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भारत, अमेरिका व जापान के साथ विश्व के लिए विनाशकारी है शी जिनपिंग का ताउम्र चीन का राष्ट्रपति बनना

  विश्व के सबसे प्रभावशाली व ताकतवर शासक बन कर शी जिनपिंग दुनिया में अपनी अमिट छाप छोडेंगे।

 

विश्व में चीन को समृद्ध व महाशक्ति बना कर विश्व पर काबिज होना चाहते हैं गुफा में रहने वाले किसान से दूसरे माओ बने शी जिनपिंग

देवसिंह रावत

जैसे ही 11 मार्च  को नेशनल्स पीपल्स कांग्रेस की सालाना बैठक में शी जिनपिंग को चीन का ताउम्र राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव अभूतपूर्व समर्थन से पारित किया। पूरी दुनिया में इसकी गूंज सुनाई दी। चीन में माओं की तरह ही वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग सर्वशक्तिमान हो गये है। चीन में उनकी ताकत का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन की सर्वोच्च संस्था नेशनल्स पीपल्स कांग्रेस के  2,964 मतदाताओं में केवल  2 मत इस प्रस्ताव के खिलाफ पडे और 3 सदस्य अनुपस्थित रहे।
गौरतलब है चीन में हुए इस अभूतपूर्व परिवर्तन की छाप न केवल चीन अपितु पूरी दुनिया में पडेगा।चीन में शी जिनपिंग का ताउम्र राष्ट्रपति बनने से चीन जहां अभूतपूर्व विकास तो करेगा। चीन महाशक्ति बनेगा। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी व चीन की व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। चीन के विरोध की आवाज व विद्रोही जमीदोज किये जायेगे।  परन्तु दूसरी तरह शी जिनपिंग पूरी दुनिया की लोकशाही के लिए  एक खतरा बन जायेगा। दुनिया के दो दर्जन से अधिक पडोसी देशों के साथ चीन का सीधा टकराव है। चीन अपने पडोसियों की जमीन हडपने व दूसरों को दबाने  के साथ तिब्बत की तरह हडपने के लिए कुख्यात है। चीन का जहां विश्व में अपने बर्चस्व को स्थापित करने के लिए विश्व की महाशक्ति अमेरिका से सीधे टकराव बढ़ेगा वहीं ंभारत, ताइवान, जापान सहित तमाम पडोसी देशों के लिए जी का जंजाल बन जायेगे। क्योंकि चीन अपने पडोसियों पर काबिज होने के लिए कुख्यात है। इसके साथ शी जिनपिंग का ताउम्र राष्ट्रपति बनना विश्व में लोकशाही के लिए बेहद खतरा है।
शी जिनपिंग को सिंगापुर के महान नेता ली कुआन यू, दुनिया के इतिहास के सबसे बड़े खिलाड़ी मानते है। सच में शी जिनपिंग विश्व के सबसे प्रभावशाली व ताकतवर शासक बन कर दुनिया में अपनी अमिट छाप छोडेंगे।

शी जिनपिंग के जीवन पर प्रकाश डालने वाली बीबीसी सहित दुनिया के संवाद सुत्रों के अनुसार चीन में 1990 के दशक से यह नियम था कि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के तौर पर अधिकतम दो कार्यकाल के लिए ही चुना जा सकता है. लेकिन शी जिनपिंग ने पिछले साल अक्टूबर में हुए कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में संभावित उत्तराधिकारी पेश करने की परंपरा तोड़ी और संविधान में उन्हें चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता और संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर दर्जा दिया गया था।
15 जून 1953 शी जिनपिंग  जन्मे जनवादी गणतंत्र चीन के सर्वोच्च नेता हैं जो चीन के उपराष्ट्रपति, चीनी साम्यवादी पार्टी के महासचिव, केन्द्रीय सैनिक समिति के अध्यक्ष और केन्द्रीय पार्टी विद्यालय के अध्यक्ष हैं। उन्हें 15 नवम्बर 2012 में चीनी साम्यवादी (कोम्युनिस्ट) पार्टी का महासचिव घोषित किया गया। चीनी नामों की प्रथानुसार इनके पारिवारिक नाम उनका पहला नाम शी है और जिनपिंग उनका व्यक्तिगत नाम है, इसलिए उन्हें साधारणतः अपने पहले नाम शी से बुलाया जाता है। नवम्बर 2012 में शी जिनपिंग को चीनी साम्यवादी पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया।

शी जिनपिंग चीनी साम्यवादी पार्टी के एक पुराने नेता शी झोंगशुन के पुत्र हैं। साम्यवादी पार्टी के अपने आरंभिक दौर में उन्होंने फूज्यान प्रान्त में काम किया। उसके बाद उन्हें पड़ोस के झेजियांग प्रान्त का पार्टी नेता नियुक्त किया गया। इसके उपरांत शंघाई में चेन लियांगयू के भ्रष्टाचार के आरोपों पर सेवा से निकाले जाने पर उन्हें उस महत्वपूर्व क्षेत्र का पार्टी प्रमुख बनाया गया। शी भ्रष्टाचार पर अपने कड़े रुख और राजनैतिक व आर्थिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए दो टूक बाते करने के लिए जाने जाते हैं। उन्हें चीनी साम्यवादी पार्टी के नेतृत्व की पांचवी पीढ़ी का प्रधान कहा जाता है।

