विश्व मेें भारत का नाम रोशन करने वाली स्वर्ण परी हेमा दास को अपमानित करने वाले देशद्रोहियों को दण्डित करे सरकार!
( प्यारा उत्तराखण्ड डाट काम ) भारत को #अंग्रेजी_की_गुलामी से मुक्त किये बिना नहीं हो सकता है भारत में लोकशाही की स्थापना व हेमा दास जैसी प्रतिभाओं का सम्मान
भारत को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर #प्रधानमंत्री_मोदी अविलम्ब करें देश व हेमा दास जैसी प्रतिभाओं के सम्मान की रक्षा
अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारत को अंग्रेजी का ही गुलाम बनाने वाले हुक्मरानों ने न केवल भारत का नाम विष्व से मिटाने का कृत्य किया अपितु देश की लोकशाही, आजादी, संस्कृति के साथ साथ मानवाधिकारों व प्रतिभाओं का निर्ममता से गला घोेटने का राश्ट्रद्रोही कृत्य किया है। देष की प्रतिभाओं को किस बेषर्मी से अपमानित करके उनकी राहें रोकी जा रही है इसका ताजा उदाहरण है फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स प्रतियोगिता की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में 51.46 सेकेंड के रिकार्ड समय में पार कर स्वर्ण पदक जीता। इस प्रतियोगिता में रोमानिया की एंड्रिया मिकलोस को रजत और अमरीका की टेलर मैंसन को कांस्य पदक मिला।
असम के एक गांव की गरीब किसान की बेटी हिमा की इस सफलता से देष के राश्ट्रपति रामनाथ कोंविद, प्रधानमंत्री मोदी व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सहित देष के तमाम खेल प्रेमियों ने देष की स्वर्ण परी हिमा दास की प्रतिभा को नमन कर रहे थे।
परन्तु एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया जिसकी दाल रोटी व रोजगार हेमा जैसी प्रतिभावान खिलाडियों की खेल प्रतिभा से चल रहा है वे हेमा की प्रतिभा का नमन करने के बजाय बेषर्मी से हेमा को अपनी अंग्रेजी में सुधार करने की सार्वजनिक सीख दे कर पूरे विष्व में भारत को घोर अपमान करने की धृश्ठता करते है।
गरीब किसान की बेटी हिमा दास की गरीबी के कारण गुमनाम प्रतिभा को विष्व स्तरीय मंच प्रदान करने वाले उसके प्रषिक्षक निपोन की मुक्त कंठ से प्रषंसा कर रहे है। करें भी क्यों नहीं क्योंकि हिमा दास से पहले भारत की कोई महिला खिलाड़ी जूनियर या सीनियर किसी भी स्तर पर विश्व प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक नहीं जीत सकी थी।विष्व स्तरीय 400 मीटर की भारत की प्रतिभावान बेटी हिमादास का सम्मान करके देष की जमीनी प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने हिमा दास को अंग्रेजी में सुधार करने की औछी सीख देकर पूरे विष्व में भारत का अपमान किया। हालांकि देष की जमीनी प्रतिभाओं की राहे रोकने वाली इस गुलाम मानसिकता की एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया को देषभक्तों ने इंटरनेटी दुनिया में पूरी तरह धिक्कार लगायी। इसके बाद अंग्रेजी की गुलामी का भूत सवार इस एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने अपने कृत्य पर माफी मांग कर अपने राश्ट्रद्रोही कृत्य पर पर्दा डालने का काम किया।
यह मामला तब इंटरनेटी दुनिया में तब आयी जब फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स प्रतियोगिता की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा के सेमीफाइनल जीतने के बाद भारत की इस स्वर्ण परी के खबरिया चैनलों से बातचीत व ट्वीट पर उसकी ऐतिहासिक सफलता के लिए बधाई देकर उत्साह बढाने की जगह एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने हिमा दास को अपनी अंग्रेजी सुधारने की षर्मनाक सीख देकर देष को अपमानित करने का कृत्य किया। फेडरेषन के पदाधिकारी देष की प्रतिभाओं का अपमान किया। मानों खेल की प्रतिभा कोई महत्व नहीं रखती है। इनकी नजरों में केवल अंग्रेजी जानना ही सबसे बडी प्रतिभा है।
