uncategory

भारत के विकास में महिलाओं का विशेष योगदान

       आलेख –

 

डॉ. अर्चना दुबे

 

“नारी” विधाता की सर्वोत्तम और नायाब सृष्टि है । नारी की सुरत और सीरत की पराकाष्ठा और उसकी गहनता को मापना दुष्कर ही नहीं अपितु नामुमकिन है । स्त्री शिक्षास्त्री औरशिक्षाको अनिवार्य रूप से जोड़ने वाली अवधारणा है । वर्तमान दौर में यह बात सर्वमान्य है कि स्त्री को भी उतना ही शिक्षित होना चाहिए जितना की पुरूष हो । यह सत्य ही कहा गया है कि यदि माता शिक्षित न होगीं तो देश की संतानों का कदापि कल्याण नहीं हो सकता । देश के विकास में स्त्री साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान है । आज के समय में जो महिलाओं को थोड़ी आजादी दी गयी है तो स्त्री ने आकाश से लेकर धरती तक, ज्ञान से लेकर चिकित्सा तक,खेल से लेकर सिनेमाजगत तक, राजनीति से लेकर अफसर तक समाज को गौरवांवित किया है । झांसी की रानी, श्रीमती इंदिरा गांधी, विजय लक्ष्मी पण्डित, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, प्रतिभा पाटिल, सानिया मिर्जा, मदर टेरेसा, लता मंगेश्कर, सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी और न जाने कितनी महिलाओं ने हमारे देश को गौरवांवित कराया है एवं देश को विकासशील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।

वर्तमान में भी महिलाएं दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में महापौर, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री और सांसदों के पद पर आसीन हो देश की प्रगति के लिए कार्यशील है । देश के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों में भी महिलाएं विभिन्न पदों पर आसीन है । अनेक सामाजिक संगठनों के बल पर राष्ट्र की छवि निखारने का बीड़ा महिलाओं ने उठाया है । यहां तक कि कृषि क्षेत्र में कुल श्रम की 60 से 80 फीसदी तक हिस्सेदारी भी महिलाओं की है । फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गनाइजेशन (एफएओ) के एक अध्ययन से पता चला है कि हिमालय क्षेत्र में प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष एक पुरूष औसतन 1212 घंटे और एक महिला औसतन 3485 घंटे काम करती है । नारी की यह लगन और मेहनत गरीबी उन्मूलन में उनके योगदान को साफ तौर पर दर्शाता है ।

भारत का केवल 14 फीसदी कारोंबार महिलाएं संभाल रही है । राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के छठे आर्थिक जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में कुल 5.85 करोड़ उद्यमी हैं,जिनमें से 80.5 लाख महिला उद्यमी हैं,जो 13480000 लोगों को रोजगार मुहैंया करा रही है । जिन कारोबारी क्षेत्रों को महिलाएं संभाल रही है, उनमें फुटपाथ की दुकान से लेकर वेंचर फंड प्राप्त नए स्टार्ट – अप तक शामिल है ।

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि पिछले कुछ दशको से ज्यों – ज्यों महिला साक्षरता में बढ़ावा मिलता गया है, भारत विकास के पक्ष पर अग्रसर हुआ है । इनमें न केवल मानव संसाधन के अवसर में वृध्दि की है, बल्कि घर के आंगन से ऑफिस के कैरीडोर के काम काज और वातावरण में भी बहुत बदलाव आया है । महिला शिक्षा एक अच्छे समाज के निर्माण में मदद करती है । पुनर्जागरण के दौर में भारत में स्त्री शिक्षा को नये शिरे से महत्व मिलने लगा । अनेक सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के कारण साक्षरता के दर 0.2% से बदलकर 6% तक पहुंच गया था । कोलकाता विश्व विद्यालय महिलाओं को शिक्षा के लिए स्वीकार करने वाला पहला विश्व विद्यालय था । महिलाओं के शिक्षित होने से न केवल बालिका – शिक्षा को बढावा मिला, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और सर्वागीण विकास में भी तेजी आयी है । महिला साक्षरता से शिशु मृत्यु दर में कमी आ रही है और जनसंख्या नियंत्रण को भी बढा‌वा मिल रहा है ।

ब्रिटिश काल में राजाराम मोहन राय और ईश्वरचंद विद्यासागर ने महिलाओं की उन्नति के लिए आवाज उठाई । उनका साथ महाराष्ट्र से ज्योतिबा फुले और डॉ. आम्बेडकर आगे बढे ‌तो वही दक्षिण में पेरियार ने इसमें पहल की । आजादी के बाद इसमें और तेजी आई । सरकार ने औरतों की शिक्षा के लिए कई नीतियां  तैयार की, जिसके कारण महिला साक्षरता में जबर्दस्त उछाल आया । आजादी के केवल तीन दशक बाद इनमें पुरूषों की साक्षरता दर की अपेक्षा तीव्र गति से वृध्दि हुई ।

