आंध्रप्रदेश को विशेष दर्जा ना मिलने से नाराज चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेदपा ने लिया मोदी सरकार से समर्थन वापस
नई दिल्ली (प्याउ)। 16 मार्च की सुबह जहां एक तरफ मोदी सरकार के 4 साल बाद भी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के वादा पूरा न करने से आहत मोदी सरकार की मजबूत सहयोगी 16 सांसदों वाली तेलगु देशम पार्टी ने आंध्र प्रदेश के हितों की रक्षा करने के लिए तुरंत राजग की मोदी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया।
वहीं दूसरी तरफ देश के सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड में राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों की शहादत, प्रदेश के चहुंमुखी विकास व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग को प्रदेश गठन के 17 सालों की सरकारों के तमाम सरकारें विश्वासघात कर रहे है। राज्य गठन के बाद यहां पर भाजपा व कांग्रेस की सरकारों को उक्रांद व बसपा का समर्थन रहा। परन्तु क्या मजाल है इन सरकारों ने कभी भी राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए ईमानदारी से एक कदम भी उठाये हो। आंध प्रदेश व तेलांगना प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को देख कर उत्तराखण्ड के लोग आहत है कि काश चंद्र बाबू नायडू व चंद्र शेखर राव की तरह उत्तराखण्ड के नेताओं को भी अपने प्रदेश के हितों के लिए संघर्ष करने की कुब्बत होती तो उत्तराखण्ड का चहुमुंखी विकास व देश की सुरक्षा पर आज ग्रहण नहीं लगता।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने जहां तेलांगाना बनने के मात्र 4 साल के अंदर ही आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी अमरावती बना दी हैं। प्रदेश में चहुंमुखी विकास कर रहे है। प्रदेश के हितों के लिए आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए निरंतर मांग कर रहे है। परन्तु जब केन्द्र सरकार ने इस मांग को अनसुना किया तो नायडू की तेलगू देशम पार्टी ने मोदी सरकार में आसीन मंत्रियों से इस्तीफा दिलाया अपितु मोदी सरकार से भी अपना समर्थन तक वापस ले लिया। वहीं उत्तराखण्ड के भाजपा सरकार ही नहीं कांग्रेस सहित तमाम नेता प्रधानमंत्री के समक्ष गैरसैंण राजधानी बनाने की पुरजोर मांग करने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। उत्तराखण्ड के नेताओं की इसी अंध पदलोलुपता के कारण प्रदेश गठन से पहले सहमत राजधानी गैरसैंण नहीं बन पायी। प्रदेश के हक हकूकों पर खुला गला घोटा गया। हिमालयी राज्यों में लागू भू कानून से उत्तराखण्ड को वंचित किया गया। उत्तराखण्ड को मिला विशेष राजधानी का दर्जा तक छिना गया। प्रदेश के पर्वतीय व सीमांत हिमालयी राज्य होने के बाबजूद मैदानी तरज पर विधानसभाई क्षेत्रों का विधानसभाई परिसीमन थोपा गया। प्रदेश में देशद्रोहियों व भू माफियाओं से बचाने के लिए मूल निवास व भू कानून को लागू करने का काम करने के बजाय इन दोनों को कूंद कर दिया।
परन्तु क्या मजाल की प्रदेश के नक्कारे नेता प्रधानमंत्री या अपने केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष प्रदेश के हितों की मांग को मजबूती से उठा सके।
15 मार्च को गैरसैण में राजधानी बनाने की मांग पर धन की कमी की बात करने वाली उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र रावत के बयान से आक्रोशित देहरादून में भीख मांग कर सरकार को संसाधन जुटा कर देने का प्रतीकात्मक आंदोलन छेडा। ‘राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान’ के प्रखर छात्र नेता सचिन थपलियाल के नेतृत्व में देहरादून भीख मांग कर उससे अर्जित रूपये को प्रदेश सरकार को देकर राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए संसाधन जुटाने का अभियान चलाया। हकीकत यह है मुख्यमंत्री व प्रघानमंत्री खुद कह चूके हैं उत्तराखण्ड के विकास के लिए कहीं संसाधनों की कमी नहीं है। परन्तु जब जनहित की बात आये तो मुख्यमंत्री धन की कमी का रोना रो रहे है। सचिन थपलियाल ने कहा कि सरकार बार-बार बजट का रोना रो कर स्थायी राजधानी का सवाल टाल देती है तो जब आम जनता लोगो से भीख मांग सकती है तो प्रदेश के मुखिया(ब.उ) देश के प्रधानमंत्री से क्यों नही स्थायी राजधानी के लिए बजट मांग सकते।’
युवाओं ने स्थायी राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर सरकार की मूलभूत सुविधाओं की असमर्थता और बजट की कमी को लेकर गांधी पार्क से घंटाघर जा कर आम जनता से भिक्षा मांगी जिससे 542 रुपये एकत्रित हुए जो कि सरकार को दे दिए जाएंगे ताकि सरकार स्थायी राजधानी के मुद्दे में कुछ ठोस निर्णय ले सके ।आंदोलनकारी अब तो जाग जाओ सरकार । शर्म करो शर्म करो शर्म नही तो डूब मरो!