देष को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर देष में भारतीय भाशाओं का लागू करने के लिए विगत 63 महिनों से संसद की चैखट पर ऐतिहासिक आजादी की जंग छेड़ने वाले भारतीय भाशा आंदोलन ने इस प्रकरण की कड़ी भत्र्सना करते हुए, देष के हुक्मरानों से देष की स्वर्ण परी हेमा की प्रतिभा को नमन् करते हुए उनका अपमान करने वाले गुनाहगारों पर देषद्रोह का मामला दर्ज कराने की मांग की। भारतीय भाशा आंदोलन के प्रमुख देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी से पुरजोर मांग की कि देष को अविलम्ब अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर पूरी व्यवस्था को भारतीय भाशाओं को लागू किया जाय ताकि भविश्य में फिर कोई देषद्रोही देष की हेमा दास जैसी प्रतिभाओं का अपमान न कर पाये।
भारतीय भाशा आंदोलन ने दो टूक षब्दों में कहा कि हम विष्व की किसी भी भाशा को पढ़ने, सिखने, व बोलने का विरोध नहीं कर रहे है। हमारी एक ही मांग है जिस प्रकार विष्व के रूस, चीन, जापान, फ्रांस, जर्मन, कोरिया, इजराइल,इटली, स्वीटजरलैण्ड व टर्की सहित तमाम समृद्ध व स्वाभिमानी देष अपने देष की भाशाओं में षिक्षा, रोजगार, न्याय व षासन सहित पूरी व्यवस्था संचालित कर विष्व में अपने विकास का परचम लहरा रहे है। परन्तु दुर्भाग्य है कि कभी अपनी समृद्ध भाशाओं के दम पर ज्ञान विज्ञान में विष्व गुरू व सोने की चिडिया के नाम से विख्यात भारत को गुलाम मानसिकता के हुक्मरानों ने 1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद से आज 71 साल बाद भी अंग्रेजी का गुलाम बनाया हुआ है।
भारत के लिए सबसे षर्मनाक बात यह है कि भारत को षताब्दियों तक गुलाम बनाने वाले, लाखों सपूतों की निर्मम हत्या करने व देष को लूट खसोट करने वाले अंग्रेजों से मुक्त होने के बाद देष के हुक्मरानों ने लोकषाही व आजादी के प्रतीक भारतीय भाशाओं में देष में षिक्षा, रोजगार, न्याय व षासन सहित पूरी व्यवस्था संचालित करने के बजाय उन्हीं आततायी अंग्रेजों की ही भाशा अंग्रेजी का देष गुलाम बना दिया । देष से इसी गुलामी को मुक्त करने के लिए देष की आजादी, लोकषाही व मानवाधिकारों के लिए समर्पित देषभक्तों ने भारतीय भाशा आंदोलन के बेनरतले 2013 से निरंतर देष को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाशाओं को लागू करने के लिए आजादी की जंग छेडी हुई है। हैरानी की बात यह है कि देष की इस सबसे प्रमुख व न्यायोच्चित मांग को तत्काल स्वीकार करने के बजाय इसको नजरांदाज करने व पुलिसिया दमन कर संसद की चैखट से राश्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से हटाने का अलोकतांत
#HimaDas speking to media after her SF win at #iaaftampere2018 @iaaforg Not so fluent in English but she gave her best there too. So proud of u #HimaDas Keep rocking & yeah,try ur best in final! @ioaindia @IndianOlympians @TejaswinShankar @PTI_News @StarSportsIndia @hotstartweets pic.twitter.com/N3PdEamJen
— Athletics Federation of India (@afiindia) July 12, 2018