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अखिल भारतीय न्यायिक सेवा तुरंत लागू हो

दुनिया में किसी भी देश में जज की नियुक्ति जज नही करते हैं |संविधान में जज को जज बनाने का प्रावधान कहीं नही है लेकिन सुप्रीमकोर्ट अपने स्वयं के निर्णय से यह अधिकार ले लिया है  देश में संविधान नही बल्कि न्यायपालिका सर्वोच्च हो गयी है |

नई दिल्ली,

अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने 26 दिसम्बर 2018 को प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि कानून मंत्री श्री रविशंकर जी ने सही कथन का हम पूरा समर्थन करते हैं | अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का प्रावधान संविधान में बहुत पहले से है लेकिन अमल नही किया गया, अगर इसे पहले से लागू कर दिया गया हो तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर होती | संविधान में जज को जज बनाने का प्रावधान कहीं नही है लेकिन सुप्रीमकोर्ट अपने स्वयं के निर्णय से यह अधिकार ले लिया है | दुनिया में किसी भी देश में जज की नियुक्ति जज नही करते हैं | भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल ऑफ़ इंडिया के के वेणुगोपाल ने कहा कि देश में संविधान नही बल्कि न्यायपालिका सर्वोच्च हो गयी है |

जजों की कोई जवाबदेही नही रह गयी है और वो भगवन की तरह हो गए हैं | उच्च न्यायपालिका में न केवल अयोग्य लोगों की नियुक्ति भी हो रही है बल्कि ये जातिवादी और परिवारवादी भी हैं | इनके निर्णय से समाज में जातिवाद का जहर पैदा हो रहा है |  जैसे की 20 मार्च 2018 को जो फैसला अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में उच्च न्यायपालिका ने दिया, उससे 2 अप्रैल को दलितों ने भारत बंद किया | उससे समाज में जाति झगडा पैदा हुआ | इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले के वजह से भी पूरे देश में दलित, आदिवासी  और पिछड़ा बनाम सवर्ण झगडा पैदा हुआ | हाई कोर्ट ने अनावश्यक रूप से विश्वविद्यालयों में शिक्षक भर्ती में एक नया विवाद खड़ा कर दिया कि भर्ती विभाग स्तर पर होगी न कि विश्व विद्यालय के स्तर पर | ऐसी परिस्थिति में दलित, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की भागेदारी न्यायपालिका में होना जरुरी है और इस सन्दर्भ में कानून मंत्री का व्यक्तव्य बहुत ही सार्थक है |

डॉ. उदित राज ने आगे कहा कि आम आदमी सुप्रीमकोर्ट और हाई कोर्ट में मुकदमा नही लड़ सकता तो कब जाकर न्याय मिलेगा इसकी कोई समय सीमा नही है | जजों ने फेस  वैल्यू वकील पैदा कर दिए हैं जिससे ज्यादातर मुक़दमे उन्ही के पास जाते हैं और इसी वजह से फीस लाखों और करोंड़ों में पहुँच गयी है | न्याय सबके के लिए मिलना संभव हो गया है

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