चैम्पियन व कर्णवाल ही नहीं उतराखण्ड में भरमार है त्रिवेन्द्र, हरीश ,अजय, हरक, दिवाकर, सजवान, मदन, रमेश, तिलक, गणेश, रणजीत, अरविंद, राजेश ,राजेन्द्र, धामी व सुबोध आदि निहित स्वार्थ के लिए समर्पित दबंग नेताओं की
निहित स्वार्थो के लिए दबंगई दिखाकर प्रदेश व अपने दलों की जगहंसाई कराने वाले जनप्रतिनिधियों को अनुशासन का पाठ क्या सिखायेगी जनहितों को रौंदने वाले दल
देवसिंह रावत –
इन दिनों जहां पूरा देश लोकसभा चुनाव में नेताओं जहरीले बयानों से त्रस्त है। वहीं देवभूमि उतराखण्ड की सभी पांच सीटों का चुनाव भले ही पहले चरण में 11 अप्रैल को सम्पन्न हो गया है पर इस चुनावी जंग के लिए एक दूसरे पर वाक प्रहार का शुरू हुआ वाकयुद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। चुनाव में एक दल दूसरे विरोधी दल पर या विरोधी दल के नेताओं पर वाक प्रहार तो देश विदेश में प्रायः होता रहता। उतराखण्ड के नैनीताल लोकसभा सीट पर प्रदेश के सबसे बडे दबंग व चर्चित नेता हरीश रावत व अपने बड बोलेपन से अपनी दावेदारी खोने वाले भगत सिंह कोश्यारी के बीच बांदर व बल्द का जो वाकयुद्ध छिडा हुआ था वह भी मतदान के साथ ही यह भी थम गया। परन्तु हरिद्वार लोकसभा सीट पर भाजपा के ही दो विधायकों (चैम्पियन व कर्णवाल) के बीच बेसर पैर का वाकयुद्ध ने प्रदेश ही नहीं देश में भाजपा की भद्द ही पीटा दी कि स्वयं को अनुशासित दल बताने वाली भाजपा खुद ही बेनकाब हो गयी।
चुनावी जंग में प्रदेश के इन दबंगो की नूरा कुश्ती को देख कर प्रदेश गठन के आंदोलनकारी व समर्पित उतराखण्डियों के दिल से एक ही आह उठती है कि काश इन अपने निहित स्वार्थ के लिए प्रदेश में दबंगई दिखाने वाले नेताओं की भीड़ में एक ऐसा दबंग नेता होता जो राजधानी गैरसैंण सहित प्रदेश गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रदेश के सत्तांधों को दुत्कारने का साहस करता। जिससे प्रदेश के हितों को नजरांदाज करने वाले हुक्मरानों की कुम्भकर्णी खुमार टूट कर उनको अपने दायित्वों को बोध करा सके।
प्रदेश की जनता ने देखा कि जिस उतराखण्ड राज्य गठन के लिए उतराखण्ड की जनता ने राव-मुलायम आदि सत्तांधों के अमानवीय दमन सह कर भी देश के हुक्मरानों को मजबूर किया। उस उतराखण्ड राज्य के गठन के बाद उसकी जनांकांक्षाओं के लिए नहीं अपितु अपने पद के लिए दबंगई दिखाने वाले नेताओं की पदलोलुपता से 18 सालों ंसे प्रदेश की जनता मर्माहित है। प्रदेश के विकास व राज्य गठन की मूल भावनाओं को निर्ममता से रौंदा गया। प्रदेश की जनता की स्मृति आज भी मर्माहित है कि कैसे जनांकांक्षाओं को नजरांदाज कर कैसे मठाधीशों ने स्वामी को ताज पहनाया, कैसे स्वामी के ताजपोशी के समय कैसे भाजपा के दावेदार दबंग नेताओं ने अपनी दबंगई दिखाई। कैसे तिवारी, खंडूडी, निशंक, बहुगुणा, रावत व त्रिवेन्द्र ने अपने निहित स्वार्थ के लिए प्रदेश की जनांकांक्षाओं को बेशर्मी से रौंदते रहे। इसके कारण प्रदेश की सर्वसम्मत राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड-94, भू कानून, मूल निवास, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन, शराब, भ्रष्टाचार व सुशासन आदि मुद्दों को नजरांदाज करके प्रदेश का चहुमुखी विकास करने के बजाय उजाडने में लगे है। ऐसा नहीं प्रदेश में चैम्पियन व कर्णवाल ही एकमात्र दबंग नेता है। प्रदेश में कुर्सी के लिए, सत्तामद में चूर हो कर लोकशाही को ठेंगा दिखाने वाले अनैक दबंग नेता है। इनमें त्रिवेन्द्र, हरीश , हरक, दिवाकर, अजय, सजवान, मदन, रमेश, तिलक, गणेश, रणजीत, अरविंद, राजेश ,राजेन्द्र, धामी व सुबोध आदि दबंध नेताओं की भरमार। कोई मंत्रियों पर अंकुश लगाने वाला, तो कोई गाली ग्लोज देने वाला, कोई सत्तामद में जनहितों व न्याय को रौंदने की धृष्ठता करने वाला, तो कोई पशुओं पर क्रूरता दिखाने वाला तो कोई आम जनता को अपनी धमक दिखाने वाला, कोई पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को धमकाने वाला, कोई स्वयंभू दबंग या कोई अपने पूर्व जीवन की दबंगई के कारण कुख्यात। परन्तु एक भी ऐसा नेता नहीं जो प्रदेश की राजधानी सहित राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रदेश के सत्तांध हुक्मरानों को लोकशाही का बोध करा सके और प्रदेश की जनता को सही नेतृत्व दे सके।
