प्रधानमंत्री जी, देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने के लिए देश के सभी सांसद सहित तमाम जनप्रतिनिधी रखें ईमानदारी से उपवास
नई दिल्ली। देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए 60 महीने से ऐतिहासिक आंदोलन कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन ने 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री को ज्ञापन देते हुए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा सांसदों के देश की लोकशाही को बचाने के लिए किये जा रहे एक दिवसीय उपवास पर टिप्पणी करते हुए कहा कि देश के सभी सांसदों सहित जनप्रतिनिधियों को देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व भारतीय भाषायें लागू करने के लिए एक दिवसीय उपवास लेने की जरूरत है।इसके साथ देश में अजा/अजजा/पिछडों/वंचितों/आम जनता का चहुंमुखी विकास के लिए देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने की निंतात जरूरत बताया।
प्रधानमंत्री मोदी के नाम दिये भारतीय भाषा आंदोलन के ज्ञापन में दो टूक शब्दों में कहा कि मान्यवर, आज 12 अप्रैल को आपके नेतृत्व में भाजपा के सांसद सहित जनप्रतिनिधि देशभर में देश की लोकशाही को बचाने के लिए उपवास कर रहे है। आपके नेतृत्व में यह उपवास देश की संसद की कार्यवाही में कांग्रेस सहित विपक्षी दलों द्वारा व्यवधान करने के खिलाफ किया जा रहा है। वेहद अच्छा होता कि आपके नेतृत्व में सत्तारूढ़ राजग व राहुल गांधी केे नेतृत्व में पूरा विपक्ष देश में सच मुच में लोकशाही की स्थापना के लिए उपवास करते। क्योंकि जिस आजादी हासिल करने के लिए देश के लाखों सपूतों ने अपना सर्वस्व बलिदान दिया। उस आजादी को देश के हुक्मरानों ने 15 अगस्त 1947 को भारत से अंग्रेेजों के जाने के बाद भी अंग्रेजों की ही भाषा ‘अंग्रेजी’ का गुलाम बना दिया है। 1947 से लेकर आज 1918 तक देश की लोकशाही व आजादी को जमीदोज करके देश को विश्व के अन्य स्वतंत्र देशों की तरह अपनी भाषा में शिक्षा, रोजगार,न्याय, शासन व सम्मान प्रदान कर लोकशाही स्थापित करने के बजाय देश को अंग्रेजों के बाद अब अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का बेशर्मी से गुलाम बना रखा है। 71 साल से अंग्रेजी की गुलामी से जमीदोज हुई देश की आजादी, लोकशाही, सम्मान व मानवाधिकार की रक्षा के लिए जरूरी है देश के सभी सांसद सहित तमाम जनप्रतिनिधी रखें बलिदानियों के आजादी के सपने को साकार करने लिए दृढ़ उपवासी संकल्प ।
इसी पखवाडे 2 अप्रैल को देश में तमाम अजा संगठनों ने अनुसूचित जाति/जनजाति के हितों की रक्षा के लिए भारत बंद किया था। देश में चारों तरफ हिंसक प्रदर्शन, आगजनी व तोड़फोड़ से देश पतन के गर्त में धंस गया। परन्तु देश में सत्तालोलुपु राजनेताओं को देश व देशवासियों की कहां परवाह। अगर देश के हुक्मरानों को देश का जरा भी भान रहता तो वे भारत की आजादी के सेनानियों के सपने साकार और अजा/अजजा/पिछडों/वंचितों/आम जनता का चहुंमुखी विकास के लिए अविलम्ब देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं से पूरी व्यवस्था संचालित करते। क्योंकि अंग्रेजी की गुलामी के कारण देश के अजा/अजजा/पिछडों/वंचितों/आम जनता का विकास अवरूद्ध हो जाता है। देश के तमाम आरक्षण के बाबजूद 71 सालों से वंचित समाज व आम जनता शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, न्याय व सम्मान से वंचित ही है।देश में असली आरक्षण देश में 3प्रतिशत अंग्रेजदा लोगों को है। वे ही पूरी व्यवस्था में काबिज है। वंचित समाज के विकास की राह में अंग्रेजी सबसे बड़ी बाधक बनी हुई है। इसके कारण आम भारतीय जनमानस शिक्षा, रोजगार, न्याय व सम्मान के साथ शासन से कोसों दूर है। अगर जनमानस की भाषा में राजकाज, न्याय,शासन व रोजगार मिलता तो देश का वंचित समाज आज विकास की नई ऊंचाई छू रहे होते।
