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पर्यावरण संरक्षण खुद को व भावी पीढी को बचाने की जद्दोजहद है – जगदीश ममगांई

दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कालेज में एन्वाइरन्मेंटल अवेर्नेस एंड एनर्जी कन्सर्वेशन पर आयोजित किया गया सेमिनार

पृथ्वी पर रहने वाले मानव, जीव-जंतु, पहाड़, चट्टान, हवा, पानी, ऊर्जा के बीच पारिवारिक अनुभूति ही सही मायने में                         वसुधैव कुटुम्बकम् की व्याख्या है – जगदीश ममगांई


 

 नई दिल्ली(प्याउ)। पृथ्वी पर रहने वाले मानव, जीव-जंतु, पहाड़, चट्टान, हवा, पानी, ऊर्जा आदि सभी के बीच एक पारिवारिक अनुभूति भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम् को सम्पूर्णता में परिभाषित करता है। घर में गाय-बिल्ली-कुत्ता पालते हैं, पेड-पौधे लगाते हैं, पहाड गोवर्धन, जलदेव वरूण, वायुदेव पवन, ऊर्जा देने वाले सूर्य का पूजन करते हैं यानि सभी के बीच अपनापन है। पर्यावरण संरक्षण खुद को व भावी पीढी को बचाने की जद्दोजहद है। प्रकृति हमें जीवन रक्षण के लिए बहुत कुछ देती है, मानव को प्रकृति का शोषक नहीं बल्कि कृतज्ञ के रूप में व्यवहार करना चाहिए। यह विचार एकीकृत दिल्ली नगर निगम की निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष व अर्बन मामलों के विशेषज्ञ जगदीश ममगांई ने पर्यावरण जागरूकता व ऊर्जा संरक्षण (एन्वाइरन्मेंटल अवेर्नेस एंड एनर्जी कन्सर्वेशन) पर शैक्षिक व्याखयान (ऐकडमिक लेक्चर) देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत सिंह कालेज में आयोजित सेमिनार में शिक्षक व छात्रों की सभा में प्रस्तुत किए।

एनडाटीएफ के नेता प्रो0 वी एस नेगी, प्रो0 रवि शेखर, प्रो0 सुरेश बलूनी, एसएफटी के राष्ट्रीय संयोजक आदित्य, प्रांतीय संयोजक आशीष पोखरियाल एवं विभाग प्रमुख सिद्धांत मिश्रा ने भी संबोधित किया।  दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो0 सतीश ने एक पेड के दर्द का मार्मिक चित्रण कविता के माध्यम से किया।

उन्होंने कहा कि हम सौभाग्यशाली है कि हमने इस पृथ्वी में जन्म लिया। सौरमण्डल के ग्रहों में से पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां जीवन पाया जाता है, सभी जीवों के जीवित रहने के लिए वायुमंडल में आवश्यक आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में है। बुध, शुक्र, मंगल अत्यधिक गर्म तथा वरूण व यम अत्यधिक ठंडे हैं, वृहस्पति गैसीय है। पर्यावरण हमारे रोजमर्रा की जीवन से जुडा है, किसी भी नगर/कस्बे में चारों ओर कचरे के ढेर दिखते हैं, बाजार-टूरिस्ट स्पाट पर खाद्य पदार्थों की खाली थैलियां फैली होती हैं, पानी का बेकार बहना, सीवर बह रहे हैं, वाहनों का शोर व धुंआ, दिन में भी जलती स्ट्रीट लाइट आदि। मानव जाति का अस्तित्व बनाए रखना है तो हमें अपनी हानिकारक गतिविधियों पर अंकुश लगाना ही होगा।

ममगांई ने कहा कि तरक्की के लिए व्यक्ति विदेश चला जाता है जहां पैसा, संसाधन, अवसर तो मिलता है पर परिवार से जुडाव नदारद हो जाता है। पता चलता है, बुजुर्ग माता-पिता जिन्हें पैसा तो भेजा जाता है पर उनके दुःख-सुख का कोई साथी नहीं है, यहां तक की बीमारी में कोई अस्पताल तक ले जाने वाला नहीं है। विकास के साथ, विनाश भी प्रतिछाया के रूप में उसके साथ ही चलता है इसलिए जितनी तेजी से मानव विकास की होड में दौडता है उतनी ही तेजी से विनाश भी उसकी जिंदगी में दस्तक देता है। जल,जंगल,जमीन पर्यावरण संरक्षण व आम आदमी के अधिकारों का प्रतीक बन कर उभरे तथा इन्होंने विकास के तथाकथित मॉडल को गंभीर वैचारिक चुनौती पेश की।

