दिल्ली में भाजपा से आशंकित कांग्रेस व आप के संभावित गठजोड़ पर एक नजरिया
नई दिल्ली(प्याउ)। देश की राजधानी दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों के चुनाव में फिर इस बार मोदी सरकार की गर्जना करके 2014 की तरह ही 2019 में भी सातों सीटों को अपनी झोली में डालने को उतारू भाजपा के दिग्विजयी अश्वमेध रथ के घोडे की लगाम कसने के लिए इस दिनों राहुल गांधी के नेतृृत्व वाली कांग्रेस व अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली ‘आम आदमी पार्टी’ के बीच गठबंधन की अटकलें जोरों पर है। दिल्ली में इस बेमेल गठबंधन पर न केवल कांग्रेस व आप के हजारों कार्यकत्र्ताओं की नजर लगी हुई है अपितु इस गठबंधन पर भारतीय जनता पार्टी के साथ देश के तमाम नेताओं, दलों के साथ दिल्ली की जनता की भी नजरें गढाये हुए है। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पर समझोता करने के लिए दवाब बनाने के उद्देश्य से ही कल ऐलान किया कि कुछ समय पहले राहुल गांधी से हुई एक मुलाकात के दोरान बताया कि दिल्ली में कांग्रेस का आप से कोई समझोता नहीं होगा। हालांकि सूत्रों के अनुसार केजरीवाल की राहुल गांधी से अरविंद केजरीवाल की मुलाकात एक पखवाडे पहले हुई थी, उसके बाद तो कांग्रेस में आप से समझोता करने पर गहन चर्चा हो चूकी है। इस वार्ता में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष शीला दीक्षित गुट आप से किसी प्रकार का समझौता करने का विरोध कर रही है। वहीं दिल्ली प्रदेश के प्रभारी चाको व अजय माकन वाला गुट भाजपा को रोकने के नाम पर आप से समझोता करना चाहता है।
दिल्ली की जनता यह देख कर बेहद हैरान है कि जो अरविंद केजरीवाल कुछ साल पहले भाजपा व कांग्रेस से किसी प्रकार का गठबंधन न करने के लिए अपने बच्चों की सौगंध खाते नजर आते थे वो ही अरविंद केजरीवाल, मोदी के फिर से सत्तासीन होने की प्रबल संभावनाओं को भांपने के बाद कांग्रेस से भाजपा के खिलाफ गठजोड़ करने के लिए बार बार गिडगिडा रहा है। केजरीवाल कांग्रेस से समझोते की गुहार लगाते हुए भले ही कांग्रेस को भाजपा का भय यानी पुन्न सत्तासीन होने का भय दिखा रहे हो । इसके साथ केजरीवाल इस समझोते को भाजपा को पुन्न सत्तासीन होने को रोककर देश की लोकशाही बचाने की दुहाई दे रहा हो परन्तु अरविन्द केजरीवाल की हकीकत व मंशा को उनकी मुहबोली चाची शीला दीक्षित बखुबी से जानती है। शीला दीक्षित ने अरविंद केजरीवाल के‘ आयकर अधिकारी, स्वयंसेवी संगठन कर्ता, तमाम चेहरों को बहुत करीब से देखा है।
शीला सहित कांग्रेस के कई दिग्गज भी जानते हैं कि दिल्ली सहित देश की जनता व आप समर्थकों का केजरीवाल की अंध महत्वाकांक्षी व अलोकतांत्रिक प्रवृति के कारण आज मोह भंग हो गया है। लोकसभा चुनाव मे दिल्ली सहित आप के प्रभाव में रहे राज्य पंजाब व हरियाणा से आप के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए केजरीवाल, मोदी का भय दिखा कर कांग्रेस से समझोता करना चाहते है। इसीलिए वह बार बार उस कांग्रेस के आगे समझोता के लिए गुहार लगा रहे है जिसको वे अपने राजनैतिक सफर के प्रारम्भिक दिनों से लेकर दिल्ली प्रदेश की सत्ता में आसीन होने तक हर कदम पर पानी पी पी कर गालियां देते रहे। केजरीवाल की रणनीति है कि कांग्रेस को भाजपा का भय दिखा कर दिल्ली में कांग्रेस को 2 सीटों पर समझोता करने के लिए मजबूर कर दे और पंजाब व हरियाणा में भी कांग्रेस के सहारे अपना वजूद फिर स्थापित