सर्वोच्च न्यायालय ने अजा/अजजा कानून में संसोधन पर दिये 20 मार्च के फेसले पर रोक लगाने से इंकार
सरकार व समाचार जगत द्वारा शांतिपूर्ण आंदोलनों की उपेक्षा व दमन करने जाने से देश में हिंसक आंदोलनों की बाढ़
शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन व हिंसक आंदोलनों के आगे आत्मसम्र्पण करने से आरजकता के भैंट चढ़ा देश
देवसिंह रावत
2 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 यानी कानून में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 20 मार्च को किये गये बदलाव के विरोध में दलित संगठनों द्वारा आहुत भारत बंद को राजनैतिक दलों द्वारा दिये गये हिंसा में दस लोगों की मौत हो गयी, कई जगह गोली चलाई गयी। अनेक वाहन जला दिये गये। अरबों की सम्पति को लोग हैरान है कि सर्वोच्च न्यायालय के विरोध में इतनी अराजक हिंसा क्यों? केन्द्र सरकार ने भारत बंद के दोरान हुई हिंसा में मारे गये 11 लोगों के निकट परिजनों को दस दस लाख रूपये का मुआवजा देने का ऐलान किया।
2 अप्रैल को भारत बंद में हुई हिंसा में 11 लोेग मारे गये। परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, कानून में हाल में किये संसोधन पर रोक लगाने व फैसले बदले के लिए से इंकार करने हुए याचिका स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को 3 दिन के अंदर अपना पक्ष रखने को कहा । सर्वोच्च न्यायालय 10 दिन में सरकार की इस याचिका की सुनवाई करेेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहां कि मात्र आरोप लगाने से किसी को बिना जांच के जेल भेजना उचित नहीं है। न्यायालय का मकसद है कि किसी भी बेगुनाह को सजा न मिले।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ में सरकार द्वारा भारत बंद में हुई व्यापक हिंसक प्रदर्शनों की तरफ न्यायालय का ध्यान आकृष्ठ कर 20 मार्च को अनुसूचित जनजाति कानून में किये बदलाव पर रोक लगाने की गुहार लगायी तो न्यायालय ने कहा कि बाहर क्या हो रहा है हमे इससे मतलब नहीं हम सिर्फ कानून का पक्ष देखेंगे।वह इस कानून के खिलाफ नहीं है, लेकिन निर्दोषों को सजा नहीं मिलनी चाहिए।जो लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन्होंने हमारा जजमेंट पढ़ा भी नहीं है। हमें उन निर्दोष लोगों की चिंता है जो जेलों में बंद हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून के गलत इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कानून के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दे दी गई थी। जबकि मूल कानून में अग्रिम जमानत की व्यवस्था नहीं की गई है। वहीं दर्ज मामले में गिरफ्तारी से पहले डिप्टी एसपी या उससे ऊपर के रैंक का अधिकारी आरोपों की जांच करेगा और फिर कार्रवाई होगी।
इस कानून में बदलाव के विरोध में 3 अप्रैल को करोली राजस्थान में 40 हजार लोगों ने दलित विधायक व पूर्व विधायक का घर जला दिया। सुत्रों के अनुसार करौली में हिंसक भीड़ ने भाजपा विधायक राजकुमारी जाटव और पूर्व राज्य मंत्री कांग्रेसी नेता भरोसीलाल जाटव के घरों में आग लगा दी है।
