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वैचारिक पतन का प्रमाण है बार-बार मतदान मशीन(ईवीएम)पर प्रश्न उठाना

विपक्षी दलों ने #मतदान_मशीन(#ईवीएम) को फिर निशाना बनाया

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार

विपक्षी दलों ने ईवीएम को फिर निशाना बनाया है। इन दलों ने बैठक कर यह तय किया कि वो ईवीएम को खत्म कर मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग जारी रखेंगे, तत्काल ईवीएम के वीवीपैट से 50 प्रतिशत मिलान के लिए चुनाव आयोग पर दबाव बनाएंगे, फिर उच्चतम न्यायालय जाएंगे। जाहिर है, उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले आठ अप्रैल को दिए गए फैसले से ये सहमत नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया था कि मतगणना के दौरान ईवीएम के मतों को वीवीपैट पर्चियों से मिलान की संख्या पांच की जाए। अभी तक चुनाव आयोग प्रत्येक विधान सभा में एक मतदान केन्द्र से वीवीपैट पर्चियों का मिलान करता था। वीवीपैट से मिलान करने के बाद यह सत्यापित हो जाता है कि ईवीएम में डाले गए वोटों से छेड़छाड़ नहीं हुई है। हालाकि फैसले के तुरत बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया थी कि यह फैसला तर्कसंगत नहीं है और इस पर पुनर्विचाचर होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने यह फैसला दिया था। 21 विपक्षी दलों ने वीवीपैट से कम से कम 50 प्रतिशत ईवीएम के मिलान का आयोग को आदेश देने की अपील की थी। न्यायालय ने आयोग का पक्ष जाना और हर उस प्रश्न का जवाब लिया जो विपक्षी दल उठा रहे थे। न्यायालय, चुनाव आयोग के इस तर्क से सहमत हुआ कि ईवीएम बिल्कुल सुरक्षित प्रणाली है और इसमें छेड़छाड़ की संभावना पैदा नहीं होती। आयोग ने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा बार-बार संदेह जताने पर सभी ईवीएम को वीवीपैट से जोड़ दिया गया है। अगर न्यायालय को तनिक भी सदेह होताा तो वह ऐसा फैसला दे ही नहीं सकता था।

आयोग ने न्यायालय को दिए जवाब में कहा था कि 50 प्रतिशत मिलान के लिए भारी संख्या में कर्मचारियों की जरूरत होगी और उन्हें व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। मतगणना के लिए भी हर जगह बहुत ज्यादा जगह लेना पड़ेगा, बड़े-बड़े हॉल चाहिए होगा। न इसकी आवश्यकता है और न यह संभव है। यही नहीं ऐसा करने से चुनाव परिणाम आने में पांच-छः दिन अधिक लग सकते हैं। देश में कुल 10 लाख 35 हजार 918 मतदान केन्द्र हैं। औसतन एक विधानसभा क्षेत्र में 250 मतदान केन्द्र। लोकसभा चुनाव में करीब 39 लाख 60 हजार ईवीएम का उपयोग होगा। ध्यान दीजिए एक ईवीएम और वीवीपैट के मिलान गणना में लगभग एक घंटे का समय लगता है। अगर इसे 50 प्रतिशत तक बढ़ाया गया तो इसमें कितना समय लगेगा इसका आकलन आसानी से किया जा सकता है। चुनाव आयोग ने 22 मार्च की अपनी एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए बताया कि 479 वीवीपैट पर्चियों और ईवीएम का मिलान किया गया है और नतीजे सही आए हैं।

यह बात समझ से परे है कि आखिर चुनाव आयोग के आश्वासनों पर विपक्षी दल क्यों नहीं कर रहे? जब उच्चतम न्यायालय इससे सहमत हो गया तो विपक्षी दलों को क्यों आपत्ति है? आयोग का मानना था कि विपक्षी दल जो मांग कर रहे हैं उनका कोई औचित्य नहीं है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चन्द्रबाबू नायडू के नेतृत्व में 21 विपक्षी दलों के नेताओं ने चुनाव आयोग के यहां भी इस संबंध में याचिका लगाई थी। आयोग ने अपने वक्तव्य में उस समय भी कहा था और उसे ही न्यायालय में शपथ पत्र के रुप में पेश किया कि कि इन याचिकाओं में आगामी चुनाव के मुद्दे उठाए गए हैं जिन पर निर्वाचन आयोग ने विचार किया, अध्ययन किया और फिर निर्णय लिया कि वर्तमान तरीके से चुनाव कराया जाए क्योंकि वर्तमान प्रणाली में बदलाव के लिए कोई वजह नहीं बताई गई। यह सच है कि नेतागण ईवीएम पर शोर बहुत मचाते हैं, पर ऐसा कोई ठोस तर्क नहीं सुना गया जिससे माना जाए कि वाकई ईवीएम की वर्तमान प्रणाली में बदलाव किया जाना चाहिए। जब आयोग के पास विपक्षी दलों के नेता गए थे उसी समय 5 फरबरी 2018 को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति से इस पर प्रश्न किया गया। उन्होंने कहा कि वीवीपैट के बिना भी ईवीएम विश्वसनीय है। उन्होंने इसमें यह भी जोड़ा कि ईवीएम के काम करने को लेकर उसकी आलोचना नहीं हो रही है बल्कि कुछ अन्य कारणों के चलते उसे निशाना बनाया जा रहा है। मेरी उन लोगों से गुजारिश है कि वह प्रणाली में विश्वास करें।

