uncategory देश

हिंद को नाज है अपनी मेघा रावत जैसी प्रतिभावान जांबाज लाडलियों पर

सिर से पिता का साया उठने के बाद टयूशन पढ़ा कर परिवार का सहारा बन भारतीय सेना में अधिकारी बनी दिल्ली में किराये के मकान में रहने वाली बेटी मेंघा रावत

 

हर साल भले ही सैकडों छात्र छात्रायें सेना सहित अन्य प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होती है। पर जैसे ही दिल्ली के आदर्श नगर मेट्रो स्टेशन के पास इंदिरा नगर गली.9 में किराये के मकान में रहने वाली मेघा रावत के भारतीय सेना में लेफ्टिनेट बनने की खबर लोगों ने सुनी तो लोग, बाप का साया उठ चूकी इस प्रतिभाशाली व जांबाज लड़की मेघा रावत व उसकी विधवा माॅ सुशीला की लगन व मेहनत की मुक्त कंठों से प्रशंसा कर अपने बच्चों से भी मेघा रावत से प्रेरणा लेने की सीख देने लगे। अपनी बेटी की सफलता की इस सफलता की खुशी, 2016 में पति का साया सर से उठने के दुख से  दुखी सुशीला रावत के चेहरे पर लम्बे समय बाद दिखाई दी।
भले ही मोदी की वर्तमान सरकार देश में जोरशोर से प्रचार कर रही है कि बेटी पढाओं व बेटी बढाओ। पर मेघा के मां बाप ने वर्षो पहले से ही बेटी पढ़ाओं व बढाओं के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। जिन्होने न केवल विकट परिस्थितियों का बहादूरी से मुकाबला करके पहाड़, हो या मैदान, रेगिस्तान हो या समुद्र सभी जगह करके अपना परचम लहराया और देश विदेश में हमारा सर ऊंचा किया।  विषम परिस्थितियों में यह देश ही नहीं विश्व आबाद है तो नर नारियों के अदम्य साहस, मेहनत व बुद्धिकोशल से।
उत्तराखण्ड की इस प्रतिभाशाली जांबाज बेटी मेधा रावत जिन विकट परिस्थितियों में जीवन जी कर भी देश की रक्षा के लिए भारतीय सेना में
इसी सप्ताह 30 जनवरी को जैसे ही मेघा रावत ने भारतीय सेना में अधिकारी की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस खबर को सुनते ही उनके पैतृक प्रदेश उत्तराखण्ड, दिल्ली के आदर्श नगर, दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मी बाई कालेज को  अपनी इस प्रतिभावन बिटिया पर गर्व करने लगे।
मेघा रावत की यह सफलता देश के उन सभी लोगों के लिए किसी प्रेरणा दायक कहानी से कम नहीं है। जो गरीब परिवारों से जुडे है।
खबरों व लोगों की जुबान पर मेघा रावत की सफलता की कहानी लोगों की जुबान पर है।  मेघा की सफलता की कहानी बेहद मर्म स्पर्शी है। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे कर उनका भविष्य संवारने के लिए मेघा के पिता अपने उत्तराखण्ड को छोड़ कर दिल्ली में आये। मेघा के शब्दों में  उनकेे पिताजी उत्तराखण्ड से दिल्ली आए तो रिश्तेदारों के पास रहे , चाय की दुकान खोली, मंडी में काम किया। लेकिन कभी हमें यह महसूस नहीं होने दिया कि कम पैंसों की वजह से हम निजी स्कूल में नहीं पढ़ सकते है। माता पिता का संघर्ष  मेरे आंखों के सामने था यही एक पूंजी लेकर मैने आगे का सफर शुरू किया।  मेघा के पिताजी हमेशा कहते थे कि माॅ बाप का सबसे बडा निवेश उनके बच्चों को अच्छा संस्कार व तालीम देना है।
बच्चों की पढ़ाई व उनके उज्जवल भविष्य के लिए जहां उनके पिताजी कड़ी मेहनत करते थे वहीं उसकी माॅं बच्चों को टयूशन पढ़ा कर अपने बच्चों को किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने देते। परिवार का गुजर बसर करने वाले पिता का 2016 में बीमारी काल कल्वित हो गये। परन्तु मेघा रावत की माता सुशीला रावत रावत ने हार नहीं मानी। उसने अपनी बेटी मेघा को भी पति के मौत से पहले ही बच्चों को टयूशन पढ़ाने की आदत डाल दी थी। ट्यूशन पढाने से जहां मेघा रावत में आत्मविश्वास भी बढ़ गया। परिवार की स्थिति, चिंता व तनाव से उसका स्वास्थ भी बिगड गया। छोटा भाई का स्वास्थ्य भी खराब होने लगा।
परन्तु मेघा को एनसीसी में सम्मलित होने के बाद से ही सेना में जुडने का मन बना लिया था। मेघा रावत की सफलता पर उसकी माॅं सुशीला रावत का कहना है कि मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था। आज इनके पिता नहीं है, लेकिन उनका आशीर्वाद बच्चों के साथ है। मेरी बेटी की सफलता में हमारे संघर्ष व भरोसे की जीत है।
इस सफलता के बाद मेघा के आंखों में जहां सफलता की खुशी साफ झलक रही है वहीं उसकी जुबान पर अपने माॅ बाप द्वारा उनकी शिक्षा व भविष्य निर्माण के लिए की गयी मेहनत के लिए आभार है। उसे उतराखण्डी होने का गर्व है। वह कहती है कि उसे पहाडी होने पर गर्व है। मेघा ने कहा कि हर उत्तराखण्डी सेना में जाना चाहता है। मेरे माता पिता भी ऐसा चाहते थे। लेकिन परिस्थितियां शुरू से अनुकूल नहीं थी। मेरे पिता ने संघर्षशील जीवन जीया। लेकिन कभी उसे हावी नहीं होने दिया। निर्धनता बनी रोड़ा तो पहले उसे तोड़ा। बडी होते होते मैं भी माॅं के साथ बच्चों को टयूशन पढ़ाने लगी। मैने लोगों के घर जा कर पढ़ाना शुरू किया। यह संघर्ष और बढ़ गया।
भारतीय सेना में अधिकारी बन कर मेघा को इस बात का दुख है कि उसके पिता आज उसकी सफलता नहीं देखने के लिए हमारे बीच में नहीं है। परन्तु उसे इस बात का संतोष है सेना में अधिकारी बन कर उसने अपने पिता के सपने व संघर्ष को साकार किया। माॅ बाप के इस त्याग व संघर्ष को साकार करने वाली मेघा रावत की सफलता उन अभाव में जीवन बसर कर रहे बालिकाओं व बच्चों के लिए आशाा का एक चिराग से कम नहीं है। मेघा की कहानी उन बच्चों के लिए एक सबक है जो अपने माॅं बाप को खुद के लिए कुछ नहीं करने के लिए कोसते रहते है।  प्यारा उत्तराखण्ड, मेघा उसकी माॅं सहित परिजनों को बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है।

About the author

pyarauttarakhand5