उत्तराखंड

गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए मशाल जुलूस के रूप में देहरादून की सडकों पर उमड़ा जनसैलाब

 

 

देहरादून (प्याउ)। उत्तराखण्ड राज्य गठन के 17 साल बाद भी प्रदेश की अब तक की सरकारों द्वारा जनता व पूर्व उप्र सरकार की कौशिक समिति द्वारा चयनित उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण को घोषित न किये जाने से आक्रोशित उत्तराखण्ड की जनता का गुस्सा अब सडकों पर मशाल बन कर धधकने लगा है।
इसका एक नजारा 17 फरवरी 2018 शाम 5 बजे नेताओं व नौकरशाही की ऐशगाह बनी देहरादून में देखने को मिली। 9 फरवरी को संसद की चैखट पर उत्तराखण्डियों द्वारा प्रधानमंत्री मोदी से राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए किये गये संसद कूच की गूंज से परेशान उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार संभल भी नहीं पायी थी कि नेताओं व नौकरशाहों की ऐशगाह बनी देहरादून में गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के बैनर तले दर्जनों सामाजिक संगठनों ने 17 फरवरी 2018 शाम 5 बजे गाँधी पार्क से शहीद स्मारक स्थल तक विशाल मशाल जुलूस निकाला। सैकडों मशाले हाथ में ले कर, जनगीतों व राजधानी गैरसैंण बनाने के गगनभेदी नारे लगाते हुए जलसैलाब सांयकाल गांधी पार्क से शहीद स्मारक की तरफ कूच किया तो लोगों के जेहन में राज्य गठन आंदोलन की यादें ताजा हो गयी। इस मशाल जुलूस में आंदोलनकारियों ने सरकार को दो टूक चेतावनी दी कि बजट सत्र में राजधानी गैरसैंण को घोषित करें नहीं तो जनता ऐसे निकम्भी सरकार को राजधानी गैरसैंण घोषित कराने के लिए राज्य गठन आंदोलन की तर्ज पर व्यापक जनांदोलन छेड़ देगी।
इस मशाल जुलूस में राज्य गठन आंदोलन के शहीदों के सपनों को साकार करने की राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए राज्य गठन आंदोलन की तरह व्यापक जनांदोलन छेड़ने का संकल्प लिया। आंदोलनकारियों ने इस बात के लिए अभी तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों की कड़ी भत्र्सना की कि उन्होने जनता व अविभाजित उप्र की सरकार द्वारा गठित रमाशंकर कौशिक समिति की रिर्पोट द्वारा सर्वसम्मत से राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून में ही कुण्डली मार कर बैठ कर उत्तराखण्ड को बर्बादी के गर्त में धकेल दिया। बलात देहरादून में कुण्डली मार कर बैठे रहने से उत्तराखण्ड के वे सीमान्त व पर्वतीय जनपद शिक्षा, रोजगार व शासन से वंचित होने से पलायन के दंश से मर्माहित हैं, जिन्होने अपने चहुंमुखी विकास, सम्मान व हक हकूकों की रक्षा के लिए राव मुलायम जैसे अमानवीय सरकारों के दमन सह कर भी राज्य आंदोलन जीवंत रख कर राज्य गठन को मजबूर किया। सीमान्त व पर्वतीय जनपदों की देहरादून में कुण्डली मार कर बेठे नेताओं व नौकरशाहों ने अपनी अÕयाशी के लिए प्रदेश की जनांकांक्षाओं, शहीदों के सपनो व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण को रौंद कर देश व प्रदेश के हितों पर कुठाराघात किया। आंदोलनकारी हैरान थे कि जब राज्य गठन आंदोलन चलाया ही गया राजधानी गैरसैंण के लिए, शहीदों ने राजधानी गैरसैंण के लिए दी, और प्रदेश से पूर्व उप्र सरकार की कौशिक समिति ने राजधानी गैरसैंण के पक्ष में अपनी रिर्पोट दी। तो गैरसैंण राजधानी बनाने के बजाय हुक्मरानों ने बलात देहरादून में कुण्डली मार कर प्रदेश को तबाही के गर्त में धकेल दिया। जबकि हिमालयी राज्यों की राजधानी पर्वतीय क्षेत्र में है। वर्तमान में प्रदेश की एकमात्र विधानसभा भी गैरसैंण में है। गैरसैंण की विधानसभा में शीतकालीन, ग्रीष्मकालीन सत्र होने के बाद अब बजट स त्र भी आयोजित हो रहा है। ऐसे में क्यों प्रदेश के हुक्मरान जनभावनाओं, सरकार की समिति व देश की सुरक्षा के लिए अपने जनसेवक के दायित्व का निर्वाह करते हुए गैरसैंण राजधानी घोषित कर रहे है।