प्रश्न है कि अगर ईवीएम विश्वसनीय होगा, उसमें छेड़छाड़ या हैकिंग की संभावना होगी तो चुनाव आयोग क्यों उसे बनाए रखने पर जोर देगा। किसी एक चुनाव आयुक्त का राजनीतिक झुकाव हो सकता है। पिछले कई वर्षों से यह विषय चल रहा है और सारे चुनाव आयुक्तों ने एक ही स्टैण्ड लिया। तो क्या इन चुनाव आयुक्तों को झूठा और बेईमान मान लिया जाए? चुनाव आयोग ने कई बार यह अवसर दिया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ को साबित किया जाए। नेतागण बाहर बोलते रहे लेकिन कोई आयोग मंे छेड़छाड़ का दावा साबित करने नहीं गया। चुनाव आयोग ने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई। सबकी बातें सुनीं और समझाने की कोशिश की कि ईवीएम में किसी तरह की छेड़छाड़ संभव ही नहीं। लेकिन ये दल न चुनाव आयोग पर विश्वास कर रहे हैं और न उच्चतम न्यायालय के फैसले को मानने के लिए तैयार हैं। ईवीएम से परिणाम बदलना संभव होता तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव परिणाम उलट आते। इसके पहले कर्नाटक चुनाव परिणाम भी भाजपा के पक्ष में आना चाहिए था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को तथा पश्चिम बंगाल मंे तृणमूल कांग्रेस को इतना अपार बहुमत नहीं मिलना चाहिए था। क्या ये पहले से माहौल बना रहे हैं ताकि यदि लोकसभा चुनाव परिणाम इनके मनमाफिक नहीं आए तो उसे अविश्वसनीय बनाया जा सके?

कुछ देर के लिए मान लिया जाए कि मशीन में गड़बड़ी हो सकती है। किंतु किसी एक दल को लाभ पहुंचाने के लिए व्यापक पैमान पर गडबड़ी करनी होगी। उसके लिए भारतीय चुनाव आयोग, राज्यों के चुनाव आयोग, उपर से नीचे तक का पूरा प्रशासन, हजारों की संख्या में ऐसा करने वाले विशेषज्ञ और तकनीशियन चाहिए।  प्रत्येक क्षेत्र में गड़बड़ी के लिए आपको अलग-अलग लोग चाहिएं। इतने व्यापक पैमाने पर धांधली संभव है क्या? हैकिंग का आरोप पूरी तरह हास्यास्पद है। किसी मशीन को हैक तभी किया जा सकता है जब वह इंटरनेट से जुड़ा हो या अन्य किसी मशीन से। ईवीएम को न इंटरनेट की आवश्यकता है और न अन्य मशीनों से जुड़ने की। ईवीएम का सॉफ्टवेयर कोड वन टाइम प्रोग्रामेबल नॉन वोलेटाइल मेमोरी के आधार पर बना है। निर्माता से बगैर कोड हासिल किए इसमें छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती। ईवीएम मशीन की कौन सी सीरीज किस मतदान केन्द्र पर होगी इसका पता मतदान कराने वाले दल को एक दिन पहले चलता है। मतदान आरंभ करने के पहले मॉक पोलिंग की प्रक्रिया भी संपन्न होती है। इसमें सभी पोलिंग एंजेट वोट डालते है जिससे यह पता चल जाता है कि उनके दबाए गए बटन से सही उम्मीदवार को वोट गया या नहीं। हमारे देश की हालत यह है कि अगर कोई ईवीएम या वीवीपैट खराब हो गया और कुछ देर के लिए मतदान रुक गया तो उसे भी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ का प्रमाण बताने का हास्यास्पद तर्क दिया जाता है। दुनिया की कोई मशीन नहीं जिसमें खराबी आए नहीं। खराबी आने पर उसे ठीक करने या तुरत बदल देने की व्यवस्था होनी चाहिए। हर चुनाव में 20 से 25 प्रतिशत अतिरिक्त मशीने सेक्टर अधिकारी की निगरानी में रखी जाती हैं, जिन्हें वह मशीनों के खराब होने पर बदलता है। अतिरिक्त गरमी या अन्य कारणों से कुछ समय के लिए सेंसर वगैरह में समस्या आती है जिससे मशीनें हैंग होतीं हैं। ये स्थितियां स्वाभाविक हैं।

ऐसी कौन सा तंत्र और प्रणाली होगा जिसमें कोई समस्या आएगी ही नहीं। 2001 से हमारे यहां ईवीएम का प्रयोग हो रहा है। क्या उस समय से आज तक के सारे चुनाव आयुक्त बेईमान थे? ईवीएम का मामला अनेक उच्च न्यायालयों में गया। उच्चतम न्यायालय में भी इसके पहले कई बार लाया गया। न्यायालय ने हर बार आरोपों का परीक्षण किया, आयोग का पक्ष जाना और फैसला ईवीएम के पक्ष में आया। तो क्या फैसला देने वाले सारे न्यायाधीश उन बातों को नहीं समझ सके जिसके बारे में हमारे महान नेतागण बता रहे हैं? ध्यान रखिए उच्चतम न्यायालय ने 14 वीं बार अपना फैसला दिया है। पिछले वर्ष 23 नवंबर को ही मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने ईवीएम की जगह मतपत्रों से चुनाव कराने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि हर व्यवस्था में संदेह की गुंजाइश रहती है। जो कांग्रेस पार्टी आज ईवीएम को खलनायक बना रही है उसी ने 2009 में भाजपा का मजाक उड़ाया था। भाजपा ने तब पराजय के बाद ईवीएम पर प्रश्न उठाया था। फिर से मत पत्रों की ओर लौटने की मांग हमारे राजनीतिक दलों की विवेकहीनता या वैचारिक पतन का प्रमाण है।

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