वर्ष 1974 में स्वतंत्र भारत का पहला पर्यावरण आंदोलन चिपको आंदोलन सूदूर उत्तराखंड में भारत-तिब्बत सीमा के नजदीक पेड काटने वाले ठेकेदारों से पेड बचाने के लिए गांव की सामान्य सी महिला गौरा देवी व उनकी मुट्ठी भर संगनियों के नेतृत्व में हुआ। उत्तराखंड से उपजे चिपको आंदोलन की प्रेरणा से उसी तर्ज पर उत्तर कर्नाटक में वर्ष 1983 में अप्पिको आंदोलन हुआ, कागजों में एक-दो पेड कटे पर धीरे-धीरे उत्तरी कर्नाटक के गांवों के चारों ओर के जंगलों का सफाया हो रहा था, ऐसे में इसके विरूद्ध ग्रामीण युवाओं ने जंगल बचाने के लिए आंदोलन चलाया । वर्ष 1998 काला हिरण शिकार में हाल ही में सलमान खान को सजा दिलाने में विश्नोई समाज की सक्रिय भूमिका रही है, जैव विविधता की रक्षा के लिए विश्नोई आंदोलन व संघर्ष के कई किस्से हैं।

ममगांई ने कहा कि यह पृथ्वी है, कल भी थी, आज हम हैं तब भी है और कल हम नहीं होंगे तब भी होगी। अमेरिका के सर्वाधिक चार बार राष्ट्रपति रहे फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने कहा था कि  एक देश जो अपनी मिट्टी को खत्म कर देता है वह अपने आप को नष्ट कर देता है, जंगल हमारे जमीन के फेफडे हैं, वे हमारी हवा को शुद्ध करते हैं और लोगों को नयी उर्जा देते हैं। हम देश की राजधानी दिल्ली में रहते हैं, दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है, हालांकि दिल्ली का अपना कुछ भी नहीं है। न मौसम, न प्रदूषण, न पानी, न बिजली, न जनसंख्या..। दिल्ली में एक करोड से अधिक वाहन हैं जिनमें करीब 75 लाख दोपहिए वाहन हैं जो प्रदूषण के कारक हैं पर प्रतिदिन दूसरे राज्यों के 8-10 लाख वाहन दिल्ली की सडकों से हर दिन गुजरते हैं जो हमारी प्रदूषण से लडाई को प्रभावित करते हैं। बीडी-सिगरेट का धुंआ, आसपास के राज्यों में जलाई जाने वाली पराली एवं नियमों को ताक पर रख किए जा रहे बेतहाशा निर्माण कार्य में उपयोग होने वाला बिल्डिंग मैटिरियल, उडती धूल भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। वृक्षों की घटती संख्या के चलते बिल्डिंग मैटिरियल की धूल व वाहनों का धुंआ लोगों के फेफडे, दिल व मस्तिष्क कोशिकाओं में जाता है जिसके कारण सांस की तकलीफ, खांसी-एलर्जी, आंखों में जलन, कैंसर आदि के मामले बढ रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण से तो जीवन तनावग्रस्त हो रहा है। विभिन्न राज्यों से लगातार पलायन हो रहा है, राजधानी होने के कारण दिल्ली में सभी राज्यों से लोगों का आना जारी है लिहाजा जनसंख्या का वृद्धि दर भी बेतहाशा है।

उन्होंने कहा कि प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली की जंग भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एम सी मेहता बनाम् भारत सरकार मामले में वर्ष 1996 में प्रदूषण की दृष्टि से खतरनाक व हानिकारक उद्योगों को बंद किया गया। वर्ष 1998 में 15 वर्ष से अधिक पुराने कमर्शियल व्हीकल दिल्ली की सडकों पर प्रतिबंधित किए गए। सीएनजी के प्रयोग को, विशेषकर सार्वजनिक वाहनों में बढावा दिया गया तथा कोयले व भट्टी का चलन कम हुआ है। ऑड-ईवन फार्मूला सफल रहा पर प्रदूषण-मुक्त क्षेत्र बनाने के लिए सबसे अधिक एक सार्वजनिक यातायात व्यवस्था बनाने की आवश्यकता है ताकि आम आदमी अपने वाहनों के उपयोग की बजाय सार्वजनिक यातायात की ओर आकृष्ट हो। व्यक्तिगत वाहनों का उपयोग कम से कम करें या फिर नहीं करे।                                                                                                                                   