उत्तराखण्ड में इन दिनों गैरसैंण राजधानी आंदोलन चल रहा है। इसी के दवाब में वर्तमान सरकार गैरसैंण में शीतकालीन व बजट सत्र का आयोजन किया जा रहा है। 18 मार्च को देहरादून में विशाल जनचेतना रैली ‘गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान ‘ का आयोजन किया जा रहा है। देहरादून में निरंतर आंदोलन से धधक रहा है। दिल्ली में राजधानी गैरसैण निर्माण अभियान सहित उत्तराखण्ड समर्थकों ने निरंतर गैरसैंण आंदोलन से देश की राजधानी गरमाई हुई है। वहीं गैरसैंण, रूद्रप्रयाग, चैखुटिया, अल्मोड़ा, बागेश्वर सहित अनैक स्थानों पर आंदोलनकारी निरंतर गैरसैंण की अलख जगाये हुए है। 20 मार्च को गैरसैंण में गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर विधानसभा का घेराव का कई संगठनों ने आवाहन किया है। वहीं 10 मार्च को संसद पर उत्तराखण्ड के कवियों व पत्रकारों ने राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान के तहत धरना दिया। राजधानी गैरसैंण के समर्थन में भाजपा के वरिष्ठ नेता मोहन सिंह ग्रामवासी जी का जनभावनाओं के साथ खडे होना सराहनीय है। वहीं गैरसैंण राजधानी के लिए श्रीनगर में 12 दिन से आमरण-अनशन पर बैठे संजय घिल्डियाल जी और 15 मार्च से आमरण अनशन पर बैठी उमा घिल्डियाल जी को समर्थन दिया। गैरसैंण में राजधानी बनाने की मांग करने वाले अनशनकारी आंदोलनकारियों पर पुलिस प्रशासन के कई बार के दमन के बाबजूद यहां पर राजधानी गैरसैंण की मशाल जलाई हुई है। रूद्र प्रयाग में मोहित डिमरी, सतपाल नेगी एवं साथी आंदोलन जारी रखे हुए है। वहीं पौडी धूमाकोट में मनीष सुन्दरियाल अलख जगाये हुए है। वहीं देहरादून में मजबूती से राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान के बैनर तले आंदोलन को एकसूत्र में पिरोने वाले रघुवीर बिष्ट, छात्र नेता सचिन थपलियाल, आंदोलनकारी रवीन्द्र जुगरान, पीसी थपलियाल, पुरूषोत्तम भट्ट, लक्ष्मी थपलियाल, ललित जोशी, जयदीप सकलानी, प्रदीप धौलाखण्डी,प्रदीप सत्ती, कैलाश जोशी अकेला, किमोठी व मोहन भुलानी सहित अनैक वरिष्ठ समाजसेवी सामुहिक रूप से आंदोलन को मजबूती से संचालित कर रहे है। वहीं भाकपा के समर भण्डारी,माले नेता इंद्रेश मैखुरी, जनगीतों के गायक शर्मा, कमला पंत के नेतृत्व में महिला मंच, उत्तराखण्ड क्रांति दल के अध्यक्ष दिवाकर भट्ट, काशीसिंह ऐरी, पुप्पेश त्रिपाठी व प्रताप शाही, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के पीसी तिवारी,प्रभात ध्यानी व प्रेम सुन्दरियाल आदि इस आंदोलन को बल दे रहे है। इस आंदोलन को बल दे रहे है। दिल्ली में गैरसैंण राजधानी आंदोलन के अलख जगाने वाले ‘गैरसैंण राजधानी अभियान दिल्ली के देवसिंह रावत,अवतार नेगी, अनिल पंत, खुशहाल बिष्ट, मोहन जोशी,गंभीर सिंह नेगी, मोहन रावत, प्रेमा धोनी,हंसा अमोला आदि। उत्तराखण्ड एकता मंच दिल्ली के दिगमोहन नेगी,सुरेन्द्र हालसी व शशिमोहन कोटनाला आदि, पत्रकार व्योमेश जुगरान, सुरेश नौटियाल, खुशहाल जीना, चारू तिवारी, सुनील नेगी, योगेश भट्ट, समाजसेवी विनोद नौटियाल, गैरसैंण से पुरूषोत्तम असनोडा, प्रवीण कुमार (बनारसवाले) व मदन मोहन ढौडियाल,, साहित्यकार पूरनचंद कांडपाल, पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, मधुर, आदि पत्रकार सुषमा जुगरान ध्यानी, कांग्रेसी नेता धीरेन्द्र प्रताप, लखनऊ से डीएस रावल सहित सैकडों समाजसेवी गैरसैंण आंदोलन में समर्पित है।
