उत्तराखंड

गैरसैंण सहित उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को रौंद रही सत्तांध सरकारों से व्यथित रहे बाबा बमराडा

राज्य गठन आंदोलन के महान योद्धा बमराडा की सुध लेना तो रहा दूर अंतिम विदाई देने की होश नहीं रही उत्तराखण्ड के सत्तांधों को
 

भारतीय संस्कृति के जनयोद्धा, औजस्वी वक्ता व आशु कवि थे बाबा बमराड़ा

देवसिंह रावत

नहीं रहे बाबा बमराडा, जैसे ही 19 फरवरी की सांयकाल राज्य आंदोलन के साथी अनिल पंत ने मुझे इसकी जानकारी दी तो मेरे मन मस्तिष्क में राज्य गठन आंदोलन के  वरिष्ठ साथी महान योद्धा मथुरा प्रसाद बमराड़ा का चेहरा व उनके औजस्वी उद्घोष गूंजने लगा। 18 फरवरी की रात्रि 12 बजे देहरादून के दून अस्पताल में बाबा बमराडा ने अंतिम सांस ली। आंदोलनकारी व राज्य के समर्पित लोग उनकी शव यात्रा में न जुट,े शायद इसी आशय से प्रशासन ने आनन फानन में  बाबा बमराड़ा का अतिम संस्कार हरिद्वार में उनके दो बेटे हमेंद्र और अरुणोंद्र की उपस्थिति में करा दी। बाबा बमराड़ा का अंतिम दर्शन भी उनकी बेटी बैजयंती  कर पायी।
बाबा बमराड़ा के निधन की खबर सुनते ही राज्य गठन आंदोलनकारियों में शोक छा गया। राज्य के आंदोलनकारियों व समर्पित लोगों में इस बात का गुस्सा था कि राज्य गठन आंदोलन के महान योद्धा के निधन देहरादून में ही होने के बाबजूद प्रदेश के मुख्यमंत्री व उनके मंत्री के अलावा प्रशासनिक अधिकारियों ने राज्य गठन के प्रमुख नेता को अंतिम विदाई देने का दायित्व का निर्वहन करने का मानवीय शिष्टाचार तक नहीं निभाया। सरकार ने राजकीय सम्मान देना तो रहा दूर राज्य गठन आंदोलनकारी के परिजनों द्वारा हरिद्वार तक उनके पार्थिक शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने के लिए एम्बुलेंस की मांग को ठुकरा दिया। बाबा बमराडा के दोनों बेटे और दामाद ही उनके पार्थिक देह को हरिद्वार ले गए। हरिद्वार ले जाने के लिए भी पुलिस के चंदे से पेट्रोल का इंतजाम हुआ। बाबा बमराडा पिछले 15 महीने से दून अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। खबरों के अनुसार अस्पताल में  बाबा बमराडा के साथ रहे दिवंगत बाबा बमराडा के बेटे अरुणोंद्र ने जब पिता का हरिद्वार में अंतिम संस्कार की इच्छा जताई तो मदद के लिए सीएमओ देहरादून के अलावा पुलिस अधिकारी और कर्मचारी सामने आए। एसडीएम भी दून अस्पताल पहुंचे। इसके बाद एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। इंस्पेक्टर कोतवाली बीबीडी जुयाल ने बताया कि एंबलेंस में पेट्रोल की व्यवस्था करवा दी गई थी। इसके बाद बेटे शव को लेकर हरिद्वार रवाना हुए। अंतिम संस्कार के वक्त राज्य सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कोई मौजूद नहीं था। बाबा बमराडा के बेटे अरुणोंद्र इस बात से आहत है कि उनके पिता का पूरा जीवन संघर्ष भरा रहा है, जिसमें उन्होंने कभी भी परिवार को अहमियत नहीं दी। बाबा बमराडा के समग्र जीवन पर एलमोहन कोठियाल ने 2 साल पहले बाबा बमराड़ा पर एक पुस्तक लिखी।
