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पैतृक कृषि भूमि, परिवार के लोगों को नजरांदाज करके सीधे बाहरी लोगों को नहीं बेची जा सकती-सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला

नई दिल्ली (प्याउ)। सर्वोच्च न्यायालय ने इस सप्ताह 15 मार्च को एक महत्वपूर्ण व दो टूक दूरगामी फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर हिन्दू उत्तराधिकारी पैतृक कृषि भूमि का अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे पहले अपने परिवार/कुटुम्ब के व्यक्ति को ही प्राथमिकता देनी होगी। वह परिवार को नजरंदाज करके पैतृक कृषि भूमि/ संपत्ति किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेच सकता। .

यह महत्वपूर्ण फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने यह  हिमाचल प्रदेश से आये एक वाद की सुनावाई करते हुए दिया। इस मामले में मुख्य विवाद का विषय यह था कि हिमाचल प्रदेश निवासी  लाजपत की मृत्यु के बाद उसकी कृषिभूमि दो पुत्रों नाथू और संतोख को मिली। छोटे बेटे संतोष ने अपना हिस्सा सीधे एक बाहरी व्यक्ति को इसे बेच दिया। बडे भाई नाथू ने छोटे भाई द्वारा पैतृक कृषि भूमि को बाहरी व्यक्ति को बेचने को हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 22 का उलंघन मानते हुए न्यायालय में मामला दर्ज किया। यह मामला निचली अदालतों से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय के दर पर न्याय के लिए आया।  सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले में सबसे बडा सवाल यह था कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है। धारा 22 में प्रावधान है कि जब बिना वसीयत के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकारियों पर आ जाती है। उत्तराधिकारी अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे अपने बचे हुए उत्तराधिकारी को प्राथमिकता देनी होगी।
इस मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति यूयू ललित व एमआर शाह की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों से संचालित होगी। इसमें हिस्सा बेचने के लिए व्यक्ति को अपने घर के व्यक्ति को प्राथमिकता देनी होगी। पीठ ने कहा कि धारा 4 (2) के समाप्त होने का इस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यह प्रावधान कृषिभूमि पर काश्तकारी के अधिकारों से संबंधित था। पीठ ने कहा कि इस प्रावधान के पीछे उद्देश्य है कि परिवार की संपत्ति परिवार के पास ही रहे और बाहरी व्यक्ति परिवार में न घुसे। .इस मामले में आया यह फैसला पूरे देश (कश्मीर छोडकर) में लागू होगा। इससे ऐसे लाखों मामलों के लिए यह फैसला एक नजीर होगा।

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