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आतंकी हमलों का मुख्य कारण है धर्मयुद्ध का खतरनाक विचार

 

वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार

न्यूजीलैंड जैस देश में , जहां हिंसा की घटना वर्षों से अपवाद रही हो,  वहां अचानक किसी मजहबी स्थल पर खून की होली खेली जाए, सरकार , पुलिस और आम नागरिक की क्या मानसिक दशा होगी इसका केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। ग्लोबल पीस इंडेक्स यानी वैश्विक शांति सूचकांक में न्यूजीलैंड 2017 एवं 2018 में दुनिया का दूसरा सबसे शांत देश माना गया। पहले भी उसका स्थान दुनिया के सबसे शांत 4 देशों में रहा है। 2007 से 2016 के बीच यहां हत्याओं के मामले दहाई अंक में भी नहीं थे। हां, 2017 में यहां हत्या के 35 मामले सामने आए और यह पूरे देश में चर्चा का विषय बना। ऐसे देश में कुछ ही मिनटों के अंदर 49 लोगों को दिनदहाड़े भून दिया गया वह भी एक विशेष मजहब को निशाना बनाकर। पहला हमला क्राइस्टचर्च के अल नूर मस्जिद में हुआ जबकि दूसरा हमला इसके उपनगरीय इलाके लिनवुड में। हमलावरों ने मस्जिद में जुमे की नमाज का समय चुना ताकि वे नमाज के लिए एकत्रित हुए मुसलमानों को अधिक से अधिक संख्या में मार सकें। न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने अपने संबोधन में साफ कहा कि इसे आतंकवादी हमला के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता। यह हर दृष्टि से आतंकवादी घटना है। भारत के लिए यह निजी तौर पर भी दुख की घड़ी है क्योंकि हमारे सात नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि हो गई है।

दुनिया भर में हो रहे आतंकवादी हमलों की प्रवृत्ति के बीच इस हमले के पीछे का विचार इतना खतरनाक है कि अगर इसका विस्तार हो गया तो दुनिया का बड़ा भाग हिंसा-प्रतिहिंसा का शिकार हो जाएगा। इसे व्हाइट सुप्रीमेसी यानी श्वेत लोग सबसे उच्च है और उनका ही वर्चस्व होना चाहिए जैसी सोच की परिणति भी माना गया है। हमारे पास पूरी जानकारी मुख्य हमलवार 28 वर्षीय ब्रेंटन टैरंट के सोशल मीडिया पोस्ट एवं उसके द्वारा बनाए गए मैनिफेस्टो पर आधारित है। हमलावर ने व्हाइट सुप्रीमैटिस्ट होने का संदेश दिया है। उसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को व्हाइट सुप्रीमेसी का प्रतीक बताया है। पर उसने श्वेत सर्वोच्चता का प्रयोग किस संदर्भ में किया है यह मूल बात है। जरा सोचिए, हमलावर ने हमला के पूर्व फेसबुक पर घोषणा कर दिया था कि वह हिंसा की लाइव स्ट्रीमिंग करेगा और उसने 17 मिनट तक फेसबुक पर लाइव किया। इस तरह योजना बनाकर शांत और संतुलित तरीके से हत्या करने वाले के विचार का गहराई से विश्लेषण कर ईमानदारी और साहस के साथ सच को रखना जरुरी है। टैरंट ने फेसबुक पर पोस्ट में हमला क्यों किया इस शीर्षक के तहत लिखा है कि यह विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हजारों लोगों की मौत का बदला लेने के लिए है। उसके द्वारा बनाए मैनिफेस्टो का शीर्षक है- द ग्रेट रिप्लेसमेंट यानी महान बदलाव। अपने मैनिफेस्टो में टैरंट ने 2017 में स्वीडन के स्टॉकहोम में एक उज्बेक मुसलमान द्वारा भीड़ पर ट्रक चढ़ाने की घटना का जिक्र किया है, जिसमें 5 लोगों की मौत हो गई थी। हमले में 11 साल की एक स्वीडिश बच्ची की मौत ने उसे झकझोर दिया था। यहां से जब वह फ्रांस पहुंचा तो शहरों और कस्बों में प्रवासियों की भीड़ देखकर हिंसा का निश्चय कर बैठा।

प्रवासियों से उसका मतलब मुस्लिम शरणार्थियों और प्रवासियों से है। हाल के वर्षों में जेहादी आतंकवादियों द्वारा ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, स्विडेन…में किए गए हमलों ने उसके अंदर यह विचार पैदा किया कि मुसलमान श्वेतों पर विजय पाने के लक्ष्य से हिंसा कर रहे हैं। वे हमला कर हम पर अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे और अपने मजहब को लादेंगे। उसकी नजर में इसका जवाब श्वेतों की प्रतिहिंसा ही हो सकती है। उसने मैनिफेस्टो में साफ लिखा है कि हमला करने वालों को बताना है कि हमारी जगह उनकी कभी नहीं होगी। जब तक एक भी श्वेत व्यक्ति है, तब तक वे कभी नहीं जीत पाएंगे। इन विचारों को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि अगर उसके अंदर हिंसा के द्वारा श्वेत सर्वोच्चता का नसमझ विचार पनपा तो जहादी आतंकवादी हमलों के कारण। यह विचार किसी एक टौरंट के अंदर पैदा नहीं हुआ होगा। इसने आतंकवाद का जवाब आतंकवाद से अवश्य दिया है, पर ऑस्ट्रेलिया से लेकर यूरोप, अमेरिका…सब जगह जेहादी आतंकवाद को लेकर मुसलमानों के बारे में ऐसी भावना व्यापक रुप से फैली है। शरणार्थियों एवं प्रवासियों पर छोटे-बड़े हमले की घटनाएं चारों ओर हुई है। मुसलमानों को शरण देने का इन देशों में तीव्र विरोध हो रहा है।