राज्य गठन आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी नेता बमराड़ा का जन्म 1941 में पौड़ी के गढ़वाल के पंण्या गांव में हुआ था।१९७६ में दिल्ली में अलग उत्तराखण्ड राज्य की मांग के लिए प्रमुख आंदोलनकारी के रूप में भाग लेने वाले बाबा बमराड़ा जीवन के अंतिम समय तक राज्य के हितों के लिए समर्पित रहें । गढ़वाल विश्वविद्यालय आंदोलन व राज्य गठन के अलावा जनहितों के लिए  अनैक भूख हड़तालें की । बाबा जनांदोलनों में हमेशा अग्रिम मोर्चे पर रहे। जीवन के प्रारम्भिक जीवन में जनसंघ से जुडे बाबा बमराडा ने कश्मीर मुक्ति आंदोलन से भी जुडे रहे। इसके साथ बाबा बमराड़ा, संघ के मजदूर संघ में दतोपंत टेंगड़ी जी के सानिध्य में सक्रिय रहे। जनसंघ के बाद वे उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में पूरी तरह जुड गये। अपने उग्र भाषणों के कारण वे हमेशा युवाओं के चेहते रहे।
कश्मीर बचाओ के लिये तत्कालीन जनसंघ के नेता श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ आंदोलन में बाबा ने प्रमुख भूमिका निभाई। इसके साथ आपातकाल में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्ववाले आंदोलन में तिहाड जेल में बंद रहे। उत्तराखण्ड राज्य आदोलन तो बाबा बमराड़ा की भूमिका महत्वपूर्ण रही।  भले ही आज प्रदेश व देश में संघ की सरकार है। परन्तु संघ के पूर्व योद्धा को अंतिम विदाई तक देने की होश उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार को नहीं रही।
मुझे याद आने लगे बाबा बमराडा के संग राज्य आंदोलन में महिनों तक जंतर मंतर पर राज्य आंदोलन में उत्तराखण्ड रक्षा मंच के प्रमुख के रूप में जुडे रहे। अपने औजस्वी बयानों से नौजवानों को आंदोलित करने वाले बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा व पानसिंह परिहार ही ऐसे दो बुजुर्ग जांबाज थे जो नौजवान आंदोलनकारियों की जरा सी भी दिशा गलत होने पर मजबूती से टोकते थे। प्यारा उत्तराखण्ड में उनके जीवन, उनके विचारों व उनके संदेशों को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
राज्य गठन के बाद भी यदा कदा बाबा बमराड़ा से आंदोलनों में भैंट हो जाती थी। बाबा बमराड़ा, सरकारों द्वारा अपनी उपेक्षा करने से नहीं अपितु गैरसैंण राजधानी न बनाये जाने से भी वे बेहद आहत थे। बाबा बमराड़ा राजधानी गैरसैंण सहित राज्य गठन की जनांकांक्षाओं की उपेक्षा किये जाने से बेहद आहत थे। इसके लिए वे जहां अवसर मिलता सरकारों को धिक्कारते रहते । जब तक कांग्रेस की सरकारें रही बाबा बमराड़ा का सुध लेती रहती। परन्तु भाजपा की वर्तमान सरकार ने बाबा बमराड़ा की सुध लेने का सामान्य शिष्टाचार तक नहीं निभाया।
बाबा अब भले ही सदेह हमारे बीच में नहीं है परन्तु उनकी स्मृति हमारे बीच में है। प्रदेश सरकार की तरफ से उनको सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी कि राजधानी गैरसैंण तुरंत घोषित की जाय।
वहीं बाबा बमराड़ा को आंदोलनकारियों की तरफ से यही श्रद्धांजलि होगी कि वे राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए निर्णायक आंदोलन छेड कर शहीदों सहित बमराडा जी की गैरसैंण को राजधानी बनाने के संघर्ष को मुकाम पर पंहुचाये। आओ हम सभी बाबा बमराड़ा की पावन स्मृति को शतः शतः नमन् करते हुए उनके गैरसैंण राजधानी बनाने के अभियान को साकार करें।

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