ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति से कांग्रेस आशंकित
नई दिल्ली(प्याउ)। समय भी कितना बलवान होता है। जिस ऋषि कुमार शुक्ला को मध्य प्रदेश पुलिस प्रमुख के पद से कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने सत्तासीन होते ही हटा दिया था, उन्ही भारतीय पुलिस सेवा के 1983 बैच के मध्य प्रदेश केडर के वरिष्ठ अधिकारी को भारत सरकार की सबसे बडी जांच ऐजेन्सी ‘केन्द्रीय अन्वेषण व्यूरो यानी सीबीआई की कमान सोंपी गयी। केअव्यू के प्रमुख यानी निदेशक के चयन के लिए बनी तीन सदस्यीय सर्वोच्च समिति( जिसमें प्रधानमंत्री, देश के प्रमुख न्यायाधीश व नेता प्रतिपक्ष ) ने 2-1 के बहुमत से आगामी 2 साल के लिए सीबीआई की कमान सोंपी।
इस समिति में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जन खडगे के विरोध के बाबजूद प्रधानमंत्री व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने ऋषि कुमार शुक्ला के नाम पर मुहर लगा दी। इस समिति के निर्णय के बाद मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 4 ए(1) के अंतर्गत गठित समिति द्वारा अनुशंसित पैनल के आधार पर, ऋषि कुमार शुक्ला, आईपीएस (मध्य 1983) को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक के रूप में नियुक्ति की मूंजरी दी है। यह नियुक्ति पदभार ग्रहण करने से दो वर्षो के लिए मान्य होगी। वे पूर्व निदेशक आलोक कुमार वर्मा, आईपीएस (एजीएमयूरू1979) का स्थान लेंगे। इस नियुक्ति का ऐलान कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने जारी की।
गौरतलब है कुछ महीनों से केअब्यू के प्रमुख आलोक वर्मा व दूसरे नम्बरे के वरिष्ठ अधिकारी में हुए विवाद के कारण इस सर्वोच्च संस्था की जग हंसाई हुई अपितु मोदी सरकार की छिछलेदारी हुई। यह मामला सडक से न्यायालय तक पंहुचा। उसके बाद नये केअब्यू के नये प्रमुख के चयन करना सरकार के लिए एक बडी चुनौती भरा काम था। नये प्रमुख के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली इस चयन समिति की 24 जनवरी और 1 फरवरी को हुई दो बैठकों के बाद उनकी नियुक्ति हुई है। मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के हार के बाद कांग्रेसी कमल नाथ सरकार के पदासीन होने तक पुलिस प्रमुख के पद में आसीन ऋषि कुमार शुक्ला को भाजपा का विश्वासी अधिकारी मान कर नये मुख्यमंत्री कमल नाथ ने पदमुक्त कर उन्हे मध्य प्रदेश पुलिस आवास निगम के अध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया। ऋषि कुमार शुक्ला की नियुक्ति होने के बाद कांग्रेसी पुन्न आशंकित है।
गौरतलब है कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो की उत्पत्ति भारत सरकार द्वारा सन् 1941 में स्थापित विशेष पुलिस प्रतिष्ठान से हुई है। उस समय विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का कार्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय युद्ध और आपूर्ति विभाग में लेन-देन में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करना था। विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का अधीक्षण युद्ध विभाग के जिम्मे था।
युद्ध समाप्ति के बाद भी, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा घूसखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने हेतु एक केन्द्रीय सरकारी एजेंसी की जरूरत महसूस की गई। इसीलिए सन् 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम के द्वारा विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का अधीक्षण गृह विभाग को हस्तांतरित हो गया और इसके कामकाज को विस्तार करके भारत सरकार के सभी विभागों को कवर कर लिया गया। विशेष पुलिस प्रतिष्ठान का क्षेत्राधिकार सभी संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तृत कर दिया गया और सम्बन्धित राज्य सरकार की सहमति से राज्यों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता था।
दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान को इसका लोकप्रिय नाम ‘केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ गृह मंत्रालय संकल्प दिनांक 1.4.1963 द्वारा मिला। आरम्भ में केन्द्र सरकार द्वारा सूचित अपराध केवल केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा भ्रष्टाचार से ही सम्बन्धित था। धीरे-धीरे, बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के साथ ही इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन लाया गया। इसी प्रकार, सन्1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के क्षेत्र के अधीन आ गए।