(राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की कालजयी कविता-भारतीय नव वर्ष को जमीदोज करके फिरंगी नववर्ष 2019 का अंध जश्न मनाने वालों के नाम)
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।
धरा ठिठुरती है सर्दी से,
आकाश में कोहरा गहरा है।
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर,
सर्द हवा का पहरा है।
सूना है प्रकृति का आँगन,
कुछ रंग नहीं उमंग नहीं।
हर कोई है घर में दुबका हुआ,
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं।
चंद मास अभी इंतज़ार करो,
निज मन में तनिक विचार करो।
नये साल नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।
उल्लास मंद है जन -मन का,
आयी है अभी बहार नहीं।
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।
ये धुंध कुहासा छंटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो।
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फागुन का रंग बिखरने दो।
प्रकृति दुल्हन का रूप धर,
जब स्नेह सुधा बरसायेगी।
शस्य श्यामला धरती माता,
घर घर खुशहाली लायेगी।
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि,
नव वर्ष मनाया जायेगा।
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,
जय गान सुनाया जायेग।
युक्ति प्रमाण से स्वयंसिद्ध,
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध।
आर्यों की कीर्ति सदा सदा,
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
अनमोल विरासत के धनिकों को,
चाहिये कोई उधार नहीं।
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं
(राजेश्वर उनियाल जी द्वारा प्रेषित)