गौरतलब है कि इस बार उतराखण्ड में लोकसभा चुनाव 2019 की रणभेरी बजने के बाद हरिद्वार लोकसभाई सीट के लिए भाजपा के दो विधायकों चैम्पियन व कर्णवाल के बीच अपनी अपनी पत्नियों को दावेदार बनाने के मोह में जो वाक युद्ध हुआ वह चुनावी मतदान के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। यह विवाद इतना हास्यास्पद स्थिति में पंहुच गया कि उससे न केवल उतराखण्ड में अपितु पूरे देश में स्वयं को अनुशासित व भारतीय संस्कृति की एकमात्र ध्वजवाहक दल कहने वाली भाजपा की पूरी तरह भद्द ही पिट गयी। हरिद्वार संसदीय सीट के अंतरगर्त आने वाले 14 विधानसभा में दो विधानसभाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले खानपुर के विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन व झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल के बीच यह जानते हुए भी सूत न कपास लठ्ठम लठा हो रहा है कि हरिद्वार संसदीय सीट पर भाजपा के वर्तमान सांसद रमेश पौखरियाल ही एकमात्र दावेदार हैं। उसके बाबजूद दोनों विधायकों ने अपनी अपनी पत्नियों के नाम पर इस सीट पर न केवल दावेदारी की अपितु वे एक दूसरे पर व्यक्तिगत रूप से अपने पद की गरिमा को नजरांदाज करके खुले आम चुनौतियां देते रहे। स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि चैम्पियन ने कर्णवाल के जाति प्रमाण पत्र को गलत बताते हुए उन्हें इसी साल विधायक के पद से बर्खास्त करवाने की धमकी दी है। जबकि कर्णवाल ने चैम्पियन को फर्जी चैम्पियन करार देते हुए करारा हमला किया है। यही नहीं दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ अजा-अजजा कानूनके तहत नोटिस भी दिये हैं। भाजपा के इन दोनों के बीच जुबानी जंग हास्यास्पद स्तर तक पहुंच गयी की ये एक दूसरे को कुश्ती लडने की खुलेआम चुनौती देने लगे। इस पर चैम्पियन ने कर्णवाल को कुश्ती लड़ने के लिए बीते रविवार को नेहरू स्टेडियम में आने की चुनौती ही नहीं दी, बल्कि खुद स्टेडियम पहुंच कर चुनौती देते हुए फोटो खिंचवाये और कर्णवाल को डरपोक करार दिया। वहीं कर्णवाल ने आज के जमाने में कुश्ती नहीं आधुनिक हथियारों से लडाई होने की नसीहत दे डाली। इन दोनों विधायकों के झगड़े को भाजपा की भद्द ही पिट गयी। चुनावी दंगल में उलझी भाजपा को लगा की इन दोनों की वाक युद्ध से पार्टी की जग हंसाई हो रही है। इसके बाद कुम्भकर्णी नींद से उठ कर प्रदेश भाजपा ने दोनों विधायकों के बीच हुए वाकयुद्ध को पार्टी ने अनुशासनहीनता मानते हुए एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। भाजपा हैरान है कि जहां दोनों विधायकों को पार्टी के लिए चुनाव में काम करना चाहिए था, वहीं वे आपस में झगड़ कर पार्टी को नुकसान पहुंचाते रहे।
ऐसा माना जा रहा है कि विधायक देशराज कर्णवाल और प्रणव चैंपियन के बीच झगड़े के बीज 2005 के जिला पंचायत चुनावों में ही पड़ गए थे। दरअसल, चैंपियन की पत्नी देवयानी जिला पंचायत अध्यक्ष पद की दावेदार थीं। परन्तु समर्थन मांगने पर भी देशराज ने चैम्पियन का साथ नहीं दिया।
अब इन दो वाक वीरों की जंग में भाजपा नेता चैधरी कुलवीर सिंह भी कूद पड़े हैं। चैधरी ने दोनों विधायक दोषी माना। चैधरी ने विधायक कर्णवाल की जीत पर भी सवाल उठाये । वहीं चैधरी ने चैम्ंिपियन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब लंढौरा कोई रियासत ही नहीं है तो यहां से राजा कैसे। चैधरी ने आशंका प्रकट किया कि कहीं इन दोनों के बीच यह विवाद, लोकसभा चुनाव में भाजपा को कमजोर करने के लिए यह नूरा कुश्ती तो नहीं है? चलो चैम्पियन व कर्णवाल तो साधरण दबंग है परन्तु जो छुपे रूस्तम है शराफत का चोला ओढे असली दबंग है उन पर कौन अंकुश लगायेेगा। नेताओं पर तो दल अंकुश लगायेगा परन्तु जब दल जी जनभावनाओं को रौदने लगे तो उस पर अंकुश कौन लगायेगा? दबंग तो चलो बदनाम है परन्तु उन बगुला भगतों का क्या करे? जो सीधे ईमानदार व मृदुभाषी नेता तो बनते है परन्तु प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंद रहे नेताओं व सरकारों के साथ दलों के कृत्यों पर मूक रहते है। जबकि इनका दायित्व होता है प्रदेश के हितों की रक्षा करने का। परन्तु ये धृतराष्ट की तरह लोकशाही के चीर हरण पर बेशर्मी से मूक रहते हैं। कुल मिला कर उतराखण्ड को आज जरूरत है एक दबंग नेता की जो प्रदेश के सत्तांधों को लोकशाही का सबक सिखा सके और प्रदेश की जनता को सही नेतृत्व दे सके।