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सरकारी पैसे से अपनी मूर्ति लगाने की प्रवृति पर लगे कड़े अंकुश, नहीं तो ये नेता कर देगें देश को बर्बाद

 मूर्तियों व पार्को पर जो पैंसा खर्च किया उसे सरकारी खजाने में लोटाये मायावती-सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली(प्याउ)। ‘अगर देश के नेताओं  पर सरकारी धन से अपनी ही मूर्तियां लगाने पर तत्काल अंकुश नहीं लगाया तो देश में शिक्षा,चिकित्सा सहित विकास से वंचित हो जायेगा और देश में मूर्तियों की ऐसी भरमार होगी कि इंसानों को रहने की जगह नहीं होगी।’ यह दो टूक टिप्पणी भारतीय मुक्ति सेना के प्रमुख देवसिंह रावत ने 8 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को उनके कार्यकाल में सरकारी धन से बनायी गयी उनकी मूर्तियों व पार्को की किये गये सरकारी खर्च को सरकारी खाते में जमा कराने की सलाह  पर कही।
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय  ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह फेसला  सुनाया। याचिका में आरोप लगाया गया कि उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर अपने कार्यकाल के दौरान अपनी सहित अन्य मूर्तियों व पार्को पर करीब  2000 करोड़ रूपये खर्च किये। मायावती की मूर्तियों पर 3.49 करोड़, कांशीराम की मूर्तियों पर 3.37 करोड़ और 60 हाथियों पर 52.02 करोड़ रुपये खर्च हुए। मायावती ने अपने शासनकाल में 2008-2009 व 2009 -2010 के बजट में मूर्तियों व बगीचों के लिए लगभग 2000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यूपी संस्कृति विभाग का 90 फीसदी बजट माया, कांशीराम और हाथियों की मूर्तियों की स्थापना में खर्च हुआ।
मायावती ने उप्र की मुख्यमंत्री रहते हुए लखनऊ और नोएडा के पार्कों में अपनी और पार्टी के चुनाव चिन्ह  हाथी की जो विशालकाय मूर्तियां बनवाई थीं, इनमें लखनऊ में 125 एकड क्षेत्र में 1363 करोड रूपये से बने आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल। दूसरा 70 एकड़ में 730 करोड़ रू. लागत से  काशी राम स्मारक बनाया गया।  तीसरा 460 करोड़ रूपये से 51 एकड़ जमीन में रमाबाई रैली स्थल बनाया गया। 10.8 हेक्टर में 460 करोड़ रू लागत से बुद्ध शांति उपवन बनाया गया।
70 एकड़ क्षेत्र में 1 हजार करोड़ रू. लागत से काशीराम इको पार्क बनाया गया। 30 एकड़ क्षेत्र में 300 करोड़ रू.लागत का गोमती विहार पार्क बनाया गया। 20 एकड क्षेत्र में 200 करोड़ रूपये लागत का गोमती पार्क बनाया गया।
इनके अलावा मायावती ने अपने शासन काल में नोएडा में 80 एकड़ क्षेत्र में 685 करोड़ रू. से राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल व ग्रीन गार्डन बनाया गया। वहीं ग्रेटर नोयडा के बादलपुर में 10 हेक्टर क्षेत्र में 96 करोड़ लागत से आम्बेडकर पार्क व 4 हेक्टर क्षेत्र में 46 करोड़ रू. का बुद्ध पार्क बनाया गया। मायावती ने अपने शासन काल में 10 पार्क(7 लखनऊ व 3 जीबी नगर ), 208 हाथी(152 लखनऊ व 56 नोएडा) पर सरकारी धन से लगाये गये।
यही नहीं इन स्मारकों और हाथियों की सुरक्षा व रखरखाव पर हर वर्ष करीब 180 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके साथ इन स्मारकों के  सुरक्षा व देख रेख के लिए 5,788 कर्मचारियों की तैनाती की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले पर फेसला देते हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो टूक शब्दों में कहा कि उनके शासनकाल में पार्कों और मूर्तियों में जो पैसा खर्च किया है उसे सरकारी खजाने में लौटाना चाहिए। हालांकि न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई आदेश नहीं अपितु एक विचार है।
उल्लेखनीय है कि जब  2007 से 2012 के बीच मायावती सरकार के शासन काल में इन स्मारकों का निर्माण हो रहा था, तब भी न्यायालय में कई बार याचिकाएं दायर की गईं। न्यायालय ने इन याचिकाओं को संज्ञान लेते हुए निर्देश दिये थे। इनमें सबसे अधिक याचिका कर्ताओं ने हाथियों की मूर्तियां बनाने पर इस आधार पर आपत्ति की कि  हाथी बसपा का चुनाव निशान है, जिसका प्रचार करने के लिए मायावती  सरकारी खर्च कर रही है।  तब मायावती की पार्टी ने सर्वोच्च न्यायालय में हाथियों को भारतीय संस्कृति का प्रतीक बताया।  पुराने समय में भी घरों के बाहर स्वागत करते हुए हाथी बनाए जाते थे।हालांकि इसकी सूंट उपर की गयी।
वहीं सर्वोच्च न्यायालय के इस सलाह पर अधिकांश लोगों ने खुल कर स्वागत किया। परन्तु आम आदमी पार्टी के पूर्व प्रवक्ता व अब पत्रकार आशुतोष ने त्वरित टिप्पणी करते हुए मोदी पर भी निशाना साधते हुए ट्वीट् किया कि
अगर मायावती को मूर्तियों पर खघ्र्च पैसा लौटाना होगा तो पटेल की मूर्ति पर भी खघ्र्च हुया 3000 करोड़ मोदी सरकार को लौटाना पड़ेगा । वो भी जनता के पैसे से बना है। इस पर त्वरित कड़ी टिप्पणी करते हुए भारतीय मुक्ति सेना प्रमुख देवसिंह रावत ने कहा कि  खुद की मूर्ति लगाने व देश के महापुरूषों की मूर्ति लगाने में अंतर होता है। ंलगता है आशुतोष जी, आप में अपने सपने पूरे न होने से राजनीति से विमुख होने के बाबजूद आप दलगत नजरिये से मुक्त हो कर स्वतंत्र चितंक नहीं बन पाये।

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