आप 10 अप्रैल को जब चंपारण में महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए सत्याग्रह के शताब्दी समारोह में भाग ले रहे थे। उसी दिन 10 अप्रैल को भारतीय भाषा आंदोलन के आंदोलनकारी दिल्ली में शहीदी पार्क में आजादी के अमर बलिदानी भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की मूर्ति को नमन् करते हुए देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने व देश में भारतीय भाषाओं को लागू कराने का संकल्प ले रहे थे। आपको विदित ही होगा कि भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी की गुलामी को मुक्ति दिलाने व देश की पूरी व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने की मांग को लेकर संसद की चैखट(जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर विगत 60 माह से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहा है। विगत 60 महीनों से निरंतर भारत के प्रधानमंत्री को देश से अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषायें लागू करने के लिए ज्ञापन दे रहा है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि सत्तांध देश के हुक्मरानों को शांतिपूर्ण देशहित में संघर्ष करने वाले आंदोलनकारियों की गुहार सुनने की फुर्सत तक नहीं है।
यह देश के साथ घोर विश्वासघाती षडयंत्र है कि देश के लाखों सपूतों ने विदेशी आक्रांताओं की गुलामी से मुक्त कराने के लिए शताब्दियों को लम्बा संघर्ष व बलिदान देकर 15 अगस्त 1947 को जो आजादी हासिल की, उस आजादी को, देश के हुक्मरानों ने विदेशी आक्रांता अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारतीय भाषाओं में देश की व्यवस्था संचालित करने के बजाय अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी में ही संचालित जारी रख कर देश को अंग्रेजों के बाद अंग्रेजी का गुलाम बना दिया। भारत के माथे पर लगे इसी गुलामी के कलंक को मिटाने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन विगत 60 महीनों देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने व देश की व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने की मांग को लेकर आजादी की जंग छेडे हुए है। देश का हर स्वाभिमानी देशभक्त व जागरूक इंसान यह देख कर व्यथित व अपमानित महसूस कर देश के हुक्मरानों से सीधे सवाल करता है कि अगर रूस, चीन, जापान, फ्रांस, इटली, जर्मन, इजराइल, टर्की, कोरिया व इंडोनेशिया आदि संसार के सभी विकसित व स्वाभिमानी देश बिना अंग्रेजी की गुलामी ढोये अपनी अपनी भाषा में चहुमुखी विकास कर सकता है तो हमारा देश भारत, अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी अपनी भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन चलाने के बजाय क्यों अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का बेशर्मी से गुलाम बना हुआ है। जबकि भारत की अनैक अपनी भाषायें विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञान विज्ञान की अपनी समृद्ध भाषाओं में एक एक है।
क्या शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी, गांधी जी,लाल, पाल, बाल, सवारकर जैसे लाखों सपूतों ने अपना सर्वस्व बलिदान देश को अंग्रेजी का गुलाम बनाने के लिए दिया था? क्या किसी आजाद देश में अपनी भाषाओं को जमीदोज करके बलात विदेशी भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करना राष्ट्रद्रोह नहीं है? आखिर देश में एक भी सपूत ऐसा नहीं हुआ जो टर्की के कमाल पाशा व इंजराइल के हुक्मरानों की तरह अपने देश में अपने देश की भाषा में शासन संचालित कर देश को गुलामी से मुक्त कर सके। क्या भारत में बलात अंग्रेजी भाषा थोपना भारतीय संस्कृति, लोकशाही, मानवाधिकार, आजादी व एकता अखण्डता को रौंदने का कुकृत्य नहीं है? कहां गया भारतीयों का