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प्रधानमंत्री से लगाई एक टवीट की गुहार से जागी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को नजरांदाज करके कुम्भकर्णी नींद में सोई पुलिस प्रशासन

28 नवम्बर को भारत की लोकशाही में जुडा एक नया स्वर्णीम इतिहास,

एक साल 1 महिने के प्रतिबंध के बाद 28 नवम्बर से फिर शुरू हुआ जंतर मंतर पर राष्ट्रीय धरना प्रदर्शन

भारतीय भाषा आंदोलन व पूर्व सैनिकों  सहित अनैक आंदोलनों से इंकलाबी नारों से पुन्न गुलजार हुआ जंतर मंतर

प्यारा उतराखण्ड डाट काम-
28 नवम्बर 2018 को देश के इतिहास में लोकशाही की जीत का एक स्वर्णीम अध्याय तब जुड गया जब संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए आंदोलनकारियों ने सर्वोच्च न्यायालय से लेकर प्रधानमंत्री दरवार तक की लम्बी जिद्दोजेहादी संघर्ष  में सफलता अर्जित कर पुलिस प्रशासन को 1 साल एक महिने के बाद जंतर मंतर पर लगे अलोकतांत्रिक प्रतिबंध को हटाने के लिए विवश कर जंतर मंतर पर इंकलाबी नारों से गुलजार कर धरना प्रदर्शन पुन्न विधिवत शुरू किया।

28 नवम्बर को जंतर मंतर पर लगे प्रतिबंध को हटाने के पहली बार धरना प्रदर्शन विधिवत शुरू करने के बाद जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करके लोकशाही स्थापित करने की मांग करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन, समान रेंक समान पेंशन की मांग करने वाले पूर्व सैनिकों, उतराखण्ड में एनआईटी का परिसर बनाने की मांग करने वाले छात्रों सहित अनैक लोकशाही के ध्वजवाहकों के गगनभेदी इंकलाबी नारों से जंतर मंतर एक साल एक महिने बाद पुन्न गुलजार हो गया।
देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने के लिए 68 माह से संसद की चैखट पर धरना प्रदर्शन कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने पुलिस से विधिवत इजाजत लेकर धरना प्रारम्भ करते हुए सर्वोच्च न्यायालय को धन्यवाद दिया। वहीं पुलिस प्रशासन सहित सभी राजनैतिक दलों की लोकशाही पर किये गये इस घातक प्रहार पर एक साल एक महिने तक शर्मनाक मौन रखने पर कडी भत्र्सना की। भारतीय भाषा आंदोलन के धरने में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला, पूर्व दर्जाधारी मंत्री  धीरेन्द्र प्रताप, वेदानंद, रालोद नेता मनमोहन शाह, पत्रकार अनिल पंत, समाजसेवी नंदन रावत, सचिव लक्ष्मण आर्य, द्वारिका प्रसाद, विहिप के प्रवक्ता महेन्द्र रावत, मोहन जोशी, प्रेम गुसांई आदि ने भाग लिया।
इस अवसर पर धरना प्रारम्भ होने को लोकशाही की जीत बताते हुए संत रामपाल को रिहा करो आंदोलन से जुडे रहे  पत्रकार  संजय ने कहा इसके लिए संघर्ष करने वाले तमाम आंदोलनकारियों को बधाई।

गौरतलब है कि 15 अगस्त को 1947 को शताब्दियों तक दासता का कलंकित जीवन से जीने के लिए अभिशापित भारत ने तब एक नया स्वर्णीम इतिहास बनाया जब लाखों सपूतों की शहादत व संघर्ष की बदोलत विदेशी आक्रांता अंग्रेजों से देश को मुक्त कराकर भारत को विश्व का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश के रूप में स्थापित किया।
भारतीय जनमानस ने दूसरी महत्वपूर्ण सफलता तब अर्जित की जब आठवें दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में थोपे गये आपातकाल को जनता ने रौंद कर देश में पुन्न लोकशाही स्थापित की।