राज्य गठन के 17 सालों की उत्तराखण्ड की तमाम सरकारों के नकारेपन का नमुना है जनसम्मत राजधानी गैरसैंण की घोषणा सरकार द्वारा नहीं किया जाना। जबकि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू ने तेलांगना बनने के मात्र 4 साल के अंदर ही आंध्र प्रदेश की भव्य राजधानी अमरावती को न केवल घोषित किया अपितु इसका निर्माण भी कर दिया है।
17 फरवरी को मशाल जुलूस में भाग लेने वाले सामाजिक संगठनों में जहां देहरादून सहित उत्तराखण्ड की अलकनंदा पिंडर घाटी विकास समिति, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली विकास समिति, पर्वतीय विकास मंच, बद्री केदार विकास समिति, उत्तराखंड आंदोलनकारी मंच, अखिल गढ़वाल सभा, नैनीडांडा विकास समिति, उत्तराखंड रैफरी फुटबॉल एसोसिएशन, उत्तराखंड जनमंच, उत्तराखंड बैंक एसोसिएशन, नव भारत संघ, अपना परिवार, कूर्माचल विकास परिषद्, गढ़ सेना, पूर्व सैनिक अर्ध सैनिक संगठन, ग्यारह गांव हिंदवाण, डांडी कांठी क्लब, धाद संस्था, मैती संस्था, उत्तराखंड नव निर्माण मंच, उफ्तारा संस्था, उत्तराखंड फुटबॉल अकादमी के अलावा दिल्ली की सबसे बडी सामाजिक संगठन उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली ने मशाल जुलूस में भागेदारी निभाई।गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान के रघुबीर बिष्ट, सचिन थपलियाल, देवसिंह रावत, रविंद्र जुगरान, पी. सी. थपलियाल, हेमा देवराड़ी, मोहन रावत उत्तराखण्डी, प्रदीप कुकरेती, लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल,अनिल पंत, बी एस. रावत, जगमोहन मेहंदीरत्ता, जयदीप सकलानी, पुष्कर नेगी, विजय बौड़ाई, कैलाश जोशी, ललित जोशी, महेंद्र रावल,पुरूषोत्तम भट्ट, मोहन भुलानी, सूरवीर राणा , पुष्कर नेगी, लूसुन टोडरिया, सतीश धोलाखंडी सहित अनैक समाजसेवी मशाल जुलूस को सफल बनाने में जुटे हुए थे।
इस जलूस में दिल्ली में 2016 से गैरसैंण राजधानी की अलख जगाने वाले उत्तराखण्ड एकता मंच दिल्ली का शिष्टमण्डल ने भी मशाल जुलूस में भाग लिया। भाग लेने वालों में उत्तराखण्ड एकता मंच दिल्ली के देवसिंह रावत, अनिल पंत, दिगमोहन नेगी, सुरेन्द्र हालसी, शशिमोहन कोटनाला, अभिराज शर्मा ,सूरज रावत,आदि सम्मलित थे।
प्रसिद्ध जनगीतों के गायक अतुल शर्मा, जयदीप सकलानी, सत्तीश धोलाखण्डी, सचिन थपलियाल व मोहन रावत उत्तराखण्डी की अगुवाई वाले स्वरों में  ‘ये केसी राजधानी है.., लडके लेगे, भीड़ कर लेंगें गैरसैंण, ले मशाले चल पडे है लोग मेरे गांव के आदि जनगीतों से देहरादून गूंज गया। शहीद स्थल पर ये केसी राजधानी है…नामक जनगीत के लेखक पत्रकार नेगी की उपस्थिति में आंदोलनकारियों ने रात के अंधेरे में मशालों की रोशनी में जनगीत गाया।
अन्य प्रमुख आंदोलनकारियों में पुरुषोंतम सती,भगवत भ प्रसाद मैंदोलिया,अनिल रावत,पुष्कर नेगी,गोपाल गुसाईं,दिनेश बडोला, पूर्व सैनिक संगठन के बचन सिंह रावत,प्रेम गुसाईं,पत्रकार योगेश भट्ट, ब्रिगेडियर बिनोद पसबोला,कर्नल परमार,रुपेंद्र रावत,अनुपम रावत,रेेेनू नेगी,रेेेखा, बबीता, द्वारिका बिष्ट  सीता भण्डारी, अनिल रावत, विकास नेगी, विजय बबौडाई, कैलाश जोशी, कमल रजवार, स आदि सम्मिलित थी।
इस मशाल जुलूस में बड़ी संख्या में छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, बुजुर्गों, पत्रकारों, रंगकर्मियों ने प्रमुखता से भाग लिया।

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