करे। कांग्रेस आप की मंशा को भांप कर दिल्ली में 4-3 का समझोता करना चाहती है। परन्तु वह पंजाब में आप से किसी प्रकार समझौता नहीं करना चाहती। क्योंकि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह किसी भी सूरत में पंजाब में आप से समझोता नहीं करना चाहते। वहीं हरियाणा में कांग्रेस के प्रमुख क्षत्रप हुड्डा भी केजरीवाल के समझोता करने के विरूद्ध हैं। पर कांग्रेस नेतृत्व एक सीट आप को देना चाहता। कांग्रेस नेतृत्व की मंशा दिल्ली की सात सीटों में 4 सीटें आप को व तीन सीटें कांग्रेस पर सहमत है। इस प्रकार कांग्रेस दिल्ली की 4 व हरियाणा की 1 सीट आप को देने को तैयार है। परन्तु आप दिल्ली में कांग्रेस को 2, हरियाणा व पंजाब में भी समझोता चाहता है। इस प्रकार केजरीवाल की मंशा है कि हर हाल में आप के अस्तित्व को लोकसभा चुनाव में बचाने की है। केजरीवाल को यह भान है कि अगर कांग्रेस से समझोता नहीं होता है तो दिल्ली से तो आप का सफाया होगा इसके साथ आप पंजाब में अपना वजूद नहीं बचा पायेगा। इन चुनाव परिणाम से आप का आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव पर भी गहरा प्रभाव पडेगा। इसके साथ पंजाब व हरियाणा में दिखाई दे रही आशाओं पर भी बज्रपात होगा। आप को डूबता जहाज जान कर पंजाब आप के सांसद व नेता एक एक कर आप को छोड रहे है। इसीलिए अरविंद केजरीवाल अपना वजूद बचाने के लिए कांग्रेस से समझोता करने के लिए गिडगिडा रहे है। जैसे ही केजरीवाल इन लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति को सुधार लेंगे वह पुन्न कांग्रेस की जड्डों में मटठा डालने का ही काम करेगा।
आप की जो वर्तमान दुर्दशा है उसके लिए अगर कोई एक जिम्मेदार है तो वह है अरविंद केजरीवाल। अरविंद केजरीवाल ने अपनी अंध महत्वांकांक्षा के लिए देश में एक मजबूत राजनैतिक विकल्प देने में सक्षम आप को इतना कमजोर कर दिया कि उसे आज अपना वजूद बचाने के लिए कांग्रेस के समक्ष गिडगिडाना पड रहा है। जिस प्रकार से अरविंद केजरीवाल ने अपनी महत्वांकांक्षाओं के लिए न केवल रामदेव व अण्णा को किनारा करके आप के गठन के बाद योगेन्द्र यादव, कुमार विश्वास व प्रशांत भूषण आदि संस्थापक सदस्यों को दल से बाहर होने के लिए मजबूर किया,उसे देख कर न केवल आप समर्थकों का मोह आप से भंग हो गया। सत्तासीन होने के 4 साल के अंदर ही आप नेता अपने ही वादों के आइने में खुद बेनकाब हो गये। हालांकि दिल्ली में आप सरकार ने चिकित्सा व शिक्षा क्षेत्र में कुछ सराहनीय कार्य किया। परन्तु भ्रष्टाचार, परिवहन व रोजगार के मामले में पूरी तरह से नाकाम रहे। केजरीवाल अपने बयानों व कृत्यों से अपनी ही छवि तार तार करते हुए एक अवसरवादी व पदलोलुपु नेता के रूप में स्थापित कर गये। कांग्रेस नेतृत्व को इसका भान होना चाहिए कि केेजरीवाल अपने वजूद की रक्षा के लिए जिस कांग्रेस के आगे गिडगिडा रहा है कल वजूद हासिल करने के बाद अगर किसी को नुकसान पंहुचायेगा तो वह भाजपा नहीं अपितु कांग्रेस ही होगी। आप भी सपा, बसपा व राजद की तरह कांग्रेस को ही कमजोर करके अपना वजूद बनायेंगे। इन दलों से समझोता करके मजबूत करना एक प्रकार कांग्रेस को कमजोर करने के ही समान है। कांग्रेस इस समय देश भर में भाजपा के खिलाफ मजबूती से उतरी है, कांग्रेस की राह को कमजोर अगर कोई कर रहा है तो यही आप, सपा, बसपा व राजद जैसे दल है। इसलिए कांग्रेस को इन से समझोता करने के बजाय अकेला चुनाव लड कर देशव्यापी संगठन मजबूत करना चाहिए।