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मैं कैसे खेलूं होली, दिल में दंश ही दंश है

होली है,होली है,आज यही चारों तरफ शोर है
पर मैं कैसे खेलूं होली, दिल में दंश ही दंश है।

मुजफ्फरनगर काण्ड का खूनी दमन का रंज है
माॅं भारती को अंग्रेजी की गुलामी का डंस है ।

लोकशाही को रौंद रहे, यहां हर तरफ कंस है
अंग्रेजी की गुलामी थोपने वाले ही जयचंद है।

भारत को मिटाकर इंडिया थोपने वाले धूर्त है
गैरसैंण को रौदने वाले भी शकुनि के बाप है।

पंचम के कहारों के दंश से, भारत भी त्रस्त है
जातिवादी गिरोहों से लोकशाही भी पस्त है ।
देवसिंह रावत

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