शिक्षा, चिकित्सा व न्याय का बाजारीकरण करना लोकशाही, मानवता, सामाजिक न्याय व देश के लिए है घातक
देशव्यापी हुई निंदा से घबरा कर त्रिवेन्द्र सरकार ने निजी कालेजों को बढ़े शुल्क को वापस लेने को किया तैयार
देवसिंह रावत
उत्तराखण्ड में सरकार की शह पर निजी चिकित्सा कालेजों में शिक्षा में शुल्क में भारी इजाफा क्या हुआ कि उत्तराखण्ड सहित पूरे देश में प्रदेश सरकार के निर्णय की कडी भत्र्सना हो रही है। लोग सरकार के इस कदम को लोकशाही का गला घोटने वाला निंदनीय कदम बता रहे है। देशभर में हो रही निंदा से भाजपा नेतृत्व से मिली फटकार के बाद उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सरकार ने 30 मार्च को आनन फानन में निजी चिकित्सा कालेजों को बढ़ी हुई शिक्षा शुक्ल वापस लेने के लिए तैयार कर दिया। इसकी सूचना मुख्यमंत्री ने अपनी फेसबुक में देते हुए लिखा कि प्रदेश के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ रहे छात्र छात्राओं के हित में, कॉलेज प्रबंधन से बातचीत के बाद मेडिकल कोर्सेस की फीसवृद्धि का फैसला वापस लेने के निर्देश दिए हैं। इससे मेडिकल छात्र छात्राओं को राहत मिलेगी।
भले ही मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से तत्काल बढ़ा शुल्क वापस ले लिया परन्तु देर सबेर यह मामला फिर प्रदेश में लागू कर दिया जायेगा। इसकी आशंका सरकार द्वारा इस सम्बंध में ठोस नियम न बनाने से साफ हो गया। लोग इस पर सरसरी तौर पर इसकी निंदा तो कर रहे हैं परन्तु इसका स्थाई निदान नहीं बता रहे है। यह सच है कि उत्तराखण्ड सरकार की शह पर निजी चिकित्सा कालेजों द्वारा अंधाधुंध शुल्क बढा दिया। परन्तु शिक्षा चिकित्सा में दो दशकों से पढ़ रहे अधिकांश छात्र पर्वतीय जनपदों में नियुक्त ही होना नहीं चाहते है। इस कारण राज्य गठन के बाद सरकार व चिकित्सा शिक्षा ग्रहण करने वालों ही हटधर्मिता से पर्वतीय जनपदों में चिकित्सकों के अभाव में चिकित्सालय दम तोड़ रहे है। लोग चिकित्सा अभाव में या तो दम तोड़ रहे या देहरादून, हल्द्वानी,दिल्ली, चण्डीगढ़ आदि शहरों की धूल फांक रहे है। इसलिए न तो चिकित्सा शिक्षा ग्रहण करके चिकित्सकों में वह सेवा भावना रह गयी व नहीं सरकार में जनहित व प्रदेश के हित में कार्य करने के दायित्व को निभाने का भाव ही रह गया। इसलिए आम जनता शिक्षा, चिकित्सा, न्यायालय तीनो दूर हो गये है। केवल थैलीशाहों के लिए यहां शिक्षा, चिकित्सा व न्याय रह गया। इसलिए अगर देश का सच में कल्याण करना है तो सरकार को शिक्षा, चिकित्सा व न्याय का बाजारीकरण करना लोकशाही, मानवता, सामाजिक न्याय व देश के लिए घातक है।
देश का करोड़ों रूपया एक छात्र को चिकित्सा व यांत्रिक शिक्षा देने में खर्च होते है। शिक्षा ग्रहण करने के बाद देश की सेवा करने के बजाय जिस प्रकार से मनमानी कृत्य किया जा रहा है उससे देश के दूरस्थ व सीमान्त जनपद चंद दशकों से चिकित्सकों से वंचित हो गये है। चंद दशक पहले देश के दूरस्थ क्षेत्र में भी चिकित्सक विद्यमान रहते थे। परन्तु अब अपने निजी चिकित्सा सेवा देकर लाखों कमाने के लालच में अधिकांश चिकित्सा शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र सीमान्त व दूरस्थ क्षेत्रों में अपने अनुबंध के अनुरूप सेवा देने के अपना राष्ट्रीय व मानवीय दायित्व निर्वहन करने के लिए तैयार नहीं है।
इसलिए इसका एकमात्र समाधान है कि सरकार को शिक्षा, चिकित्सा व न्याय का निजीकरण रोक कर सरकार देश के हर नागरिक को सर्वोत्तम शिक्षा, चिकित्सा व न्याय प्रदान करे। क्योंकि किसी भी व्यवस्था में शिक्षा, चिकित्सा व न्याय का निजी करण करना लोकशाही, मानवता, सामाजिक न्याय व देश के लिए घातक है। देश का एक भी नागरिक शिक्षा, चिकित्सा व न्याय से वंचित रहता है तो यह देश की लोकशाही पर प्रश्न चिन्ह है। प्रत्येक बच्चे को उसकी प्रतिभा के अनुसार सर्वोत्तम शिक्षा दे कर योग्य नागरिक बनाना सरकार का दायित्व होता है। संसार के कई देश इसलिए बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा, चिकित्सा व न्याय की जिम्मेदारी स्वयं निभाती है। इसी लिए देश के हर नागरिक का भी पहला राष्ट्रीय दायित्व होता है देश की सुरक्षा के लिए सेना में अपनी सेवा देना। सेवा काल में देश के दूरस्थ व सीमान्त क्षेत्रों में भी नियत समय सेवा का दायित्व निभाने के लिए तैयार नहीं है।