पांच दशक पहले चीनी सांस्कृतिक क्रांति का गहरा प्रभाव पंद्रह बरस की उम्र के बालक शी जिनपिंग पर पडा। चीनी क्रांति के महानायक माओ की मशहूर छोटी लाल किताब ने उनके जीवन को प्रभावित किया। उनके पिता भी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय नेता थे, चीनी क्रांति के नायक माओ के अपने बर्चस्व को बनाये रखने के लिए जो दमनकारी कदम उठाये उनसे जिनपिंग भी अछूते नहीं रहे। उनके पिता को भी कम्युनिस्ट पार्टी से न केवल बाहर किया गया अपितु उनको जेल भी भेज दिया गया। पिता को जेल भेजे जाने का उसके परिवार को यह गहरा सदमा था, शी जिनपिंग की बहन की इस सदमें में मौत हो गयी। माओं के फरमान से बीजिंग के सारे विद्यालय बंद कर दिये गये जिससे शीजिनपिंग को भी 13 साल की उम्र में पढाई बंद करनी पडी।

परन्तु शी जिनपिंग ने अपना बचपन गांव में  खेती-किसानी का विकट जीवन जीया था।  चीनी गृहयुद्ध के दोरान कम्युनिस्टों का गढ़ के रूप में विख्यात शी जिनपिंग का पीली खाइयांें व ऊंचे पहाड़ वाले  येनान को लाल क्रांति की पवित्र भूमि के रूप में जाना जाता है। भले ही चीन के तमाम ग्रामीण क्षेत्र का तेजी से शहरीकरण किया गया परन्तु राष्ट्रपति शी के गांव को अपने पहले स्वरूप में रखा गया हैै। यह गाव आज कम्युनिस्टों के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
देश के शहरों में रहने वाले युवाओं को चीनी क्रांति के नायक माओ ने शहरों से गांव में जाने का फरमान सुनाया था। माओं की सोच थी कि शहरों में रहने वाले युवाओं को गांवों में जा कर किसानों व मजदूरों से जीवन के अनुभव अर्जित करें। माओ के इस फरमान से शी जिनपिग ने भी किसानों व मजदूरों से न केवल सीखा अपितु उन्होने उस जीवन को जीया भी। वे संसार के वर्तमान नेतृत्व में एकमात्र ऐसे नेता है जिन्होने गुफाओं में रहे हो, खेत खलिहानी की हो। शी जिनपिंग भले ही चीन सहित संसार अधिक है। परन्तु इंटरनेट पर चीन पर गहरी नजर रखे हुए हैै। चीन में कंोई भी फर्जी खाता बनाकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
शी जिनपिंग का मिशन है कि  चीन विश्व की सबसे बडी महाशक्ति बनने के साथ अमीर व अनुशासित देश हो।  चीन में विद्यालयी शिक्षा की किताबों में विदेशी संस्कृति की छाप कहीं भी उभरने नहीं दिया जाता। बचपन से ही बच्चे को चीन को महान बनाने की शिक्षा प्रदान की जाती है। निजी कम्पनियों में भी चीनी पार्टी की सदस्यता खोली गयी। वे किसी भी सूरत में चीन में विद्रोह सर न उठाये इसके लिए सतर्क रहते है। खुद शी जिनपिंग दुनिया भर मेें रह रहे चीनियों से अनुरोध करते है कि वे अपने-अपने देशों में चीन के महान इतिहास और इसकी ताकत के बारे में लोगों को बताएं। शी जिनपिंग भी दुनिया में अमेरिका की मुद्रा पर भी चीनी मुद्रा का वर्चस्व भी बनाना चाहता है।
शी जिनपिंग ने कभी अमेरिका सहित किसी भी विदेशी कम्पनियों का अभ्यारण नहीं बनने दिया अपितु उनको चीन के नियमों का पालन करके व्यवसाय करने की इजाजत दी। वह भारत सहित अन्य देशों की तरह इन विदेशी कम्पनियों के लिए चीन के राष्ट्रपति ने अपने दरवाजे नहीं खोले।
शी जिनपिंग माओ खुद को माओ का वारिस समझते हैंै वे देश को मजबूत व विकसित बनाना चाहते है इसलिए चीन के दुश्मनों को चीन में अभिव्यक्ति की आजादी दे कर चीन को बर्बाद नहीं करना चाहते है। यह उन्होने सोवियत संघ के बिखराव से सीख कर ऐसी भूल न करने का निश्चय किया।
शी जिनपिंग का मानना है कि हमें दूसरों की नकल न करके अपनी पहचान मजबूत बनानी चाहिए। इसीलिए वे चीनी नगारिकों से आवाहन करते है कि वो चीन के अपने जीवन मूल्य को अपनाएं. पश्चिमी सोच ने प्रभावित न हों।
शी जिनपिंग के चीन के ताउम्र सर्वशक्तिमान बनने के बाद दुनिया में जहां टकराव बढेगा वहीं पडोसी देशों में अस्थिरता बढेगी। यह दुनिया के अमन चैन के लिए खतरा ही साबित होगे। अगर शी जिनपिंग पडोसियों से टकराव के बजाय मित्रता के साथ रहते तो चीन की यह ताकत विश्व में अमन चैन के लिए सूर्य साबित होती। कुल मिला कर शी जिंगपिंग भी अमेरिका की बर्चस्व के मनसूबों की तरह ही विश्व मानवता के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। उतरी कोरिया का तानाशाह तो चीन का एक प्यादा मात्र है असली खतरा चीन की विस्तारवादी मनोवृति है।

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