इस प्रकरण पर भाजपा के खिलाफ दलितों के आक्रोश को और भडकाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना भाजपा और आरएसएस के डीएनए में है। भारत बंद के आवाहन का समर्थन करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि हजारों दलित भाई-बहन आज सड़कों पर उतरकर मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग कर रहे है। हम उनको सलाम करते है। वहीं कांग्रेस के सांसद प्रदीप टम्टा ने कहा कि सदियों तक मान, सम्मान व सम्पति से वंचित किये गये दलित समाज की सुरक्षा के लिए मिले कानून को कूंद करने से पूरा दलित समाज आहत व आक्रोशित है। प्रखर दलित चिंतक व राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा ने भारत बंद के दोरान हुई हिंसा के लिए भी भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया।
गौरतलब है कि 2 अप्रैल को भारत बंद में 20 राज्यों में दलित आंदोलन ने आम जनजीवन को प्रभावित किया। 10 लोग मारे गये। सबसे ज्यादा हिंसा मध्य प्रदेश के भिंड, मुरैना और ग्वालियर, भोपाल जनपदों में हुई यहां 6लोगों की दर्दनाक मोत हुई। ग्वालियर में हिंसक भीड़ ने एएसपी को पीटा। उप्र में तीन व राजस्थान में एक व्यक्ति मारा गया। उप्र के मेरठ, मुजफ्फरनगर, फिरोजाबाद में एक एक लोग मारे गये। गाजियाबाद, हापुड़ सहित कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन हुए। राजस्थान के जयपुर, जोधपुर में हिंसा हुई। अलवर में एक युवक की मौत हुई और जोधपुर में हिंसक भीड़ ने सब इंस्पेक्टर महेन्द्र चैधरी को निर्ममता से पीटा गया था उनकी 3 अप्रैल को मौत हो गयी। बिहार में महात्मा गांधी सेतुअवरूद्ध रहा। आरा में कई रेलगाडियां रोकी गयी। पंजाब में लुधियाना, जालंधर, अमृतसर, भटिंडा, कपूरथला, पटियाला में हिंसक आंदोलन हुए। वहीं महाराष्ट्र के नंदुरबार, गुजरात के अहमदाबाद, भावनगर, अमरेली, गिर, सोमनाथ, राजकोट व जूनागढ़ आंदोलन से प्रभावित रहा। उड़िसा के संबलपुर व झारखण्ड के धनबाद में हिंसक आंदोलन की चपेट में रहा। पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल, छत्तीसगढ़, गोवा हिमाचल, उत्तराखण्ड के चपेट में रहा। वहीं इस आंदोलन से 100 से अधिक रेल गाडियां प्रभावित हुई। दिल्ली से हरिद्वार तक लम्बा जांम रहा। मेरठ में उग्र भीड़ ने पुलिस की चैकी जला डाली। पंजाब में इंटरनेट सेवायें ठप्प रखी गयी।
अपनी मांगों के नाम पर हिंसक आंदोलन केवल दलित आंदोलन में ही नहीं अपितु देश में कश्मीर, नागा, बाबाओं की गिरफ्तारी के विरोध में से लेकर जाट आंदोलन, पाटीदार आंदोलन, गुर्जर आंदोलन, असम, बंगाल, नक्सल, गौरखालेंड, महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय विरोधी हिंसा, बाबरी प्रकरण, आरक्षण, पदमावत, तलाक प्रकरण, जातीय व धार्मिक आदि हिंसक आंदोलनों में हुई हिंसा से देश का अमन चैन पर ग्रहण लग गया। लोग हैरान है दिन प्रति दिन देश में हिंसक आंदोलनों की बाढ़ क्यों आ रही है। लोग अपनी ही सार्वजनिक सम्पति व निर्दोष लोगों की हत्या क्यों करते है? क्यों राजनैतिक दल, समाचार संगठन अन्यायपूर्ण या हिंसक आंदोलनों का दो टूक विरोध नहीं करते। क्यों अपने निहित स्वार्थ के लिए देश के अमन चैन व हिंसा का तांडव करने वाले आराजक तत्वों कोे कड़ी सजा नहीं दे कर देश में हिंसक आंदोलनों पर अंकुश लगाने का काम क्यों नहीं करती। हिंसक आंदोलन की बाढ़ से देश व्यथित है।
लोगों के दिमाग में एक ही सवाल उठता है कि देश में आखिर हिंसक आंदोलनों की बाढ़ क्यों आ रही है? इसका मूल कारण क्या है?