नई पीढ़ी के अंदर इस्लाम एवं ईसाइयत के संबंधों का इतिहास पढ़ने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इस पर पुस्तकें और वेबसाइट आ रहे हैं। इनमें क्रूसेड्स यानी इस्लाम एवं ईसाइयत के बीच चले धर्मयुद्धों का इतिहास भी है। बताया जाता है कि जिन देशों में इस्लाम है उसमें से ज्यादातर में कभी ईसाइयत थी। यानी इस्लाम ने हिंसा और मारकाट से इस्लाम का फैलाव किया है। एक ओर लोगों के अंदर ऐसा विचार घनीभूत हो रहा है और दूसरी ओर सरकारें मुस्लिमों के प्रति उदार व सहिष्णुता को प्रश्रय देने की स्वाभाविक नीति अपनाती है। इससे बड़े वर्ग में खीझ पैदा होता है। न्यूजीलैंड में किसी को शरण मिलना अत्यंत आसान है। प्रधानमंत्री ने कहा कि क्राइस्टचर्च इन पीड़ितों का घर था। इनमें से बहुत लोगों ने शायद यहां जन्म न लिया हो। न्यूज़ीलैंड उनकी पसंद का देश था। यह एक उच्च विचार है जो होना ही चाहिए, पर इसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया न हो इसका पूर्वोपाय भी करना होगा। करीब 49.5 लाख की आबादी में मुसलमानों की संख्या डेढ़ लाख के आसपास होगी। लेकिन इनका आम धारा से बिल्कुल अलग मजहब आधारित जीवन शैली को एक वर्ग पचा नहीं पाता है। हमलावर के ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किए गए संदेश में मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमले का जश्न मनाने की बात कही गई।

टैरंट ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है, लेकिन उसने वहां हमला करने की जगह न्यूजीलैंड को चुना। क्यों? हमलावर ने लिखा कि न्यूजीलैंड जैसे देश में हमले से स्पष्ट संदेश जाएगा कि धरती पर कोई जगह उनके लिए सुरक्षित नहीं है। न्यूजीलैंड जैसे सुदूर देश में भी बड़ी संख्या में प्रवासी आ गए हैं। इसका संदेश साफ था कि जिस देश को सबसे शांत माना जाता है वहां हमला करने से उनके अंदर भय पैदा होगा कि कहीं भी उनको निशाना बनाया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने  उसे एक दक्षिणपंथी, हिंसक आतंकवादी करार दिया है। आप इसके लिए जो भी नाम दे दीजिए, यह विचार चाहे जितना गलत हो लेकिन शून्य में पैदा नहीं हुआ है। अगर आईएसआईएस, अल कायदा, अल सबाब, तालिबान जैसे संगठन अपने घृणित मजहबी विचारों पर आधारित आतंकवादी घटनाओं को अंजाम नहीं देते तथा पश्चिम को पराजित करने का विष विचार नहीं फैलाते तो प्रतिक्रिया का कोई कारण ही नहीं रहता।

यह हमला उसी तरह है जैसे आईएसआईएस ने लोन वूल्फ का सिद्धांत दिया। यानी जो जहां है और उसके पास जो कुछ भी उपलब्ध है उसी से हमला करे। टैरंट के आतंकवाद का भी कोई संगठित स्वरुप नहीं है जहां विचारधारा से लेकर हथियारों का प्रशिक्षण, हमलों की योजनाएं तथा वित्तपोषण उपलब्ध है। टैरंट के किसी संगठन का सदस्य होने का प्रमाण नहीं मिला है। हां, उसने कई अति राष्ट्रवादी संगठनों को दान देने तथा ऐंटी-इमिग्रेशन ग्रुप से संपर्क करने की बात लिखी है। टैरंट पहले कम्यूनिस्ट था। उसने अपने लिए इको-फासिस्ट शब्द का प्रयोग किया है। आप अपने अनुसार इसका अर्थ लगाने को स्वतंत्र हैं। ट्विटर हैंडल से एक फोटो ट्वीट की गई, जिसमें दिखी बंदूक का इस्तेमाल हमले में किया गया। इस पर एक संदेश था, जिसमें इतिहास में दर्ज ऐसे लोगों के नाम लिखे थे, जिन्होंने नस्ल और मजहब के नाम पर लोगों को मारा था। राइफल पर 14 लिखा था, जिसे प्रधान के मंत्र के संदर्भ में माना जा रहा है। इसे हिटलर के 14 वर्ड्स से जोड़कर भी देखा जा रहा है। उसके विचारों तथा तौर-तरीकों से आप इको फासिस्ट का मतलब समझ सकते हैं। यह निश्चय ही खतरनाक विचार है जिसको आगे बढ़ने से पहले हर हाल में रोका जाना चाहिए। कितु जब तक जेहादी विचारधारा पर आधारित आतंकवाद खत्म नहीं होगा, पश्चिमी यूरोप एवं अन्य जगह रहनेवाला मुस्लिम समुदाय अपने मजहबी कर्मकांड का पालन करते हुए भी अन्य धर्मावलंबियों के साथ घुलने-मिलने का स्वाभविक व्यवहार नहीं करता इसे रोकना संभव नहीं है। नहीं रुका तो यह दो मजहबों के बीच जगह-जगह हिंसक हमले और प्रतिहमले का कारण बन सकता है। यह एक नए किस्म का क्रूसेड्स होगा।

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