हिमाचल के मूल निवासी सेना के पूर्व केप्टन करनैल ने उपरी देहरादून (धानाली सहसपुर भदराज देवता के नीच)के बंजर गाड़ धार में शासन प्रशासन व स्थानीय लोगों के तमाम षडयंत्रों व विरोध के बाबजूद बनाया विश्व विख्यात
देवसिंह रावत-
गैरसैंण में बने रमणीक व भव्य एकमात्र विधानसभा भवन बनने में शीतकालीन सत्र, बजट सत्र सहित विधानसभा के अनैक अधिवेशन व मंत्रीमण्डल की कई बैठके होने के बाबजूद गैरसैंण को दूरस्थ,सुविधा विहिन व पानी आदि की समस्या का बहाना बना कर गैरसैंण को उतराखण्ड प्रदेश की राजधानी घोषित नहीं करने वाले प्रदेश के 18सालों के हुक्मरानों को केप्टन करनैल ने मारा करारा तमाचा। हिमाचल के मूल निवासी भारतीय सेना के सेवा निवृत जांबाज केप्टन करनैल ने इस हिमालयी राज्य उतराखण्ड के एक बंजर धार गाड़ को ऐसी अलख जगायी कि उनके इस संस्थान में अपनी प्रतिभा को निखारने व सिखने के लिए न केवल देश के विभिन्न प्रांतों से अपितु विश्व के कई देशों से विख्यात व प्रतिष्ठित कम्पनियों व सरकारी संस्थानों के उच्च अधिकारी यहां पर अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए कई दिनों का प्रशिक्षण लेने यहां आते है। यहां पर उनको पंचतारा सुविधायें नहीं अपितु पर्ण कुटियाओं व साधारण परिवेश में उच्च व सघन प्रशिक्षण दिया जाता हैै। केप्टन करनैल का सम्पन्न परिवार से संबंध रखते है। उनके पत्नी व बच्चे विदेशों में बसे हैं। परन्तु वे इस पिछडे, दूरस्थ व अत्याधुनिक सुविधाओं से वंचित क्षेत्र में विश्व विख्यात संस्थान को चंद सालों में इस स्तर पर संचालित किया कि भारत व विश्व की तमाम नामी गिरामी बडी कम्पनियां व संस्थान अपने हवाई जहाजों में सफर करने व पंचतारा जीवन जीने के अभ्यस्त कर्मचारियों को इस बंजर धार गाड में कई दिनों के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए बेताब रहते है।
परन्तु दुर्भाग्य है उतराखण्ड की जहां की जनता ने अपने संघर्ष व बलिदानों ंसे जो राज्य उतराखण्ड गठन किया। आंदोलनकारी एकमत राज्य गठन से पहले व अब भी एकमत रहे कि प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनने से ही इस हिमालयी राज्य का चहुमुखी विकास होगा। परन्तु उतराखण्ड की राजनीति में आये पंचातारा सुविधाओं के गुलाम नेताओं ने जनभावनाओं पर देहरादून में डेरा डाल कर ग्रहण लगा दिया। 18 सालों से देहरादून के पंचंतारा सुविधाओं के गुलाम बने यहां के मुख्यमंत्री, विधायक व नौकरशाहों को गैरसैंण में बना भव्य राजधानी भी दूरस्थ व सुविधाओं से वंचित लगी। वे भूल गये कि वे जनसेवा के लिए राजनीति व नौकरशाह बने। परन्तु बेशर्मी से कभी दूरस्थ व कभी पानी की कमी तो कभी अन्य बहाना बना कर वे राजधानी गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी घोषित करने का साहस नहीं कर रहे है। इनके इस कृत्य से प्रदेश के सीमान्त व पर्वतीय जनपदों से विधालय, चिकित्सालय व सरकारी संस्थानों से कर्मचारी देहरादून सहित मैदानी जनपदों में कुण्डली मारे बेठे हैं। प्रदेश के इन जनपदों मेें लोग शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार के लिए मजबूरी में अपने गांवों से पलायन कर शहरी कस्बों में बस गये जिससे प्रदेश के 3000 से अधिक गांव विरान हो गये है। इससे देश की सुरक्षा खतरे में पड़ गयी।
इसी पखवाडे मुझे इस जांबाज से मिलने का उस समय मौका मिला जब 9 मार्च 2019 को मै अपने साथी हिल डेवलप्मेट मिशन के प्रमुख रघुवीर बिष्ट, गैरसैंण राजधानी निर्माण आंदोलनकारी लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, महेन्द्र रावत (विश्व हिंदू परिषद के दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता), व्यवसायी भगवती व अनिल रावत तथा साहसिक पर्यटन प्रसारक खर्काल देहरादून से 30 किमी दूरी पर प्रस्तावित मसूरी वाईपास रोड स्थित भदराज देवता के नीचे जंगल व उबड खाबड धार गाड में संकरे रास्ते से पेगासस लर्निंग अनबोंड,(PEGASUS, learning Unbound- PRESENTED BY PEGASUS HRD PVT. LTD DEHRADUN)धालानी (कोटी के समीप होरावाला/सहसपुर/देहरादून) पंहुचे। इस बंजर गाड घार में बने इस पेगासस में पंहुच कर मै ही नहीं मेरे सभी साथी दंग रह गये।
वहां पर पर्ण कुटियां व शरीर को तंदुरस्त रखने के कई स्थल बने थे।
हमारे सामने पंहुचे इस संस्थान देहरादून के प्रमुख भारतीय सेना के डोगरा रेजीमेंट से सेेवा निवृत हुए हिमाचल मूल के केप्टन करनैल । आस पास 22 गांव ने इनको विरोध किया। पुलिस प्रशासन ने कदम कदम पर इनका पुरजोर विरोध किया। सूचना के अधिकार से लेकर पुलिस प्रशासन तक कदम कदम पर इनका रास्ता रोकने की नापाक कोशिश की। पर अपनी लगन के धनी केप्टन करनैल ने हार नहीं मानी। एक जांबाज सैनिक की तरह इन्होने कभी हार मानना सिखा ही नहीं था। केप्टन करनैल के अनुसार पेगासस लर्निंग अनबोंड संस्थान की स्थापना केप्टन रवि ने बंगलोर में की। यह संस्थान आज पुणे, पाण्डुचेरी, दार्जिलिंग व देहरादून में बहुत ही बखूबी से संचालित हो रहे है। देश विदेश से सैकडों संस्थान(निजी/पब्लिक उपक्रम/सरकारी) संस्थानों के कर्मचारी अपनी प्रतिभा का निखारने के लिए यहां पर कई दिनों ंका प्रशिक्षण लेकर अपने जीवन व संस्थान के लक्ष्यों को पूर्ण करते है।