हजारों महिला, पुरूष, युवा व बुजुर्ग आंदोलनकारी राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए निस्वार्थ हो कर समर्पित है। कहीं पद व संगठन का संघर्ष का सवाल नहीं है। सबकी जुबान पर गैरसैंण राजधानी ही गूंज रही है। इसी मूल मंत्र से पूरे उत्तराखण्ड में एक व्यापक जनांदोलन चल रहा है। जो किसी एक व्यक्ति व एक संगठन के अहं से उपर उठ कर उत्तराखण्ड के कल्याण के लिए राजधानी गैरसैंण के नाम पर संचालित हो रहा है।
देश के सीमान्त प्रांत उत्तराखण्ड में राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों की शहादत, प्रदेश के चहुंमुखी विकास व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग को अनसुना करने वाले प्रदेश की 17 सालों की सरकारों के विश्वासघात के खिलाफ उत्तराखण्ड सहित दिल्ली सहित तमाम शहरों में जागरूक उत्तराखण्डी एकमत होकर राजधानी गैरसैंण बनाओ आंदोलन छेडे हुए हैं।
राजधानी गैरसैंण न बनने से जहां प्रदेश गठन के लिए व्यापक जनांदोलन करने वाले सीमान्त पर्वतीय जनपदों का विकास पूरी तरह अवरूद्ध हो गया। प्रदेश गठन के बाद आशा थी कि प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाकर इन पर्वतीय जनपदों सहित प्रदेश का चहुंमुखी विकास करेंगे। परन्तु प्रदेश के उत्तराखण्ड विरोधी नेताओं व नौकरशाहों ने अपनी पंचतारा सुविधाओं के मोह में अंधे हो कर जनभावनाओं व शहीदों की शहादत को रौंदते हुए बलात देहरादून में कुण्डली मार कर शासन संचालित करने का उत्तराखण्ड द्रोही कृत्य किया। देहरादून में ही राजधानी बनाये रखने के षडयंत्र के तहत 17 सालों तक प्रदेश की राजधानी जनता की भारी मांग के बाबजूद गैरसैंण में नहीं बनने दी। हालांकि भारी जनदवाब के बाद प्रदेश की जनता के आक्रोश को कम करने के लिए गैरसैण्ंा में विधानसभा भवन बना दिया गया। गैरसैंण में मंत्रीमण्डल की बैठक, विधानसभा के सत्र का संचालित किये गये। परन्तु 17 सालों में किसी भी मुख्यमंत्री को इतना साहस नहीं रहा कि वे प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को घोषित करे। प्रदेश की जनता हैरान है कि जब वहां विधानसभा भवन, विधायक निवास, सहित अन्य महत्वपूर्ण भवन बन चूके है। विधानसभा का बजट सत्र भी 20 मार्च से गैरसैंण में होना तय है। इससे पहले गैरसैंण में शीतकालीन सत्र भी आयोजित हो गया। फिर आखिर क्या कारण है प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को घोषित करने से प्रदेश की सरकारें जनहित के साथ देश की सुरक्षा को भी खतरे में डालने की देशद्रोही हरकत कर रहे है। जबकि देहरादून में नेताओं व नौकरशाही का डेरा डालने से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन पर्वतीय जनपदों से पटरी से उतर चूका है। इससे पर्वतीय जनपदों से खतरनाक पलायन हो रहा है। जो देश की सुरक्षा के लिए गहरा खतरा उत्पन्न हो गया है। यहां पर देश विरोधी आतंकियों व ताकतों के लिए अभ्याहरण सा बन गया है। सरकार की उदासीनता से भारत विरोधी तत्व भी जनाक्रोश को भुनाने के लिए नये नये मुखोटे पहन कर आंदोलन को हडपने के लिए हाथ पांव मार रहे है। देश के 120 के करीब जनपद नक्सल प्रभावित है। ऐसे में माओवादियोें का गढ़ बन चूके नेपाल से लगे उत्तराखण्ड में ये तत्व निरंतर अपना शिकंजा कसने में जुटे हुए है। सरकारें जनहित व देश हित की मांग को रौंद कर इस शांतिपूर्ण प्रदेश की शांति भंग करने के लिए उतारू हैं।
आंध प्रदेश व तेलांगना प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को देख कर उत्तराखण्ड के लोग आहत है कि काश चंद्र बाबू नायडू व चंद्र शेखर राव की तरह उत्तराखण्ड के नेताओं को भी अपने प्रदेश के हितों के लिए संघर्ष करने की कुब्बत होती तो उत्तराखण्ड का चहुमुंखी विकास व देश की सुरक्षा पर आज ग्रहण नहीं लगता।