स्वाभिमान? लाखों सपूतों की शहादत के भय से अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने के बाद से 71 सालों गुजर गये। परन्तु देश को अपने नाम व अपनी भाषा से बलात वंचित किया गया है। यह कौन सी देशभक्ति व राष्ट्र सेवा है। जार्ज पंचम के वंशजों की स्तुतिगान करने व उनकी भाषा अंग्रेजी से देश को गुलाम बनाने के अलावा देश के हुक्मरानों ने क्या किया? आखिर बेशर्मी से कब तक देश अंग्रेजी का गुलाम बना रहेगा? इस गुलामी के कलंक को मिटाने का साहस भारत की सरकारें कब कार्य करेगी? आखिर कब भारतीय हुक्मरान यह साहस करेंगे कि अंग्रेज गये अंग्रेजी भी जाये, भारतीय भाषा राज चलाये।
आपको विदित है कि भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी की गुलामी को मुक्ति दिलाने व देश की पूरी व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने की मांग को लेकर संसद की चैखट(जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर विगत 60 माह से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहा है। परन्तु देश की आजादी, स्वाभिमान, संस्कृति, नाम व मानवाधिकार को बलात विदेशी भाषा अंग्रेजी को थोप कर जमीदोज करने वाले देश के हुक्मरान भारतीय भाषा आंदोलन की मांग को तत्काल स्वीकार करने के अपने प्रथम राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करने के भारतीय भाषा आंदोलन को कुचलने के लिए अलौकतांत्रिक व अमानवीय पुलिसिया दमन कर रही है। जहां सरकार ने 30 अक्टूबर 2017 को बिना नया राष्ट्रीय धरना स्थल उपलब्ध कराये, जंतर मंतर से राष्ट्रीय धरना स्थल को पुलिसिया बल के दम पर हटाकर भारतीय भाषा आंदोलन सहित देशभर के आंदोलनकारियों को जंतर मंतर से रामलीला मैदान के नाम से खदेड़ दिया। परन्तु रामलीला मैदान व शहीद पार्क को कहीं धरना स्थल घोषित नहीं किया। वहीं संसद मार्ग पर यदाकदा धरना/प्रदर्शन के लिए कभी कभार आयोजित करा रहे है। परन्तु भारतीय भाषा आंदोलन को प्रतिदिन चंद घंटों के लिए भी पुलिस ने पहले की तरह सतत् धरना करने की इजाजत नहीं दे रही है।इसी कारण भारतीय भाषा आंदोलन भारत सरकार के इस लोकशाही का गला घोटने वाले दमनकारी अलोकतांत्रिक कृत्य के खिलाफ बिना बैनर के संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर बिना बैनर के ही अपना आंदोलन जारी रखे हुए सरकार के इस कृत्य का पुरजोर विरोध निरंतर कर रहा है।
देश के हुक्मरानों द्वारा अंग्रेजों के जाने के बाद, 71 साल देश को आजादी के नाम पर अंग्रेजी की गुलामी थोपने का जो भारतद्रोही कृत्य किया हुआ है। उसी के खिलाफ भारतीय भाषा आंदोलन 12 अप्रैल को प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर देश अविलम्ब अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं को संचालित करने की मांग की। इसके साथ राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से हटा कर अन्यत्र घोषित न किये जाने को केन्द्र सरकार द्वारा लोकशाही पर कुठाराघात बताया। भारतीय भाषा आंदोलन ने केन्द्र सरकार, दिल्ली पुलिस व दिल्ली नगर निगम को स्मरण कराया कि राष्ट्रीय धरना स्थल का उतना ही महत्व है जितना संसद का। धरना धारी प्रश्न कर रहे हैं कि केन्द्र में आसीन भाजपा की सरकार, जो बोट क्लब में धरना स्थल हटाने व आपातकाल लगाने को लोकशाही पर हमला बता कर विरोध करती रही वह अब किस आधार से लोगों के जनहितों के लिए आवाज उठाने के संवैधानिक अधिकार को रौंद रही है। भारतीय भाषा आंदोलन सहित सभी आंदोलनकारी आपसे अविलम्ब राष्ट्रीय धरना स्थल घोषित करने की मांग कर रहे है। 12 अप्रैल को भारतीय भाषा आंदोलन में भाग लेने वालों में अघ्यक्ष देवसिंह रावत, महासचिव अभिराज शर्मा, ध्रना प्रभारी रामजी शुक्ला,स्वामी श्रीओम, रमाशंकर ओझा, मुरार कंडारी, दिनेश शर्मा, हरिराम तिवारी, कर्मचारी नेता चैहान आदि ने भाग लिया।