ममगांई ने कहा कि पेट्रोल, डीजल, बिजली पर हम आत्मनिर्भर नहीं हैं, इसलिए इनका सदुपयोग व बचाने के प्रति जागरूक होना जरूरी है। सौर ऊर्जा के प्रति जन-जागरण करना होगा। पर्यावरण की गंभीर स्थिति को देखते हुए, पर्यावरण शिक्षा को एक पाठ्यक्रम के रूप में जोडना चाहिए, छात्रों को बचपन से ही प्रकृति व पर्यावरण का महत्व बताना चाहिए। पानी सबसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है, इसके बिना जीवन असंभव है। पानी सीमित है, बर्बाद न करें – पानी की हर बूंद को बचाएं। स्वच्छता को जीवन में अभियान के रूप में अपनाएं। 2 अक्तूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान का आगाज किया, इससे स्वच्छता के प्रति आम जनता में चेतना आई हालांकि स्थानीय निकायों ने सकरात्मक भूमिका नहीं प्रदर्शित की। पहले हमारे घरवाले सामान, साग-सब्जी लाने के लिए घर से थैला लेकर चलते थे, पॉलीथिन ने आदत बिगाड दी। पॉलीथिन न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्वास्थ के लिए भी खतरनाक है इसलिए लोगों को पॉलीथिन के खतरे से आगाह करें, इसका बहिष्कार करें, । कटते जंगल-घटती हरियाली बढाने के लिए अधिक से अधिक पेड लगाएं, सडक के दोनों ओर, रेलवे लाइन के दोनों तरफ, नदी-नालों के किनारे सभी जगह पेड लगाएं। सरकारी योजनाओं में लाखों-करोडों पेड लगाने की बात होती है लेकिन अधिकतर मर जाते हैं। वृक्षारोपण ही पर्याप्त नहीं, उनका जीवित रहना भी जरूरी है। वृक्षों की गणना कर उन पर पट्टी लगाएं, साथ ही प्रत्येक वृक्ष के लिए एक पालक निश्चित किया जाना चाहिए।                                                                                                                                                                               

भारत में 12 करोड से अधिक लोग धुंआ उडाते हैं, उनमें से लाखों अकाल मौत का शिकार भी हो जाते हैं पर उडता धुंआ धूम्रपान न करने वाले कई और के जीवन में अंधेरा दे जाता है। मनमोहन सिंह सरकार ने 2 अक्तूबर 2008 को सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने वालों पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया पर व्यवहारिक में यह कितना अमल में आया किसी से छूपा नहीं हैं। इस धुंए में 22 करोड से अधिक वाहनों का धुंआ शामिल होने से जैसे संपूर्ण देश एक धुंए की चादर में लिपट गया हो। शोर भी प्रदूषण व मानसिक तनाव का कारक है। वाहनों का शोर, लॉउड स्पीकर का शोर, बैंड-बाजा-पटाखे का शोर, तेज संगीत, टीवी का शोर। इसके लिए सख्त नियम व कानून बनने चाहिए।

इलेक्ट्रोनिक उपकरण मोबाइल, कंप्यूटर, वाशिंग मशीन, फ्रिज, टीवी, एयरकंडिशनर, लैपटॉप आदि आज स्टेटस सिंबल बन, लगभग सभी के लिए जरूरी हो गए हैं। नए-नए मॉडल आते हैं, खराब व पुराने उपकरणों की तादाद बढ रही है। लोग इन्हें कचरे में फेंक देते हैं, कबाडी वाले इन्हें तोडकर धातु निकाल लेते हैं। इस दौरान क्लोरोनेटेड, ब्रोमिनेटेड जैसे विषैले अवयय निकलते हैं जो पर्यावरण व स्वास्थय के लिए खतरनाक है। WHO के अनुसार इलेक्ट्रोनिक कचरे से प्रेगनेंसी, बीपी, फेफडे, किडनी, सांस की बीमारी, कैंसर की बीमारियां हो रही है, मस्तिष्क भी प्रभावित हो रहा है। विश्व भर में ई-वेस्ट से जनता को सुरक्षा देने के लिए कंपनियों को अपना उत्पादन पुराना व खराब होने पर उपभोक्ता से वापस एकत्र करने का आदेश है, कंपनियां उन्हें री-साइकिल कर सकें। पर भारत में न कंपनियां इसके प्रति सजग हैं और न जनता को ही इसकी जानकारी है।

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