहुत हाथों में परेशानी थी। परन्तु तंदुरस्ती बिलकुल ठीक थी। अचानक क्या हुआ ? दो महिने पहले वे भाभी जी को लेकर वे फरीदाबाद के समीप बल्लभगढ  अपनी पौती की सगाई के लिए गांव से आये थे। एक पखवाडे पहले पौती की सगाई हो गयी। तब मैं भी भाई जी से मिला था। तब मेने सोचा भी नहीं था कि यह मेरी उनसे अंतिम मुलाकात होगी।
आनन फानन में में डेढ बजे तक जेसे ही बल्लभगढ मेट्रो स्टेशन पर पंहुचा तो वहां पर मेरे दूसरे भतीजे सुरेन्द्र सिंह रावत का फोन आया कि चाचा मैं मेट्रो स्टेशन के नीचे हॅू। सब लोग अस्पताल में है। वहीं जाना है । सुरेन्द्र से ही पता चला कि भाई जी का अंतिम संस्कार हमारे पैतृक गांव कोठुली (चमोली) में किया जायेगा। वेसे हम सबकी इच्छा थी कि बल्लभगढ में ही अंतिम संस्कार किया जाता। तेरहवीं व मासिक श्राद्ध गांव में किया जाय। अस्पताल पंहुच कर भरत ने बताया कि पिताजी की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार अपनी जन्म भूमि कोठुली में ही किया जाय। फिर गांव जाने के लिए एंबुलेंस मंगाई गयी। उसमें भाभी जी, भरत, कुंवर सिंह रावत व  एक पौता (बलबीर का बेटा) दोपहर को गांव के लिए रवाना हो गये। बल्लभगढ में भाभी व बहुओं के साथ पौतियों का रो रो कर बुरा हाल रहा।
मेरे तीनों भतीजे बीरेन्द्र सिंह रावत, भरत सिंह रावत व कुंवर सिंह सपरिवार बल्लभगढ में रहते है। चोथा भतीजा सुरेन्द्र सिंह रावत जो रेलवे में सेवारत है तुगलकाबाद में सेवारत है।
यह भी अजीब संयोग है कि भाई बलवंत सिंह रावत का निधन भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हुआ। इससे पहले बडे भाई आंनंद सिंह रावत व मंदन सिंह रावत के साथ दोनों भाभियों का निधन भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (बल्लभगढ/तुगलकाबाद) में हुआ। इसलिए बडे भतीजे वीरेन्द्र सिंह रावत ने भी कहा अपनी जन्म भूमि में अंतिम संस्कार करना उचित है, सभी यहीं मर रहे है। जब गांव में बडे भतीजे पुष्कर सिंह रावत को सूचित किया गया तो वहां पर शास्त्री पुरूषोेतम सत्ती ने भी कहा कि पावन गंगा के तट हरिद्वार पर अंतिम संस्कार करते तो उचित होेता। परन्तु जब उनको भाई बलवंत सिंह जी की अंतिम इच्छा गांव में ही अंतिम संस्कार करने की बतायी तो वे भी मान गये।
कल 25 अप्रैल को भाई बल्लवंत सिंह का पार्थिक देह हमारे गांव के श्मशान घाट में किया जायेगा। यह बहुत दुखद संयोग है कि कल 25 अप्रैल को ही मेरे भतीजे सुरेन्द्र सिंह रावत की धर्मपत्नी स्व. श्रीमती कुंती रावत का वार्पिक पिण्ड भी भरना था। जो परिवार में इस त्रासदी के बाद अब आयोजित नहीं की जायेगी। एक साल पहले उनका असामयिक निधन हो गया था। जीवन के इस दुखद संयोगों की छाया में अपने परिजनों का विछोह दुखदाई है। भगवान दिवंगत भाई बलवंत सिंह रावत की आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे।

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