उत्तराखंड

सरकारी आवास मामले में भी पूरी तरह बेनकाब हो गये उतराखण्ड के लिए सफेद हाथी बने पूर्व मुख्यमंत्री

गैरसैंण राजधानी बनाने, भू कानून व मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने आदि जनांकांक्षाओं सत्तांध होकर रौदने वाले पूर्व मुख्यमंत्री उतराखण्ड के लिए मुलायम से बदतर साबित हुए

करोड़ो की सम्पतियों के मालिक पूर्व मुख्यमंत्री क्यों बने है प्रदेश के विकास के संसाधनों पर लाट साहब

नैनीताल (प्याउ)। उतराखण्ड उच्च न्यायालय ने उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, नारायणदत्त तिवारी, मे. जनरल भुवन चंद खण्डूडी, रमेश पोखरियाल निशंक व विजय बहुगुणा से सरकारी बंगलों एवं अन्य मदों पर 12.18 करोड़ रूपये खर्च का जवाब मांगा।
प्रदेश की जनता हैरान है कि प्रदेश में अब तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे वे करोड़ों के सम्पति के मालिक होने के साथ सक्षम है। जनता यह देखकर भी हैरान रही कि जब पहले सरकारी आवासों को न्यायालय द्वारा खाली करने के फरमान को भी सहजता से स्वीकार करने को तैयार नहीं रहे। जनता का सवाल है कि अपने कार्यकाल के दौरान इन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने जिस प्रकार से उतराखण्ड गठन की राजधानी गैरसैंण बनाने, भू कानून लागू करने, मूल निवास, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलानेे, प्रदेश को   शराब आदि माफियाओं से मुक्त करके विकासोनुमुख सुशासन में न केवल पूरी तरह असफल अपितु जनता की आशाओं पर बज्रपात करने वाले मुलायम से भी बदतर साबित हुए।
प्रदेश की जनता हैरान इस लिए भी है कि ऐसे लोगों को प्रदेश के विकास के संसाधनों को क्यों लुटाया जा रहा है। इसके के साथ ये न तो असहाय व गरीब लोग है व नहीं इन्होने प्रदेश के हक हकूकों सम्मान की रक्षा करने का कोई ऐसा ऐतिहासिक योगदाान दिया। इनके कुशासन से प्रदेश गठन के लिए राव मुलायम सरकार के अमानवीय दमन सहने वाली पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन की स्थिति राज्य गठन से पहले से बदतर हो गयी है। इसी कारण पर्वतीय व सीमान्त जनपदों के करीब 3000 गांव उजड से गये है। इनके कारण प्रदेश विकास के नाम पर तीन मैदानी जनपदों तक नेता, अधिकारी कुण्डलीमार कर बैठे हुए है। इससे कुशासन से देवभूमि उतराखण्ड आज अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, घुसपेटियों व माफियाओं ंका अभ्यारण सा बनकर प्रदेश के अमन चैन व संस्कृति पर ग्रहण लग चूका है।
ऐसे में लोकशाही के नये लाट साहब से बने इन पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुख सुविधाओं के लिए प्रदेश के विकास के संसाधनों को इस प्रकार से लुटवाना एक प्रकार से लोकशाही के साथ सामाजिक न्याय का गला घोटने के समान है। इस मामले में 12दिसम्बर को मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की संयुक्त खंडपीठ ने देहरादून की रुरल लिटिगेशन एंड एनटाइटलमेंट केन्द्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से 4 सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया।  याचिका कर्ता ने प्रदेश के तमाम पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिल्ली प्रवास के दौरान दी जा रही वाहन सहित अन्य सुविधाओं को भी समाप्त करने की मांग की। याचिकाकर्ता को सूचना के अधिकार के अनुसार मिले जवाब में यह जानकारी मिली कि पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के 3.70 करोड़ रुपये,  एनडी तिवारी के 2.39 करोड,,भुवन चंद्र खंडूड़ी के 2.81 करोड़,  रमेश पोखरियाल निशंक के- 2.17 करोड़, एवं विजय बहुगुणा के 1.11 करोड़ रुपये बंगलों व अन्य मदों पर खर्च किये गये।
पूर्व मुख्यमंत्रियों को शासन द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं में वाहन के रखरखाव, देहरादून से बाहर जाने पर ईधन खर्च, टैक्सी खर्च, चालकों का वेतन, कर्मचारी मद, बिजली का खर्च, टेलीफोन खर्च व सुरक्षा गार्ड के नाम पर भी व्यय भी किया जाता है।
ऐसा भी नहीं की ऐसे मामले केवल उतराखण्ड में ही हो रहे है। दुर्भाग्य यह है कि लोकशाही के नाम पर भारत में इन तथाकथित   भाग्य विधाताओं ने देश प्रदेश की आम जनता के हितों व जीवन स्तर में सुधारने का काम करने के बजाय अपनी सुख सुविधाओं, अपने परिजनों, अपने प्यादों के लिए विकास के संसाधनों को पानी की तरह बहाने का काम किया। ऐसी व्यवस्था बना दिये कि इनको पद से उतरने के बाद भी ताउम्र लाट साहब की तरह आवास, गाड़ी, सेवकों आदि की सुविधा मिलती रहे।

इसलिए ऐसे मामलों में चाहिए कि इनकी सुविधाओं को तत्काल बंद कर देनी चाहिए। इस आदेश देने से पहले का किराये की मांग नहीं करनी चाहिए हां आदेश देने के बाद आवास इत्यादि खाली न करने वाले पर आदेश के दिन के बाद का किराया अवश्य वसुल किया जाना चाहिए।  हा जो जरूरतमद सम्पतिहीन हो उसको पंेंशन दी जाय। बाकी अरबपतियों को एक पाई भी देना लोकशाही का अपमान है।

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