इस सृष्टि में अपने हितों की रक्षा व मांगों के लिए विरोध प्रकट करना मनुष्य सहित हर जीव का प्रकृति प्रदत अधिकार है। इसको भी राजशाही व तानाशाही मुल्कों मंें नहीं अपितु केवल लोकतांत्रिक देशों में ही सहजता से स्वीकार किया जाता है। न्यायोचित मांगों की सुनवायी व्यवस्था करे। परन्तु विरोध प्रकट करने के नाम पर किसी को भी दूसरे निर्दोष जीवों, सम्पतियों व व्यवस्था को तहस नहस करने का रत्तीभर भी अध्किी इजाजत नहीं दी जा सकती। जो लोग अपनी वेदना या मांग को प्रकट करने के लिए निर्दोष जीवों को हानि पंहुचाने या व्यवस्था को तहस नहस करते है। दूसरों को हानि पंहुचा कर व्यवस्था को आरजकता के गर्त में धकेलने में सहायक लोगों को व्यवस्था को तहस नहस करने का दोषी मान कर जीवंत व्यवस्थायें दण्डित करके अपनी रक्षा करती है। परन्तु भारत में होता उल्टा जो लोग अपनी न्यायोचित मांगों या राष्ट्रहित की मांग के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करते हैं सरकार उनका दमन करती है, समाचार जगत व समाज उनकी उपेक्षा करता है। वहीं जो लोग अपनी अलौकतांत्रिक या निहित स्वार्थी या न्याय विरोधी या देश द्रोही मांगों के लिए सड़कों पर खुलेआम आगजनी, तोड़फोड़, हिंसा व दंगा फैलाते है सरकार उनके आगे ही झुकती है। उनको दण्डित करने के बजाय उनकी मांगों को मानती है। राजनैतिक दल भी ऐसे जनविरोधी, निहित स्वार्थी, देश विरोधी व न्याय का गला घोंटने वाले आंदोलनों का अपनी दलीय स्वार्थ के लिए समर्थन दे कर हवा देने का राष्ट्र विरोधी कृत्य करते है। समाचार जगत भी उनकी खबरों को गैर जिम्मेदाराना ढंग से उनके कृत्यों पर पर्दा डाल कर उनके आंदोलन को चढ़ा बढ़ा कर प्रकाशित व प्रचारित करता है।
इसको देख कर आम जनता के मन में ऐसी धारणा बन जाती है कि सरकार व समाचार जगत तभी किसी मांग की तरफ ध्यान देते हैं जब उसमें आगजनी, मारपीट व उग्र आंदोलन हो। इसलिए अपनी मांग से आम जनता को जोड़ने के लिए लोग सीधे हिंसक आंदोलन कर देश को हिंसा की भट्टी में झौंकते है। अगर सरकार ऐसे आंदोलनों में हिंसा फैलाने के लिए जिम्मेदार असली गुनाहगारों को दण्डित करने का काम कर ऐसे आंदोलनों पर अंकुश लगाती और शांतिपूर्ण आंदोलनों की सुनवायी करती तो देश ऐसे अराजक आंदोलनों का बंधक नहीं बनता।
जब तक सरकारें व समाचार जगत जनहित व राष्ट्रहित के शांतिपूर्ण आंदोलनों के प्रति अपने गैर जिम्मेदाराना मनोवृति को त्याग कर देश विरोधी व अनैतिक मांगों को हतोसाहित नहीं करेगी तब तक देश में ऐसे ही हिंसक आंदोलन दिन प्रतिदिन बढ़ते रहेंगे। सबसे शर्मनाक बात यह है कि देश में भारतीय भाषा आंदोलन सहित देश के हित के लिए संसद की चैखट पर चल रहे आंदोलनों को जंतर मंतर से हटा दिया और कहीं जनहित के लिए आंदोलन करने की इजाजत नहीं दे रही है। वहीं कश्मीर में सुरक्षाबलों पर पथराव करने वाले आतंकियों को माफी दी जाती है और आत्मरक्षा के लिए आतंकियों पर गोली चलाने के कारण सेना पर हत्या का मामला दर्ज किया जाता है।सबसे हैरानी है कि जब सरकारें व समाचार जगत 5 साल से देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषाओं को लागू करने के लिए चलाये जा रहे भारतीय भाषा आंदोलन व 23 साल से चल रहे उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण बनाने के आंदोलन की शर्मनाक उपेक्षा करेगी और हिंसक आंदोलनों की सुनवायी करेगी तो देश में ऐसे ही हिंसक आंदोलनों से तबाह होना पडेगा। शेष श्रीकृष्ण। कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।