नारी इस समाज की अहम हिस्सा है । इस समाजके निर्माण में नारी का विशेष स्थान रहा है । हर कार्य में महिला – पुरूषों के समान ही भागीदार रहीं हैं । फिर भी आज के दौर में महिला की दशा दयनीय बनी हुई हैं । एक नारी अपने जीवन में तीन अहम किरदार निभाती है । एक अच्छी बेटी, एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां और यह तीनों हिस्से उसके जीवन में अलग – अलग भुमिका निभाते हैं ।शिक्षा के कारण ही नारी सशक्त और आत्म निर्भर बनकर अपने व्यक्तित्व का उचित रूप से विकास कर सकती है ।

नारी के लिए यह कहा गया है कि “ विविधता में एकता है” तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी । वर्ष 1930, 1998, 2008, और 2014 में आयी वैश्विक आर्थिक मंदी से पूरा देश ग्रसित हुआ, परंतु भारत नहीं !!! क्योकि भारतीय महिलाओं की बचत ही भारतीय अर्थ व्यवस्था को बचाए रखा । ऐसा ही उदाहरण हमें वर्ष 2016 की नोट्बंदी के दौरान देखने को मिला । इसी के साथ ही लगभग 65% महिलाएं कृषि एवं पशु पालन का कार्य करते हुए देश की अर्थ व्यवस्था के विकास को बढ़ावा देती है । हमारे देश में जहां महिला प्रधानमंत्री रह चुकी हो, जहां की लड़कियां माउंट एवरेस्ट पर विजय पा चुकी हो वहां महिला और पुरूष के बीच का विरोधाभास और भी निंदनीय हैं।

आज पूरे विश्व में महिला – साक्षरता – दर में वृध्दि तो हो रही है परंतु आंकड़ों के अनुसारभारतदेश में 24 करोड़ 50 लाख महिलाएं आज भी निरक्षर है ।

कौन भूल सकता है माता जीजाबाई को, जिसकी शिक्षा – दिक्षा ने शिवाजी को महान देश भक्त और कुशल योध्दा बनाया । कौन भुल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को, पन्ना धाय का उत्कृष्ट त्याग एवं आदर्श इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं । अपने बेटे का बलिदान देकर राजकुमार का जीवन बचाना सामान्य कार्य नहीं । हाड़ी रानी के त्याग एवं बलिदान की कहानी तो भारत की घर – घर में गायी जाती है । रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्ताना, पद्मिनी और मीरा के शौर्य एवं जौहर एवं भक्ति ने मध्यकाल की विकट परिस्थितियों में भी अपनी सुकीर्ति का झण्डा फहराया । कैसे कोई स्मरण न करे उस विद्यावती का जिसका पुत्र फांसी के तख्ते पर खड़ा था और मां की आंखों में आंसू देखकर पत्रकारों ने पूछा कि एक शहीद कीमां होकर आप रो रही हैं तो विद्यावतीका उत्तर था कि “मैं अपने पुत्र की शहीदी पर नहीं रो रहीं, कदाचित अपने कोख पर रो रहीं हूं कि काश मेरी कोख ने एक और भगत सिंहपैदा किया होता, तो मैं उसे भी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर देती ।“ ऐसा था भारतीय माताओं का आदर्श । ऐसी थी उनकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा ।

यादि महिला को श्रध्दा की भावना अर्पित की जाए तो वह विश्व के कण – कण को स्वर्णिम भावनाओं से ओत – प्रोत कर सकती है । महिला एक सनातन शक्ति है । मिथिला के महापंडित मंडनमिश्र की धर्मपत्नी विदुषी भारती ने शंकराचार्य जैसे महाज्ञानी व्यक्तित्व को भी शास्त्रार्थ में पराजित किया था । महिला स्वयं सिध्दा है, वह गुणों की सम्पदा हैं । आवश्यकता है इन शक्तियों को प्रोत्साहन देने की । यही समय की मांग है । नारी उत्कर्ष आज सिर्फ एक जरूरत नहीं बल्कि विकास और प्रगति का अनिवार्य तत्व हैं ।

आज नारी होने के नाते मैं महसूस करती हूं कि एक व्यक्ति के रूप में मेरी अपनी पहचान हो । मैं सिर्फ एक पत्नी, एक मां, एक बहन, या बेटी के रोल तक सीमित नहीं रहना चाहती । मैं भी समाज की सक्रिय सदस्य बनना चाहती हूं ।

About the author

pyarauttarakhand5