वहीं देश की लोकशाही पर 1 साल एक महिने तक  जंतर मंतर पर धरने प्रदर्शनों पर अलोकतांत्रिक प्रतिबंध लगाने का काम देश की तथाकथित हरित प्राधिकरण ने किया। इस  फैसले का न्याय पालिका में पुरजौर विरोध करने के बजाय सरकार ने शर्मनाक ढंग से 30 अक्टूबर 2017 को पुलिसिया दमन से लोकशाही के धरनों को उजाडने का कृत्य किया। जिसका वोट क्लब पर धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने के विरोध करने वाली वर्तमान सत्तारूढ भाजपा, विपक्षी कांग्रेस सहित किसी दल ने पुरजोर ढंग से नहीं किया।

सत्तामद में चूर सरकार ने 30 अक्टूबर 2017 को बिना नया राष्ट्रीय धरना स्थल उपलब्ध कराये, जंतर मंतर से राष्ट्रीय धरना स्थल को पुलिसिया बल के दम पर हटाकर भारतीय भाषा आंदोलन सहित देशभर के आंदोलनकारियों को जंतर मंतर से रामलीला मैदान के नाम से खदेड़ दिया। परन्तु रामलीला मैदान व शहीद पार्क को कहीं धरना स्थल घोषित नहीं किया। वहीं संसद मार्ग पर यदाकदा धरना/प्रदर्शन के लिए कभी कभार आयोजित करा रहे है। भारतीय भाषा आंदोलन को प्रतिदिन चंद घंटों के लिए भी पुलिस ने पहले की तरह सतत् धरना करने की इजाजत नहीं दिया।इसी कारण भारतीय भाषा आंदोलन भारत सरकार के इस लोकशाही का गला घोटने वाले दमनकारी अलोकतांत्रिक कृत्य के खिलाफ बिना बैनर के संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर बिना बैनर के ही अपना आंदोलन जारी रखे हुए सरकार के इस  कृत्य का पुरजोर विरोध निरंतर कर रहा है।
इसी दौरान पूर्व सैनिकों, किसान, संत रामपाल, पंजाब की आंदोलनकारी जगजीत कौर आदि ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। जनहित के लिए न्यायालय में गुहार लगाने वााले अधिवक्ता प्रशांत भूषण आदि अधिवक्ताओं ने जब न्यायालय में इसे लोकशाही पर हमला बताया तो पुलिस प्रशासन के पास इसका कोई वैधानिक जवाब तक नहीं रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने जनता की अपनी मांगों के लिए आवाज उठाने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बताते हुए जंतर मंतर व वोट क्लब पर प्रदर्शन की इजाजत दे दी।  परन्तु सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले को दर किनारे करते हुए शर्मनाक ढंग से शासन प्रशासन जब  जंतर मंतर पर इजाजत देने के बजाय केवल संसद मार्ग पर ही धरना प्रदर्शन कराता रहा।
पुलिस प्रशासन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की इस प्रकार की अवेहलना करते देख कर भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री व उनके कार्यालय के फेसबुक व टवीटर पेज पर भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने दो टूूक शब्दों में  26 नवम्बर को 4.52 बजे यह लिखा‘
सर्वोच्च न्यायालय के जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन की इजाजत देने के कई महीने के बाद भी दिल्ली पुलिस-शासन नहीं दे रही है सतत आंदोलन की इजाजत ।

धरना की इजाजत देना तो दूर, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद आज तक धरने पर रुप्रतिबंध का बोर्ड तक नहीं हटाया ।

दम है कितना दमन में तेरे, देख लिया है देखेंगे ।

भारत सरकार होश में आओ,
अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी बंद करो

-भारतीय भाषा आंदोलन

इस ट्वीट व फेसबुक पर लगी गुहार के 24 घण्टे के अंदर कुम्भकर्णी नींद से यकायक जागते हुए पुलिस प्रशासन ने 27 नवम्बर की सांयकाल जंतर मंतर पर बेरेकेटों की बाड करके 28 नवम्बर से धरना प्रर्दशन की इजाजत दे दी। परन्तु अभी भी नई दिल्ली  प्रशासन ने जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगने का आदेश वाला वोर्ड तक नहीं हटाया।

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