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देश लिए खतरनाक है राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे को जांच से मुक्त करने का कानून

क्या अमेरिका के दवाब में सरकार ने मिल कर लगाया राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे की जांच पर अंकुश

लोकसभा में बिना बहस के पारित हुआ बिल पास जिससे अब राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले विदेशी चंदे की नहीं हो सकेगी जांच

देवसिंह रावत –

इस सप्ताह संसद में हो रहे शोर शराबे के बीच सरकार ने राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे की जांच न किये जाने वाले बिल पारित कर दिया,  जिससे देश की लोकशाही पर गहरा संकट मंडराने लगा है। क्योंकि किसी भी दल को मिलने वाले विदेशी चंदे की जांच अब देश में नहीं की जायेगी। मोदी सरकार ने न जाने किसके दवाब में आकर यह बिल बनाया और क्यों इसे बिना बहस के पारित कर दिया। इस कानून के पारित होने से विदेशी चंदे के कटघरे में घिरी भाजपा व कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक दलों को भले ही राहत मिल जाये परन्तु देश पर गहरा खतरा मंडराने लगा है।

राजनेतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे की जांच पर अंकुश लगाने वाले इस कानून के पारित होने से कोई भी दुश्मन देश, भारत को कमजोर करने या देश को अराजकता के गर्त में धकेलने के लिए इस कानून की आड में देश में देश विरोधी राजनैतिक दलों या असामाजिक  व पदलोलुपु तत्वों को बढावा देने के लिए उनको अथाह विदेशी चंदे का भण्डार चंदे के नाम पर दे सकती है। जिससे देश में राजनैतिक अस्थिरता राजनैतिक दल को भारी मात्रा में विदेशी चंदे देकर पैदा की जा सकती है।
विदेशी ताकतें किस प्रकार अपने विरोधी देश पर काबिज होने के लिए षडयंत्र करते है। इसका नजारा मिश्र, लीबिया,इराक, सीरिया, फिलीपींस आदि देशों में ही नहीं देखने में आया। अपितु इस प्रकार का आरोप वर्तमान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्वाचित होने पर अमेरिका के एफबीआई सहित बडे वर्ग ने आरोप लगाया कि डोनाल्ड टम्प को अमेरिका का राष्ट्रपति बनाने के लिए रूस ने रहस्यमय ढंग से कार्य किया। यानी अमेरिका का बडा वर्ग इन आरोपों में विश्वास करता है कि रूस ने अपने समर्थक डोनाल्ड टम्प को अमेरिका में राष्ट्रपति बनाने का काम किया। भले ही अमेरिकी ऐजेन्सियों के इस आरोप को वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड टम्प सिरे से नकारते रहे परन्तु जनता के बडे वर्ग के दिलो में ऐसी धारणा बनी हुई है। भले ही अमेरिकी ऐजेन्सी अपने इन आरोपों को भले ही सिद्ध नहीं कर पायी परन्तु संदेह के बादल निरंतर मंडराते रहे।
गौरतलब है कि लोकसभा ने बिना बहस के एक ऐसा बिल पास किया है जिसके तहत अब राजनीतिक पार्टियों को साल 1976 से अब तक मिले विदेशी चंदे की जांच नहीं हो सकेगी। गत सप्ताह लोकसभा ने विपक्ष के हंगामें के बीच फाइनैंस बिल में 21 संशोधन किए। इनमें से एक फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) एक्ट 2010 में संशोधन भी शामिल था। यह कानून विदेशी कॉरपोरेशन को राजनीतिक दलों को फंडिंग करने से रोकता है।
केंद्र सरकार ने फाइनैंस बिल 2016 में फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) एक्ट 2010 में भी संशोधन किया है जिससे अब राजनीतिक दल आसानी से विदेशी चंदा ले सकेंगे। इसके अलावा सरकार ने यह संशोधन भी किया है कि 1976 से अब तक पार्टियों को दिए गए फंड की जांच नहीं की जा सकती है। इस पूर्व प्रभावी संशोधन के बाद विदेशी चंदे के आरोप मेें 2014 से ही आकंठ घिरी भाजपा  और कांग्रेस को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले से राहत मिल जाएगी जिसमें इन दोनों ही पार्टियों को फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) ऐक्ट 2010  का उल्लंघन करने का दोषी माना गया था।

फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) ऐक्ट 2010 को सन् 1976 में पास किया गया था जिसमें यह कहा गया था कि ऐसी भारतीय या विदेशी कंपनियां जो विदेश में रजिस्टर्ड हैं राजनीतिक पार्टियों को चंदा नहीं दे सकतीं। हालांकि इस बिल को बाद में फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन (रेग्युलेशन) ऐक्ट 2010 के जरिए निरस्त कर दिया गया था।

भाजपा सरकार ने फाइनैंस एक्ट 2016 में विदेशी कंपनी की यह कहते हुए परिभाषा बदल दी है कि जिस कंपनी में 50 पर्सेंट से कम विदेशी पूंजी होगा उसे फॉरन कंपनी नहीं माना जाएगा। यह संशोधन सितंबर 2010 से लागू माना जाएगा। इस संशोधन से पहले 26 सितंबर, 2010 से पहले लिए हुए विदेशी चंदे की जांच की जा सकती थी।
यह बात आम आदमी के समझ से परे है कि मोदी सरकार ने आखिर किसके दवाब में आ कर भारत में देश की एकता व अखण्डता को खतरे में डाल सकने वाले कानून को क्यों पारित किया ? क्या भारत सरकार पर अमेरिका का दवाब था? क्या अमेरिका इस कानून बनवा कर भारत में अपने प्यादे की रक्षा करना चाहता है या भारत की राजनीति में अपनी पकड़ बना कर देश को अपने शिकंजे में जकडना चाहता है। भारतीय हुक्मरानों को समझ लेना चाहिए कि अमेरिका ही नहीं भारत पर चीन व पाक सउदी अरब की सरपरस्ती में इस्लामी जगत भी ऐसे अकूत चंदा देकर राजनैतिक दलों पर अपना शिकंजा कसना चाहता है। अगर कल अमेरिका, चीन व अरब देश अपने अपने प्यादों को अकूत डालर या पेट्रो डालर दे कर देश की राजनीति को अस्थिर करने का कृत्य करेगा तो भारत सरकार कैसे रोकेगी। आखिर मोदी सरकार देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने, मांस निर्यात पर प्रतिबंद्ध लगाने या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का कडा कदम उठाने के बजाय किन प्यादों को बचाने या किन आकाओं को खुश करने के लिए राजनैतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदे को जांच से मुक्त करने  के लिए कानून बनाने का कृत्य हडबडी में कर बेठी? यही यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब भारत सरकार को देर सबेर तो देना ही होगा?

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